ईश्वरीय चंगाई के विभिन्न चरण - 6
विश्वास
इस बात पर विश्वास करना है, कि जो कुछ मैंने प्रार्थना में भाग है, वह मुझे मिल गया है। इसी को ‘‘विश्वास’’ कहते है। कई लोग बरसों से परमेश्वर की प्रतिज्ञा की हुई आशीषों के लिये प्रार्थना करते है, किन्तु जब तक वे उसे देख न लें या अनुभव न कर लें। यह विश्वास नहीं करते कि जो कुछ हमने मांगा है, वह हमें मिल गया है, यह तो विश्वास नहीं है।
विश्वास का अर्थ है, कि जिस बात के लिये परमेश्वर ने प्रतिज्ञा की है, और आपने प्रार्थना की है, वह हो गई। इसके पहले कि आप उसे प्रत्यक्ष रूप से देखें या अनुभव करें। वह आपके मिल गई है। ‘‘ऐसा विश्वास केवल परमेश्वर की प्रतिज्ञा पर ही आधारित है’’। यही पर आपको स्वाभाविक मन एंव आपका विश्वास, महानतम संघर्ष करते है। यही आपके तर्क (बुद्धि) एंव परमेश्वर के वचन का राणक्षेत्र है।
आप आरोग्य के लिये प्रार्थना करते है। किन्तु कभी-कभी उत्तर तुरन्त नहीं मिलता है। प्रार्थना के बाद आप पीड़ा या बुखार का अनुभव करते है। परमेश्वर का वचन कहता है।’’ उसके कोड़े खाने से तुम चंगे हुए’’तर्क यह कहता है कि रोग अभी भी है। यदि पर आप को तर्क को छोड़ना है, और परमेश्वर के वचन पर विश्वास करना है, आप जो कुछ देखते और अनुभव करते हो, उस पर ध्यान न दे, पर जो कुछ परमेश्वर का वचन कहता है, उस पर ध्यान दें। यदि तर्क से आप परेशान हो रहे है। तो यीशु नाम में शैतान को डांट कर जाने की आज्ञा दे। उससे कहो हे तर्क की दुष्टात्मा दूर हो, तू मुझे परमेश्वर के वचन पर विश्वास करने में सन्देह उत्पन्न कर रही हैं।
नीतिवचन 4ः20-22 में लिखा है - हे मेरे पुत्र मेरे वचन को ध्यान से सुन और अपना कान मेरी बातों पर लगा। इनको अपनी आखों की ओट न होने दे वरन अपने मन में धारण कर। क्योंकि जिनको वे प्राप्त होती है, वे उनके जीवित रहने का तथा उनके शरीर के चंगा रहने का कारण होता हैं।
परमेश्वर का वचन आपा सम्पूर्ण शरीर को स्वास्थ्य देगा। परमेश्वर अपने वचन के द्वारा आपको आरोग्यता (चंगाई) देता है।
वह अपने वचन के द्वारा उनको चंगा करता, और जिस गड़हे में वे पड़े है, उनसे निकालता है। (भजन संहिता 107ः20)
इन्द्रियां और विश्वास: परमेश्वर ने प्रत्येक व्यक्ति को पांच ज्ञानेन्द्रियां दी हैं - सुनना, स्वाद, सुघना, देखना, अनुभव करना (त्वचा) ये स्वाभिव या प्राकृतिक है, और इस प्राकृतिक संसार में हमें चलने के लिये दी गई है।
परन्तु परमेश्वर ने प्रत्येक मुनुष्य के हृदय में विश्वास का एक परिणाम दिया है।
क्योंकि मैं उस अनुग्रह के कारण, जो मुझ को मिला है, तुम मे से हर एक से कहता हूं कि जैसा समझना चाहिए, उस से बढ़कर कोई अपने आप को न समझे पर जैसा परमेश्वर ने हर एक को विश्वास परिणाम के अनुसार बांट दिया है, वैसे ही सुबुद्धि के साथ अपने को समझे। (रोमियों 12ः3)
हमारी पांचों ज्ञानेन्द्रियां स्वाभाविक या लौकिक हैं। किन्तु हमारा विश्वास आत्मिक या आलौकिक हैं हम अपनी ज्ञानेन्द्रियों से ज्ञानार्जन (भौतिक वस्तुओं का अनुभव) करते है। किन्तु इनसे हम परमेश्वर को नहीं जान सकते है। किन्तु इनसे हम परमेश्वर को नही जान सकते है। परन्तु हम परमेश्वर को केवल विश्वास से जानते है।
क्योंकि कि हम रूप देखकर नहीं पर विश्वास से चलते हैं। (2कुरिन्थियों 5ः7)
हमारी ज्ञानेन्द्रियां परमेश्वर को जानने एंव आशीषें प्राप्त करने का माध्यम नहीं है। यदि ऐसा होता तो बहुतेरे लोग प्रार्थना करने के बादी बिना देखे या अनुभव किये यह विश्वास नहीं करते कि हमें उत्तर मिल गया है। और उनके लिये विश्वास का कोई महत्व नही रहता।
सच्चा विश्वास ‘‘प्रभु के कथन (वचन)’’ पर आधारित है। विश्वास हमारी ज्ञानेन्द्रियों से अलग स्वतन्त्र है। विश्वास वह वास्तविकता है। जिसे ज्ञानेन्द्रियां ‘‘शून्य’’ समझती है। अतः ज्ञानेन्द्रियों और विश्वास में निरन्तर युद्ध होता रहता है। हमारी ज्ञानेन्द्रियां परमेश्वर के वचन के विरूद्ध युद्ध करती है। वे तर्क करती है, कि यह ऐसा नहीं है। क्योंकि इसका तो प्रत्यक्ष (देखने या अनुभव का) प्रमाण नहीं है। विश्वास से जीने का अर्थ अपनी ज्ञानेन्द्रियों पर परमेश्वर के वचन को पूर्ण अधिकार देना है। परन्तु रूप देखकर चलने का अर्थ है कि हम अपनी ज्ञानेन्द्रियों को परमेश्वर के वचन से श्रेष्ट समझते है।
विश्वास परमेश्वर का मार्ग है - विश्वास परमेश्वर का मार्ग है, यह मनुष्य के विचार और ढंग से भिन्न है। परमेश्वर कहता है - मेरे विचार और तुम्हारे विचार एक समान नहीं है, न तुम्हारी गति और मेरी गति एक सी है। (यशायाह 55ः8)
परमेश्वर की विधि यह है, कि वह आपके मन, कान, आंख व हृदय को अपने वचन और प्रतिज्ञाओं से परिपूर्ण रखे, जब तक वह इसके पूरा न करे। किन्तु इसके विपरीत मनुष्य का मन अपनी बीमारी पर, उसके कान उनकी बातों पर, जो उसे सावधान रहने को कहते हैं। उसकी आखें पर, जो उसे सावधान रहने को कहते हैं। उसकी आखें बीमारी के लक्षणों पर एंव उसका हृदय भय और निराशा से मरा रहता है।
हमारी देहों को स्वास्थ्य बनाने का परमेश्वर का यह ढंग है कि वह हमारे सम्पूर्ण ध्यान को अपने वचन की ओर केन्द्रित करना चाहता है। वह यह चाहता है कि हम चिन्हों पर से अपने ध्यान को हटाकर उसके वचन (बाइबल) पर विश्वास करें, और उसका अंगीकार करें।
शारीरिक इच्छाओं पर चलने वालों के लिये परमेश्वर की पुकार:- दुष्ट अपनी चाल चलन और अनर्थकारी अपने सोच विचार छोड़कर, यहोवा ही की ओर फिरे, वह उस पर दया करेगा, वह हमारे परमेश्वर की ओर फिरें और वह उसको पूरी रीति से क्षमा करेगा। (यशायाह 55ः7)
- परमेश्वर जो बातें हैं ही नहीं, उनका ऐसा नाम लेता है कि मानों वे हैं। (रोमियों 4ः17)
प्रभु ने एक अन्धे व्यक्ति को दृष्टिदान की घोषना उसके देखने के पुर्व ही कर दी। प्रभु ने उन कुष्ठ रागियों की शुद्धता से पहिले ही घोषित कर दी थी। जबकि रोग उन पर स्पष्ट था। किन्तु जैसे ही वे जा रहे थे, वे सब कुष्ठमुक्त और शुद्ध हो गए। मृतक लाजर की कब्र के पास प्रभु यीशु ने प्रार्थना की - हे पिता मैं तेरा धन्यावाद करता हूं कि तुने मरी सुन ली। (यूहन्ना 11ः41)
प्रभु ने जान लिया था कि पिता ने मेरी प्रार्थना सुल ली है, जबकि लाजर कब्र में ही पड़ा था। यही विश्वास था।
‘‘विश्वास’’ से तात्पर्य यह मान लेना है कि जो कुछ तुमने परमेश्वर से मांगा है, उसे प्रत्यक्ष रूप से देखने और अनुभव करने से पुर्व ही परमेश्वर ने उसे कर दिया है। हम विश्वास करते है, कि हो चुका है, इसलिये नहीं कि हम उस कार्य को पुरा हुआ देख रहे है। इसलिये कि परमेश्वर का वचन कहता है कि हो चुका है। इस प्रकार इन बातों को जो है ही नही, ऐसा कहते है कि मानो वे हैं।
प्रार्थना और विश्वास
प्रभु यीशु हमें प्रार्थना करने तथा उसका उत्तर पाने का सही ढंग बतलाते हैः-
हमारी आवश्यक्ताओं की पुर्ती की प्रतिज्ञा करते हुए उसने कहा: इसलिए जो कुछ तुमने प्रार्थना करके मांगी तो विश्वास कर लो कि मुझे मिल गया है। (प्रार्थना करने के दस वर्ष बाद नहीं, अच्छा होने के बाद नही, परन्तु जब रोगी दशा में प्रार्थना करते है। उसी समय तत्काल तुम्हारे लिये हो जाएगा।
- इसलीए मैं तुमसे कहता हूं, कि जो कुछ तुम प्रार्थना करके मांगो, तो प्रतिति करों कि तुम्हें मिल गया, और तुम्हारे लिये हो जाएगा। (मरकुस 11ः24)
लोग उसके विपरीत चलते है। उनके विचार से जो कुछ तुमने प्रार्थना में मांगा है, और जब देखकर उनका अनुभव न कर लो। तब ही विश्वास करो कि हमने पा लिया है। यह ढंग शारीरिक, प्राकृतिक या स्वाभाविक व्यक्ति का है। स्वाभाविक व्यक्ति विद्रोहपूर्ण तर्क करता है, यदि मैं महसूस नही करता हूं तो मैं विश्वास भी नही करूंगा। यह परमेश्वर का ढंग नही है, और बाइबल में ‘‘थोमा‘‘ को छोड़ ऐसी बात नहीं मिलती। थोमा ने कहा - जब तक मैं देख न लूं मैं विश्वास नही करूंगा। (यूहन्ना 20ः25) इस विचार से प्रभु यीशु को दुःख हुआ, और प्रभु यीशु ने थोमा से कहा-
यीशु ने उससे कहा तु ने मुझे देखा है क्या इसलिए विश्वास किया है? धन्य वे है जिन्होंने बिना देखे विश्वास किया। (यूहन्ना 20ः29)
परमेश्वर का ढंग इस प्रकार से है - जब तुम प्रार्थना करते हो तो विश्वास करो कि हमें मिल गया है, और वह तुम्हारे लिये हो जाएगा। परमेश्वर चाहता है कि जब आप प्रार्थना करते है, तो विश्वास करें कि परमेश्वर आपकी प्रार्थनाओं का उत्तर देता है। और आप उसकी प्रतिज्ञानुसार स्वस्थ हो जायेंगे। जब आप आरोग्यता के लिये प्रार्थना करते है, प्रभु यीशु आपको अधिकार देता है, कि आप यह समझे कि मेरी प्रार्थना सुन ली गयी है। अन्य किसी आशीष के लिये भी जब आप प्रार्थना करे, जिसकी प्रतिज्ञा उसने की है, और उसका प्रबन्ध भी किया है, तो तब भी यह सच है।
आओ हम अपनी आशा के अंगीकार को दृढ़ता से थामे रहें, क्योंकि जिसने प्रतिज्ञा की है वह सच्चा है। (इब्रानियोें 10ः23)
मैं अपनी वाचा न तोडूंगा, और जो मेरे मुंह से निकल चुका है, उसे न बदलुंगा। (भजन संहिता 89ः34)
Comments
Post a Comment