शैतान कैसे हमारी प्रार्थनाओं को रोकता है ! स्वर्गीय स्थानों में युद्ध!

  शैतान कैसे हमारी प्रार्थनाओं को रोकता है !
स्वर्गीय स्थानों में युद्ध ! 


द्वारा: जौन मुलीन्ड, आबस्टीग ( आस्ट्रीया ) नवम्बर 2000     www.divinerevelations.info/combat

मै आपके साथ, किसी व्यक्ति की गवाही मे से कुछ बांटना चाहता हूँ। उस व्यक्ति का उद्धार हुआ था । वह एक ऐसा व्यक्ति था जो पहिले शैतान की सेवा करता था । जब उस व्यक्ति ने अपनी गवाही दिया तो उसने मुझे ऐसी चुनौती दी , कि मै उसपर विष्वास नहीं करना चाहता था। मुझे दस दिन तक उपवास करना पड़ा, इससे पहिले कि मैं प्रभु के पास जाकर पुछू कि ‘‘ हे प्रभु , क्या यह सच है ? ’’ यह वह समय था, जब  प्रभु ने मुझे सिखाना आरम्भ किया कि जब हम प्रार्थना करते हैं, उस समय आत्मिक लोक के क्षेत्रों में क्या क्या होता है।

उसके माता-पिता ने अपने आपको लूसीफर (शैतान) को अर्पित करने के बाद इस व्यक्ति का जन्म हुआ था। जब वह गर्भ  ही में था, तभी उन्होंने उसे भी लूसीफर की सेवा हेतु अर्पण कर दिया था। उसने चार वर्श की आयु से ही अपनी आत्मिक शक्ति को काम में लाना आरम्भ कर दिया था, जिसके कारण उसके माता पिता भी उससे डरने लगे। जब वह छह वर्श का था, उसके माता पिता ने उसे डाईनों और चुडैै़लों की आधीनता में सौंप दिया ताकि वहां उसे और अधिक प्रशिक्षण मिल सके। दस वर्ष का होकर वह शैतान के राज्य में बडे़ बड़़े काम करने लगा। दूसरी डाईने भी उससे डरा करती थी। 

वह  अभी  भी एक छोटा लड़का था, परन्तु उन कामों के कारण जो वह करता था, वह बहुत भयानक था। वह अपने बीस के दशक में ऐसा जवान हो गया जिसके हाथ बहुत से खून से सने थे। वह अपनी इच्छा से किसी को भी मार डालता था। उसे यह योग्यता प्राप्त थी कि वह अपनी ध्यान साधना द्वारा, अपने शरीर को छोड़कर बाहर आ जाता था और वैसे ही भ्रमण करता रहता था। कभी कभी वह अपने शरीर को बिना सहारे हवा में उठाए रखता था। कभी वह ध्यान साधना द्वारा अपने शरीर को छोड़कर बाहर आ जाता और संसार में घुमने निकल जाता, इसे खगोलीय भ्रमण (एस्ट्रो टैªवलिंग) कहा जाता है। शैतान ने इस व्यक्ति को बहुत सी कलीसियाओं (चर्चो) को नाश करने के लिये उपयोग में लाया, ताकि वह बहुत चर्च भवनों को तोड़ डाले और बहुत से पास्टरों को नाश करें।

एक दिन उसे एक कलीसिया (चर्च) को नाश करने के लिये नियुक्त किया गया जो प्रार्थनाओं से भरी हुई थी। उस कलीसिया में बहुत अधिक फूट, मतविभाजन और भ्रम भी था। वह इस कलीसिया पर अपना काम करने लगा। परन्तु उसी समय वहां के पास्टर ने पूरी कलीसिया के लिये उपवास - प्रार्थना का आव्हान कर दिया। जब वह कलीसिया उपवास प्रार्थना करने लगी तो वहां बहुत से पष्चाताप और मेलमिलाप होने लगे। वहां के लोग इकट्ठे हुए और वे परमेश्वर से प्रार्थना करने लगे कि उनके मध्य में प्रभु का काम आरम्भ हो। वे लगातार परमेश्वर से रो रोकर गिड़गिड़ाने लगे कि वह उनपर दया करें और उनके जीवनों में आ जाएं। और जैसे जैसे दिन बीतते जाते थे, यह मनुश्य बार - बार इस कलीसिया के विरोध में अपने साथ दुश्टआत्माओं को लेकर आता था। परन्तु इस कलीसिया में यह भविश्यवाणी की गई कि वहां के सब मसीहियों को जाग्रित होकर उन अधंकार की षक्तियों से लड़ना है, जो उनके चर्च पर आक्रमण कर रही हैं।

इस प्रकार एक दिन यह व्यक्ति अपनी देह को कमरे में छोड़कर खगोलीय (एस्ट्रो) भ्रमण कर रहा था। वह उस कलीसिया के विरूद्ध बहुत बड़ी दुश्टआत्माओं की सेना लेकर आया था। यह उसकी गवाही है। उसकी आत्मा चर्च भवन के ऊपर मण्डरा रही थी और उस पर आक्रमण करना चाहती थी, परन्तु उस चर्च भवन के उपर बहुत तेज ज्योति का आवरण था। उसी समय अचानक वहां स्वर्गदूतों की सेना आ गई जिन्होंने दुश्ट सेना पर आक्रमण कर दिया। वहां हवा में मलयुद्ध आरम्भ हो गया। सभी दुश्टआत्माएं भाग गईं परन्तु उस व्यक्ति की आत्मा को स्वर्गदूतों ने बंदी बना लिया।

जी हाॅं, स्वर्गदूतों द्वारा उसे बंदी बना लिया गया, और उसने देखा कि उसे छह स्वर्गदूतों ने पकड़ा हुआ है और चर्च भवन की छत में से होकर उसे चर्च की वेदी के ठीक सामने लाया गया। वह वहां था और सब लोग प्रार्थना कर रहे थे। वे लौ लगाकर प्रार्थना में आत्मिक युद्ध कर रहे थे। पास्टर मंच पर था और प्रार्थना में आत्मिक युद्ध की अगुवाई कर रहा था। प्रभु की आत्मा ने पास्टर से कहां ‘‘जुआ तोड़ा जा चुका है, और अपराधी तुम्हारे साम्हने है, छुटकारे द्वारा उसकी सहायता करें। ’’ जैसे ही पास्टन ने अपनी आंखे खोलीं, उन्होंने उस व्यक्ति को वहां पडे़ हुए पाया। उसका शरीर उसके साथ था और वह उसके शरीर में था। वह जवान व्यक्ति बताता है कि वह नहीं जानता कि उसकी देह वहां कैसे आकर उससे मिल गई। वह यह भी नहीं जानता कि वह कैसे अन्दर आया, हो सकता है स्वर्गदूतों ने ही उसे छत में से अन्दर लाया हो।

ये सारी बातें विष्वास करने के लिये कठिन हैं। पास्टर ने मण्डली को षान्त किया और उन्हें बताया कि प्रभु ने उससे क्या कहां है तब उस व्यक्ति से पूछा, ‘‘ तुम कौन हो ’’ ? वह जवान कांपने लगा क्योंकि उसमें से दुश्टआत्माए निकलकर जाने लगी थीं। जब मण्डली ने उसके छुटकारे के लिये प्रार्थना की। इसके बाद उसने अपने जीवन के विशय में बताना आरम्भ किया। अब यह जवान व्यक्ति प्रभु के पास आ चुका है, वह प्रभु का सेवक बनकर सुसमाचार प्रचार का कार्य कर रहा है। वह प्रभु के द्वारा बड़ी सामर्थ के साथ उपयोग में लाया जा रहा है और उसके द्वारा बहुतेरों को दुश्टआत्माओं से छुटकारा मिल रहा है।

एक रात मैं (जौन मुलीन्ड) रात्रि भोज के लिये गया। इसका मुख्य कारण यह था कि किसी ने मुझे उस जवान व्यक्ति के विशय में बताया था कि वह वहां आनेवाला है। मैं उससे मिलने के लिये बहुत उत्सुक था और जानना चाहता था कि क्या यह कहानी सच्ची है या नहीं। इसलिये मै उस रात्री भोज में पंहुच गया और संन्ध्या के समय उस व्यक्ति को अपनी गवाही देने का अवसर दिया गया। उसने बहुत से विशयों पर बातें कीं। कई बार वह अपने किये गये कार्यो को याद करके रो पड़ता था। जब उसने समाप्त किया, उसने श्रोताओं से एक आग्रह किया।

उस कमरे में बहुत सारे पास्टर बैठे हुए थे। उसने कहा, ‘‘ मै आप सब पास्टरों से आग्रह करता हूंॅ , कृपया अपने लोगों को सिखाईये, कि उन्हे प्रार्थना कैसे करना चाहिये, जो लोग प्रार्थना नहीं करते हैं, षैतान उनपर किसी भी विशय पर या किसी भी तरह से हावी हो सकता है क्योंकि षत्रु षैतान के पास बहुत से तरीके हैं जिनके द्वारा वह उनके जीवनों और प्रार्थनाओं को अपने अनुचित लाभ के लिये काम में ले सकता है। षत्रु उनकी प्रार्थनाओं का भी अनुचित लाभ उठाना जानता है जो अभी ठीक तरह से प्रार्थना करना नही जानते। अपने लोगों को सिखाईये कि उन्हें परमेष्वर द्वारा दिये गए आत्मिक हथियारों का उपयोग किस प्रकार करना चाहिये’’।

तब उसने बताना आरम्भ किया कि वह किस प्रकार का आकाशीय लोक के क्षेत्रों में (ऊपर हवा में) रहकर अगुवाई करता था। यह पाली (शिफ्ट) में काम करने जैसा था। उन्हें अपनी पालीं में जाकर अपना काम सम्हालना होता था। इस प्रकार उसे प्रतिदिन निर्धारित समय पर जाकर आकाशीय स्थानों में युद्ध करना पड़ता था। उसने बताया कि आकाशीय क्षेत्रों के आत्मिक लोक में पूरी जमीन के ऊपर एक काले कम्बल (ब्लेंकेट) की तरह काला आवरण दुश्टता की शक्तियों द्वारा बनाया गया है। यह अंधकारमय आवरण बहुत कड़ा और मोटा है, वह चट्टान की तरह है। उस स्थान से दुश्ट शक्तियां पृथ्वी की घटनाओं को प्रभावित करती हैं।

जब दुश्ट आत्मांए और शैतान के मानव एजेंट अपनी पाली छोड़ते हैं, तब वे पृथ्वी पर वापस अपनी वाचा के अनुसार ठहराए हुए स्थान पर आ जाती हैं। हो सकता है यह स्थान पानी पर या जमीन पर हो। वे वहां आकर अपनी आत्मा को तरो ताजा करती हैं। और वे अपनी आत्माओं को कैसे तरो ताजा करती हैं ? उन बलिदानों के द्वारा जो लोग वेदीयों पर चढ़ाते हैं। वे ऐसे चढ़ावे हो सकते हैं जो खुली रीति से डाइनों व जादू टोन्हों द्वारा बलि किये जाते हैं और सब प्रकार के खूनी बलिदान जो अनेकों वेदियों पर चढ़ाये जाते हैं। ये बलिदान व्याभिचार के दुराचार के भी होते हैं जहां हर प्रकार की कामवासना सम्बन्धित अनैतिकता और वाचाओं का तोड़ना होता है। इस प्रकार के गंदे कार्य ही इन दुश्टआत्माओं को नई ऊर्जा प्रदान करते हैं। ऐसे और भी अनुचित बलिदान है जो विश्व में चढ़ाये जाते हैं। 

उसने बताया कि जब शैतान कार्यकर्ता ऊपर आकाशीय लोक में होते हैं और उसी समय पृथ्वी पर मसीही विष्वासी प्रार्थना करने लग जाएं तो उनकी प्रर्थनाएं उन्हें तीन तरह की दिखाई देती हैं। सभी प्रार्थनांए उन्हें धुंए की तरह स्वर्ग की ओर उठती दिखाई देती है।

कुछ प्रार्थनांए धुंए से समान उठती हैं। परन्तु फिर झोंके की तरह लड़खड़ा कर हवा में समाप्त हो जाती हैं। ये उन लोगों की प्रार्थनांए हैं जिनके जीवनों में पाप है और वे पाप को छोड़ना नही चाहते। उनकी प्रथनांए इतनी कमजोर होती हैं कि वे एक झोंके के समान लड़खड़ा कर गुम हो जाती हैं।

दूसरी तरह की प्रार्थनांए भी धुंए की तरह ऊपर उठती हैं और वे काली चट्टान तक पहुंचती हैं, परन्तु वे उस काली चट्टान को बेधने में असफल रहती हैं। ये अधिकांशतः उन लोगों की प्रार्थनांए होती हैं जो अपने आपको शुद्ध करना चाहते हैं, परन्तु जो कुछ वे कर रहे हैं, उसमें और उनकी प्रार्थनाओं में विष्वास की कमी है। वे कई दूसरे महत्वपूर्ण पहलुओं  को नजर अंदाज कर देते हैं जिन्हें प्रार्थना करते समय अपनाना चाहिये।

तीसरी तरह की प्रार्थनांए भी धुंए की तरह ऊपर उठती है परन्तु उनमें आग भरी होती है। जब ये ऊपर उठती हैं तो ये इतनी तप्त और गर्म होती है कि जब वे कड़ी चट्टान से टकराती हैं तो वह चट्टान मोम की तरह पिघल जाती है। वह उस चट्टान को बेधकर स्वर्ग की ओर चली जाती हैं।

बहुत बार जब लोग प्रार्थना करते हैं, उनकी प्रार्थनांए पहली प्रार्थना की तरह होती हैं परन्तु जब वे लगातार प्रार्थना करते रहते है तो उनकी प्रार्थनाओें में बदलाव आने लगता है और वे दुसरे प्रकार की होने लगती है और जब लौ लगाकर प्रार्थना करते हैं तो अचानक उनकी प्रार्थनाओं में आग निकलने लगती है और वे आग बन जाती हैं। उनकी प्रार्थनांए इतनी शक्तिषाली हो जाती है कि वे चट्टान को भी बेध देती हैं।

कई बार दुश्ट शक्तियां यह जान जाती है कि प्रार्थनाओं में बदलाव हो रहा है और वे आग का रूप धरने के नजदीक पहुच रही हैं तब वे दुश्ट शक्तियां तुरन्त पृथ्वी पर अपनी सहयोगी दुश्ट आत्माओं को खबर भेज देती हैं और उन्हे कहती हैं, ‘‘उस व्यक्ति का किसी भी प्रकार से प्रार्थना से ध्यान हटाओ, उनकी प्रार्थनाओं को बन्द कराओं, उन्हें वहां से बहार खींच लाओं।’’ 

कई बार मसीही लोग इस प्रकार की ध्यान तोड़ने वाली बाधाओं के षिकार हो जाते हैं। वे आगे बढ़ रहे हैं, वे पष्चाताप कर रहे हैं, वे वचन को अवसर दे रहे हैं कि वह उनकी आत्माओं को जांचे, उनका विश्वाश बढ़ता जा रहा है। उनकी प्रार्थनांए विशेष उद्देष्य को लेकर होती हैं। तब शैतान यह देखता है कि उनकी प्रार्थनाओं को शक्ति मिल रही है और वह तुरन्त उनका ध्यान भंग करने का काम आरम्भ कर देता है। टेलिफोन की घंटी बजने लगी। कभी कभी हम बहुत लौ लगाकर प्रार्थना करते रहते है और तभी टेलिफोन की घंटी बजनेलगती है, और आप सोचते हैं, मै जाकर टेलीफोन का जवाब देता हूं और फिर आकर प्रार्थना में लग जाऊंगा । जब आप वापस आते हैं आप फिर शुरू से प्रार्थना करना आरम्भ कर देते हैं। और यही तो शैतान चाहता था। 

और दूसरे प्रकार की बाधा आपके सामने आती है। हो सकता है आपकी देह को स्पर्श किया जाए और आपको कहीं बहुत तीव्र दर्द होने लगे। या हो सकता है आपको उसी समय भूख लगने लगे और आप रसोई में जाकर कुछ भोजन लेने लगें। जब तक वे आपको प्रार्थना स्थल से दूर रखेगें, वे आपको हराते रहेंगे। इस प्रकार वह व्यक्ति पास्टरों से कहता था कि ‘‘ अपनी कलीसिया को प्रार्थना करना सिखाईये।’’ अलग समय निर्धारित कीजिये। केवल औपचारिक प्रार्थना करने के लिये नही क्योंकि इस तरह की प्रार्थनांए बाकी दिनों में की जा सकती है। दिन में एक बार उन्हें ऐसा समय निर्धारित करना चाहिये जब वे सम्पूर्ण मन से परमेश्वर पर ध्यान केन्द्रित कर सकें और कोई भी चीज उनका ध्यान भंग करने न पाए।’’

यदि मसीही लोग इस प्रकार की प्रार्थना करने का दृढ़ संकल्प करलें और आत्मा में प्रेरणा लेते हुए आगे बढ़ते जाएं और लौ लगाकर प्रार्थना करते रहें तो आत्मिक रीति से एक बात होगी। आग उस चट्टान को छुुएगी ओर वह चट्टान पिघल जाएगी। उस व्यक्ति ने आगे बताया कि जब यह पिघलना आरम्भ होता है वह इतना तप्त होता है कि कोई दुश्टआत्मा वहां ठहर नहीं पाती और न कोई मानव दुश्ट शक्ति वहां ठहर सकती है। वे सब वहां से भाग जाते हैं।

अब वहां एक खुला आत्मिक क्षेत्र बन जाता हैं। और जैसे ही यह होता है, प्रार्थना में आनेवाली सारी बाधांए समाप्त हो जाती हैं। तब जो व्यक्ति पृथ्वी पर प्रार्थना करते हैं वे अनुभव करते हैं कि अचानक सब प्रार्थनाएं अच्छी प्रवाहमय और आनन्ददायक हो गई हैं। बहुत सामर्थी और प्रभावशाली। मैंने ऐसे क्षणो में अनुभव किया है कि मै अपने चारों ओर की, और अपने आप की सुध भूल गया हूं। इसका यह अर्थ नही कि हमारे अन्दर कोई विकार आ जाता है परन्तु परमेष्वर हमारे इस समय को अपना लेते हैं और आप अपना सब कुछ छोड़कर अपने आपको परमेष्वर से जोड़ लेते हैं। उस व्यक्ति ने बताया, जब इस तरह प्रार्थनाएं ऊपर जाने लगती हैं तो उस क्षण से आगे कोई रूकावट नही होती है। और प्रार्थना करने वाला व्यक्ति जब तक चाहे प्रार्थना मंे लवलीन रह सकेगा। वहां कोई बाधा नही होगी जो उसे रोके।

तब उस व्यक्ति ने आगे कहा, कि जब वह प्रार्थना करने वाला प्रार्थना करके उठता है, आकाश में वह खुला हुआ क्षेत्र सुरगं के समान उसके ऊपर बन जाता है, और जब वे प्रार्थना के स्थान से उठकर बाहर जाते है यह खुला हुआ आकाशीय सुरंग उनके साथ साथ चलता रहता है। वे अब उस काले कम्बल जैसे आवरण के नीचे नही हैं परन्तु वे तो अब खुले स्वर्ग के नीचे कार्य करने वाले हो गये हैं। उसने कहा, ऐसे समयो में षैतान चाहकर भी उनका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता। और प्रभु की उपस्थिति स्वर्ग से एक खम्भे के समान उनके जीवनों पर टिकी रहती है। उससे इनकी रक्षा होती है, और उस खम्भे में इतनी सामर्थ होती है कि जब वे इधर घुमते हैं तो प्रभु की उपस्थिति दूसरे लोंगो को छूती है। और वह परख लेता है कि शैतान ने लोगों के अन्दर क्या काम किया है। और जब वे लोगों से वार्तालाप करते हैं और वे लोग उनके पास खड़े रहते हैं तो वे भी इस खम्भे के भीतर आ जाते हैं। जब तक वे उस खम्भे के भीतर रहते हैं, षत्रु के सारे बन्धन कमजोर होकर टूटते हैं। इस प्रकार जब ऐसे विष्वासी जिन्हें यह आत्कि विजय प्राप्त हो चुकी है, किसी पापी मनुश्य को प्रभु यीशु मसीह का सुसमाचार देते हैं तो उनके लिये प्रतिरोध कम होता है। उन्हें समझना बहुत सरल हो जाता है। जब वे बिमार के लिये या किसी और बात के लिये प्रार्थना करते हैं जब वह उपस्थिति जो उनके साथ में निरन्तर बनी हुई है सारे कार्यो में सहायक होकर उन्हें सफल बनाती है। उस व्यक्ति ने बताया कि षैतान ऐसे लोगों से बहुत घृणा करता है। जहां जहां पर ऐसे स्थान हैं जहां से इस प्रकार की विजयी प्रार्थनाएं निरन्तर होती रहती हैं तो ऐसे स्थानों पर प्रभु की उपस्थिति आकर ठहर जाती है और उस स्थान को नही छोड़ती । उस स्थान पर यदि कोई ऐसा मनुश्य जो परमेश्वर को नही जानता हो वहां आ जाए तो अचानक उसके बन्धन कमजोर होकर ढीले पड़ जाते हैं। 

और ऐसे समय में यदि कोई विष्वासी उन्हें प्रेम पूर्वक सुसमाचार समझाए तो उन्हें बड़ी आसानी  से बचाया जा सकता है, न तो बल से और न बुद्धि से परन्तु परमेष्वर के पवित्र आत्मा के द्वारा जो वहां उपस्थित है । और उसने कहा कि ऐसे लोगों को प्रभु के पास लाने के लिये यदि कोई भी कोशिश नहीं करता तो वे प्रभु की उपस्थिति में आते हैं, कायल किये जाते है और अपने मनों में वाद विवाद भी करते हैंः ग्रहण करूं या न करूं? परन्तु यदि ऐसे समय में उन्हें आगे बढ़कर छुटकारा नही दिलाया गया, और वे उस स्थान से वैसे ही चले गए तो फिर उनके बन्धन और भी अधिक मजबूत हो जाते हैं। फिर शैतान उन्हें पूरी ताकत से रोके रखता है कि वे उस वातावरण में फिर से न जाने पांए।

आप सोच सकते है कि हम कैसे उस कमरे में बैठे हुए उस व्यक्ति को देख व सुन रहे थे। वह हमको बता रहा था कि वह क्या क्या करता था और उसने क्या क्या देखा। फिर उसने हमें बताया कि वे ऐसे मनुश्य के साथ क्या करते थे जो प्रार्थना में एक विजयी जीवन जीता है। उसने कहा, वे ऐसे व्यक्तियो को चिन्हित कर लेते थे और फिर उनको खूब जांचते परखते थे और उनके बारें में सारी जानकारियां प्राप्त कर लेते थे। इस प्रकार वे जान जाते थे कि उनकी कौन कौन सी कमजोरियां हैं, और जब कोई उनपर जय प्राप्त कर लेता और प्रार्थना से उनका ध्यान हटा देता तो वे तुरन्त दूसरी दुश्टआत्माओं को यह तरीका बता देती और कहतीं, ‘‘अमुक व्यक्ति पर इस तरीके से या इस प्रलोभन के साथ निषाना साधो तो वह गिर जाएगा। ये ये उसकी कमजोरियां हैं।’’ इस प्रकार जब वह प्रार्थना करने वाला विष्वासी अपने प्रार्थना के कमरे से बाहर आता, उस समय प्रार्थना की आत्मा में बलवंत होता है और प्रभु का आनन्द उसकी ताकत होती है। जैसे ही वह आगे बढ़ता है शत्रु उन सारी युक्तियों का उपयोग उसके विरूद्ध करता है ताकि उसका ध्यान प्रभु पर केन्द्रीत होने से रोक सके। यदि उसकी कमजोरी क्रोध के क्षेत्र में है तब शत्रु लोगों को ऐसे कार्य करने के लिये उसकाएगा जिससे उसे वास्तव में क्रोध आ जाए। और यदि वह पवित्र आत्मा के प्रति जाग्रत नही है, और अपने आपको क्रोधित होने देता है, तो ऐसा करने से वह अपनी आंखो को प्रभु पर से हटा लेता है। वह क्रोधित होता है, वह बिलकुल आगबबूला हो जाता है और कुछ मिनटों के बाद वह चाहता है कि उन सब बातों को पीछे छोड़कर पुनः प्रभु के आनन्द में आगे बढ़े परन्तु वह पहिले जैसा आनन्द उसे फिर नही मिलता। वह कोशिश करता है कि फिरसे अच्छा महसूस करे परन्तु अब उसे कुछ भी अच्छा नही लगता। क्यों? क्योंकि जब वह परिक्षा में गिर गया तो शत्रु ने सारे ऊपर जाने के दरवाजे बन्द कर दिये। और जब उन्होंने एक बार फिर उस चट्टान को उसके स्थान पर लगा दिया तो फिर प्रभु का साथ और प्रभु की उपस्थिती भी चली जाती है। इससे उसका परमेश्वर की संतान होने का हक तो नही जाता परन्तु जो अलग से उसके जीवन में अभिशेक मिला था और वह प्रभु की उपस्थिती जिसके द्वारा वह बहुत कार्य कर लेता था, अब नही रही। इस लिये यह समझिये कि दुश्टआत्माए हमारी कमजोरियों को ढुढ़ती है।

फिर यदि वह परिक्षा काम वासना से सम्बन्धित है, तो षत्रु वैसे ही लोगों को अचानक ऐसी आयोजित घटना को  बनाकर सामने लाएगा कि वह यौनाकर्शण में आकर परीक्षा मे फंस जाए। यदि वह व्यक्ति इन परीक्षाओं मे फंस जाता है और अपने मन मतिश्क को उन गंदे विचारों के लिये खोल देता है, और उनमें आनन्द लेता है, और यह सब कर लेने के बाद वह फिरसे अपने अभिशेक में बढ़ने की कोशिश करता है तो उसे मालूम पड़ता है कि वह अभिशेक अब वहां नही है। हो सकता है आप कहेंगे ‘‘यह ठीक नही हुआ’’, जरा सोचिये कि धर्मशास्त्र बाईबिल क्या कहती है, ‘‘ उद्धार का टोप पहिनो’’ और धार्मिकता की झिलम भी पहिन लो।’’ साधारणत: हम इन युद्ध के हथियारों और अस्त्रांे की स्थिती और स्थान पर गौर नही करते हैं। परन्तु स्मरण कीजिये कि प्रभु की प्रार्थना के अन्तिम भाग में प्रभु ने हमें क्या प्रार्थना करना सिखाया हैः ‘‘हमें परीक्षा में न डाल परन्तु बुराई ( उस दुश्ट शत्रु ) से बचा।’’

प्रत्येक समय जब आप प्रार्थना में जयवंत होते हैं, इस बात को स्मरण रखिये कि आप अभी तक सिद्ध नही हुए हैं। प्रभु से प्रार्थना करें और कहें ‘‘हे प्रभु मैंने प्रार्थना के समय भरपूर आनन्द लिया हूं, परन्तु जब मै बाहर दुनिया में जाऊंगा, मुझे किसी परीक्षा में नहीं पड़ने देना। मुझे शैतान के फंदे से फंसने से बचा लेना। मै जानता हूं कि बाहर तान ने मेरे लिये फंदे लगाकर रखे है और मै नही जानता कि वे किस रूप मे मेरे सामने आएगें। मै जानता हूं कि मै अभी कुछ क्षेत्रों में कमजोर हूं। यदि मुझे सही स्थान पर रखा जाए तो मैं उन गलतियों को कर बैठूंगा। हे प्रभु , मेरी रक्षा करना। जब आप देखें कि मै उसी ओर मुड़ रहा हूं जिधर फंदा लगा हुआ है तो आप मुझे दूसरी ओर फेर देना। हे प्रभु आप तुरन्त हस्तक्षेप कर देना। मुझे अपनी ही षक्ति और योग्यता के अनुसार नहीं चलने देना। मुझे दुश्ट से बचाए रखना।’’

परमेश्वर ऐसा करने में सामर्थी हैं, वह इस योग्य हैं। इसीलिये कभी कभी ऐसी बातें होती हैं और हमें केवल इतना ही कहने की आवष्यक्ता होती है,‘‘ यीशु प्रभु आपको धन्यवाद’’। इसीलिये प्रेरित पौलूस ने थिस्सलूनिकियों की पत्री में कहा है, ‘‘हर बात में धन्यवाद करो, क्योंकि तुम्हारे लिये मसीह यीशु में परमेष्वर की यही इच्छा है।’’ कुछ बातें अच्छी नही होतीं। वे कश्टप्रद होती हैं, और हम सोचते हैं कि प्रभु उन्हें हम पर क्यों आने देते हैं। परन्तु यदि हम केवल यह जान पाते कि वे ऐसा करके हमें किन बातों से बचा रहे हैं तो हम उसका धन्यवाद करते। जब हम प्रभु पर विश्वास करना सीख जाते है तो हम प्रत्येक बात के लिये धन्यवाद देते हैं।

प्रियों मैं नही जानता कि मुझे और गहराई में जाना चाहिये या नहीं, क्योंकि मैं ऐसी बातों का आरम्भ नही करना चाहता, जिन्हें मै समाप्त न कर सकूं। इसलिये मुझे केवल एक और कदम आगे बढ़ाने दीजिये। उस व्यक्ति ने हमें बताया कि जब प्रार्थनाए रूकावटो को बेधती हुई ऊपर चली जाती हैं तो उनके उत्तर भी हमेषा मिलते हैं। उसने कहा कि वह एक भी ऐसा संदर्भ नही जानता, जिसमें प्रार्थना तो ऊपर पहुंची, लेकिन उसका उत्तर न आया हो। उसने कहा, उत्तर तो हमेशा आता है परन्तु अधिकांश संदर्भो में वह उस व्यक्ति तक कभी नही पहुंचता जिसने उसे मांगा था। ऐसा क्यों होता हैं? क्योंकि स्वर्गीय स्थानों में इसके लिये युद्ध होता है। वह कहता है कि जब तक आकाशीय मार्ग खुला है और चट्टान अपने स्थान पर पुनः नही लगी है, वे उस प्रार्थना वाले व्यक्ति पर नजर लगाए रखते हैं और प्रतिक्षा करते रहते है, क्योंकि जानते हैं कि उसका उत्तर अवश्य ही आएगा। 

और तब उसने एक ऐसी बात कह दी जिससे मेरा विष्वास हिल गया। अगले भाग में उस व्यक्ति ने जो बातें हमारे साथ बांटी उनके कारण मुझे दस दिन का उपवास करके प्रभु से पूछना पड़ा ‘‘हे प्रभु क्या ये बातें सच हैं ? क्या आप मुझे इसे सिद्ध करके बताएंगे?’’ उस व्यक्ति ने कहा कि प्रत्येक मसीही विष्वासी के लिये एक स्वर्गदूत उसकी सेवा के लिये तैनात किया जाता है। हम जानते हैं कि बईबिल कहती है कि स्वर्गदूत हमारी सेवा करने वाली आत्माएं है। उसने कहा जब लोग प्रर्थना करते हैं तो सर्व प्रथम उसका उत्तर स्वर्गदूत के हाथ में आता है फिर स्वर्गदूत उस उत्तर को लेकर प्रार्थना करने वाले के पास आता है, जैसा कि हम दानिय्येल की पुस्तक में पढ़ते हैं। इसके बाद जो उसने कहा वह बहुत कठोर बात थी; यदि प्रार्थना करने वाला व्यक्ति आत्मिक हथियारों के विशय में जानता है और उन्हें धारण किये हुए है तो उत्तर लाने वाला स्वर्गदूत भी पूरे हथियार धारण किये हुए आएगा।

परन्तु यदि प्रार्थना करने वाला व्यक्ति अपने आत्मिक हथियारों को धारण करने की चिन्ता नही करता तो उसके स्वर्गदूत भी बिना आत्मिक हथियार के आएंगे। ऐसे मसीही जो उनके मनों मेें आने वाले विचारों की चिन्ता नही करते कि कैसे हैं। वे उनके मनों मे उत्पन्न्ा युद्ध को नही लड़ते हैं। और उनके स्वर्गदूत भी बिना टोप लगाए आएंगे। आप पृथ्वी पर जिन जिन आत्मिक हथियारों की उपेक्षा करेंगे, तो आपकी सेवा करने वाले स्वर्गदूतों के पास भी वे हथियार नही होगें। दूसरे शब्दों में, हमारे आत्मिक हथियार न केवल हमारी देहों की रक्षा करते हैं परन्तु वे हमारे आत्मिक संसाधनों की भी रक्षा करते हैं।

उस व्यक्ति ने आगे कहा, जब स्वर्गदूत उत्तर लेकर आता है तब दुश्ट शक्तियां उसे ध्यान से देखती हैं और वे उसके उन भागों को देखलेती है जिन पर हथियार नही हैं। और वे ही वे स्थान होंगे, जहां वे आक्रमण करेंगी। यदि उसने टोप धारण नहीं किया है तो वे सिर पर हमला करेंगे, और यदि उसने झिलम नही धारण किया है तो वे उसकी छाती पर वार करेंगे और यदि उसने जूते नही पहिने हैं तो वे आग उत्पन्न कर देंगे ताकि उसे आग में से नंगे पांव जाना पड़े। मैं उन्ही बातों को पुनः कह रहा हूं जो उस व्यक्ति ने कहे थे। यथार्थ में हमने उससे प्रष्न किया, ‘‘क्या स्वर्गदूतों को भी आग का असर होता है? आप जानते हैं उसने हमें क्या उत्तर दिया? स्मरण रखिये ये आत्मिक क्षेत्रों में होने वाली बातें हैं। यहां पर आत्माओं का आत्माओं के साथ संघर्श की बात हो रही है। मलयुद्ध बड़ा घमासान होता है। और जब वे किसी स्वर्गदूत पर हावी हो जाते हैं तब पहली चीज जिसपर वे हमला करते हैं, वह होता है प्रार्थनाओं का उत्तर जिसे वह ला रहा था वे उससे वह उत्तर छीन लेते हैं। ये ही वे उत्तर होते हैं जिन्हें वे बाद में तांत्रिकों व जादू टोने वालों के माध्यम से देते हैं। और वे लोग कहते हैं,’’ ये उत्तर हमें तांत्रिकों और जादू टोने वालों से प्राप्त हुए हैं।

स्मरण कीजिये बाईबिल याकुब की पुस्तक में क्या कहता है? सारी उत्तम और अच्छी वस्तुएं, परमेश्वर की ओर से आती हैं। जब फिर शैतान उन बतों को कहाँ से लाता है जिन्हें वह अपने लोगोें के देता है? कुछ लोग जिन्हे सन्तान नही होती वे तांत्रिक चिकित्सको के पास और शैतानी जादूगरों के पास जाती हैं और वे गर्भ धारण करती हैं। किसने उन्हे यह बच्चा दिया? क्या शैतान सृश्टीकत्र्ता है? नही! वह उनसे चुरा लेता है जो अन्त तक पूरी प्रार्थना नही करते हैं। यीशु ने कहा, ‘‘निरन्तर प्रार्थना में लगे रहो।’’ और उसके बाद उसने कहा ‘‘ परन्तु जब मनुश्य का पुत्र आएगा, तो क्या वह विश्वास पाएगा?’’ क्या वह तब भी आपको उत्तर का इन्तजार करते पाएगा? या आप निराश होकर उत्तर की प्रतिक्षा छोड़ चुके होंगे और शत्रु शैतान उसकी चोरी कर लेगा जिसके लिये आपने प्रार्थना किये थे।

तब उस व्यक्ति ने कहा कि ये दुश्टआत्माएं केवल उत्तर चोरकर ही संतुश्ट नही हो जाती। वे उस स्वर्गदूत को रोकने का भी भरसक कोशिश करती हैं। वे उससे मल्लयुद्ध आराम्भ कर देती हैं और कभी कभी वे उस स्वर्गदूत को पकड़ने और बांधने में भी कामयाब हो जाती हैं। उसने कहा जब ऐसा होता है तब वह प्रार्थना करने वाला व्यक्ति जो पृृथ्वी पर है इसका शिकार होता है। ये उस मसीही के साथ कुछ भी कर सकती हैं क्योंकि उस समय वह सेवा करने वाली आत्माओं की सेवकाई से अलग रहता है या वे वहां नही होती हैं।

मैने उससे पूछा, ‘‘क्या एक स्वर्गदूत शैतानी शक्तियों द्वारा बन्धुवा बनाया जा सकता है? मैंने सोचा शायद यह मनुश्य धर्मषास्त्र बाईबल के विशय में अधिक जानकारी नहीं रखता है इसीलिये वह ऐसी बातें कह रहा है। उसे धर्मशास्त्र के बहुत से संदर्भो का ज्ञान नही है। केवल वह अपने अनुभवों को हमारे साथ बांट रहा था। वे स्वर्गदूत को अधिक समय तब रोके नहीं रख सकते। बहुत से मसीही, दूसरे स्थानों में भी प्रार्थना करते रहते हैं जिसके कारण नई ऊर्जा व मजबूती मिलती है और स्वर्गदूत छूट जाते हैं। यदि वह मसीही स्वयं प्रार्थना करके जयवंत नहीं होता तो वह बंदी ही बना रह जाता है। तब शत्रु शैतान अपने ही दूत को ज्योतिर्मय स्वर्गदूत बनाकर उस व्यक्ति के पास भेजता है। यह वह समय होता है जब धोका और भरमाया जाने का काम होता है। झूठे दर्षन, झूठी भविश्यवाणियां, झूठे अगुवे, गलत निर्णय। और कभी कभी ऐसा व्यक्ति सब प्रकार के आक्रमण और बन्धनों के लिये खुला रहता है।
मैंने प्रभु से पूूछा और उस रात्रिभोज के स्थान को बहुत दुःखी मन के साथ छोड़ा। मैंने कहा, ‘‘हे प्रभु , मै इन बातों को आज माना या उन पर विष्वास करना नही चाहता। यह मेरे सारे भरोसे और सुरक्षा को दूर कर रही हैं। जब मै परमेश्वर से पूछने गया। तब दस दिनों में परमेश्वर ने मुझसे दो बातें कहीं। प्रभु ने न केवल उन बातों की जिन्हें मैंने सुना था, पुश्टि की परन्तु , उसने मेरे मन मस्तिश्क को भी खोला कि मैं और भी बातों को देख सकूँ जिन्हें वह व्यक्ति हमें नही बता पाया था कि आत्मिक लोक में और क्या कुछ होता है और दुसरी बात यह कि प्रभु ने मुझे बताया कि जब ऐसी बातें होती हैं तो हमें क्या करना चाहिये ताकि वे हम पर जय प्राप्त न करने पाएं परन्तु इम उनपर जयवंत हो सकें। इसके लिये हमें तीन बातें जानना और काम में लाना आवष्यक है।

पहली:- अपने युद्ध के हथियारों का उपयोग कैसे करें। बईबिल इसे परमेश्वर के हथियार कहती है। ये हमारे हथियार नही हैं, ये परमेश्वर के हैं। जब हम इनका उसयोग करतें हैं, हम परमेश्वर को अपने बदले में लड़ने का अवसर देते हैं।

दूसरी:- अपनी सेवा करने वाली आत्माओं व स्वर्गदूतों के साथ, अपने सम्बन्ध की जानकारी रखें, ये हमारे आत्मिक जीवन की सेवा के लिये ठहराई गई हैं। और अपने मन के विशय में चैकस रहें कि उसमें क्या हो रहा है जो इस ओर अगुवाई करता है कि हमारे लिये आत्मिक जीवन में क्या आवश्यक है। 

तीसरी:- इसके बाद हम तीसरी बात पर आते हैं, और वह है पवित्र आत्मा हमारे पास हमारे सेवक की तरह आने के लिये नहीं है, जो हमारी सेवा करेंऔर वस्तुओं को हमारे पास उपलब्ध कराए। वह परमेश्वर और हमारे मध्य दौड़ता नही रहता है। ये सब काम स्वर्गदूतों के हैं। परन्तु पवित्र आत्मा हमारे जीवनों के साथ सदैव बने रहते हैं। वे क्या करते रहते हैं? हमारी अगवाई करते, शिक्षा देते व सिखाते, और सही ढंग से प्रार्थना करना सिखाते हैं। और जब ये बातें आत्मिक  लोक के क्षेत्र में होती रहती हैं तब वे कभी कभी हमें आधी रात में ही जगा देते हैं, और कहते हैं ‘‘प्रार्थना करो’’। आप कहते हैं, ‘‘नहीं! अभी समय कहां हुआ हैं’’? परन्तु पवित्र आत्मा जोर देकर कहते हैं, ‘‘अभी इसी समय प्रार्थना करों’’। क्यों? क्योंकि वे जानते हैं कि आत्मिक लोक में क्या हो रहा है। कभी कभी पवित्र आत्मा कहते हैं।, ‘‘कल उपवास करो’’। आप कहते है,’’ ओह नहीं, हम तो उसे सोमवार से करना चाहते हैं।’’ परन्तु पवित्रआत्मा जानते हैं कि आत्मिक लोक व क्षेत्रों में क्या हो रहा है। हमें पवित्र आत्मा की बातों को समझने के लिये बहुत चैकन्ने व सतर्क होना चाहिये। वे धार्मिकता के मार्ग में हमारी अगुवाई करते हैं।’’

 हे प्रियों हमे यहां पर रूकना होगा। हो सकता है कल सुबह हम और बातचीत करेंगे कि हमें कैसे विजयी प्रार्थनाएं करना चाहिये, यह जानते हुए कि आत्मा में युद्ध जारी है, और हम उस पर कैसे जय प्राप्त करें। यदि हमने प्रार्थना में जय पाकर उस चट्टान को बेध दिया है और परमेश्वर से हमारा सीधा सम्पर्क हो गया है तो फिर इस स्थिति को कैसे बरकरार रखा जाए। जब हम इसे सीख जाते हैं, तब यह बहुत आनन्ददायाक हो जाता है। तब हम एक बात सीखते हैं कि यह युद्ध या संग्राम हमारा नहीं है, यह संग्राम यहोवा परमेश्वर का है,’’ हल्लेलूयाह।

आईये अब हम सब खड़े हो जांए। किसी मनुष्य को अपनी आंखों में लाकर विचार करें कि कितनी बार इस व्यक्ति ने उन बातों का परित्याग किया है जो परमेश्वर उसे देना चाहते थे। परन्तु यदि आप कर सकते हैं तो दो या तीन जन एक दुसरे के हाथों को पकड़े और एक दुसरे से कहें, ‘‘हमें और अधिक पराजित होने की आवश्यकता नहीं है! हम जय प्राप्त कर सकते हैं! हमारे पास जय के लिये बहुत सामर्थ उपलब्ध है,। यीशु ने पहिले ही यह कार्य पूरा कर चुके हैं।’’ एक दूसरे के लिये प्रार्थना कीजिये कि जय पाने के लिये प्रभु हमारी सहायता करें। हमें किसी भी हालत में पराजित नही होना है। हमारी जय के लिये हमारे पास बहुत सा अनुग्रह और असीम सामर्थ उपलब्ध है । 

हे यीशु , आपको धन्यवाद ! 

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