पवित्र भवन, ऊंचे घण्टाघर, क्रूस, रवि-वार (सन-डे), यहां तक कि प्रभु यीशु (लॉर्ड जीसस) और बहुत सी बातें हमारी मूर्तिपूजक विधर्मिता की बपौती हैं।
इक्लीसिया का प्रतिक चिन्ह दीवट (मेनोराह) ही है। (प्रकाशित वाक्य 1ः20)
झोपड़ियों (मण्डपों) का पर्व
इस पर्व को मध्य सितम्बर में उपज की कटनी जमा कर लेने के बाद, मनाया जाता था (
लैव्यवस्था 23ः34)। इसे वे अपने 40 वर्षों तक जंगल के बियाबान में रहने की स्मृति में बनाते थे। वे खजूर और जैतून वृक्षों की डालियों और पत्तियों के द्वारा अस्थाई झोपड़ियां बनाते थे और उनमें सात दिनों तक रहते थे। फैले हुए घराने एक दूसरे से मिलने आते थे, और बड़े आनन्द का अद्भुत समय व्यतीत करते थे और याद करते थे कि याहवेह ने कैसी अद्भुत रीति से उनके इतिहास में हस्तक्षेप किया था और उन्हें मिसर के दासत्व से स्वतंत्र किया था नहीं तो वे अब तक दास बने रहते। याहशुआ इन्हीं दिनों में पैदा (हुए होंगे, जबकि स्वर्गदूतों ने घोषणा किये थे कि, याहवेह का डेरा (इम्मानुएल) मनुष्यों की बीच में है। यह पर्व अनन्त काल तक मनाया जाना है, जो हमें याद दिलाता रहेगा कि हम इस पृथ्वी पर परदेशी और मुसाफिर हैं। परन्तु इससे पहिले कि यह हो, अन्यजातियों की खोई हुई आत्माओं की एक बहुत बड़ी कटनी को जमा किया जाएगा, क्योंकि याहवेह परमेष्वर की वाणी है, ‘‘उदयाचल से लेकर अस्ताचल तक अन्यजातियों में मेरा नाम महान है’’ (
मलाकी 1ः11)। ‘‘तब हर एक कुल और लोग और भाषा में से एक ऐसी बड़ी भीड़ जिसे कोई गिन नहीं सकता था श्वेत वस्त्र पहिने और अपने हाथों में खजूर की डालियां लिए हुए सिंहासन के साम्हने खड़े हैं और याहवेह परमेश्वर की स्तुति कर रहे हैं’’। (
लैव्यवस्था 23ः1-44; 1पतरस 2ः11; मत्ती 1ः23; नहेम्याह 8ः14-17; यशायाह 14ः1; 56ः6-8; जकर्याह 2ः11, प्रेरितों के काम 15ः17; प्रकाशित वाक्य 7ः9,10)
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