भाग 6 सुसमाचार प्रचार कैसे करें?
भाग 6 सुसमाचार प्रचार कैसे करें?
प्रचार कैसे करें इस बात को समझने के लिये हमें तीन बातों पर ध्यान देना होगा। (1) सुसमाचार प्रचार के पहले की तैयारी (2) ऊंचे शब्द के साथ प्रचार (3) व्यक्तिगत सुसमाचार प्रचार।
(1) सुसमाचार प्रचार के पहले की तैयारी:- एक विद्यार्थी जब परीक्षा देता है तो परीक्षा से पहले वो परीक्षा की तैयारी करता है। वह पढ़ता है व सीखता है। जो पढ़ता है उसे याद भी रखता है ताकि वह परीक्षा में उत्तर अपनी तैयारी के अनुसार लिख सके। जैसे एक वि़द्यार्थी का पढ़ना आवश्यक है उसी प्रकार एक प्रचारक को सा संदेश देने वाले को परमेश्वर का वचन नितांत आवश्यक है।
स्तिफनुस ने जब प्रचार किया तब उसने पुराने नियम पर विस्तार से प्रकाश डाला। यदि उसने पुराने नियम का अध्ययन नहीं किया होता तो उसके पुराने नियम पर प्रकाश डालना मुश्किल होता। प्रभु यीशु मसीह ने भी अपने चेलों को अपने साथ रखकर उन्हें सिखाया। प्रेरितों के काम 2ः42 ‘ और वे प्रेरितों से शिक्षा पाने और संगति रखने में, और रोटी तोड़ने में, और प्रार्थना करने में लौलीन रहें। एक प्रचारक को जब वह प्रचार करता है तो उसे इन चारों बातों को पूरा करना होगा। प्रचार से पहले उसे...............
(1) शिक्षा पाना है। प्रेरितों के काम 2ः42।
(2) संगति रखना है।
(3) रोटी तोड़ना है। (प्रभु भोज में सहभागिता लेना है)
(4) प्रार्थना करना है।
यह चारों बातें एक प्रचारक के जीवन में नहीं होता तो प्रचार कार्य करना मुश्किल हो जायेगा। यदि वह प्रचार कार्य करना चाहता है तो उसे परमेश्वर के वचन से शिक्षा पाना है। दूसरी व तीसरी बात उसे संगति व रोटी तोड़ना भी है। यदि उसे संगति व प्रभु भोज में सहभागिता लेना है तो उसे मंडली भी स्थापित करना पडे़गा। और एक मंडली स्थापित करने लिए प्रार्थना में लौलीन रहना पडे़गा।
मत्ती 7ः7 ‘‘मांगो तो तुम्हें दिया जायेगा, ढूंढ़ोगे तो तुम पाओगे, खटखटाओ तो तुम्हारे लिये खोला जायेगा। प्रचार के समय बहुत सी बाते स्वंय को समझ में नहीं आयेगी और इसके लिये हमें परमेश्वर से मांगना पड़ेगा। परमेश्वर के वचन में से हमें ढूंढना पडे़गा। और यदि हम प्रार्थना में समय बितायेगें तो आवश्य परमेश्वर हमें वह सारी बातें समझाएगा जो दूसरों के लिए रहस्य बना हुआ है।
शिक्षा पाना हैः एक प्रचार करने वाले को वचन का ज्ञान होना अति आवश्यक है। यदि वचन का ज्ञान नहीं है तो वह सुसमाचार का प्रचार नहीं कर सकता। इसलिए प्रेरितों के काम 2ः42 में पहली बात जो कही गई है वह यही है शिक्षा पाने की। पतरस जब सुसमाचार सुनाने के लिए खड़ा हुआ तो उसने जो अनुभव किया था जो देखा था जो समझा था प्रभु यीशु के जीवन से उसको उसने प्रचार किया। योएल नबी के भविष्यवाणी को सबसे पहले उसने लोगों के सामने रखा। क्योंकि प्रेरितों के काम 2ः13 वे तो अर्थात प्रभु यीशु के चेले नई मदिरा के नशे में है। परन्तु पतरस ने कहा नई मंदिरा के नशे में नहीं है क्योंकि यह बात है जो योएल नबी (भविष्यवक्ता) के द्वारा कही गई थी। प्रेरितों के काम 2ः17 ‘‘परमेश्वर कहता है कि अंत के दिनों में ऐसा होगा कि मैं अपनी आत्मा सब मनुष्यों पर उड़ेल दूंगा और तुम्हारे बेटे-बेटियां भविष्यवाणी करेंगे, तुम्हारे जवान दर्शन देखेंगे। और तुम्हारे पुरनिए स्वप्न देखेंगे।
इस बात की अगर हम विवेचना करें तो हमें यह पता चलाता है कि पतरस को परमेश्वर के वचन का ज्ञान था और उसको बूझने की समझ थी। पतरस को परमेश्वर के वचन का पूरा ज्ञान था। उसने योएल भविष्यवक्ता के वचन को संदर्भित किया जो योएल 2ः28 में वर्णित है। यह उस समय पतरस और प्रभु यीशु समीह के चेलों के लिए एक नई घटना थी। परन्तु पतरस परमेश्वर के वचन को पढ़ता था। और उसको वचन का ज्ञान था जब उसने घटना देखी, और देखा कि लोग ठट्ठा कर रहे हैं तब उसने अपने सुसमाचार प्रचार का आरंभ योएल भविष्यवक्ता की पुस्तक के दूसरे अध्याय के 28 पद से आरंभ किया। अपने जीवन का पहला और फलवंत प्रचार किया। उसको परमेश्वर के वचन का विस्तार से ज्ञान था। और इसलिए वह वचन को समझते हुए कहा - प्रेरितों के काम 2ः22-23 ‘‘हे इस्राएल सुनो यीशु नासरी एक मनुष्य था जिसका परमेश्वर की ओर से होने का प्रमाण उन सामथ्र्य के कामों और आश्चर्य के कामों और चिन्हों से प्रगट है, जो परमेश्वर ने तुम्हारे बीच उसके द्वारा कर दिखाया जिसे तुम आप भी जानते हो। और उसी को जब परमेश्वर की ठहराई हुई मनसा और होनहार के ज्ञान के अनुसार पकड़वाया गया तो तुम अधर्मियों के हाथ से उसे क्रूस पर चढ़ा कर माल डाला। परन्तु उसी को परमेश्वर ने मृत्यु के बंधन से छुड़ाकर जिलाया क्योंकि यह अनहोना था कि वह उसके वश में रहता।’’ यहां पर हम यह देखते हैं कि पतरस ने प्रभु यीशु मसीह के द्वारा अपने बारे में कही गई बातों पर पूरा विश्वास किया तो प्रभु यीशु मसीह ने अपने चेलों अपने मृत्यु और पुनरत्थान के विषय में और पतरस ने पहला प्रचार किया जो पूरा-पूरा सुसमाचार था से कही थी।
जो प्रेरितो के काम2ः22-24 पद में हमें मिलात है। प्रेरितों के काम 2ः36 सो अब इस्रायल का घराना निश्चय जान ले कि परमेश्वर ने उसी यीशु को जिसे तुमने क्रूस पर चढ़ाया प्रभु भी ठहराया और मसीह भी।’’ और यही सुसमाचार का पतरस ने प्रचार किया। कि वही प्रभु भी है और मसीह भी। यह सारी बातें वह इसलिए कह सका कि वह परमेश्वर के वचन को समझता था जिसकी शिक्षा वह प्रभु यीशु से प्राप्त किया। इसलिए एक सुसमाचार सुनाने वालों के वचन की शिक्षा पाना बहुत ही आवश्यक है। और इसी प्रकार खोजा भी परमेश्वर का वचन पढ़ रहा था। प्रेरितो के काम 8ः26-40 में इसका वर्णन है। खोजा पढ़ रहा था। यशायाह भविष्यवक्ता की पुस्तक से पढ़ रहा था वह यह था कि यशायाह 53ः7-8 वह भेड़ की नाई वध होने के लिये पहुँचाया गया। जैसे मेमना अपने ऊन कतरने वालों के सामने चुपचाप रहता है वैसे उसने भी अपना मुंह न खोला। उसकी दीनता में उसका न्याय होने नहीं पाया उसके समय के लोगो का वर्णन कौन करेगा, क्योंकि पृथ्वी से उसका प्राण उठाया जाता है।’’ (प्रेरितों के काम 8,32,33) फिलीप्पुस को जब परमेश्वर का संदेश मिला तब वह खोजा के पास गया। और यशायाह के पुस्तक से उसको पढ़ते देखा। तब उसने उससे पूछा जो पढ़ता है वह समझता है तथा जब खोजा ने नकारात्मक उत्तर दिया तब उसने यीशु का सुसमाचार सुनाया।
प्रेरितो के काम 8ः35 यदि फिलिप्पुस वचन नहीं जानता तो वह खोजा को कुछ भी नहीं बता पाता वह जानता था कि जो भविष्यवाणी यशायाह की पुस्तक में लिखा है जिसे खोजा पढ़ रहा था वह प्रभु यीशु के ही विषय में है तब वह तुरन्त प्रभु यीशु के विषय में बताया। और जो वह प्रभु यीशु मसीह के बारे में बताया वही सुसमाचार है। तो हमें यह समझना है कि जो हम सुनाते हैं उसका विषय प्रभु यीशु मसीह ही होना चाहिए और जिस वचन से प्रचार करते है उसे समझना चाहिए कि वह किसके विषय में है। पतरस और फिलिप्पुस दोनों वचन को जानते थे और उसी को समझा इसलिए कि वह खुद समझते थे और उन्हें वचन की शिक्षा प्राप्त थी।
प्रभु यीशु की शिक्षा: प्रभु यीशु ने भी सुसमाचार का प्रचार किया। प्रभु यीशु वचन को बहुत अच्छी तरह से जानते थे। यूहन्ना से बपतिस्मा लेने बाद जब प्रभु यीशु जंगल में जाकर चालीस दिन और चालीस रात निराहार रहे, उपवास किए। इब्लीस (शैतान) ने उनकी परीक्षा की। मत्ती 4ः2-4 ‘‘और कहा, यदि तू परमेश्वर का पुत्र है तो कह दे ये पत्थर राटियां बन जाएं। तब प्रभु यीशु ने उत्तर दिया कि लिखा है कि मनुष्य केवल रोटियों से नहीं परन्तु हर एक उस वचन से जो परमेश्वर के मुंह से निकलता है, जीवित रहता है।’’ यह उत्तर प्रभु यीशु ने वचन से ही दिया क्योंकि वचन को जानता था, सीखा था। वह वचन उसने (व्यवस्था विवरण) की पुस्तक से दिया जो कि व्यवस्था विवरण 8ः3 में पाया जाता है। शैतान ने प्रभु यीशु को दूसरी परीक्षा ली और उसने कहा ‘यदि तू परमेश्वर का पुत्र है तो अपने आप को नीचे गिरा दे, क्योंकि लिखा है कि वह तेरे विषय में अपने स्वर्गदूतों को आज्ञा देगा और वे तुझे हाथों हाथ उठा लेगें कहीं ऐसा न हो कि तेरे पांव में पत्थर से ढेस लगे’। तब प्रभु यीशु मसीह ने कहा यह भी लिखा है कि तू अपने परमेश्वर की परीक्षा न कर। यह भी उत्तर प्रभु यीशु मसीह ने परमेश्वर के वचन से ही दिया। जो पाया जाता है व्यवस्था विवरण 6ः16 ‘‘तुम अपने परमेश्वर यहोवा की परीक्षा न करना जैसे कि तुम ने मस्सा में उसकी परीक्षा की थी।’’ तब शैतान ने प्रभु यीशु की तीसरी बार परीक्षा किया और कहा, मत्ती 4ः9 यदि तू मुझे प्रणाम करे तो यह सब कुछ मैं तुझे दे दूंगा। तब प्रभु यीशु ने उसे डांटा और कहा हे शैतान, दूर हो जा। क्योंकि लिखा है कि तू अपने परमेश्वर को प्रणाम कर और उसी की उपासना कर।’’ यह भी प्रभु यीशु मसीह ने परमेश्वर के वचन से कहा और उसको परमेश्वर के वचन से उत्तर दिया। जो व्यवस्था विवरण 6ः13 और 10ः20 में पाया जाता है। यहां पर हम यह सीखते हैं कि प्रभु यीशु मसीह को परमेश्वर के वचन अर्थात धर्मशास्त्र का पूरा ज्ञान था।
प्रभु यीशु जब गदही पर बैठकर जुलूस से मंदिर पहुंचे तब वहां की दशा को देखकर बहुत दुःखी हुए और कहा, मत्ती 21ः13 ‘‘लिखा है कि मेरा घर प्रार्थना का घर कहलाएगा परंतु तुम उसे डाकुओं की खोह बनाते हो’’ यह शब्द प्रभु यीशु ने परमेश्वर के वचन से कहा। उस समय की स्थिति को प्रभु यीशु समझ गए मंदिर की दशा को भी समझ गए तब प्रभु यीशु मसीह इस वचन को कहे जो कि यशायाह 56ः7 में पाया जाता है इसके अंतिम भाग में लिखा है ‘‘क्योंकि मेरा भवन प्रार्थना का घर कहलाएगा।’’ यिर्मयाह 7ः11 क्या यह भवन जो मेरा कहलाता है तुम्हारी दृष्टि में डाकुओं की गुफा हो गया है। प्रभु यीशु हमेशा वचन को इस्तेमाल करते थे और वचन से ही उत्तर देते थे। इसलिए एक परमेश्वर के सेवक या प्रचार को परमेश्वर के वचन को जानना बहुत की आवश्यक है ताकि वह समय-समय पर वचन का संदर्भ देकर लोगों को परमेश्वर के वचन के बारे में बता सकें और परमेश्वर के सुसमाचार का प्रचार सही रीति में परमेश्वर के वचन के अनुसार कर सकें।
प्रभु यीशु ने परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार सुनाया। मरकुस 1ः14 में लिखा है कि प्रभु यीशु ने गलील में आकर परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार प्रचार किया ।’’ प्रचार करने से पहले प्रभु यीशु मसीह ने बपतिस्मा लिया। जंगल में उपवास किया - परमेश्वर से प्रार्थना की और अपने आप को तैयार किया। ठीक इसी प्रकार सुसमाचार के प्रचार करने वालों को चाहिए कि अपने आपको पूरी तरह से तैयार करें। ताकि वह परमेश्वर के वचन का प्रचार कर सकें।
(2) ऊंचे शब्द के साथ - प्रेरितों के काम 2ः14 ‘‘तब पतरस उन ग्यारह के साथ खड़ा हुआ और ऊंचे शब्द से कहने लगा।‘‘ इस पद से हम दो बातें समझते हैं। (1) कि पतरस ऊंचे शब्द से कहने लगा। इसका अर्थ यह है कि अपनी जवाज में अपने शब्द में इतना जोर उत्पन्न किया कि सब लोग उसकी आवाज को सुन सकते थे और पतरस ऊंची आवाज में कहने लगा। तो इस पद से हमें साफ पता चलता है कि हम जो कहते हैं उसे दूसरे लोग भी सुन सकें नहीं तो लोगों को बहाना मिल सकता है कि हमने कुछ सुना नहीं। सब लोग ठीक प्रकार से सुन सकें तो पतरस ने ऊंचे शब्द के साथ प्रचार किया।
इसलिए जो प्रचार करते हैं भीड़ के अनुसार अपनी आवाज को अपने शब्द को ऊंचा करना है ताकि लोग सुन सकें और उनको यह समझ में आ जाये कि आप क्या कह रहे हैं। (2) दूसरी बात इस पद से हम यह समझ सकते हैं कि पतरस ने ऊंचे शब्द के साथ इसलिए प्रचार किया कि वह अपने प्रचार के पक्ष को जोरदार ढंग से लोगो के सामने रखना चाहता था और अपने प्रचार को बड़े विश्वास के साथ, बड़ी द्दढ़ता के साथ रखना चाहता था। पतरस ने ऊंचे शब्द से इसलिए प्रचार किया कि वह सच्चाई को जानता था और उस सच्चाई को बड़ी द्दढ़ता के साथ प्रचार किया। पतरस ने ऊंचे शब्द के साथ इसलिए प्रचार किया कि वह पूरे रीीित से संतुष्ट था। प्रेरितों के काम 2ः22 ‘‘हे इस्राएल, ये बातें सुनो यीशु नासरी एक मनुष्य था, जिसका परमेश्वर होने का प्रमाण, उन सामथ्र्य के कामों, आश्चर्य के कामों और चिन्हों से प्रगट है जो परमेश्वर ने तुम्हारे बीच उसके द्वारा कर दिखलाए, जिसे तुम आप ही जानते हो।’’ इस पद से उसके ऊंचे शब्द से कहने का राज खुलता है कि उसने ऊंचे शब्द से क्यों प्रचार किया। पतरस इस पद में कहता है कि प्रभु यीशु के द्वारा किये गये आश्चर्य कर्म ही उसके परमेश्वर से होने का प्रमाण है। क्योंकि स्वंय पतरस ने प्रभु यीशु के द्वारा किये गये आश्चर्य कर्म को देखा और उसने बड़े विश्वास के साथ कहा कि प्रभु यीशु के आश्चर्य कर्म को तुम भी जानते हो। तो इन बातों से हम यह खास और मुख्य बात सीखते हैं कि सुसमाचार का प्रचार ऊंचे शब्द के साथ अर्थात प्रमाण के साथ करना है। या उदाहरण देकर वचन का संदर्भ देकर सुसमाचार सुनाना है। और अपना पक्ष या अपनी बात को इस प्रकार प्रस्तुत करना है कि लोग आपके कहे गये एक-एक शब्द को सत्य समझे। और प्रभु यीशु के कार्य के साथ-साथ उसके दुःखों का भी वर्णन करना है जैसा पतरस ने अपने पहले सुसमाचार प्रचार में किया कि क्रूस पर चढ़ कर माला डाला।’’ (प्रेरितों के काम 2ः23-24)
पतरस ने बड़ी द्दढ़ता से प्रचार किया कि प्रेरितों के काम 2ः36 ‘‘सो अब इस्रायल का सारा घराना निश्चय जान ले कि परमेश्वर ने उसी यीशु को जिसे तुमने क्रूस पर चढ़ाया, प्रभु भी ठहराया और मसीह भी’’। साफ शब्दों में दृढ़ता से पतरस ने प्रभु यीशु के क्रूस पर चढ़ाए जाने का वर्णन किया है। और इसका परिणाम यह निकला कि लोगों के हृदय छिद गए। प्रेरितों के काम 2ः34 और पतरस के इस सुसमाचार प्रचार के द्वारा करीब 3 हजार लोगों ने बपतिस्मा लिया और उनमें मिल गए। प्रेरितों के काम 2ः41 तो पतरस के पहले ही सुसमाचार प्रचार से लोगों के हृदय में परमेश्वर का कार्य हुआ।
(3) व्यक्तिगत सुसमाचार प्रचार: सामूहिक रूप से सुसमाचार प्रचार कर या एक बड़े झुंड को प्रचार करना एक महत्वपूर्ण बात है परंतु व्यक्तिगत रीति से सुसमाचार प्रचार करना भी किसी प्रकार से प्रचार से कम महत्पपूर्ण नहीं है। प्रभु यीशु मसीह ने और प्रभु यीशु समीह के शिष्य बड़ी भीड़ को भी प्रचार करते थे और साथ ही साथ एक परिवार और एक व्यक्ति को भी सुसमाचार सुनाते थे। मत्ती रचित सुसमाचार के पांचवे अध्याय में हम देखते हैं, प्रभु यीशु मसीह ने एक बड़ी भीड़ को संम्बोधित किया। मत्ती 5ः1 ‘‘वह इस भीड़ को देखकर पहाड़ पर चढ़ गया और जब बैठ गया तो उसके चेले उसके पास आये और वह अपना मुंह खोलकर उन्हें यह उपदेश देने लगा।’’ यहां पर हम देखते है कि प्रभु यीशु एक बडी़ भीड़ को शिक्षा दिया। साथ ही साथ प्रभु यीशु समीह ने एक व्यक्ति को भी महत्व दिया। जक्कई जब प्रभु यीशु मसीह को देखना चाहता था और भीड़ के कारण वह उसे देख नही पा रहा था तब वह एक गूलर के पेड़ पर चढ़ गया क्योंकि वह नाटे कद का था। तब प्रभु यीशु समीह स्वंय उसके पास उस पेड़ के नीचे गए और जक्कई को संबोधित करके कहा ‘‘हे जक्कई, तू झट नीचे उतर आ, क्योंकि आज मुझे तेरे घर रहना अवश्य है।’’ और वह तुरंत उतरकर आनंद से उसे अपने घर ले गया। लूका 19ः6-8 जक्कई ने खड़े होकर बड़े आनन्द से प्रभु से कहा, हे प्रभु देख मैं अपनी आधी संपत्ति कंगालों को देता हूँ। यदि किसी का कुछ भी अन्याय करके ले लिया है तो उसे चैगुना फेर देता हूँ। लूका 19ः9 ‘‘तब प्रभु यीशु ने कहा आज इस घर में उद्धार आया है। इसलिए यह भी एक इब्राहीम का पुत्र है। क्योंकि मनुष्य का पुत्र खोए हुओं को ढूंढने और उनका उद्धार करने आया है।’’ प्रेरितों के काम 10ः13 कैसरिया में कुरनेलियुस नाम का एक मनुष्य। इस अध्याय में कुरनेलियुस नाम के एक व्यक्ति का वर्णन है। और पतरस के द्वारा उसे सुसमाचार सुनाने की आज्ञा परमेश्वर से मिली और वह कुरनेलियुस को सुसमाचार सुनाया और कुरनेलियुस के पूरे परिवार ने विश्वास किया और उन्हें बपतिस्मा दिया गया। तो परमेश्वर का वचन साफ तौर से बताता है कि व्यक्तिगत रीति से भी सुसमाचार प्रचार किया जा सकता है। व्यक्तिगत रीति से सुसमाचार प्रचार करने के लिये किसी व्यक्ति के घर पर या किसी स्थान पर उसे वचन से समझांए और प्रभु यीशु के विषय और उसके द्वारा दिये गये उद्धार के मार्ग को बतांए, तो अवश्य है कि यदि परमेश्वर की इच्छा होगी तो वह विश्वास करेगा। क्योंकि प्रभु यीशु खोए हुओं को ढूंढ़ने और उद्धार करने आया है। परमेश्वर का वचन बताता है कि जब एक पापी अपने पापों से पश्चाताप करता है तो स्वर्ग में बड़ा आनंद मनाया जाता है।
Comments
Post a Comment