पवित्र आत्मा पाने की बाईबिल की विधि भाग 2
अध्याय - 2
ठहरना (बाट जोहना) या न ठहरना
(लेखक केनेथ ई. हेगिन)
उन्होंने इस परम्परा को लूका 24 (अध्याय) से लिया था, जहां यीशु ने कहा, ‘‘जब तक स्वर्ग से सामर्थ न पाओ, तब तक तुम इसी नगर (यरूशलेम) में ठहरे रहो (पद 49)।
वास्तव में पवित्र आत्मा पाने का कोई भी सूत्र (नियम) नहीं है। यदि (लूका 24ः49) एक सूत्र ही है, (तब) हमें शब्द ‘‘इसी नगर (यरूशलेम)’’ हटाने का क्या अधिकार है? यीशु ने कहा, ‘‘तुम इसी नगर (यरूशलेम) में ठहरे रहो।’’
उनके लिए ठहरना जितना महत्वपूर्ण था उतना ही महत्वपूर्ण यरूशलेम में (उपस्थित) होना था, क्योंकि परमेश्वर की योजना के अनुसार पवित्र आत्मा को उंडेले जाने का प्रारम्भ यरूशलेम में ही होना था। यह वचन पवित्र आत्मा में बपतिस्मा पाने का सूत्र नहीं हो सकता है।
’’ठहरने‘‘ का अर्थ है प्रतिक्षा करना। ’’जब तक स्वर्ग से सामर्थ न पाओ इसी नगर (यरूशलेम) में प्रतीक्षा करना।’’ उन्होंने यरूशलेम में प्रतीक्षा की। प्रेरितों के काम 2ः1 कहता है, ‘‘जब पिन्तेकुस्त का दिन (पूरा हुआ) आया.....। ’’ध्यान दें, जब वह दिन आया, उन्हें और अधिक प्रतीक्षा करने की आवश्यक्ता नहीं हुईं।
प्रेरितों के काम 2 (अध्याय) के बाद, आप प्रेरितों के काम की पुस्तक में कहीं नहीं पढ़ते हैं कि किसी को कभी भी प्रतीक्षा करने का निर्देश दिया गया हो, और न ही आप किसी को पवित्र आत्मा से भरने के लिए प्रतीक्षा करते देखते है। पिन्तेकुस्त के दिन से लेकर, प्रत्येक व्यक्ति, हमेशा, तुरन्त ही पवित्र आत्मा से भर गया। प्रारम्भिक कलीसिया (इस बात पर) ज़ोर देती थी कि लोग तुरन्त ही (पवित्र आत्मा) पा सकते थे।
फिर भी, मैं निश्चित रूप से परमेश्वर की बाट जोहने पर विश्वास करता हूँ। आत्मा से भरे हुए लोगों को परमेश्वर की बाट जोहने की आवश्यक्ता होती है।
परन्तु पवित्र आत्मा से भर जाने के बाद परमेश्वर की बाट जोहना, (भरने के) पहले की तुलना में बहुत अधिक सरल है। हमें लोगों को पवित्र आत्मा से भरने के लिए ठहरने या बाट जोहने की आवश्यक्ता नहीं है।
क्यों? सामान्य कारण है कि हम उन्हें प्रारम्भिक कलीसिया के दिनों में ठहरते हुए नहीं देखते हैं।
जबकि मैं एक प्रचारक युवक ही था, मैंने अनुभव किया कि पवित्र आत्मा में बपतिस्मा, उद्धार के समान ही एक दान है। जब मैंने स्वंय पाया (ग्रहण किया), मैंने विश्वास के द्वारा तुरन्त, बिना ठहरे हुए ही पाया (ग्रहण किया)।
एक पूर्ण सुसमाचारीय कलीसिया की पासबानी शुरू करने के बाद, जो ऐसे लोगों से भरा हुआ था जिन्हें सिखाया गया था कि ठहरना आवश्यक है, मैंने उन्हें तुरन्त बदलने का प्रयत्न नहीं किया। यदि कोई ठहरने और खोजने के लिए वेदी (मंच) के पास आता था, तो मैं उन्हें जो ठहरना और खोजना जानते थे, उनके साथ प्रार्थना करने देता था। चूंकि मैं बेहतर जानता था, इसलिए मैं उनके पास नीचे नहीं जाता था, परन्तु मैं उन्हें (स्वंय) करने देता था।
यह तो बहुत ही आश्चर्यजनक था। जब तक आप युवक लोग आज उन विशेष पेन्तीकॉस्टल कलीसियाओं के दायरे में न पहुंचें, आपको बिल्कुल भी नहीं पता चल सकता हैं कि (उस समय) क्या होता था। कभी कभी यह एक नाटक जैसा होता था।
एक रात दो युवक वेदी के पास आत्मा से भरने के लिए आए। कलीसिया के कुछ लोंगों ने उनके साथ 45 मिनट तक प्रार्थना की।
उन दोनों युवकों में प्रत्येक के चारों ओर एक एक विश्वासी था। एक चिल्लाता था, ‘‘पकड़ कर रखना भाई, पकड़ कर रखना’’। दूसरा चिल्लाता था, ‘‘ढीला छोड़ दो, भाई ढीला छोड़ दो’’।
एक तीसरा विश्वासी युवक के पीछे घुटना टेकेे हुए, प्रार्थना करते हुए उसकी पीठ पर एक हथौड़े के समान (हाथ से) ठोंक रहा था। वह चिल्ला रहा था, ‘‘जोर से चिल्लाओं, भाई और जोर से चिल्लाओं। यदि तुम और ज़ोर से चिल्लाओगे तो परमेश्वर तुम्हारी सुनेगा।’’
एक चौथा व्यक्ति उस युवक के सामने था, जो हर बार अपना मुंह खोलते समय (गला फाड़कर) चिल्लाता और उस पर थूक फेंकता था। वह चिल्ला रहा था, ‘‘छोड़ दो, भाई, छोड़ दो।’’
मैं आपको बता रहा हूँ यह (स्थिति) और भी बुरी होती चली गयी।
45 मिनट तक उन दोनों युवकों पर चिल्लाते और शोर मचाते हुए, मेरे विश्वासियों ने अपने को थका लिया। वे उठे और उन बेचारों को छोड़ दिया। वे उन दोनों में से किसी को भी पवित्र आत्मा से भरवा नहीं सके। (बेशक कभी कभी, उन लोगों के कारण नहीं, परन्तु उन लोगों के बावजूद वे किसी प्रकार किसी को पवित्र आत्मा से भरने में सहायक हुए थे)। वे दोनों युवक जाने लगे।
तब मैं उछला और कहा, ‘‘भाई लोगों, एक मिनट रूकना। एक मिनट रूकना। क्या तुम सच में आत्मा से भरना चाहते हो?’’
उन्होंने आश्चर्यपूर्वक मुझे देखा। मैं उनके चेहरे के भाव देखकर बता सकता हूँ कि उन्होंने सोचा मैं मूर्ख हूँ। मैंने उन्हें मंच तिपाई पर बैठाया, और उनके सामने वचन पढ़ा। मैंने दिखाया कि किस प्रकार सामरियों ने (पिवत्र आत्मा) पाया था।
मैंने कहा, ‘‘तुम परमेश्वर से कुछ देने के लिए चिल्लाते रहे हो। तुम परमेश्वर से कुछ देने के लिए चिल्लाते रहे हो। तुम इस प्रतिक्षा में रहे हो कि परमेश्वर कुछ करे। परन्तु वह प्रतीक्षा कर रहा है कि तुम ग्रहण (स्वीकार) करो।’’
‘‘यदि मैं आपको एक इनाम दूँ तो उसे पाने के लिए आपको क्या करना पड़ेगा?’’
‘‘जी, सिर्फ़ उसे ग्रहण (लेना, स्वीकार) करना पड़ेगा, ’’उन्होंने कहा।
मैंने कहा, ‘‘अपको सिर्फ़ इतना ही करना है - बस पवित्र आत्मा को ग्रहण करना है।’’
दोनों युवकों ने तुरन्त ही ग्रहण कर लिया और अन्य भाषा में बोलने लगे।
मैंने अपनी अन्तिम पासबानी को 1949 में छोड़ा और क्षेत्र की सेवा में उतरा। मैंने शायद ही कोई चर्च, उसके सभी ‘‘पारम्परिक खोजियों’’ को पवित्र आत्मा से भरे बिना छोड़ा हो। हमारे पास ऐसे लोगों की कमी पड़ जाती थी। मेरी सबसे बड़ी सफलता उस व्यक्ति के साथ रही जो 50 वर्षो से खोज कर रहा था।
आप भी उसी प्रकार कर सकते है। मैं आपको सिखाने जा रहा हूँ कि कैसे, मेरे समान, लोगों को पवित्र आत्मा से भरने में सहायता करें।
मैं विश्वास करता हूँ कि मैं प्रभु के प्रेरित पतरस और यूहन्ना की अच्छी संगति में हूँ (मैं कुछ प्रचारकों की अपेक्षा प्रेरितों की संगती में स्वयं को कहीं अधिक सुरक्षित अनुभव करता हूँ) इसलिए मैं भी उसी क्रम को अपनाता हूँ जिसे उन्होंने अपनाया।
मैं, पवित्र आत्मा पाने के लिए लोगों पर हाथ रखता हूँ। मैं ऐसा विश्वास से करता हूँ क्योंकि यह वचन के अनुसार है, परन्तु मैं ऐसा इसलिए भी करता हूँ क्योंकि मेरे पास इस विषय में सेवा है।
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