भाग 3 ईश्वरीय इच्छा

 भाग 3 ईश्वरीय इच्छा

प्रभु यीशु के जन्म के समय स्वर्गदूतों द्वारा सुसमाचार सुनाया गया। यदि ईश्वर की इच्छा नहीं होती तो परमेश्वर अपने स्वर्गदूतों को संदेश देने हेतु नहीं भेजता। लूका 2ः10 ‘‘तब स्वर्गदूत ने कहा - मत डरो, क्योंकि देखो मैं तुझे बड़े आनन्द का सुसमाचार सुनाता हूं जो सब लोगों के लिए होगा, कि आज दाउद के नगर मेें तुम्हारे लिये एक उद्धार कर्ता जन्मा है।’’ इस पद से यह साफ प्रगट होता है कि सुसमाचार सब लोगों के लिये है। और सबको सुसमाचार सुनाया जाये यही परमेश्वर की इच्छा है। यशायाह 41ः27 ‘‘मैं ही ने पहिले सियोन से कहा देखो उन्हें देख और मैंने यरूशलेम को एक शुभ समाचार देने वाला भेजा।’’

इस पद से यह साफ प्रगट होता है शुभ समाचार या सुसमाचार परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप प्रभु यीशु मसीह के द्वारा इस संसार में आया। यशायाह 52ः7 ‘‘उनके पांव क्या ही सुहावने है जो शुभ समाचार लाता है’’। परमेश्वर का वचन बताता है, उनके पांव सुहावने हैं। जो शुभ समाचार या सुसमाचार लाना या प्रचार करना यह परमेश्वर की इच्छा है। 

आज संसार के सामने प्रचार मूर्खता है। या प्रचार कार्य को मूर्खता का कार्य समझते हैं, परन्तु यह परमेश्वर की इच्छा है कि प्रचार हो। 1कुरिन्थियों 1ः21 ‘‘क्योंकि जब परमेश्वर के ज्ञान के अनुसार संसार ने ज्ञान से परमेश्वर को न जाना तो परमेश्वर को यह अच्छा लगा कि इस प्रचार की मूर्खता के द्वारा विश्वास करने वालों को उद्धार दें।’’ इस पद से यह साफ प्रगट है कि यह प्रचार कार्य या सुसमाचार प्रचार परमेश्वर को अच्छा लगता है। तो यह उसकी इच्छा भी है। और उसकी यह इच्छा है कि प्रचार के द्वारा  अर्थात सुसमाचार प्रचार के द्वारा विश्वास करने वालों को उद्धार मिले। तो हमें यह जानना है कि हमें सुसमाचार प्रचार करना है क्योंकि ईश्वरीय इच्छा है और इसके द्वारा लोगों को उद्धार प्राप्त होता हैं।

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