कलीसिया (चर्च) में मूर्तिपूजक परम्परांए एंव विधर्म - भाग 5

  पवित्र भवन, ऊंचे घण्टाघर, क्रूस, रवि-वार (सन-डे), यहां तक कि प्रभु यीशु (लॉर्ड जीसस) और बहुत सी बातें हमारी मूर्तिपूजक विधर्मिता की बपौती हैं।

इक्लीसिया का प्रतिक चिन्ह दीवट (मेनोराह) ही  है। (प्रकाशित वाक्य 1ः20)

शुभ शुक्रवार Good Friday, 6 वां दिन)

वास्तव में यह शुभ नहीं है क्योंकि याहशुआ पांचवा दिन (बृहस्पतिवार) को मरे थे, नहीं तो योना के विषय में कही गई तीन दिन और रात वाली बात पूरी नहीं होती है (मत्ती 12ः39,40)। इसी दिन, इस्राएली अपने घरों में भुना हुआ (Roast) मेंम्ना, अखमीरी रोटी, और कडुआ साग पात खाते थे, किसी मन्दिर में, या यहूदी आराधनालय (सिनेगॉग) में नहीं, जिस प्रकार याहशुआ ने उनकी अन्तिम बियारी में किये थे। यह इस्राएलियों के मिस्त्रियों के दासत्व से स्वतंत्र होने के रूप में मनाया जाना था (निर्गमन 12ः43-48; लूका 22ः11-13)। नये नियम की इक्लीसिया इसे बड़े आनन्द के साथ घर घर रोटी तोड़कर मनाती थी (प्रेरितों के काम 2ः46,47; 1कुरिन्थियों 11ः20)।

दुःख की बात है कि यह मिलन स्थान बदलकर सब परम्परागत चर्च भवन में आ गया है, जहां यह अधिकृत रिवाज़ की तरह रविवार के सबेरे मैयत जैसे ग़मगीन माहौल में किया जाता है, जबकि फसह हमेशा संध्या के भोज पर मनाया जाता था। जो रोटी दी जाती है वह भी अखमीरी रोटी नहीं है, परन्तु वह सूर्य के आकार की सफेद छोटी छोटी वैफर होती हैं, जिन्हें मूर्तिपूजक याजक अब्रा कदाब्रा और होकुस पेकुस (Hokus Pokus = गंभीरता पूर्वक) के साथ सूर्य को अर्पण करते थे, जिससे वह सूर्य की वास्तविक उपस्थिति में परिवर्तित हो जाए और फिर उसे देवता की शक्ति प्राप्त करने के लिए खाया जाए। हमें इस भोज को बहुत साधारण रीति से विश्वासियों के घरों में लांघन पर्व/बलिदान के दिन के रूप में मनाना चाहिये। यह गरीबों को अच्छा भोजन मिलने का अवसर होगा और अविश्वासियों पड़ौसी, याहशुआ के प्रायश्चित के बलिदान के विषय में जानने पाएंगे। 

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