भाग 7 सुसमाचार प्रचार का विषय

भाग 7 सुसमाचार प्रचार का विषय 

(1) परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार (2) परमेश्वर के अनुग्रह का सुसमाचार (3) उद्धार का सुसमाचार (4) महिमा का सुसमाचार (5) शांति या मेलमिलाप का सुसमाचार (6) सत्य का सुसमाचार। 

यह परमेश्वर की इच्छा है कि लोग प्रभु यीशु के सुसमाचार को सुनें। जब प्रभु यीशु का जन्म हुआ बहुत से गड़ेरिये मैदान में अपने भेड़ो को चरा रहे थे। तो उनको स्वर्गदूतों द्वारा यह पहला सुसमाचार प्राप्त हुआ। लूका 2ः10 ‘तब स्वर्गदूत ने उनसे कहा, मत डरो, क्योंकि देखो मैं तुम्हें बड़े आनन्द का सुसमाचार सुनाता हूं जो सब लोगों के लिये होगा, कि आज दाऊद के नगर में तुम्हारे लिए एक उद्धारकर्ता जन्मा है और यही मसीह प्रभु है। यही तो सुसमाचार है कि हमारे लिए एक उद्धारकर्ता जन्मा है, प्रभु यीशु मसीहा स्वर्गदूत ने कहा जो सब लोगों के लिए होगा। तो हमें यह समझना होगा कि प्रभु यीशु मसीह का जन्म संसार के प्रत्येक व्यक्ति के लिए है। और यह परमेश्वर की योजना है कि लोग प्रभु यीशु के द्वारा उद्धार पांए। तो यह चुने हुये लोगों का कर्तव्य बनता है कि प्रत्येक मनुष्य का सुसमाचार अवश्य पहुंचाना है। सुसमाचार प्रचार कैसे करें इसके लिए निम्न बातों पर ध्यान दें।

(1) बुलाहट: सुसमाचार सुनाने वालों को परमेश्वर की बुलाहट को समझना है और परमेश्वर के लिये अपने आपको अलग करना है। रोमियों 1ः1 ‘‘पौलुस की ओर से जो यीशु मसीह का दास, और प्रेरित होने के लिये बुलाया गया, और परमेश्वर के उस सुसमाचार के लिए अलग किया गया है।’’ तो सर्वप्रथम हमें यह समझना है ‘जो सुसमाचार प्रचार करना चाहते है’ कि परमेश्वर ने हमें अलग किया है। अर्थात संसार और उसकी अभिलाषाओं से परमेश्वर ने अलग किया है ताकि हम सुसमाचार का प्रचार कर सकें यदि हम सांसारिक जीवन बिताते है तो सुसमाचार का कार्य हमारे जीवन से प्रभावशाली ढंग से नही हो सकेगा। कुछ दिन तक तो ठीक-ठाक चलेगा परन्तु बाद में फिर संसारिकता में लिप्त हो जायेंगे। और सुसमाचार प्रचार का कार्य नहीं हो सकेगा जैसा परमेश्वर हमारे से चाहता है। तो अलग होने की सार्थकता को अंत तब बनाए रखना जरूरी है। 

(2) प्रभु यीशु को मुक्तिदाता ग्रहण करना होगाः मत्ती 10ः32 ‘‘जो कोई मनुष्यों के सामने मुझे मान लेगा उसे मैं भी अपने स्वर्गीय पिता के सामने मान लूंगा।’’ याद करें उस घटना हो जब प्रभु यीशु दो डाकुओं के बीच में लटका हुआ था। लूका 23ः39-42 ‘‘जो कुकर्मी लटकाए गए थे उनमें से एक ने उसकी निंदा करके कहा क्या तू मसीह नही, तो फिर अपने आपको और हमें बचा।’’ लूका 23ः40 ‘‘इस पर दूसरे ने उसे डांट कर कहा, क्या तू परमेश्वर से भी नही डरता, तू भी तो वही दंड पा रहा है और हम तो न्याय अनुसार दंड पा रहे है हम अपने कामो का ठीक फल पा रहे हैं परन्तु इसने कोई अनुचित कार्य नहीं किया। तब उसने कहा हे यीशु जब तू अपने राज्य में आये तो मेरी सुधी लेना’’। 

हम इस डाकु के विश्वास को देखें। प्रभु यीशु उसी के समान दंड पा रहा था परन्तु डाकु ने ऐसी स्थिती में भी प्रभु यीशु पर विश्वास किया उसे परमेश्वर माना और कहा जब तू अपने राज्य में आये तो मेरी सुधि लेना’’। लूका 23ः43 ‘‘उसने उससे कहा मैं तुझसे सच कहता हूं कि आज ही तू मेरे साथ स्वर्गलोेक में होगा’’। उस डाकु ने प्रभु यीशु को मान लिया ठीक इसी प्रकार हमें भी प्रभु यीशु को परमेश्वर मानना है। रोमियों 10ः9 ‘‘यदि तू मुंह से यीशु को प्रभु जानकर अंगीाकर करे और मन से विश्वास करे कि परमेश्वर ने उसे मरे हुओं में से जिलाया तो तू निश्चय उद्धार पाएगा।’’ रोमियों 10ः10 ‘‘क्योंकि धार्मिकता के लिये मन से विश्वास किया जाता है और उद्धार के लिए मुंह से विश्वास किया जाता है। तो सुसमाचार प्रचार करने के लिये हमें यह आवश्यक है कि प्रभु पर मन से विश्वास करें और उद्धार के लिए मुंह से अंगीकार करें। जब तक हम उस पर विश्वास मन से, या हृदय से नहीं करते और मुंह से अंगीकार नहीं करते तब तक हम सुसमाचार की सार्थकता को दूसरों तक प्रगट नहीं कर सकते। इसलिए जो सुसमाचार प्रचार करना चाहते है तो प्रभु यीशु पर विश्वास करना होगा प्रभु यीशु का अंगीकार करना होगा और यही बात का प्रचार करना होगा और यह प्रचार नाश होने वालों के लिए सुसमाचार बन जायेगा।

(3) भंडारी: परमेश्वर लोगों को चुनकर उन्हें अपने वचन का भंडारी बनाता है। और भंडारी का कार्य यह है कि उसके भंडार की बातों को लोगों तब पहंचाए और उसके भंडार को समझना है। परमेश्वर यदि हमें चुनता है तो हमें अपना भंडारी बनाता है। 1कुरिन्थियों 9ः17 तौभी भंडारीपन सौंपा गया है। जैसा पौलुस को भंडारीपन सौंपा गया था वैसे ही परमेश्वर हर एक विश्वासी को भंडारीपन सौंपता है। भंडारी को सुसमाचार सुनाना आवश्य है। 1कुरिन्थियों 9ः16 ‘और यदि मैं सुसमाचार सुनाऊं तो मेरा कुछ घमंड नहीं क्योंकि यह मेरे लिए आवश्य है। ‘पौलुस इस बात को समझता है कि परमेश्वर ने चुना है और भंडारीपन सौंपा है तो सुसमाचार आवश्य सुनाना है। इसी कारण सारा जीवन पौलुस लोगों को सुसमाचार सुनाता रहा और परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार जहां उसे अवसर मिलता था, सुनाता था। 

जब परमेश्वर ने भंडारीपन सौंपा है तो परमश्ेवर का भंडार भी होगा और यदि परमेश्वर का भंडार है तो उसमें कुछ होगा। आईये देखें कि परमेश्वर के भंडार में क्या है? (1) परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार (2) अनुग्रह का सुसमाचार (3) उद्धार का सुसमाचार (4) महिमा का सुसमाचार (5) शांति का सुसमाचार (6) सत्य का सुसमाचार। पहली बात परमेश्वर के सुसमाचार के यदि हम भंडारी है तो हमें यह जानना होगा । आइये सिलसिलेवार इस पर दृष्टि डालें।

(1) परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार: उस डाकू ने कहा था जब तू अपने राज्य में आए मेरी सुधी लेना। परमेश्वर का राज्य ऐसा है जहां लोगों की सुधी ली जाती है संसार में दुःख पीड़ा दर्द तिरस्कार सहना पड़ता है परन्तु परमेश्वर के राज्य में परमेश्वर का प्रेम है। लाज़र संसार में तड़प तड़प के मर गया उसे एक अमीर आदमी के घर के फाटक पर छोड़ दिया जाता था। परन्तु उसका दुःख दूर हो गया जब वह इब्राहीम की गोद अर्थात परमेश्वर के राज्य में पहुंचा परमेश्वर के राज्य के सुसमाचार का प्रचार होना आवश्यक है। मत्ती 24ः14 ‘‘और राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में प्रचार किया जाएगा, कि सब जातियों पर गवाही, हो, तब अंत होना आवश्यक है।’’ (अ) परमेश्वर का राज्य या स्वर्ग राज्य एक ही है, मत्ती 13ः31-32 ‘‘स्वर्ग का राज्य एक राई के दाने के समान है जिसे एक मनुष्य ने अपने खेत में बो दिया वह अन्य सब दानों से छोटा हाता है परन्तु पूर्णतः बढ़कर सभी वृक्षों से बड़ा हो जाता है और ऐसा वृक्ष बन जाता है कि आकाश के पक्षी आकर उसकी डालियों पर बसेरा करते है।’’ इस पद से हम समझ सकते हैं कि सबके लिये स्वर्ग का राज्य आनंद से रहने का स्थान है। (ब) मत्ती 13ः47-50 ‘‘स्वर्ग का राज्य एक बडे़ जाल के समान है जो समुद्र में डाला गया और हर प्रकार की मछली को समेट लाया और जाल भर गया तो लोग उसे तट पर खींच लाए और अच्छी मछली को टोकरियों में इकट्ठा किया और बुरी को फेंक दिया’’।

बाद में प्रभु यीशु मसीह ने कहा जगत के अंत में ऐसा ही होगा परमेश्वर अपने राज्य के लिये अच्छी मछलियों को इकट्ठा करेगा अछी मछलियां प्रभु यीशु पर विश्वास करने वाली है। तो हमें देखना है कि हम परमेश्वर के राज्य के लिए कितनी अच्छी मछलियां तैयार करते है। (स) स्वर्ग का राज्य अर्थात परमेश्वर का राज्य एक गुप्त धन और अनमोल रत्न के समान है। मत्ती 13ः44-46 ‘‘स्वर्ग का राज्य खेत में छुपे धन के समान है जिसे किसी मनुष्य ने पाया और छिपा दिया और उसके कारण आनन्दित होकर उसने अपना सब कुछ बेच दिया और खेत को मोल ले लिया फिर स्वर्ग का राज्य सच्चे मोतियों को खोजने वाले व्यापारी के समान हैं। जब उसे एक बहुमूल्य मोती मिला तो उसने जाकर अपना सब कुछ बेच दिया और उस मोती को खरीद लियें।

परमेश्वर का वचन बताता है कि दोनों व्यक्तियों ने अपना सब कुछ बेचा और खेत और उस मोती को खरीद लिया। यह परमेश्वर का वचन बताता है कि हमारे लिये संसारिक धन को प्राप्त करने से यह कहीं उत्तम है कि उसके राज्य में प्रवेश करें या उसके राज्य को प्राप्त करें। लूका 12ः16-20 यहां पर प्रभु यीशु एक दृष्टांत बताते हैं कि किसी धनवान पुरूष के खेत में बहुत अधिक उपज हुई है। वह अपने मन में यह विचार करने लगा, मैं क्या करूं मेरे पास अपनी उपज रखने के लिए स्थन तो नहीं है। मैं ऐसा करूंगा की अपनी बखारियों को तोड़कर बड़ी बखारियां बनाऊंगा। और उन्हीं में अपना सारा समान और संपत्ति रखूंगा। तब मैं अपने प्राण से कहूंगा, हे मेरे प्राण तेरे पास बहुत वर्षो के लिए संपत्ति रखी हुई है चैन कर खा-पी और आनंद मना, परंतु परमेश्वर ने उससे कहा, हे मूर्ख यदि आज ही रात तेरा प्राण तुझसे ले लिया जायेगा, तब जो कुछ तूने इकट्ठा किया है वह किसका होगा।’’ इस पद से यही शिक्षा मिलती है कि संसारिक धन से यह उत्तम है कि हम परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करें या उसके राज्य को प्राप्त करें। 

(2) परमेश्वर के अनुग्रह का सुसमाचारः प्रेरितों के काम 20ः24 ‘‘परन्तु मैं अपने प्राण को कुछ नहीं समझता कि उसे प्रिय जानंू परन्तु यह कि मैं अपनी दौड़ को और उस सेवकाई को पूरी करूं, जो मैंने परमेश्वर के अनुग्रह के सुसमाचार पर गवाही देने लिए प्रभु यीशु से पाई।’’ यह पद हमें यह बताता है कि अनुग्रह का सुसमाचार प्रभु यीशु से मिलता है और इसके लिये प्राण भी कुछ नहीं है। क्योंकि परमेश्वर का यह अनुग्रह ही है जो हमें अनन्त जीवन प्रदान करता है। इसलिए सुसमाचार सुनाने वालों को अपने प्राण को अप्रिय जानना है। अनुग्रह के सुसमाचार को जो हमें प्रभु यीशु से मिलता है उसकी गवाही देना है। गवाही या अनुग्रह के सुसमाचार के प्रचार के लिए हमें यह जानना बहुत ही आवश्यक है कि हम जाने कि अनुग्रह का सुसमाचार है क्या? सबसे पहले हमें यह समझना है कि अनुग्रह कौन प्रदान करता है। पतरस 5ः10 ‘‘अब परमेश्वर जो सारे अगुग्रह का दाता है और जिसने तुम्हें मसीह में, अपनी अनंत महिमा के लिये बुलाया है, तुम्हारे थोड़े देर तक दुःख उठाने के बाद तुम्हें आप ही सिद्ध और स्थिर और बलवन्त करे। इस पद से यह ज्ञात होता है कि परमेश्वर का अनुग्रह हमारे दुःखों को दूर करता है, स्थिर करता है, और हमें सिद्ध करता है तो यह सारी बातें जो समझ नहीं सकते परमेश्वर के अनुग्रह से हमें प्राप्त होती है और यही अनुग्रह का सुसमाचार है।

जब हम संसार में दुःख झेलते झेलते कमजोर हो जाते है, जब हम संसार में भाग दौड़ करते-करते थक जाते और आत्मिक रीति से कमजोर हो जाते है तब परमेश्वर अपने अनुग्रह के द्वारा हमारें दुःखों को दूर करता है, हमें सिद्ध करता है, स्थिर करता है, अपने अनुग्रह से ही हमें बलवंत और जयवन्त बनाता है। और यह अनुग्रह हमें हमारे कामों के द्वारा नहीं मिला परन्तु अनुग्रह पूरे संसार में प्रभु यीशु के द्वारा आया। यूहन्न1ः17 ‘‘इसलिएकि व्यवस्था मूसा के द्वारा दी गई, परन्तु अनुग्रह और सच्चाई यीशु के द्वारा पहुंची।’’ हमें यह समझना है अनुग्रह प्रभु यीशु मसीह के द्वारा ही हमें मिला क्योंकि प्रभु यीशु मसीह अनुग्रह से ओत प्रोत था, परिपूर्ण होकर हमारे बीच में डेरा किया, और हमने उसकी ऐसी महीमा देखी जैसी पिता के एकलौते की महीमा।’’ इस पद के द्वारा हमें यह स्पष्ट पता चलता है कि प्रभु यीशु मसीह परमेश्वर का अनुग्रह है। यदि हम प्रभु यीशु को ग्रहण करते हैं तो हमने अनुग्रह को प्राप्त कर लिया यह परमेश्वर की अनुग्रह हम पर हो गया जो कि हमें संसार के सारे कष्टों से मुक्त करता है। प्रभु यीशु मसीह को ग्रहण करने का संदेश भी सारे जगत के लिए अनुग्रह के सुसमाचार को ग्रहण किया है, उनको परमेश्वर का अनुग्रह हुआ है या जितनों ने अनुग्रह के सुसमाचार को ग्रहण किया है उनको परमेश्वर धर्मी ठहराता है। रोमियों 3ः24 ‘‘और अनुग्रह के कारण लोग विश्वासी ठहरते है।’’ प्रेरितों के काम 18ः27 और अनुग्रह के द्वारा पापों की क्षमा होती है। ऐसी स्थिती में हमें परमेश्वर के अनुग्रह के सुसमाचार को समझना है, और इसी अनुग्रह के सुसमाचार का प्रचार करना है। 

(3) उद्धार का सुसमाचार: इफिसियों 1ः13 ‘‘और उसी में तुम पर भी जब तुमने सत्य का वचन सुना और तुम्हारे लिए उद्धार का सुसमाचार है, और जिस पर तुमने विश्वास किया, प्रतिज्ञा किये हुए पवित्र आत्मा की छाप लगी।’’ हमें उद्धार का सुसमाचार सुनाने से पहले स्वंय उद्धार के सुसमाचार को जो परमेश्वर का सत्य वचन है, सुनना होगा और उस पर विश्वास करना होगा। और जब हम इस पर विश्वास करते हैं तो हम इसका प्रचार कर सकते हैं। और खाश बात यह है कि ‘‘उद्धार के सुसमाचार’ सुनाने से पहले हमें स्वंय समझना होगा कि उद्धार क्या है। तो हम इसको इस रीति से समझ सकते हैं कि उद्धार प्रभु यीशु मसीह के द्वारा है। इफिसियों 5ः23 ‘‘प्रभु यीशु देह का उद्धार करता है क्योंकि हमारा यह देह शापित है और इस पर दंड की आज्ञा लग चुकी है इसलिए परमेश्वर का वचन हमें बताता है, 2कुरिन्थियों 5ः1 क्योंकि हम जानते है हमारा पृथ्वी पर का डेरा सरीखा घर गिराया जायेगा तो हमें परमेश्वर की ओर से स्वर्ग पर ऐसा भवन मिलेगा जो हाथों से बना हुआ घर नहीं परन्तु चिरस्थाई है।’’ हम इस पद से समझ सकते हैं कि डेरा सरीखा घर हमारा देह है और मृत्यु के बाद हमें परमेश्वर अविनाशी देह देगा जिसके ऊपर दंड की आज्ञा नहीं होगी परन्तु प्रभु यीशु के द्वारा उद्धार किया होगा। 1पतरस 1ः18-19 ‘‘तुम्हारा छुटकारा चांदी, साने से अर्थात नाशवान वस्तुओं के द्वारा नहीं हुआ, परन्तु निर्दोष और निष्कलंक मेमने अर्थात मसीह के बहुमूल्य लोहू के द्वारा हुआ।’’ यही पद हमारे लिए उद्धार का या छुटकारे का सुसमचार है जो हमें प्रभु के द्वारा प्राप्त होता है। (मत्ती 1ः21 और पापों को दूर करता है।)

(4) महिमा का सुसमाचार: प्रभु यीशु का सुसमाचार महिमायुक्त है। अर्थात तेजोयम है इससे परमेश्वर की महीमा होती है, यदि काई इसको नहीं सुनता, प्रभु यीशु मसीह के सुसमाचार को तो, हमें यह समझ लेना है कि उसके उपर पर्दा पड़ा है तो केवल नाश होने लिये। 2कुरिन्थियों 4ः3। यूहन्ना 1ः14 ‘‘परमेश्वर की महिमा हमें प्रभु यीशु मसीह में दिखाई देता है और परमेश्वर के महिमा का वचन जो स्वंय प्रभु यीशु था देहधारी हुआ।’’ इब्रानियों 1ः3  ‘प्रभु यीशु मसीह महिमा का प्रकाश है और परमेश्वर के तत्व की छाप है। सब वस्तुओं को अपने सामथ्र्य के वचन से सम्भालता है। वही वचन महिमा का सुसमाचार है जो प्रभु यीशु समीह के द्वारा संसार में प्रगट हुआ और यही महीमा का सुसमाचार हमें संसार को बताना है।’

(5) शांति या मेलमिलाप का सुसमाचार: इफिसियों 2ः17 ‘‘उसने तुम्हें आकर जो दूर थे, और उन्हें जो निकट थे, दोनों को मेल मिलाप का सुसमाचार सुनाया।’’ अर्थात शांति का सुसमाचार सुनाया। आरंभ से ही परमेश्वर यही चाहता था कि मनुष्यों को शांति मिले यही कारण था परमेश्वर ने अपनी योजना के अनुसार अपने पुत्र अर्थात प्रभु यीशु को भेज सारे मानव को शांति मिले यही कारण था परमेश्वर ने अपनी योजना के अनुसार अपने पुत्र अर्थात प्रभु यीशु को भेज सारे मानव को शांति का सुसमाचार दिया, मेल मिलाप का सुसमाचार दिया, हमारा मेल मिलाप पिता से कराया क्योंकि संसार परमेश्वर से दूर था पाप के द्वारा परमेश्वर से अलग था इसलिए प्रभु यीशु ने शांति व मेलमिलाप का सुसमाचार सुनाया ताकि हमारा मेलमिलाप पिता परमेश्वर से हो सके। इफिसियों 3ः10-11, ‘‘क्योंकि जो जीवन की इच्छा करते हैं और अच्छे दिन देखना चाहते हैं वह अपनी जीभ को बुराई से और अपने होठों से छल की बातों से रोके रहे, वह बुराई का साथ छोडें और भलाई करे, वह मेलमिलाप का सुसमाचार को ढूंढे़ और सही का यत्न करें। तब हमारा मेल मिलाप परमेश्वर पिता से हो सकेगा और हमारे जीवन में शांति मिल सकेगी। शांति किसके द्वारा मिलती है - यूहन्ना 16ः33 हमें शांति प्रभु यीशु मसीह के द्वारा मिलती है। इस पद में प्रभु यीशु ने कहा ‘‘मैंने यह बातें तुम्हें इसलिए कही कि तुम्हें शांति मिले संसार में तुम्हें क्लेश होता है, परन्तु ढ़ांढस बांधो मैंने संसार को जीत लिया है।’’ यह साफ जाहिर है कि हमें शांति प्रभु यीशु के द्वारा उसके बातों को मानने के द्वारा प्राप्त होती है न कि संसार की भौतिक वस्तुओं से क्योंकि प्रभु यीशु ने संसार को जीत लिया है। शांति का राजकुमार: यशायाह 9ः6 ‘‘क्योंकि हमारे लिये एक बालक उप्तन्न हुआ हमें एक पुत्र दिया गया और प्रभुता उसके कांधो पर होगी और उसका नाम अद्भूत युक्ति करने वाला पराक्रमी परमेश्वर अनन्त काल का पिता और शांति का राजकुमार रखा जाएगा।’’ इस पद से यह साफ प्रगट होता है कि प्रभु यीशु मसीहा शांति का राजकुमार है और जब हम उसके मेल मिलाप और शांति के सुसमाचार पर अर्थात प्रभु यीशु पर विश्वास करते हैं तो हमें शांति क्यों नही मिलेगी। एक बात साफ हमको समझ लेना है कि परमेश्वर से मेलमिलाप ही शांति है। जहां पर झगड़ा है या मेलमिलाप नहीं है वहां वहा पर शांति कभी स्थापित नहीं हो सकती इस कारण प्रभु यीशु मसीह को परमेश्वर पिता ने संसार में भेजा ताकि अपने रक्त के बलिदान से हमारा मेल-मिलाप परमेश्वर से करा सके ताकि हमें आध्यात्मिक शांति मिल सके। 

(6) सत्य का सुसमाचार: सत्य वचन ही सुसमाचार है। इफिसियों 1ः13 ‘‘और वह सत्य का सुसमाचार हमें प्रभु यीशु से मिलता है।’’ प्रभु यीशु ने कहा मार्ग सत्य जीवन मैं हूं। और उसी सत्य पर हमें विश्वास करना है। इस संसार की नाशवान वस्तुओं पर नहीं जो आज है और कल मिट जायेंगी परन्तु हमें उस अद्वैत परमेश्वर के पुत्र पर विश्वास करना है उसके सत्य वचन अर्थात सत्य के सुसमाचार पर विश्वास करना है। प्रभु यीशु ने कई ऐसे आध्यात्मिक सत्य बातें कही जिसके ऊपर हम विश्वास कर सकते हैं। (1) जगत के अंत तक साथ रहने का सत्य वचन (2) हमारे लिये स्वर्ग में घर देने का सत्य वचन। 

(1) जगत के अंत तक संग रहने का वचन: मत्ती 28ः20 ‘‘प्रभु यीशु ने स्वर्गारोहण के पहले अपने चेलों को कहा देखो मैं जगत के अंत तक सदैव तुम्हारे संग हूं।’’ और इसी सत्य वचन पर हमें विश्वास करना है कि जगत के अंत तक या हमारे सांसारिक जीवन के अंत तक प्रभु यीशु सदैव हमारे संग है तो हमें किसी भी प्रकार की कोई चिंता नहीं करनी चाहिए। भजन संहिता 91ः10-11 इसलिए कोई विपत्ति तुझ पर न पड़ेगी न कोई दुःख तेरे डेरे के निकट आएगा, क्योंकि वह अपने दूतों को तेरे निमित आज्ञा देगा, कि जहां कहीं तू जाए, वे तेरी रक्षा करें।’’ और इसी कारण हमें चिंता नहीं करना है क्योंकि जो परमेश्वर के चुने हुये लोग है उनकी रक्षा परमेश्वर के स्वर्गदूत करते हैं। और यही सत्य वचन अर्थात सत्य का सुसमाचार प्रभु यीशु ने यह कहकर दिया जगत के अंत तक मैं सदैव तुम्हारे संग हूं।

(2) स्वर्ग में घर देने का सत्य वचनः यूहन्ना 14ः1-3 ‘‘तुम्हारा मन व्याकुल न हो तुम परमेश्वर पर विश्वास रखते हो, मुझ पर भी रखो मेरे पिता के घर में रहने के बहुत स्थान है, यदि न होते तो मैं तुमसे कह देता क्योंकि मैं तुम्हारे लिये जगह तैयार करने जा रहा हूं, यदि मैं तुम्हारे लिये जाकर जगह तैयार करूं तो फिर आकर तुम्हें अपने यहां ले जाउंगा कि जहां मैं रहूं वहां तुम भी रहो।’’

यह प्रभु यीशु का सत्य वचन है कि अपने पिता के घर हमें ले जाना चाहता है अपने साथ रहने के लिये। यदि हम आज प्रभु यीशु के इस सत्य वचन को समझते है तो फिर हमें यह संसारिक जीवन उप पर स्वर्गीय जीवन अर्थात प्रभु यीशु मसीह के संग रहने से फीका लगेगा, और इस संसारिक जीवन का लगाव खिंचाव या लालच हमें फिर कभी ललायित नही करेगा। क्योंकि परमपिता के घर में रहने व प्रभु यीशु मसीह के साथ रहने का आनंद किसी प्रकार के आनंद से कहीं महान और अति उत्तम है। इसलिए परमेश्वर का वचन हमें बताता है, रोमियों 13ः11-14 ‘‘और समय को पहचान कर ऐसा ही करो अब तुम्हारे लिये नींद से जाग उठने की घड़ी आा पहंुची है क्योंकि जिस समय हमने विश्वास किया था, उस समय के विचार से हमारा उद्धार निकट। रात बहुत बीत गई अब दिन निकलने पर है। इसलिए अब अंधकार के कामों को तज पर ज्योति के हथियार बांध लो जैसा दिन को सोहता है वैसा ही हम सीधी चाल चले न कि लीला क्रीड़ा और पियकड़पन न व्याभिचार न लुचपन और न झगड़े़  डाह में। वरन् प्रभु यीशु को पहन लो और शरीर की अभिलाषाओं को पूरा न करो।’’ इस पद में हमने तीन बातें समझना है। (1) समय को पहचानना है। आज यदि हम समय को नहीं पहचानते तो यह हमारे लिये बड़ा ही दुःखदायी है। समय को यदि हम पहचानेंगे तो हम लीला क्रीड़ा पियक्कड़पन व्याभिचार लुचपन झगड़े और डाह से बचे रहेंगे क्योंकि अब हमारे लिये सभी बातों के लिये समय बीत चुका और अब हमारे लिये इन बातों के लिये समय नहीं है। अब समय है कि हम नींद से जागें, अर्थात संसारिकता में मन न लगांए, परन्तु प्रभु के हथियार बांध लें। रोमियों 13ः12 ‘‘अब हमारे लिए समय है कि हम अंधकार के कार्यो को छोडे़ं अर्थात शैतानी व संसारिक अभिलाषाओं को छोड़ ज्योति के हथियार बांध लें। तो हर सुसमाचार सुनाने वालों को समय को पहचानना है। और ज्योति के हथियार बांधना है। इस समय हमें यह भी जानना जरूरी है कि ज्योति के हथियार क्या है? ज्योति के हथियार अर्थात परमेश्वर के हथियार। इफिसियों 6ः13-17 ‘‘इसलिए परमेश्वर के सारे हथियार बांध लो कि तुम बुरे दिन का सामना कर सको। और सब कुछ पुरा करके स्थिर रह सको। सो सत्य से अपनी कमर कस कर, और धार्मिकता की झिलम पहिनकर और पांवों में मेल के सुुसमाचार के तैयारी के जूते पहनकर और उन सब के साथ विश्वास की ढाल लेकर स्थिर रहो। जिससे तुम उस दृष्ट के जलते हुये तीरों को बुझा सको। उद्धार का टोप और आत्मा की तलवार जो परमेश्वर का वचन है ले लो।

तो परमेश्वर के वचन में जो हथियार बताया गया है जिसे हमें बांधना है अपने पास रखना है वे ये है। 

1. सत्य, जो स्वंय प्रभु यीशु है। 2. धार्मिकता की झिलम, जो हमें विश्वास करने के द्वारा परमेश्वर पिता से मिलता है और हमारी धार्मिकता की झिलम प्रभु यीशु ही है। 3. पांवों के जूते-जो सुसमाचार है, मेल मिलाप की शक्ति का। 4. विश्वास की ढाल, 5. उद्धार का टोप अर्थात उद्धार, छुटकारा, 6. और परमेश्वर का वचन जो देहधारी तलवार है। तो निश्चय ही एक सुसमाचार सुनाने वाले को यह सारे अथियार लेना पड़ेगा। तब कहीं जाकर वह सुसमाचार का प्रचार कर सकता है। (3) तीसरी बात - प्रभु यीशु को पहनना है। यदि हमनेअपने जीवन में प्रभु यीशु को पहन लिया तो हम सुसमाचार प्रचार कर सकते हैं। यदि हमने प्रभु यीशु मसीह को पहन लिया है तो हमें नहीं परंतु प्रभु यीशु को लोग देखेंगे अपने उद्धारकर्ता को देखेंगे अपने मुक्तिदाता को देखंगे। तब हमारा सुसमाचार प्रचार सफल हो सकता है। और जब हम अपने प्रभु यीशु मसीह को पहन लेंगे तो उसकी आज्ञा को समझ सकते हैं और उसकी इच्छा को समझ सकते हैं कि हमें कहां और किसको सुसमाचार सुनाना है। 

यूहन्ना 21ः1 तब शमौन पतरस रात भर थक गए परंतु मछली नहीं पकड़ सके तब प्रभु यीशु मसीह ने वहां पहंुचकर उनसे कहा दाहिने तरफ जाल डालो। और उस जाल में इतनी मछली आई कि वह खींच न सके। झील तो बहुत बड़ा था पूरे झील में उन्हेंने मेहनत किया पर हाथ कुछ नहीं लगा। परन्तु प्रभु यीशु ने एक खाश जगह पर उनसे जाल डालने को कहा और जाल मछलियों से भर गया। तो यह बात एकदम स्पष्ट है कि एक सुसमाचार प्रचार करने वाले  को यह समझना है कि उसे कहां जाल डालना है अर्थात कहां कार्य करना है। झील तो बड़ी थी, उसी प्रकार यह संसार भी बहुत बड़ा है परन्तु हमें प्रभु यीशु की इच्छा को समझना है कि हमेें कहां जाल डालना है कि अधिक मछलियां मिल सकें। या ऐसी कौन सी जगह है जो मेरे लिये प्रभु ने चुना है जहां मैं सुसमाचार सुनाऊं और लोग विश्वास करें। योना के लिये परमेश्वर ने नीनवे को चुना। आप के लिये कौन सी जगह परमेश्वर ने चुना है उसे जानकर ही अपनी सेवा का कार्य या सुसमाचार प्रचार का आरंभ करें तो हमें सुसमाचार का फल मिल सकता है। 

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