फलहीन अंजीर के वृक्ष का दृष्टान्त

फलहीन अंजीर के वृक्ष का दृष्टान्त

     सन्दर्भ :- लूका 13ः6-9 - ‘‘फिर उस ने यह दृष्टांत भी कहा कि, किसी की अंगूर की बारी में एक अंजीर का पेड़ लगा हुआ था : वह उस में फल ढूंढने आया, परन्तु न पाया। तब उसने बारी के रखवाले से कहा, देख तीन वर्ष से मैं इस अंजीर के पेड़ में फल ढूंढने आता हूं, परन्तु नहीं पाता, इसे काट डाल कि यह भूमि को भी क्यों रोके रहे। उस ने उस को कहा, कि हे स्वामी, इसे इस वर्ष तो और रहने दे; कि मैं इस के चारों ओर खोदकर खाद डालूं। सो आगे को फले तो भला, नहीं तो उसे काट डालना।’’

     प्रस्तावना एवं पृष्ठभूमि :- पुराने नियम में उन मनुष्यों की उपमा जो परमेश्वर के वचन के अनुसार चलते थे, फलदायी वृक्षों से की जाती थी। (भजन संहिता 1ः1-3, यिर्मयाह 17ः7-8 के अनुसार) मसीही जीवन में आत्मा के फलों के बिना हम विश्वास की गवाही बन नहीं सकते। प्रभु यीशु मसीह ने फलहीन जीवनों के संबंध में स्पष्ट कहा कि जो डालियां फलती नहीं वे काटी जाती हैं और आग में झोंक दी जाती हैं। (यूहन्ना 15ः2, मत्ती 7ः19 के अनुसार) आत्मिक फल ही सच्चे मसीही होने का प्रमाण होते हैं। (मत्ती 7ः20 के अनुसार)

     इस दृष्टांत के माध्यम से प्रभु यीशु मसीह, मसीही जीवन में आत्मिक फलों की अपरिहार्यता लोगों को बताना चाहता था। वह यह भी चाहता था कि लोग परमेश्वर की दया और धीरज का तुच्छ न समझें एवं अवसर को बहुमूल्य जानकर पश्चाताप करें क्योंकि इसके बाद निर्धारित समय पर परमेश्वर का न्याय निश्चित है। 

     विषय-वस्तु :- किसी मनुष्य की दाख की बारी थी। उस बारी में एक अंजीर का पेड़ था। सामान्य रूप से अंजीर के पौधों की तीन वर्षों तक देख-रेख की जाती थी और फिर उससे फल मिलने लगते थे। इसके वृक्ष घने होने के कारण छायादार होते थे और इस्त्रायलियों की सम्पन्नता के प्रतीक चिन्ह माने जाते थे। (मीका 4ः4, 1राजा 4ः25) इस अंजीर के वृक्ष से तीन वर्षों के बाद लगातार फलने की आशा की गई। धीरज से स्वामी ने इन्जार किया किन्तु जब यह वृक्ष फलहीन ही रहा तब स्वामी ने बारी के रखवाले से कहा कि यह वृक्ष बारी की जमीन से काफी मात्रा में पानी एवं खाद प्राप्त कर रहा है, परन्तु फिर भी फलहीन है जिससे यह किसी काम का नहीं। इसे काट डाल, जिससे इसके स्थान पर दाख की लताएं रोपी जाएं जिनसे फल प्राप्त हो सके। बारी के रखवाले ने स्वामी से अनुरोध किया कि इस वृक्ष को केवल एक वर्ष और लगा रहने दे। मैं अपनी ओर से और भी अधिक प्रयास कर लूं। वृक्ष के चारों ओर गुड़ाई करके खाद डाल दूं। और फिर यदि फले तो ठीक, नहीं तो उसे काट डालना। 

     व्याखया :- दाख की बारी में अंजीर का वृक्ष होने का अर्थ है कि यह वृक्ष उपजाऊ जमीन में रोपा गया था। खाद, पानी एवं इसकी देख-रेख आदि में कोई कमी नहीं थी फिर भी यह फलहीन था, जिससे यह स्वामी के काम का नहीं था। इतना सब करने के बावजूद वह वृक्ष फलहीन था परन्तु फिर भी स्वामी ने धीरज रखा और उसके फलने की आशा रखी। किन्तु अंत में उसने अपने धीरज का निश्चित समय निर्धारित किया कि यदि उस समय तक भी यह वृक्ष फल नहीं देता तो यह वृक्ष काट डाला जाएगा।

     इस दृष्टांत के द्वारा प्रभु यीशु मसीह ने उन इस्त्रायलियों की ओर इशारा किया जिन्हें परमेश्वर ने प्रतिक्षा किये हुए सम्पन्नता के देश में रखा था एवं उन्हें सब सुख सुविधाएं उपलब्ध करायीं थीं।

     आवश्यकता अविष्कारों की जननी मानी जाती है। जब परमेश्वर ने सृष्टि की रचना की तब उसे लगा कि वहां उसके स्वरूप का कोई भी नहीं जिसके साथ वह सहभागिता कर सके। इस आवश्यकता की पूर्ति के लिए परमेश्वर ने मनुष्य की सृष्टि की। परम पवित्र परमेश्वर से सहभागिता पाप की अनुपस्थिति में ही संभव थी। पाप के उद्भव से यह सहभागिता भंग हुई और फिर समय के साथ निरन्तर पापों की वृद्धि हुई और परमेश्वर और मनुष्यों के बीच की दूरी बढ़ी। एक बार परमेश्वर ने नूह के परिवार को छोड़ सम्पूर्ण सृष्टि का नाश किया। फिर उनके द्वारा आबादी पुनः बढ़ी। परमेश्वर जो दया करने वाला प्रेमी और अनुग्रहकारी परमेश्वर है, उसने विभिन्न नबियों एवं भविष्यवक्ताओं के द्वारा लोगों को सावधान किया कि वे पाप से पश्चाताप करें। वे परमेश्वर के साथ सहभागिता रखें और मनफिराव के योग्य फल लाएं। (मत्ती 3ः8 के अनुसार) सम्पूर्ण संसार में विशेष रूप से इस्त्रायली जाति परमेश्वर की चुनी हुई कौम थी। जिससे परमेश्वर ने वाचा बांधी थी कि वे उसके लोग होंगे और वह उनका परमेश्वर होगा। (उत्पत्ति17ः7-9 के अनुसार) इस वाचा को इस्त्रालियों ने भुला दिया था और वे रीति-रिवाजों एवं परम्पराओं को औपचारिक रूप से पूरा करने के द्वारा ही स्वयं को धार्मिक एवं पवित्र समझने के निराधार तथ्य पर विश्वास करने लगे थे। इस कारण परमेश्वर से उनकी सहभागिता लगभग समाप्त हो चुकी थी।

     परन्तु, परमेश्वर ने फिर भी धीरज रखा और सम्पूर्ण मानव जाति के उद्धार की योजना बनायी। उसने अपनी ओर से मानव को अनन्त विनाश से बचाने के लिए अन्तिम उपाय किया कि अपने एकलौते, निष्कलंक और निर्दोष बेटे को ही सम्पूर्ण मानव जाति के पापों की क्षमा के लिए बलिदान कर दिया। उसके पवित्र लाहू के द्वारा हमारे लाही रंग के पाप धोए गए और हमें पवित्रता के वस्त्र पहनाए गये। (प्रकाशित वाक्य 3ः5 के अनुसार) जिससे हम उस परमपवित्र परमेश्वर के सामने जा सकें। उसकी पवित्र देह के तोड़े जाने से परमेश्वर और हमारे टूटे हुए संबंध पुनः जुड़ सकें, साथ ही एक ही देह के अंगों के रूप में विश्वासी भी एकता के बंधन में बंध सकें। प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करने के द्वारा राष्ट्रीयता, जातिवाद, रंगभेद आदि की सीमाएं टूट गईं और एक अद्भुत सहभागिता स्थापित हो गई।

     प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करने के द्वारा ही केवल यह संभव था कि इस्त्राएली परमेश्वर के साथ जुड़े रहते और आत्मिक रूप से फलवन्त होते और परमेश्वर के राज्य के योग्य ठहरते। (यूहन्ना 15ः1-6 के अनुसार) किन्तु, उन्होंने प्रभु यीशु मसीह को भी तुच्छ जाना।

     इस दृष्टांत के अनुसार दाख की बारी का रखवाला एक वृक्ष के लिए इतनी फिक्र करता है कि उसकी देख-रेख में कोई कसर नहीं छोड़ता और उसे बचाने की हर संभव कोशिश करता है। इससे हम कल्पना कर सकते हैं कि हमारा स्वर्गीय पिता हमारी कितनी चिन्ता करता है। उसने हमें अपने स्वरूप में सृजा है। अपनी आत्मा हमें दी है, अपनी सांस हममें फूंकी है। हम मनुष्य उसकी विशिष्ट एवं सर्वोत्कृष्ट कृति हैं। वह नहीं चाहता कि हममें से कोई भी नाश हो। (यूहन्ना 3ः16 के अनुसार) वह धीरज से हमारे वापस लौटने का इन्तजार करता है कि हम पश्चाताप कर अपने पापों से फिरें और उसकी निकटता में उसके वचन के प्रकाश में आगे बढ़ें। बारी के रखवाले से कहीं अधिक बढ़कर परमेश्वर को हमारा ध्यान रहता है। वह वृक्ष से कहीं अधिक हमें प्यार करता है और हमें बचाने के लिए अपनी ओर से हर संभव प्रयास करता है। वह केवल एक वर्ष तक ही नहीं किन्तु उससे कहीं अधिक बढ़कर हमारे लिए धीरज धरता है। उसने हम पापियों से प्रेम किया और हमारे लिए अपने एकलौते निर्दोष बेटे को बलिदान किया है।

     इस दृष्टांत के द्वारा प्रभु यीशु मसीह लोगों को यह बताना चाहता था कि वे जो परमेश्वर के अनुग्रह, दया और धीरज को तुच्छ जानते हैं और पश्चाताप नहीं करते, उनके लिए परमेश्वर का न्याय और दण्ड निश्चित है। उससे कोई भी नहीं बच सकता क्योंकि परमेश्वर न्यायी भी है। परमेश्वर के धीरज का एक समय निर्धारित है, उसके बाद उसका न्याय है।

     दाख की बारी के रखवाले ने अंजीर के वृक्ष को बचाने के लिए हर संभव कोशिश की। उस पर दया और धीरज के लिए उसने अपने स्वामी से याचना की। हम विश्वासियों को भी लोगों की आत्माओं को बचाने के लिए हर संभव प्रयास करना है। उनके लिए परमेश्वर से प्रार्थना करना है, उन्हें बताना है कि वे समय रहते पश्चाताप करें और अनन्त विनाश से बचें।

     परमेश्वर के बिना बाहर से हमारे जीवन भले ही खूबसूरत और आकर्षक और हरे-भरे दिखाई दें किन्तु उनमें फल नहीं लग सकते। ऐसे फलहीन जीवन परमेश्वर की दृष्टि में वयर्थ, अनुपयोगी और विनाश का कारण बनते हैं। (मत्ती 21ः18-19, मरकुस 11ः12-14,20 के अनुसार)

     व्यवहारिक पक्ष एवं आत्मिक शिक्षा :- 1. हमें भी परमेश्वर से प्रार्थना करना है कि वह हमें अपने दिन गिनने की समझ दे, जिससे हम बुद्धिमान हो सकें। हम अपनी आत्मा के अनन्त लाभ की निश्चितता; अपने पापों के पश्चाताप और प्रभु यीशु मसीह को ग्रहण करने एवं उसकी शिक्षाओं पर चलने के द्वारा कर सकें। प्रभु यीशु मसीह ही वह मार्ग है जिसकी मन्जिल स्वर्ग और परमेश्वर की अनन्त समीपता है। हम अपनी आत्मिक आंखों के द्वारा उसकी दया एवं अनुग्रह को पहचान सकें। इस जीवन के पार  अनन्त जीवन को देख सकें और संसार की व्यर्थ बातों में न उलझें। परमेश्वर ने जिस उद्देश्य से हमें बनाया एवं बचाया है उस उद्देश्य को हम पूरा कर सकें और उसके लिए फलदायी और उपयोगी बन सकें।

     2. अपने हृदय की कठोरता के कारण परमेश्वर के धीरज को परखना या उसे तुच्छ जानना हमारी अनन्त त्रासदी का कारण बन सकता है। उसने अपनी ओर से हमें बचाने के लिए सब कुछ किया है। उसके इस प्रयास पर सकारात्मक या नकारात्मक प्रतिक्रिया करने का निर्णय हमारा है, इसी पर हमारी नियति निर्भर है। उसके धीरज का समय निर्धारित है, इसे हम जान नहीं सकते। किन्तु, यह किसी भी समय समाप्त हो सकता है और फिर परमेश्वर के न्याय और दण्ड से हम बच नहीं सकेंगे। समय रहते हम स्वयं को सम्पूर्णता से उसे समर्पित करें।

     3. परमेश्वर अपने कार्यों को पूरा करने एवं अपने राज्य के विस्तार करने के लिए हमें रखवाले के समान माध्यम बनाता है। हमें पूरी विश्वासयोग्यता एवं लगन से परमेश्वर के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करना है। तब ही, हमारा जीवन फलदायी वृक्ष के समान उपयोगी होगा, अन्यथा हमारा जीवन व्यर्थ ठहरेगा। हमें भी अपने परिवार, संबंधी, समाज एवं अन्य लोगों की आत्माओं को बचाने के लिए प्रार्थना के साथ हर संभव प्रयास भी करना है।


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