पवित्र आत्मा के वरदान

पवित्र आत्मा के वरदान

गलातियों 5:22-23 हमें कहता है, “पर आत्मा का फल प्रेम, आनन्द, शान्ति, धीरज, कृपा, भलाई, विश्‍वास, नम्रता और संयम है।” पवित्र आत्मा का फल एक मसीही विश्‍वासी के जीवन में पवित्र आत्मा की उपस्थिति के फलस्वरूप आता है। बाइबल स्पष्ट कर देती है कि प्रत्येक व्यक्ति यीशु मसीह को ग्रहण करते समय पवित्र आत्मा को प्राप्त करता या करती है (रोमियों 8:9; 1 कुरिन्थियों 12:13; इफिसियों 1:13-14)। एक मसीही विश्‍वासी के जीवन में आने का पवित्र आत्मा का एक प्राथमिक उद्देश्य उस जीवन को परिवर्तित कर देना है। यह पवित्र आत्मा का कार्य है कि वह हमें मसीह के स्वरूप में, उसके जैसे बनने के लिए ढालते चला जाए।

पवित्र आत्मा का फल गलातियों 5:19-21 में लिखे हुए पाप के स्वभाव से होने वाले कार्यों की तुलना में एकदम विपरीत है, "शरीर के काम तो प्रगट हैं, अर्थात् व्यभिचार, गन्दे काम, लुचपन, मूर्तिपूजा, टोना, बैर, झगड़ा, ईर्ष्या, क्रोध, विरोध, फूट, विधर्म, डाह, मतवालापन, लीलाक्रीड़ा और इनके जैसे और और काम हैं, इनके विषय में मैं तुम से पहले से कह देता हूँ जैसा पहले कह भी चुका हूँ कि ऐसे ऐसे काम करने वाले परमेश्‍वर के राज्य के वारिस न होंगे।" यह संदर्भ विभिन्न स्तर पर जीवन यापन करते हुए, सभी लोगों के जीवन का वर्णन देता है, जब वे मसीह को नहीं जानते हैं और इसलिए पवित्र आत्मा के प्रभाव के अधीन नहीं हैं। हमारा पाप से भरा हुआ स्वभाव निश्चित तरह के फल को उत्पन्न करता है जो हमारे स्वभाव को प्रगट करता है, और पवित्र आत्मा निश्चित तरह के फल को उत्पन्न करता है जो उसके स्वभाव को प्रगट करता है।

मसीही जीवन मसीह के द्वारा दिए हुए नए स्वभाव का पापी स्वभाव के विरूद्ध युद्ध का जीवन है (2 कुरिन्थियों 5:17)। पतित मनुष्य होने के कारण, हम अभी भी ऐसे शरीर के फन्दे में हैं जिसके पास पाप से भरी हुए स्वभाव की इच्छाएँ हैं (रोमियों 7:14-25)। मसीही विश्‍वासी होने के नाते, हमारे पास पवित्र आत्मा हम में उसके फल को उत्पन्न करने के लिए दिया हुआ है और हमारे पास पवित्र आत्मा की सामर्थ्य पाप से भरे हुए स्वभाव के कार्यों के ऊपर विजन पाने के लिए उपलब्ध है (2 कुरिन्थियों 5:17; फिलिप्पियों 4:13)। एक मसीही विश्‍वासी सदैव पवित्र आत्मा के फलों को प्रगट करते हुए पूर्ण रूप से कभी भी विजयी नहीं होगा। यद्यपि, यही मसीही जीवन के उद्देश्यों में से एक है, कि पवित्र आत्मा को निरन्तर हमारे अपने जीवन में अधिक से अधिक फल को उत्पन्न करने देना है - और ऐसा होने के लिए पवित्र आत्मा को विरोध पाप से भरे हुए स्वभाव के ऊपर विजय पाने देना चाहिए। आत्मा का फल वह है, जिनको परमेश्‍वर, पवित्र आत्मा की सहायता से, हमारे जीवन में प्रगट होने की इच्छा रखता, यह सम्भव है!

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