Posts

Showing posts from May, 2023

विश्वास योग्य दास का दृष्टान्त

Image
विश्वास योग्य दास का दृष्टान्त सन्दर्भ: मत्ती 24ः45-51 - ‘ ‘सो वह विश्वायोग्य और बुद्धिमान दास कौन है, जिसे स्वामी ने अपने नौकर चाकरों पर सरदार ठहराया, कि समय पर उन्हें भोजन दे? धन्य है, वह दास, जिसे उसका स्वामी आकर ऐसा ही करते पाए। मैं तुम से सच कहता हूं; वह उसे अपनी सारी संपत्ति पर सरदार ठहराएगा।  परन्तु यदि वह दुष्ट दास सोचने लगे, कि मेरे स्वामी के आने में देर है। और अपने साथी दासों को पीटने लगे, और पियक्कड़ों के साथ खए पीए। तो उस दास का स्वामी ऐसे दिन आएगा, जब वह उस की बाट न जोहता हो। और ऐसी घड़ी कि वह न जानता हो, और उसे भार ताड़ना देकर, भाग कपटियों के साथ ठहराएगा, वहां रोना और दांत पीसना होगा।’’ लूका 12ः41-46 - ‘ ‘तब पतरस ने कहा, हे प्रभु क्या यह दृष्टान्त तू हम ही से या सब से कहता है। प्रभु ने कहा, वह विश्वास योग्य और बुद्धिमान भण्डारी कौन है, जिसका स्वामी उसे नौकर चाकरों पर सरदार ठहराए कि उन्हें समय पर सीधा दे। धन्य है वह दास, जिसे उसका स्वामी आकर ऐसा ही करते पाए। मैं तुम से सच कहता हूं; वह उसे अपनी सब संपत्ति पर सरदार ठहराएगा।  परन्तु यदि वह दास सोचने लगे, कि मेरा स्वामी ...

कलीसिया (चर्च) परम्परांए एंव विधर्म - गृह इक्लीसिया का इतिहास - भाग 31

Image
 गृह इक्लीसिया का इतिहास पवित्र भवन, ऊंचे घण्टाघर, क्रूस, रवि-वार (सन-डे), यहां तक कि प्रभु यीशु (लॉर्ड जीसस) और बहुत सी बातें हमारी मूर्तिपूजक विधर्मिता की बपौती हैं। इक्लीसिया का प्रतिक चिन्ह दीवट (मेनोराह) ही  है। ( प्रकाशित वाक्य 1ः20 ) प्रथम 300 वर्षों तक इक्लीसिया किसी भी जगह, जैसी भी स्थिती में थी, उसी में बडे़ प्यार और लचीलेपन के साथ विश्वासियों के घरो में मिला करती थी। उस समय कोई चर्च भवन, पास्टर, रविवारीय आराधना, सुसमाचार अभियान, सेमनरियां या दसवांश देना इत्यादि नहीं था। इन समयों में इक्लीसिया विश्वास में और संख्या में तेजी से बढ़ती गईं। ( प्रेरितों के काम 16ः5 ) पौलूस ने परमेश्वर के सम्पूर्ण ज्ञान को घर घर में बांटा । अगुवों का प्रशिक्षण कलीसियाई आधार पर था। इन गृहइक्लीसियाओं को 380 ए. डी. में कानूनी तौर पर बंद कर दिया गया था। उस समय कलीसिया की आत्मा खो गई और वह हजार वर्ष के अन्धकार में प्रवेश कर गई ( प्रेरितों के काम 20ः20,27-29 )।  सान्ता नीकुलेईटन्स जो ‘‘सामान्य जनों पर हावी’’ होने पर विश्वास करता था और ऊंचे वर्ग का होने का दावा करता था, ने कलीसिया को संदे...

कलीसिया (चर्च) परम्परांए एंव विधर्म - मैं क्या करूं? - भाग 30

Image
 मैं क्या करूं? 4- पर मुझे तेरे विरुद्ध यह कहना है कि तू ने अपना पहला–सा प्रेम छोड़ दिया है। 5- इसलिये स्मरण कर कि तू कहाँ से गिरा है, और मन फिरा और पहले के समान काम कर। यदि तू मन न फिराएगा, तो मैं तेरे पास आकर तेरी दीवट को उसके स्थान से हटा दूँगा। 7- जिसके कान हों वह सुन ले कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है। जो जय पाए, मैं उसे उस जीवन के पेड़ में से जो परमेश्‍वर के स्वर्गलोक में है, फल खाने को दूँगा।  (प्रकाशितवाक्य 2:4-5,7)       पवित्र भवन, ऊंचे घण्टाघर, क्रूस, रवि-वार (सन-डे), यहां तक कि प्रभु यीशु (लॉर्ड जीसस) और बहुत सी बातें हमारी मूर्तिपूजक विधर्मिता की बपौती हैं। इक्लीसिया का प्रतिक चिन्ह दीवट (मेनोराह) ही  है। ( प्रकाशित वाक्य 1ः20 ) परम प्रधान को साधारण रीति से कहे जाने वाले - प्रभु या ईश्वर सम्बोधन बन्द करें और उन्हें उनके सही नाम अर्थात याहवेह हमारे इलोहिम, कहकर सम्बोंधित करें । झूठे नाम ‘‘प्रभु यीशु ख्रीष्ट’’ (Lord Jesus Christ) में प्रार्थना करना बंद करें और उनके सही मूल नाम में अर्थात याहशुआ, मसैय्याह, मालिक और उद्धारकर्ता सम्बोध...

कलीसिया (चर्च) परम्परांए एंव विधर्म - इतिहास के पन्नों से - भाग 29

Image
 इतिहास के पन्नों से 4- पर मुझे तेरे विरुद्ध यह कहना है कि तू ने अपना पहला–सा प्रेम छोड़ दिया है। 5- इसलिये स्मरण कर कि तू कहाँ से गिरा है, और मन फिरा और पहले के समान काम कर। यदि तू मन न फिराएगा, तो मैं तेरे पास आकर तेरी दीवट को उसके स्थान से हटा दूँगा। 7- जिसके कान हों वह सुन ले कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है। जो जय पाए, मैं उसे उस जीवन के पेड़ में से जो परमेश्‍वर के स्वर्गलोक में है, फल खाने को दूँगा।  ( प्रकाशितवाक्य 2:4-5,7)      पवित्र भवन, ऊंचे घण्टाघर, क्रूस, रवि-वार (सन-डे), यहां तक कि प्रभु यीशु (लॉर्ड जीसस) और बहुत सी बातें हमारी मूर्तिपूजक विधर्मिता की बपौती हैं। इक्लीसिया का प्रतिक चिन्ह दीवट (मेनोराह) ही  है। ( प्रकाशित वाक्य 1ः20 ) सी. ई. 300 में - (क्रिश्चियन एरा, ईश्वी, सन्) डूब के बपतिस्मा को छिड़काव के बपतिस्मा में बदल दिया गया।  सी. ई. 310 - क्रूस के चिन्ह को सैनिकों की ढालों और टोपों पर चिन्ह के रूप में अंकित किया गया और पहली बार याहशुआ युद्ध के ईश्वर बन गए। सी. ई. 321 - रोमी राजाज्ञा निकाली गई कि सूर्य - दिवस या सन डे के...

कलीसिया (चर्च) परम्परांए एंव विधर्म - शालोम अलईखेम - भाग 28

Image
शालोम अलईखेम      पवित्र भवन, ऊंचे घण्टाघर, क्रूस, रवि-वार (सन-डे), यहां तक कि प्रभु यीशु (लॉर्ड जीसस) और बहुत सी बातें हमारी मूर्तिपूजक विधर्मिता की बपौती हैं। इक्लीसिया का प्रतिक चिन्ह दीवट (मेनोराह) ही  है। ( प्रकाशित वाक्य 1ः20 ) शालोम अलईखेम - तुम्हें शान्ति मिलेः ( यूहन्ना 20ः21 ), याहशुआ हमेशा अपने चेलों को अभिवादन में ‘‘शालोम अलईख़ेम’’ अर्थात ‘‘तुम्हें शान्ति मिले’’, कहते थे, और हमें भी ऐसा ही करने के लिये आज्ञा दिये हैं ( यूहन्ना 20ः21; लूका 10ः5 )। मुस्लिम हमेशा ‘‘सलाम अलैईखुम’’ कहकर अभिवादन करते हैं परन्तु मसीहियों ने अन्यजातीय विधर्मी परम्परा ‘‘शुभ दिन’’ ( Good Day ) कहना अपना लिया है। समय आ गया है कि हम पश्चाताप करें और वापस हों और लोगों को न केवल शब्दों में वरन सम्पूर्ण मन से, परोपकारिता के साथ आशीष दें। ( उत्पत्ती 13ः3; गिनती 6ः22-26; यूहन्ना 1ः2 )।  याहशुआ, आत्माओं की एक बड़ी कटनी काटने के लिये मशकों (घरेलू कलीसियाओं) को तैयार कर रहे है, किसी परम्परागत चर्च से नहीं। आज एक तुरही की पुकार व शब्द की आवश्यक्ता है, जिससे इन मूर्तिपूजक विधर्मिता से भरे ...

कलीसिया (चर्च) परम्परांए एंव विधर्म - चर्च को ब्राम्हणवाद से मुक्त करना - भाग 27

Image
चर्च को ब्राम्हणवाद से मुक्त करना       पवित्र भवन, ऊंचे घण्टाघर, क्रूस, रवि-वार (सन-डे), यहां तक कि प्रभु यीशु (लॉर्ड जीसस) और बहुत सी बातें हमारी मूर्तिपूजक विधर्मिता की बपौती हैं। इक्लीसिया का प्रतिक चिन्ह दीवट (मेनोराह) ही  है। ( प्रकाशित वाक्य 1ः20 ) हम में से बहुतों को यह भ्रम है कि मसीह विरोधी आएगा और यरूशलेम में पुनः मन्दिर बनाएगा और अपने आपको उसमें स्थापित करके आराधना स्वीकार करेगा ( 2थिस्सलुनिकियों 2ः3,4 )। यथार्थ में हमारा उद्धारकर्ता मसैय्याह पहिले ही तीसरा मन्दिर बना रहे हैं, जो हाथों का बनाया हुआ नहीं है और जो हमारे जैसे जीवते पत्थरों द्वारा बनाया जा रहा है जो कभी नाश नहीं किया जा सकता ( 1पतरस 2ः5; दानियेल 2ः34,44 ) तथापि पवित्र करके अलग किये गए पवित्र स्थान में वह, ‘‘घृणित वस्तु जो उजाड़ करा देती है’’ की जमीनी सत्यता पहिले से पूरा किया जा चुका कार्य है। जिसकी बुनियाद नीकुलईयों द्वारा सामान्य जनों (Laity) पर हावी होने के लिये की गई थी ( प्रकाशित वाक्य 2ः6,15 ), जिसे रोमी सम्राट हेड्रियन भी कॉन्स्टेन्टाईन की तरह उच्च प्रजाति का मसीही था। उसने अलेक्जे...

कलीसिया (चर्च) परम्परांए एंव विधर्म - याहवेह का कार्यक्रम जातियों व देशों के लोगों की चंगाई है - भाग 26

Image
याहवेह का कार्यक्रम जातियों व देशों के लोगों की चंगाई है      पवित्र भवन, ऊंचे घण्टाघर, क्रूस, रवि-वार (सन-डे), यहां तक कि प्रभु यीशु (लॉर्ड जीसस) और बहुत सी बातें हमारी मूर्तिपूजक विधर्मिता की बपौती हैं। इक्लीसिया का प्रतिक चिन्ह दीवट (मेनोराह) ही  है। ( प्रकाशित वाक्य 1ः20 ) ‘‘जातियों’’ या देशों के लोग’’ शब्द धर्मशास्त्र में 2000 बार आया है ( व्यवस्था विवरण 4ः6 )। याहशुआ के मानफिराव के सुसमाचार ( लूका 24ः47 ) का अर्थ है, लौटकर फिरसे मूल मार्ग (तोरह) पर आ जांए। शाऊल (पौलूस) ने हमें चेतावनी दिया है, ‘‘मेरे जाने के बाद, फाड़ने वाले भेड़िये तुममें आएंगे जो झुण्ड को न छोडेंगे..... जो चेलों को अपने पीछे खींच लेने को टेढ़ी मेंढ़ी बातें कहेंगे। ( प्रेरितों के काम 20ः29,30 ) एज्रा भविष्यद्वक्ता आया और यहूदावाद में से सारी अशुद्धियों को साफ किया जिनमें व्याभिचारिणी, रखैलियां भी शामिल थीं ( एज्रा 7ः10; 10ः1,2 )। ये कई वर्षों से बहुत संख्या में जमा हो गई थी। अब फिरसे समय आ गया है कि हम कलीसिया को, विधर्म, मूर्तिपूजक घृणित नामों, परम्पराओं, रिवाजों और पेशेवर व्यवसायी उपदेशकों से शु...

कलीसिया (चर्च) परम्परांए एंव विधर्म - बलिदान और इक्लीसिया की गुणात्मक वृद्धि - भाग 25

Image
बलिदान और  इक्लीसिया की गुणात्मक वृद्धि      पवित्र भवन, ऊंचे घण्टाघर, क्रूस, रवि-वार (सन-डे), यहां तक कि प्रभु यीशु (लॉर्ड जीसस) और बहुत सी बातें हमारी मूर्तिपूजक विधर्मिता की बपौती हैं। इक्लीसिया का प्रतिक चिन्ह दीवट (मेनोराह) ही  है। ( प्रकाशित वाक्य 1ः20 ) बलिदान: बलिदान, दसवांश से अलग प्रकार के हैं, वे विशेष प्रकार के दान हैं, जो समृद्ध लोगों द्धारा विशेष अभिप्राय हेतु दिये जाते थे। इन्हें दान देने का विशेष वरदान होता था जैसे कुरनेलियुस ( रोमियों 12ः8; प्रेरितों के काम 10ः4 ) तथा कुछ धनाड्य महिलाएं जिन्होंने अपने धन से याहशुआ की सेवा की ( लूका 8ः3; मत्ती 27ः55 ), परन्तु वे कभी भीड़ से पैसा जमा करने नहीं गए, और न ही पौलुस ने ऐसा किया ( प्रेरिमों के काम 17ः4,12 )।   प्रत्येक विश्वासी, याहवेह का मन्दिर है । और किसी मन्दिर का दूसरे मन्दिर को दसवांश देना, तर्कसंगत नहीं है। यात्री सुसमाचार प्रचारकों (Itinerant Ministry) जो चलते फिरते मन्दिर हैं को उदारतापूर्वक विशेष दान देना चाहिये, ताकि उनके भण्डार भर रहें ( 2कुरिन्थियों 6ः16; मलाकी 3ः7, 10; रोमियों 1...

कलीसिया (चर्च) परम्परांए एंव विधर्म - पर्व, आर्थिक समृद्धि लाते हैं - भाग 24

Image
पर्व, आर्थिक समृद्धि लाते हैं      पवित्र भवन, ऊंचे घण्टाघर, क्रूस, रवि-वार (सन-डे), यहां तक कि प्रभु यीशु (लॉर्ड जीसस) और बहुत सी बातें हमारी मूर्तिपूजक विधर्मिता की बपौती हैं। इक्लीसिया का प्रतिक चिन्ह दीवट (मेनोराह) ही  है। ( प्रकाशित वाक्य 1ः20 ) याहशुआ को आपके पैसों की आवश्यक्ता नहीं है। वे आपकी आज्ञाकारिता चाहते हैं। एक यहूदी के लिये उसका घराना और उसका समुदाय, मन्दिर की तरह है। केवल धन कमाने के लिये मेहनत करना व्यर्थ है, परन्तु याहवेह से डरने वाले घराने और समुदाय का बनाना, एक सांसारिक एहिक क्रिया को, ईश्वरीय सेवा में बदल देता है। पूरी पृथ्वी ही को याहेवेह के मन्दिर में बदल जाना चाहिये, उन संसाधनों से जिन्हें याहवेह ने हमें दिये है। फरीसी और सदूकी को सामान्य जन थे, ने लेवीय याजकत्व के अधिकारों को हड़प् लिया है, जो धर्मशास्त्र विरूद्ध है। याहशुआ ने फरीसियों को डांटा कि वे ऊपरी व सतही बातों के लिये बहुत सतर्कता से ध्यान देते थे, जैसे पोदीना, सौंफ, और जीरे का दसवांश देना परन्तु तौभी प्रभु ने दसवांश देने को रद्द नहीं किया ( मत्ती 23ः23 )।   अपनी मेहनत की कम...

कलीसिया (चर्च) परम्परांए एंव विधर्म - धर्म विधियों व धर्म आदेशों के प्रभावी परिणाम - भाग 23

Image
धर्म विधियों व धर्म आदेशों के प्रभावी परिणाम होते हैं       पवित्र भवन, ऊंचे घण्टाघर, क्रूस, रवि-वार (सन-डे), यहां तक कि प्रभु यीशु (लॉर्ड जीसस) और बहुत सी बातें हमारी मूर्तिपूजक विधर्मिता की बपौती हैं। इक्लीसिया का प्रतिक चिन्ह दीवट (मेनोराह) ही  है। ( प्रकाशित वाक्य 1ः20 ) याहशुआ किसी नये धर्म का प्रारम्भ करने नहीं आए परन्तु अन्य जातियों की कलम साटने आए, एक जंगली जलपाई को इस्राएल की उत्तम चिकनाई वाली जलपाई की जड़ में सांटा गया, जिस प्रकार रूथ और राहब सांटी गई थी ( रोमियों 11ः16-24 ) याहशुआ, व्यवस्था और भविष्यद्धक्ताओं को पूरा करने आए। उन्होंने कहे, ‘‘व्यवस्था से एक मात्रा या बिन्दू भी बिना पूरा हुए नहीं टलेगा ( मत्ती 5ः17-20 )। दस आज्ञाएं आज भी एक न्याय प्रिय, दयालू और सदाचारी समाज के लिये पुख्ता आधार देती है। यदि आचरण के इस आदर्श विधि-संग्रह को पूरे विश्व में उपयोग में लाया जाए तो उसमें ऐसी शक्ति है कि पूरे पुलिस तन्त्र और कानूनी न्यायालयों के लिये फिर कोई काम नहीं रहेगा।  याहशुआ हमारे सेवक शासक और राजा होने के आदर्श हैं। यदि उनका अनुसारण किया जाए और उन...