कलीसिया (चर्च) में मूर्तिपूजक परम्परांए एंव विधर्म - भाग 8

  पवित्र भवन, ऊंचे घण्टाघर, क्रूस, रवि-वार (सन-डे), यहां तक कि प्रभु यीशु (लॉर्ड जीसस) और बहुत सी बातें हमारी मूर्तिपूजक विधर्मिता की बपौती हैं।

इक्लीसिया का प्रतिक चिन्ह दीवट (मेनोराह) ही  है। (प्रकाशित वाक्य 1ः20)

सब्त

 एल इलोहीम ने, जो सर्व शक्तिमान हैं, सौर जगत की सृष्टि की और सातवें दिन विश्राम किया और उसे एक चिरस्थाई वाचा बना दिया, जिसे ‘‘दस आज्ञाओं’’ में जगह दी गई और जिसे याहवेह ने स्वंय अपनी हाथ की उंगलियों द्वारा लिखा था, एक ऐसे दिन के रूप में जिसमें सारे वर्जनीय व्यावसायिक कार्यों को छोड़कर विश्राम करना चाहिये (निर्गमन 20ः8-11) यह एक पिता को अपने कुटुम्ब के साथ अच्छा समय प्रदान करता था, जिसके परिणाम स्वरूप मजबूत और परिपक्व घरानों का निर्माण होता था। एक घराना शैतान का मुख्य निशान होता है। यदि वह इसे नाश करने में सफल हो जाता है, तो वह याहवेह की प्राथमिक इकाई को नष्ट कर देता है (मलाकी 4ः6)। सब्त, सृष्टिकर्त्ता इलोहीम के साथ सम्बन्ध को पुनः स्थापित करता हैं, विश्राम देता है, धार्मिक अगुवों ने सब्त के साथ बहुत सी धार्मिक परम्पराओं को जोड़ दिया, जिससे वह आशीष होने के बदले एक भार बन गया। याहशुआ ने सब्त को माना और इसी प्रकार पौलूस ने भी। याहशुआ ने सब्त को समाप्त नहीं किया परन्तु उन्होंने केवल उसमें उसके मूल अभिप्राय और अर्थ को ले आए हैं। (लूका 4ः16; 6ः1-12; प्रेरितों के काम 18ः4)

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