कलीसिया (चर्च) में मूर्तिपूजक परम्परांए एंव विधर्म - भाग 10

पवित्र भवन, ऊंचे घण्टाघर, क्रूस, रवि-वार (सन-डे), यहां तक कि प्रभु यीशु (लॉर्ड जीसस) और बहुत सी बातें हमारी मूर्तिपूजक विधर्मिता की बपौती हैं। इक्लीसिया का प्रतिक चिन्ह दीवट (मेनोराह) ही है। ( प्रकाशित वाक्य 1ः20 ) पिन्तेकुस्त इस बटोरन या इकट्ठा करने के पर्व के लिये जो कि लांघन के पर्व से पचास दिन बाद में होता था, यहूदी लोग अपनी कटनी और पशुओं के पहिलौठों का दसवांश मन्दिर में बलिदान चढ़ाने लाते थे। यह इक्लीसिया का जन्म दिन है। 120 चेलों ने 10 दिन तक प्रार्थना किये और पवित्र आत्मा उन पर आ गया। हमें भी पिन्तेकुस्त का दिन उपवास और प्रार्थना के साथ मनाना चाहिये ताकि पवित्र आत्मा से भरे जांए और अपने ही संसाधनों के द्वारा आत्माओं की बड़ी कटनी काट सकें। बहुत से विश्वास करते हैं कि पुरानी वाचा, जो पत्थर की पटियाओं पर लिखी गई थी, इसी दिन दी गई थी, परन्तु अब प्रतिज्ञा के अनुसार याहवेह अपनी नई वाचा को हमारे हृदयों में लिख रहे हैं। ( प्रेरितों के काम 2ः1-18; लैव्यवस्था 23ः15,16; यहेचकेल 11ः19 यिर्मयाह 31ः33 ) पिन्तेकुस्त का दिन अब विश्व प्रार्थना दिवस के रूप में मनाया जाता है। ...