कलीसिया (चर्च) में मूर्तिपूजक परम्परांए एंव विधर्म - भाग 10
पवित्र भवन, ऊंचे घण्टाघर, क्रूस, रवि-वार (सन-डे), यहां तक कि प्रभु यीशु (लॉर्ड जीसस) और बहुत सी बातें हमारी मूर्तिपूजक विधर्मिता की बपौती हैं।
इक्लीसिया का प्रतिक चिन्ह दीवट (मेनोराह) ही है। (प्रकाशित वाक्य 1ः20)
पिन्तेकुस्त
पुरीम
फारस के राजा अर्तक्षत्र का वजीर, हामान, यहूदियों से घृणा करता था और उसने चिट्ठी (इब्रानी भाषाओं ‘‘पूर‘‘) डाला कि यहूदियों का विध्वंस घात करे (यूनानी भाषा में पूर का अर्थ है आग के समान या आग)। रानी एस्तर (फारसी में सितारा-तारा) को इस भंयकर योजना के विषय में उसके रिश्ते के भाई, मोर्दकै द्वारा पता चला, तब उसने इस गंभीर सताव का सामना करने के लिये रणनीति बनाई जो भयंकर सताव का सामना करने के लिये रणनीति बनाई जो भंयकर सताव से मुकाबला करने के लिये आदर्श नमूना है।
2. उसने सारे यहूदियों से एक स्थान पर जमा होने के लिये कहा और उन्हें बचाव के लिये तथा आक्रमण के लिये तैयार रहने के लिये कहा।
3. उसने सरकार से भी अनुरोध किया, कि उसके समर्थन में कार्य हो सके। परिणामः उसके विरोधी नाश हुए, हमान को फांसी पर लटका दिया गया और यहूदियों को बचा लिया गया। मोर्दकै, प्रधानमंत्री बन गया, और यहूदियों का प्रभाव कूश देश (इथ्योपिया) से लेकर भारत तक बढ़ गया। (एस्तर 1ः1; 4ः14-17; 9ः24-26)
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