दो कर्जदारों का दृष्टान्त

दो कर्जदारों का दृष्टान्त 

     सन्दर्भ :- लूका 7ः36-50 - ‘‘फिर किसी फरीसी ने उससे विनती की, कि मेरे साथ भोजन कर; सो वह उस फरीसी के घर में जाकर भोजन करने बैठा। और देखो, उस नगर की एक पापिनी स्त्री यह जानकर कि वह फरीसी के घर में भोजन करने बैठा है, संगमरमर के पात्र में इत्र लाई। और उसके पांवों के पास, पीछे खड़ी होकर, रोती हुई, उसके पांवों को आंशुओं से भिगाने और अपने सिर के बालों से पोंछने लगी और उसके पांव बार-बार चूमकर उन पर इत्र मला। यह देखकर, वह फरीसी जिस ने उसे बुलाया था, अपने मन में सोचने लगा, यदि यह भविष्यद्वक्ता होता तो जान जाता, कि यह जो उसे छू रही है, कौन और कैसी स्त्री है ? क्योंकि वह तो पापिनी है। यह सुन यीशु ने उसके उत्मेंतर कहा; हे शमौन मुझे तुझ से कुछ कहना है वह बोला, हे गुरू कह। किरी महाजान के दो देनदार थे, एक पांच सौ और दूसरा पचास दीनार : धरता था। जब उनके पास पटाने को कुछ न रहा, तो उसने दोनां को क्षमा कर दिया : सो उनमें से कौन उसे अधिक प्रेम रखेगा ? शमौन ने उत्तर दिया, मेरी समझ में वह, जिस का उस ने अधिक छोड़ दिया : उस ने उस से कहा, तू ने ठीक विचार किया है। और उस स्त्री की ओर फिरकर उस ने शमौन से कहा; क्या तू इस स्त्री को देखता है ? मैं तेरे घर में आया परन्तु तू ने मेरे पांव धोने के लिये पानी न दिया, पर इस ने मेरे पांव आंसुओं से भिगोए, और अपने बालों से पोंछा। तू ने मुझे चुमा न दिया, पर जब से मैं आया हूं तब से इस ने मेरे पांव का चूमना न छोड़ा। तू ने मेरे सिर पर तेल नहीं मला; पर इस ने मेरे पांव पर इत्र मला है। इसलिए मैं तुझ से कहता हूं, इसके पाप जो बहुत थे, क्षमा हुए, क्योंकि इसने बहुत प्रेम किया; पर जिस का थोड़ा क्षमा हुआ है, वह थोड़ा प्रेम करता है। और उसने स्त्री से कहा, तेरे पाप क्षमा हुये। तब जो लोग उसके साथ भोजन करने बैठे थे, वे अपने-अपने मन में सोचने लगे, यह कौन है जो पापों को भी क्षमा करता है ? पर उसने स्त्री से कहा; तेरे विश्वास ने तुझे बचा लिया, कुशल से चली जा।’’

     पृष्ठभूमि :- प्रभु यीशु मसीह ने यह दृष्टांत शमौन फरीसी के घर पर सुनाया। शमौन ने उसे भोजन के लिए आमंत्रित किया था। जब वह मेज के पास बैठा था तब एक पापिनी स्त्री संगमरमर के पात्र में इत्र लेकर आई। रो-रोकर उसने प्रभु यीशु मसीह के पांव भिगोए। अपने बालों को खोलकर बालों से ही उसके पांव पोंछे और उन पर बहुमूल्य इत्र मला और उन्हें बहुत चूमा।

     पपिनी स्त्री का फरीसी के घर में बगैर निमंत्रण आने का दुःसाहस करना और फिर समाजिक सीमाओं को लांघकर भरी समा में अपने बालों को खोलना और न केवल पराए पुरूष के चरणों का स्पर्श करना किन्तु उन्हें चूमना और उन पर इत्र मलना। यह सब कुछ शमौन फरीसी को प्रतिष्ठित मेहमानों के बीच बेहद शर्मनाक एवं अपमानजनक लगा। उसे मन में गहरा संदेह हुआ कि प्रभु यीशु मसीह भविष्यद्वक्ता हो ही नही सकता क्यांकि यदि वह भविष्यद्वक्ता होता तो तुरन्त जान लेता कि यह स्त्री कौन है और कितनी भ्रष्ट है। फिर आगे बाइबिल में लिखा है यह ‘सुनकर’ शमौन ने तो सिर्फ हृदय में विचार किया था किन्तु प्रभु यीशु मसीह ने उसके हृदय के विचार ‘सुन’ लिये, और उसका सम्पूर्ण ध्यान अपनी ओर केन्द्रित करने के लिए उससे कहा ‘‘हे शमौन मुझे तुझ से कुछ कहना है’’ जब शमौन उसकी बातें ध्यान से सुनने के लिए तैयार हुआ और उसने उससे कहा, ‘‘हे गुरू कह’’ तब प्रभु यीशु मसीह ने उससे यह दृष्टांत कहा।

     पृष्ठभूमि में उस ज़माने के कुछ प्रचलित रीति-रिवाजों का उल्लेख करना भी आवश्यक है।

1. पैर धोने के लिए पानी देना :- ‘‘मैं थोड़ा सा जल लाता हूं और आप अपने पांव धोकर इस वृक्ष के तले विश्राम करें।’’ (उत्पत्ति 18ः4) ‘‘तब वह उसको अपने घर ले चला, और गदहों को चारा दिया; तब वे पांव धोकर खाने-पीने लगे।’’ (न्यायियों 19ः21)

चप्पल पहनकर धूल भरे रास्तों पर पैदल या सवारी की यात्रा करने पर भी पैर धूल से सन जाते थे और ऐसे पैर लेकर मेहमान जिस किसी के घर पहुंचते थे तो सबसे पहले उन्हें पैर धोने के लिए पानी दिया जाता था।

2. सिर पर तेल मलना :- किसी विशिष्ट आदर एवं सम्मान के योग्य व्यक्ति के सिर पर तेल मला जाता था। याजकों एवं राजाओं का अभिषेक इसी प्रकार होता था। (1शमूएल 10ः1,16ः13, निर्गमन 30ः25, भजन संहिता 23ः5, दानिय्येल 9ः24)

3. चूमा :- मेहमानों को चूमकर स्वागत किया जाता था (उत्पत्ति 29ः13,45ः15) इसके द्वारा लोग मेहमानों के प्रति प्रेम भी प्रगट करते थे।

4. स्त्रियों को सार्वजनिक सभा में बाल खोलकर रखना वर्जित था। ऐसा करना बेशर्मी की बात मानी जाती थीं। वे बदचलन समझी जाती थीं एवं ऐसी स्त्रियों को लोग हीन दृष्टि से देखते थे।

ऐसी पृष्टभूमि जानने के बाद हम इस दृष्टांत का अध्ययन करेंगे।

     प्रस्तावना :- इस दृष्टांत के द्वारा प्रभु यीशु मसीह ने यह प्रगट किया कि स्वयं की धार्मिकता से अहंकार ही उत्पन्न होता है और ऐसे लोग परमेश्वर के प्रति कभी धन्यवादित एवं कृतज्ञ नहीं होते और न ही वे उससे सच्चे हृदय से प्रेम करते हैं क्योंकि जब उन्हें सच्चा पश्चाताप ही नहीं होता तो पापों की क्षमा की अनुभूति से भी वे वंचित रहते हैं। किन्तु जो पश्चाŸाप करते हैं और दीनता से स्वमं को परमेंश्वर को समर्पित करते हैं वे परमेश्वर के प्रेम एवं क्षमा का अनोखा अनुभाव करते हैं और उनका पूर्ण परिवर्तित जीवन इस बात की परिणिति एवं गवाही बन जाता है।

     मत्ती 26ः6-7, मरकुस 14ः3-9, यूहन्ना 12ः1-8 में मरियम द्वारा प्रभु यीशु मसीह के पांवो पर जटामांसी का बहुमूल्य इत्र मलने और बालों से उसके पांव पोछने का उल्लेख मिलता है जिसका सम्बन्ध विशेष रूप से इत्र की बहुमूल्यता से था (कि वह तीन सौ दीनार में बेचा जा सकता था और उन पैसों से कंगालों की मदद की जा सकती थी) यहां इस मरियम के पापी होने का कोई जिक्र नहीं मिलता है; यह घटना प्रभु यीशु मसीह की मृत्यु के कुछ ही दिनों पूर्व बैतनिय्याह में लाजर के घर में घटी। (यूहन्ना 12ः1-3)

     किन्तु लूका में स्त्री के पापी होने का जिक्र है। साथ ही यहां स्त्री के रोने, आसुंओं से प्रभु यीशु के पांवों भिगाने, बालों से उसके पांवों को पोंछने, उन्हें बहुत चूमने और उन पर इत्र मलने का उल्लेख है जो अन्य सुसमाचारों से भिन्न है। इसका संबंध इत्र से नहीं किन्तु स्त्री के पापों की बहुलता और परमेश्वर की असीम क्षमा से है। (कुछ लोगों का अनुमान है कि यह स्त्री पापिनी मरियम मगदलीनी थी किन्तु यह महज अनुमान ही है, निश्चित रूप से यह नहीं कहा जा सकता) यह घटना प्रभु यीशु की सेवकाई के प्रारम्भिक (1-2) वर्षों में ही उनकी मृत्यु के काफी समय पूर्व नाईन नगर में शमौन फरीसी के घर पर घटी। (लूका 7ः36-50 )

     विषय वस्तु :- प्रभु यीशु मसीह ने शमौन फरीसी को एक दृष्टान्त सुनाया कि किसी महाजन के दो कर्जदार थे, एक पांच सौ दीनार और दूसरे पर पचास दीनार का कर्ज था (सामान्यतः एक दीनार, एक दिन की औसत मजदूरी होती थी)। दोनों ही कर्जदार, कर्ज चुकाने में असमर्थ थे अतः महाजन ने उन पर दया की और उन दोनों ही कर्जदारों के कर्ज माफ कर दिये।

     यह दृष्टान्त सुनाकर प्रभु यीशु मसीह ने शमौन से प्रश्न किया कि उन दोनों कर्जदारों में से महाजन से कौन अधिक प्रेम करेगा ? शमौन फरीसी विद्वान था इस प्रश्न का उत्तर बिल्कुल सरल और स्पष्ट था किन्तु शमौन प्रभु यीशु मसीह के अप्रत्यक्ष इशारे को समझ गया था कि दोनों कर्जदारों के रूप में प्रभु यीशु मसीह ने पापिनी स्त्री और उसे प्रगट किया है। अतः वह उत्तर देने में संकोच का अनुभव करने लगा और निश्चित उत्तर न देकर कहा ‘‘मेरी समझ में वही जिसका उसने अधिक कर्ज माफ किया।’’ 

     प्रभु यीशु मसीह ने उसके उत्तर की पुष्टि की और कहा तू ने ठीक विचार किया। तब उसने फिर शमौन से पूछा कि क्या तू इस स्त्री को देखता है ? और इसके बाद प्रभु यीशु मसीह ने अपने दृष्टान्त का अर्थ समझाया।

     व्याख्या :- दो कर्जदारों के रूप में प्रभु यीशु मसीह ने पापिनी स्त्री और शमौन फरीसी को प्रगट किया। पापिनी स्त्री के पाप बहुतेरे थे और उसकी तुलना में शमौन के पाप बहुत कम थे परन्तु दोनों ही अपने पापों की क्षमा ‘अर्जित’ करने में असमर्थ थे।

      पपिनी स्त्री ने प्रभु यीशु मसीह को पहचाना। उसने अपने पापों का अहसास किया, उनसे पश्चाताप किया और स्वयं को दीनता से परमेश्वर को समर्पित किया। जब उसे मालूम हुआ कि प्रभु यीशु मसीह शमौन फरीसी के घर भोजन करने आए हैं तो बगैर किसी की परवाह किये वह उससे मिलने आई। पापों की क्षमा का और पुर्नजन्म के सच्चे आनन्द का जो अनुभव स्त्री ने प्रभु यीशु मसीह के द्वारा अपने जीवन में किया था, उसके बदले में उसका हृदय प्रभु यीशु मसीह के प्रति आदर, धन्यवाद एवं कृतज्ञता से भरा था। उसने स्वयं को इस योग्य नहीं समझा कि प्रभु यीशु मसीह के सिर पर तेल मले किन्तु उसने दीनता से उसके पैरों पर इत्र मला और आदर पूर्वक अत्यन्त प्रेम के साथ भावविभोर होकर उसे अपने बालों से पोंछा।

     स्त्री का हृदय प्रभु यीशु के प्रति इतने अधिक प्रेम, आदर एवं कृतज्ञता से भरा था कि उसकी अभिव्यक्ति उसके लिए अपरिहार्य थी। अपनी इन भवनाओं को प्रगट न करना उसके लिए असंभव था, अतः पांवों को चूमने और उन्हें आंसुओं से भिगोने और बालों से पोंछने के द्वारा उसने अपने हृदय के उद्गारों को प्र्रगट किया।

     शमौन फरीसी स्वयं के लेखे में धर्मी पुरूष था। वह सोचता था कि धार्मिक रीति रिवाजों एवं परम्पराओं को पूर्ण करने के द्वारा उसने ऐसा पाप किया ही नहीं जिसके लिए क्षमा की आवश्यकता हो। उसे नहीं मालूम था कि ‘‘मनुष्य व्यवस्था के कामों से नहीं पर केवल यीशु मसीह पर विश्वास करने के द्वारा धर्मी ठहरता है।’’ (गलतियों 2ः16 के अनुसार) उसे अपनी धार्मिकता पर इतना अंहकार था कि उसकी आत्मिक आंखें अंधी हो चुकी थीं। वह प्रभु यीशु मसीह के विषय में हुई भविष्यवाणियों को पूरी होती देखकर भी उस पर विश्वास करने में असमर्थ था, उसकी दिव्य शक्तियों को देखकर भी उसे उस पर संदेह था। उसने प्रभु यीशु मसीह को अपने घर भोजन के लिए औपचारिकतावश आमंत्रित तो कर लिया था किन्तु उसके हृदय में प्रभु यीशु के प्रति कोई प्रेम, आदर या कृतज्ञता नहीं थी जिसकी अभिव्यक्ति स्वरूप उसने न ही उसे पांव धोने के लिए पानी दिया, न उसके सिर पर तेल मला और न ही उसे चूमा।

     शमौन फरीसी अपनी धार्मिकता के घमंड में इस कटु सत्य से अपरिचित था कि ‘‘सबने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रहित हैं।’’ (रोमियों 3ः23) परन्तु ‘‘यदि हम अपने पापों को मान लें, तो वह हमारे पापों को क्षमा करने और हमें सब अधर्म से शुद्ध करने में विश्वास योग्य और धर्मी है।’’ (1यूहन्ना 1ः9)

     शमौन उस स्त्री को अब भी पापिनी समझ रहा था। वह उसे देख तो रहा था किन्तु वह यह नहीं समझ रहा था कि वह एक क्षमा प्राप्त की हुई स्त्री है। वह स्वयं नये जन्म के आनन्द के अनुभाव से अनभिज्ञ था अतः वह उस स्त्री की आत्मा में नये जन्म के उमंडते हुए उद्गारों को समझने में पूर्ण रूप से अक्षम था।

     प्रभु यीशु मसीह यह नहीं बता रहा था कि स्त्री ने अपने प्रेम के कारण या प्रेम की अभिव्यक्ति के कारण से पापों की क्षमा अर्जित की क्योंकि दृष्टान्त में उसने पहले ही कहा था कि दोनों ही कर्जदार कर्ज चुकाने में असमर्थ थे। उसने यह भी कहा कि वह जानता है कि इस स्त्री के पाप बहुत थे। उस स्त्री के प्रेम की अभिव्यक्ति उसके उद्धार का कारण तो नहीं थी किन्तु उद्धार प्राप्त करने की परिणिति एवं साक्षी थी कि उसके पाप जो बहुत थे, क्षमा हुए क्योंकि उसने बहुत प्रेम किया किन्तु शमौन जिसने थोड़ी क्षमा प्राप्त की उसने प्रभु यीशु के प्रति अपेक्षित प्रेम एवं आदर भी प्रगट नहीं किया। वह परमेश्वर के अनुग्रह को प्र्रभु यीशु मसीह में देख ही न सका क्योंकि वह ‘‘स्वयं के लेखे’’ में धर्मी था, उसके हृदय में परमेश्वर नहीं था किन्तु स्वयं की धार्मिकता का घमंड था।

     ‘‘तब उसने स्त्री से कहा तेरे पाप क्षमा कर दिये गये हैं तेरे विश्वास ने तेरा उद्धार किया है कुश्ल से चली जा।’’ प्रभु यीशु ने बहुत बार पापों की क्षमा प्रदान कर यह बात प्रगट की कि उसे पापों की क्षमा प्रदान करने का अधिकार है। उसने स्त्री को इस बात की निश्चितता दिलाई कि उसके पाप परमेश्वर ने क्षमा कर दिये हैं और वह पापों के बोझ से मुक्त होकर नये सिरे से नया जीवन जीने के लिए स्वतंत्र है। अब वह शांतिपूर्वक अपना जीवन जी सकती है। प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करने के द्वारा उसने उद्धार प्राप्त किया है। उसकी आशीष अब उसके साथ है।

     प्रभु यीशु मसीह स्वयं कहता था कि वह जगत का उद्धारकर्ता है। उसके आश्चर्य कर्म, अधिकारपूर्ण प्रवचन एवं पापरहित जीवन उसके कथन की पुष्टि करते थे किन्तु विडम्बना यह थी कि लोग कानों से सुनकर और आंखों से देखकर भी उस पर विश्वास करने के बदले उस पर प्रश्न चिन्ह लगाते थे कि अखिर यह है कौन जो पापों को भी क्षमा करता है ? वे यह स्वीकार नहीं कर पाते थे कि प्रभु यीशु ही परमेश्वर है।

     व्यवहारिक पक्ष एवं आत्मिक शिक्षा :- 1. प्रभु यीशु मसीह से सच्चा प्रेम हम तभी कर सकते हैं जब हमें अपने पापों का अहसास हो और उससे हम पश्चाताप करें। हम यह मान लें चाहे हमारे पाप कम हों या अधिक, हमारे पापों की मजदूरी मृत्यु ही है, अनन्त विनाश है। केवल प्रभु यीशु मसीह ही से पापों की क्षमा और उद्धार सम्भव है क्योंकि स्वर्ग के नीचे मनुष्यों में और कोई दूसरा नाम नही दिया गया, जिसके द्वारा हम उद्धार पा सकें । (प्रेरितों के काम 4ः12 के अनुसार)

     2. प्रभु यीशु में नया जन्म प्राप्त करने के बाद यदि हम अपने पुराने चाल-चलन एवं व्यवहार को नहीं बदलते तो इस भ्रम में रहना ही नहीं चाहिये कि हमारा नया जन्म वास्तव में हुआ। क्योंकि हमारा सम्पूर्ण व्यक्तित्व एवं हमारे कार्य सब कुछ पहले संसार की ओर केन्द्रित होते हैं और उद्धार प्राप्त करने के बाद आत्मिक एवं अनन्त जीवन की ओर। अतः हमारे कार्य, व्यवहार एवं आचरण नया जन्म प्राप्त होने की साक्षी बन जाना चाहिये क्योंकि मसीह में नया जन्म लेकर शैतान का सा आचरण करना मसीह के नाम का अपमान करना है एवं लोगों के लिए ठोकर का कारण बनना है।

     3. क्या हम भी अभी तक तथाकथित धर्मिक अगुवों की तरह स्वयं की धार्मिकता से उद्धार अर्जित करने की गफलत में हैं ? या सब कुछ जानने के बाद हमने अब तक प्रभु यीशु मसीह को अपना व्यक्तिगत उद्धारकर्ता नहीं स्वीकार किया है और उसकी क्षमा से वचिंत हैं ? हमें गंभीरतापूर्वक इन बातों पर अभी विचार करना है और प्रभु यीशु मसीह में अपने पापों की क्षमा प्राप्त करना है।


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