अंतरंग मित्र का दृष्टान्त

अंतरंग मित्र का दृष्टान्त

     सन्दर्भ :- लूका 11ः5-10 - ‘‘और उस ने उन से कहा, तुम में से कौन है कि उसका एक मित्र हो, और वह आधी रात को उसके पास जाकर उस से कहे, कि हे मित्रः मुझे तीन रोटीयां दे। क्योंकि एक यात्री मित्र मेरे पास आया है, और उसके आगे रखने के लिए मेरे पास कुछ नहीं है। और वह भीतर से उत्तर  दे, कि मुझे दुःख न दे; अब तो द्वार बन्द है, और मेरे बालक मेरे पास बिछौने पर है, इसलिए मैं उठकर तुझे दे नहीं सकता ? मैं तुम से सच कहता हूं, यदि उसका मित्र होने पर भी उसे उठकर न दे, तौभी उसके लज्जा छोड़कर मांगने के कारण उसे जितनी आवश्यकता हो उतनी उठकर देगा। और मैं तुम से कहता हूं; कि मांगो तो तुम्हें दिया जायेगा। ढूंढो, तो तुम पाओगे; खटखटाओ, तो तुम्हारे लिये खोला जायेगा। क्योंकि जो कोइ मांगता है, उसे मिलता है; और जो ढूंढता है, वह पाता है; और जो खटखटाता है, उसके लिए खोला जाएगा।’’ 

     प्रस्तावना :- प्रभु यीशु मसीह के जीवन में प्रार्थना का विशेष महत्व था। वह एकान्त में जाकर अपना काफी समय प्रार्थना में व्यतीत करता था। प्रार्थना के कारण वह प्रतिदिन के कार्यां को पूरा करने में कभी भी पीछे नहीं हटता था न ही उनमें कुछ व्यवधान होने देता था। परन्तु इसके लिए वह भोर को अपने कार्यों को प्रारंभ करने से पहले या शाम को अपने कार्यों के बाद नींद, थकान और सुस्ती त्यागकर प्रार्थना में परमेश्वर के साथ समय व्यतीत करता था। ऐसा करके उसने सदैव परमेश्वर पिता पर अपनी निर्भरता और प्रार्थना के महत्व को प्रगट किया।

     एक दिन प्रभु यीशु मसीह अपने शिष्यों को प्रार्थना के विषय में शिक्षा दे रहा था। उसने उन पर इस दृष्टान्त के द्वारा यह प्रकट किया कि परमेश्वर से निरन्तर प्रार्थना करना है, जो सर्वशक्तिमान है। वह सबकी प्रार्थनाओं को सुनता है और उस पर विश्वास करने वाले लोगों को वह कभी निराश नहीं होने देता है।

     पृष्ठभूमि :- प्रभु यीशु मसीह के समय में भी आज हमारे देश भारत की ग्रामों की स्थिति की तरह ही अधिकांश गरीब लोगों के पास एक ही कमरे वाले छोटे-छोटे घर होते थे। यही कमरा दिन में रसोई घर एवं बैठक, भोजन आदि सभी कार्यकलापों के लिए उपयोग में लाया जाता था और रात्रि में इसी कमरे के फर्श पर चटाईयां बिछा दी जाती थीं और सम्पूर्ण परिवार के सदस्य यहां सोते थे। या फिर अटारी हुआ करती थी जिस पर घर के सदस्य सोते थे और नीचे वाले भाग में घर के सभी पालतू जानवार रखे जाते थे। ऐसी स्थिति में उस कमरे में अन्य सदस्यों की नींद में खलल डाले बगैर उठकर दरवाजा खोलना एवं उसी कमरे से ही समान निकालकर देना काफी कठिन होता था। यह गरीबों की आम परिस्थिति थी और इससे चेले अच्छी तरह वाकिफ थे। इसी परिस्थिति को चित्रित करते हुए प्रभु यीशु मसीह ने यह दृष्टान्त सुनाया।

     विषय वस्तु :- प्रभु यीशु मसीह ने शिष्यों से कहा कि मान लो तुम में से किसी का एक मित्र हो और वह आधी रात को उसके पास जाकर कहे, हे मित्र, मुझे तीन रोटियां दे क्योंकि मेरा एक मित्र यात्रा करते हुए मेरे पास आया है और मेरे पास उसे खिलाने के लिए कुछ भी नहीं। और वह भीतर से उसे उदारता से देकर कहे, मुझे न सता, द्वार बन्द हो चुका है और मेरे बच्चे मेरे साथ बिस्तर पर सो रहे हैं, मैं उठकर तुझे कुछ नहीं दे सकता। उसके यह सुनने के बावजूद वह निरन्तर अपने मित्र के दरवाजे पर दस्तक देता जाता है। अन्ततः मध्य रात्रि में दूसरा मित्र मित्रता को ताक में रखने के बावजूद उसके निरन्तर आग्रह को ठुकरा नहीं पाता और उठकर जितनी रोटियां की आवश्यकता उसे थी, दे देता है।

     प्रभु यीशु मसीह ने शिष्यों से कहा कि ठीक इसी प्रकार यदि तुम भी मांगोगे तो तुम्हें दिया जावेगा, ढूंढो तो पाओगे, और खटखटाओ तो तुम्हारे लिए खोला जाएगा। साथ ही प्रभु यीशु मसीह ने यह भी कहा कि जब संसारिक पिता साधारण मानव होने के बावजूद भी अपने बच्चों को अच्छी से अच्छी वस्तुएं देते हैं, तो स्वर्गीय पिता उनको जो उसे मांगते हैं उन्हें  वे वस्तुएं निश्चित रूप से देगा।

     व्याखया :- प्रभु यीशु मसीह के समय में इस्त्रायलियों के लिए मेहमान नवाजी न सिर्फ संस्कृति का एक अभिन्न अंग थी बल्कि यह एक धार्मिक कर्तव्य भी माना जाता था। उस समय में प्रायः लोग सुबह ही दिन भर की आवश्यकता के अनुसार  पाव रोटी तंदूर पर पका कर रखते थे। यदि पड़ोसी को कभी अतिरिक्त रोटी की आवश्यकता हो जाती थी तो यह प्रचलन था कि वह अपने पड़ोसी से जितनी रोटियों की आवश्यकता होती थी मांग लेता था और सुबह जब वह ताजी रोटियां बनाता था तब उतनी उसे वापस कर देता था। किन्तु परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए लोग रात्रि में मित्र के भी द्वार पर दस्तक देने में संकोच करते थे और उन्हे परेशानी में नहीं डालते थे। मेहमान भी ऐसे असमय किसी भी परिचित या संबंधी के घर मजबूरी वश ही पहुंचते थे, जिससे कि रात्रि में मेजबानों की अतिरिक्त परेशानियों को टाला जा सके।

     इस दृष्टान्त में एक ऐसे व्यक्ति का वर्णन है जो अपने मित्र के यहां मध्य रात्रि को पहुंचता है। ऐसे असमय पहुंचने की उसकी क्या मजबूरी थी, इसका जिक्र नहीं है। हो सकता है वह लम्बी यात्रा कर उसी समय पहुंचा हो। सराय में रूकने के लिए उसके पास पैसा न हों या दिन में कड़ी धूप से बचने के लिए वह रात्रि में सफर कर रहा हो और रात में कुछ देर आराम करने के बाद तड़के पुनः आगे की दूरी तय करने का उसका इरादा हो। कारण जो भी हो, वह बड़े असमय अपने मित्र के घर पहुंचता है। मित्र मेहमान को ऐसे समय में घर में देखकर बड़ी दुविधा में पड़ जाता है। उसे मालूम है कि घर आये मेहमान की पहुनाई करना उसका फर्ज है। उसे मेहमान की भूख का अहसास है लेकिन उसके सामने परोसने के लिए घर में कुछ भी नहीं है। छोटे गावों में सारे दिन रात कोई दुकान खुली नहीं रहती थी जहां से वह जाकर कुछ भोजन वस्तु मोल लेकर आ सके। उसे मेहमान को भोजन तो कराना ही था। अपनी इस आवश्यकता पूर्ति हेतु उसके पास पड़ोसी के द्वार खटखटाने के अलावा और कोई दूसरा उपाय नहीं था।

     वह मध्य रात्रि के वक्त अपने पड़ोसी के घर जाता है। उसका द्वार खटखटाता है। उसके सामने अपनी मजबूरी प्रगट करता है कि उसके घर मेहमान आया है और उसे खिलाने के लिए उसके पास कुछ भी नहीं है, वह तीन रोटियां उसे दे दे जिसे वह अपने घर आए मेहमान को परोस सके।

     पड़ोसी के पास रोटियां तो हैं और वह उन्हें देने से इन्कार भी नहीं करता। किन्तु परिस्थितियों के कारण उसे उठकर द्वार खोलना कष्टप्रद लगता है और वह अपने बच्चों की नींद में विघ्न भी नहीं डालना चाहता इसलिए वह अपने पड़ोसी से कहता है कि अब इतनी रात में कैसे उठूं ? कैसे द्वार खोलूं ? सबको परेशानी होगी।

     मेजबान अपने मित्र के द्वारा इस प्रकार साफ अनिच्छा जाहिर करने के बावजूद लज्जित होकर खाली हाथ वापस घर नहीं लोटता। वह लिहाज त्यागकर पुनः मित्र के द्वार खटखटाता है, पुनः उससे रोटी के लिए निवेदन करता है। आखिर निरन्तर याचना के कारण उसका मित्र उठकर द्वार खोलता है और जितनी आवश्यकता थी, उतनी रोटियां उसे देता है।

     अन्त में प्र्रभु यीशु मसीह ने इस दृष्टान्त का सार प्रकट किया है कि इस दृष्टान्त से मेजबान की तरह हमें भी परमेश्वर से मांगना है। निरन्तर अपनी बिनती, प्रार्थना के द्वारा उसके सामने प्रस्तुत करना है। (फिलिप्पियों 4ः6 के अनुसार) उस पर अपनी निर्भरता प्रगट करना है क्योंकि वह ही हमारा सृजनहार, पालनहार और तारणहार परमेश्वर है। हम उससे मांगेंगे तो वह हमें पवित्र आत्मा की सामर्थ देगा। (लूका 11ः13 के अनुसार) हमें स्मरण रखना है कि सभी उत्तम आशीषों का देने वाला वो जरूर है। परन्तु यह आवश्यक नहीं कि जो कुछ हम मांगेंगे, हमारी इच्छानुसार बिल्कुल वैसा हमें सब कुछ परमेश्वर से मिल जायेगा क्योंकि परमेश्वर का ज्ञान और परमेश्वर की दृष्टि असीमित है। उसे मालूम है कि हमारे लिए क्या भला और सर्वोŸाम है। हम समय की सीमाओं में बंधे हैं किन्तु परमेश्वर भविष्य देख सकता है। वह हमारी आवश्यकताओं की पुर्ति करता है किन्तु हर ‘चाह’ और हर ‘इच्छा’ जरूरी नहीं कि पूरी हो क्योंकि बहुत सी चाहत और इच्छाएं हमारे लिए बाद में हानिकारक हो सकती हैं।

     ढूंढो तो पाओगे, अर्थात् परमेश्वर की इच्छानुसार यदि हम भली वस्तुओं की खोज करेंगे तो अवश्य हमें भली वस्तुएं प्राप्त होंगी। इसके विपरीत यदि हम बुरा ही ढूंढेंगे तो हमारे जीवन में बुराइयां और नकारात्मक बातें ही भरी रहेंगी।

     खटखटाओ तो द्वार खुल जायेगा अर्थात् निरन्तर प्रार्थना के साथ निरन्तर प्रयास आवश्यक है। (मत्ती 7ः8 के अनुसार) हमारे प्रयासों को परमेश्वर आशीषित करता है। निरन्तर परमेश्वर के द्वार खटखटाने से वह हमारे मन की आंखें भी खोलता है कि हम जीवन की सच्चाइयों को सही परिप्रेक्ष्य में देख सकें। इस प्रकार हम अपना ध्यान न सिर्फ सांसारिक उपलब्धियों अथवा यातनाओं तक सीमित रखें किन्तु अनन्त जीवन की ओर भी निहार सकें। साथ ही अनदेखी बातों को भी देख सकें तथा उसकी योजना को अपने जीवन में पहचान सकें।

     अन्त में प्रभु यीशु मसीह ने निरन्तर प्रार्थना करने के महत्व को और अधिक स्पष्ट किया। उसने कहा कि जब सांसारिक पिता अपने बच्चों को भली वस्तुएं देना जानते हैं और उन्हें रोटी के बदले पत्थर, मछली के बदले सांप और अण्डे के बदले बिच्छु नहीं दे सकते तो परमेश्वर पिता जो सिद्ध और भला है वह अपने मांगने वालों को और भी कितनी अधिक उŸाम आशीषों से भरपूर क्यों नहीं करेगा। उसकी सबसे महत्वपूर्ण भेंट प्रभु यीशु मसीह के रूप में हमें मिली है और वही परमेश्वर आज अपना पवित्रात्मा विश्वासियों को देता है जो हर पल हमारे साथ रहने वाला सहायक है। (यूहन्ना 15ः26 के अनुसार)


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