ईश्वरीय चंगाई के विभिन्न चरण - 7

 अस्वस्थ्य (रोग, बीमारी) का आविर्भाव

अनेक रोग, शोक, संताप, बन्धन क्लेश, मृत्यु, ये सब मनुष्य के पाप रूपी वृक्ष के फल हैं। रोग-मृत्यु और पाप का एकत्व का सम्बन्ध है। हम इन्हें एक दूसरे से अलग नहीं कर सकते। पवित्रशास्त्र बाइबल कहता है। 

परन्तु प्रत्येक व्यक्ति अपनी ही अभिलाषा से सिंचकर और फंसकर परीक्षा में पड़ता है। फिर अभिलाषा गर्भवती होकर पाप को जनती है, और पाप जब बढ़ जाता है तो मृत्यु को उत्पन्न करता है। (याकूब 1ः14-15)

पाप के कारण ही मनुष्यों में रोग-मृत्यु आई। एक ऐसी मृत्यु, जो कि मनुष्य की आत्मा को, अपने सृजनहार परमपिता परमेश्वर, जीवन ज्योति एंव शाश्वत परमधाम (स्वर्गिक जीवन) से रहित कर देती है। दूसरे शब्दो में इसी का नाम नरक है। ब्रम्हमोनिषद 2ः4 कहती है- ‘‘पाप का फल नरकादिमास्तु’’। अर्थात पाप का प्रतिफल अनन्त नरक है। पवित्रशास्त्र बाइबल कहता है: 

क्योंकि पाप की मजदूरी मृत्यु है। (रोमियों 6ः23)

पवित्रशास्त्र बाइबल में उत्पत्ती नामक प्रथम पुस्तक के अध्याय 1 से 3 अध्यायों पाप और आत्मिक मृत्यु का विश्वासनीय वृतान्त प्रकट करता है, कि हमारे आदि माता-पिता (आदम-हव्वा) को परमेश्वर ने अपनी समानता और अपने ही स्वरूप में उत्पन्न किया। 

तब परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार उत्पन्न किया, अपने ही स्वरूप के अनुसार परमेश्वर ने उसको उत्पन्न किया, और नर-नारी करके उसने मनुष्य की सृष्टि की। (उत्पत्ती 1ः27)

और उन्हें अदन नामक वाटिका में रखा कि वह उसमें काम करे और उसकी रक्षा करें। एंव यह आज्ञा दी - और यहोवा परमेश्वर ने आदम (मनुष्य) को यह आज्ञा दी, तु वाटिका के सब वृक्षों का फल बिना खटके खा सकता है। पर भले या बुरे के ज्ञान का जो वृक्ष है, उसका फल तु कभी न खना, क्योंकि जिस दिन उसका फल खाएगा, उसी दिन आवश्य मर जाएगा। (उत्पत्ती 2ः16-17)

धूर्त शैतान सर्प के वेश में वाटिका में आता है, और आदि माता हव्वा से वाटिका के वृक्षों के फलों के सम्बन्ध में बातचीत करता है। आदि माता हव्वा ने कहा - पर जो वृक्ष वाटिका के बीच में है, उसके फल के विषय में परमेश्वर ने कहा है, कि न तो तुम उसको खाना, और न उसको छुना नही तो मर जाओगे। (उत्पत्ती 3ः3)

झूठ शैतान का महामंत्र है। मनुष्य के पतन का कारण झूठ है। जो आज भी मनुष्यों को पतन की ओर ले जा रहा है। वह झूठी है। परन्तु सामने वाला व्यक्ति उसे सच मान लेता है। और पतन का शिकार हो जाता है। यदी आदि माता के साथ। शैतान (सर्प) ने कहा - तुम निश्चय न मरोगो, वरन परमेश्वर आप जानता है, कि जिस दिन तुम उसका फल खाओगे, उसी दिन तुम्हारी आंखो खुल जांएगी और तुम भले बुरे का ज्ञान पाकर परमेश्वर के तुल्य हो जाओगे। (उत्पत्ती 3ः4-5)

आदि माता हव्वा ने सर्प (शैतान) की बातें सुनकर परमेश्वर की आज्ञा की अवेहलना की और सर्प (शैतान) की बातों पर विश्वास किया, और फल को देखकर उसके मन में अभिलाषा उत्पन्न हुई कि वर्जित वृक्ष का फल खाने के लिये अच्छा और देखने में मनभाऊ, और बुद्धि देने के लिये अच्छ और देखने में मनभाऊ, और बुद्धि देने के लिये चाहने योग्य भी है, तब उसने उसमें से तोड़कर खाया और अपने पति को भी दिया, और उसने भी खाया। तब उन दोनों की आंखे खुल गई, और मालुम हुआ कि वे नंगे है, इसलिए उन्होंने अंजीर के पत्ते जोड़ जोड़ कर लंगोट बना लिये। (उत्पत्ती 3ः6-7)

हमारे आदि माता-पिता (आदम-हव्वा) की आनाज्ञाकारिता के कारण पाप का आविर्भाव हुआ। तब से उनकी सारी वंश परम्परा उनके भ्रष्ट पाप मय स्वभाव से ग्रस्त चली आ रही है। पवित्रशास्त्र बाइबल का वचन - इसलिये जैसा एक मनुष्य के द्वारा पाप जगत में आया, और पाप के द्वारा मृत्यु आई, और इस रीति से आया और पाप के द्वारा मृत्यु आई, और इस रीति से मृत्यु सब मनुष्यों में फैल गई, क्योंकि सब ने पाप किया। (रोमियों 5ः12)

पवित्रशास्त्र बाइबल का वचन - हम जनते है कि हम परमेश्वर से हैं और सारा संसार उस दुष्ट के वश में पड़ा है। (1युहन्ना 5ः19)

पिछले अध्ययन में हमने स्पष्ट जान लिया कि शैतान बीमारी फैलाता है। उसके पास विभिन्न रोगा बीमरियों को फैलाने के लिये दुष्टात्माओं, अशुद्ध आत्माओं और दुर्बल करने वाली आत्माओं की सेना है। शैतान सबसे पहले मनुष्य को पाप में गिरता है। तब दुष्टात्माओं को भेजता है। कि मनुष्यों में रोग बीमारी फैलाए। स्मरण रहे शैतान पर जय पाने वाला केवल परमेश्वर पुत्र प्रभु यीशु मसीह है। पवित्रशास्त्र बाइबल का चवन-

परमेश्वर ने किस रीति से यीशु नासरी को पवित्र आत्मा और सामर्थ से अभिषेक किया, वह भलाई करता, और सब को जो शैतान के सताए हुए थे अच्छा करता फिरा क्योंकि परमेश्वर उसके साथ था। (प्रेरितों के काम 10ः38

इसलिये परमेश्वर के अधीन हो जाओ और शैतान का सामना करो, तो वह तुम्हारे पास से भाग जाएगा। (याकूब 4ः7)

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