कलीसिया (चर्च) में मूर्तिपूजक परम्परांए एंव विधर्म - भाग 7
पवित्र भवन, ऊंचे घण्टाघर, क्रूस, रवि-वार (सन-डे), यहां तक कि प्रभु यीशु (लॉर्ड जीसस) और बहुत सी बातें हमारी मूर्तिपूजक विधर्मिता की बपौती हैं।
इक्लीसिया का प्रतिक चिन्ह दीवट (मेनोराह) ही है। (प्रकाशित वाक्य 1ः20)
क्रिसमस
शीत ऋतु में उत्तरायण या अयनांत के बाद से दिन बड़े होने लगते हैं और इसलिये इसे मूर्तिपूजकों द्वारा सूर्य की उपासना के रूप में मनाया जाता था। इस पर्व के समय अन्य जातिय लोग आपस में एक दूसरे को भेंट भेजते थे, पशुओं की बलि चढ़ाते थे और फिर खाना पिना और कामुक धार्मिक विधानों को पूरा करते थे। एक निर्दोष ग्रामीन मठवासी जिसका नाम डायनीसुस एक्सीगुडस था, ने रोक की यात्रा की और वहां चर्च में किये जा रहे कार्यो को देखकर उसे बड़ा सदमा पहुंचा। उसने हिसाब लगाया कि याहशुआ ने लगभग 525 वर्ष पूर्व देहधारण किये थे (पैदा हुए थे) जो वास्तविक समय से पांच वर्ष पृथक है और उसने चर्च को प्रेरित किया कि सेटिरनेलिया (Satyrnalia) को क्रिसमस (क्रिस्तोस + मॉस) के रूप में पवित्र करके अलग करें। केथोलिक मॉस में ‘‘शब्द जिसका अर्थ ’’प्रस्थान’’ है, प्रीस्ट द्वारा सबसे बाद में कहा जाता था। 525 सी. ई. तक चर्च क्रिसमस नहीं मनाते थे।सम्भवतः याहशुआ का जन्म सितम्बर माह में झोपड़ियों के पर्व के समय हुआ था, जब उन्होंने मनुष्यों के बीच अपना डेरा (Tabernacle) किया था (मत्ती 1ः23)। याहवेह और मेम्ना एक बार फिर नई सृष्टि में मनुष्यों के बीच डेरा करेंगे। (यहेजकेल 6ः4,6; प्रकाशितवाक्य 21ः3; 22,23)
Comments
Post a Comment