भ्रांति - यीशु के जन्म संबंधित

तो क्या यीशु का जन्म ईश्वरीय चमत्कार नहीं था,

दो वैज्ञानिकों द्वारा नई धारणा फैलाने का प्रयास : यह विज्ञान का युग हैं और हर घटना, सच्चाई को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखने का प्रयास किया जाता है। लेकिन विज्ञान के क्षेत्र में कार्य करते समय कई लोग विज्ञान को जन्म देने वाले ईश्वर को भी या तो भूल जाते हैं या नकार देते हैं । विश्वप्रसिध्द वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्टीन ने जब गुरुत्वाकर्षण शक्ति की खोज की थी, तब अनेक पत्रकार दौडे-दौडे उनके पास गए और पूछा, 'इस खोज के बाद ईश्वर के प्रति आपकी आस्था तो नहीं रही होगी?' तब आईस्टीन ने बड़े सहज भाव से कहा था, 'इस खोज के बाद ईश्वर के अस्तित्व के प्रति मेरी और भी आस्था बढ़ गई है क्योंकि ईश्वर ने मनुष्यों के लाभ के लिए इस प्रकृति में ऐसे हजारों लाखों या अनगिनत वैज्ञानिक सत्य छिपा रखें हैं जो मनुष्य के जीवन के लिए उपयोगी हैं परन्तु मैने तो उन ईश्वर प्रदत हजारों लाखों रहस्यों में से केवल एक ही खोज की है । उन्होने फिर कहा, मैनें तो इस गुरुत्वाकर्षण शक्ति की केवल खोज की है, इसे बनाया नहीं। बनाया तो ईश्वर ने है । 

महान वैज्ञानिक, चिन्तक, दार्शनिक, अलबर्ट आईन्स्टीन की इस बात को समझने का जो लोग जितना प्रयास करेगे, वे ईश्वर के उतने ही नजदीक पहुंचेगे। लेकिन कई वैज्ञानिक भी आईन्स्टीन की इस बात को नहीं समझ पर रहे हैं।

 हाल ही में कुछ वैज्ञानिकों ने यीशु के कुंवारी कन्या (मरियम) से जन्म के संदर्भ में भी सम्भवतः कुछ इसी तरह की गलतफहमी के करण एक नई धारणा फैलाने का थोड़ा सा प्रयास किया है। इसके अनुसार दिसम्बर में लन्दन से प्रकाशित दी टेलीग्राफ अखबार के विज्ञान सम्पादक रोजर हाईफील्ड ने यीशु के जन्म को प्रजनन विज्ञान की एक विचित्रता या रहस्य निरुपित करने का प्रयास किया है। अपने इस लेख में उन्होने स्वयं यह भी लिख दिया कि प्रजनन की इस प्रक्रिया का परिणाम यीशु का जन्म रहा होगा, अर्थात् वे स्वयं भी अपने निष्कर्ष में पूरी तरह आश्वस्त नहीं है। तब उन्हें विश्व के बडे धर्म समुदाय की आस्था के खिलाफ ऐसा बोलने-लिखने एवं गलतफमीयों पैदा करने की जरुरत कहा नहीं जा सकता। विज्ञान की सबसे बडी सच्चाई यही है कि जब तक प्रयोगों से सफल एवं सार्थक निष्कर्ष नहीं पाए जा सकते हैं, उनके बारे में घोषणाएं या अनुमान बताना उचित नहीं माना जाता है, लेकिन रोजर हाईफील्ड ने ऐसा ही किया । उनका अनुमान है कि यीशु का जन्म अनिषेकजनन जिसे विज्ञान की भाषा में 'पार्थेनोजिनेसिस' प्रक्रिया कहते हैं, से हुआ होगा। इस प्रक्रिया में मां का डिम्ब बिना निषेचन के ही प्रगुणित हो जाता है। प्रजनन के वैज्ञानिक नियमों के अनुसार यह एक विकृति है, जो स्तनपायी जीवों में नहीं होती। वे स्वयं कहते हैं कि यह प्रक्रिया स्तनपायी जीवों के पहले के जीव वर्ग के जीवों की जनन पध्दती है। इसमें संतान की उत्पति आत्म विभाजन से ही हो जाती है, इसके लिए सेक्स अत्यन्त जरुरी है। बल्कि स्तनपायी जीवों में उत्पति की यह प्रक्रिया न केवल अद्भुत सौगात बल्कि एक वरदान और विकास का रास्ता हैं। क्योंकि इसमें जीन्स में आपस में घात-प्रतिघात होता है और विजयी जीन ही संतान के रूप में सामने आते हैं।

रोजर हाईफील्ड के इस लेख के साथ ही लन्दन यूनिवर्सिटी कालेज के अनुवांशिकी विज्ञान के प्रोफेसर सैम बैरी ने भी साइंस एंड क्रिश्चियन बिलिफ शीर्षक लेख में लिखा है मरियम अनुवांशिक असामान्यता की शिकार रही होगी। वे लिखते हैं, ऐसी महिलाओं में कभी-कभी डिम्ब शुक्राणु से बिना निषेचित हुए ही प्रगुणित होने लगता है यद्यपि ऐसे मामले दुर्लभ होते हैं। अर्थात् दोनों ही वैज्ञानिकों रोजर हाईफील्ड और प्रोफेसर सैम बैरी ने अपने-अपने लेखों में एक ही बात सिध्द करने की कोशिश की है।

इन दिनों वैज्ञानिको की इस बात पर ब्रिटेन एवं विज्ञान जगत में इसलिए चर्चा चल पड़ी तथा इसे थोडा विश्वास भी मिल गया क्योंकि पिछले वर्ष ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने एक ऐसा लड़का पेश भी किया था जो कुमारी कन्या से जन्मा है । यह लड़का इस समय चार वर्ष का है और इसके रक्त में पिता के जीन नहीं है । अर्थात् यह लड़का अनिषेक जनन प्रक्रिया से जन्मा है। जिसमें सेक्स की जरुरत नहीं होती । वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इसी तरह की पध्दती से यीशु का भी जन्म हुआ होगा। इस लड़के का नाम एफ. डी. दिया गया है जो काल्पनिक है। इस 

लड़के के जन्म का विवरण विज्ञान पत्रिका नेचन जेनेटिक्स में प्रकाशित हुआ ।

यह तो यच है कि इन वैज्ञानिकों ने अपने इन लेखों से विज्ञान के क्षेत्र में तो एक हलचल पैदा कर दी है लेकिन विज्ञान की चाहे यह सच्चाई भी हो तब भी धार्मिक एवं ऐतिहासिक तथ्यों पर गहरा आक्रमण किया है। विज्ञान का यह सुत्र भी चाहे इस आधार पर झूठा पड़ जाए कि महिलाओं के डिब्बे में एक्स एवं पुरुषों में वाय क्रोमोजोम्स होते है। इन दोनों के मिलने पर ही दो परिणाम होते हैं, 

1. महिला कोख में जीव की उत्पति तथा

2. उक्त जीव का लिंग निर्धारण अर्थात् यदि अनिषेकजनन पध्दति को सही एवं दुर्लभ मामलों में स्वीकार भी कर लिया जाए तब भी विज्ञान संपर्क स्तनपायी जीवों में पुरुष व महिला क्रोमोजोम्स के मिलन के बिना दूसरी स्थिति अर्थात् लिंग निर्धारण हो ही नहीं सकता। तीसरे यदि महिला के जीन अर्थात् एक्स ही मिलकर इन वैज्ञानिकों के मत के अनुसार संतान उत्पति कर लेते है तो फिर यह भी वैज्ञानिक सत्य है कि महिला के क्रोमोजोम्स अर्थात् एक्स और एक्स मिलकर केवल लडकी को जन्म देते हैं।

लडके का जन्म हो नहीं सकता। अर्थात् महिला के एक्स और पुरुष के वाय क्रोमोसोम या जीन मिलकर ही लडके का जन्म सम्भव बनाते हैं। जबकि यीशु तो पुरुष थें अर्थात् वैज्ञानिकों ने यीशु के जन्म को प्रजनन विज्ञान की एक प्रक्रिया सिध्द करने का झूठा ही प्रयास किया है। और विज्ञान के एक पहलू का भी हल खोजना होगा कि क्या केवल महिला ही इस दुर्लभ अनिषेकजनन प्रक्रिया में लडकी और लडके दोनों को समान रूप से अकेले ही जन्म दे सकती हैं। यदि इस समस्या का निराकरण नहीं किया जाता है तो यह प्रयास केवल धार्मिक, ऐतिहासिक एवं ईश्वरीय अद्भुत घटना को झूठा करार देने का ही एक प्रयास भर माना जाता रहेगा। यही नहीं, ये दोनों वैज्ञानिक यीशु के जन्म को ईश्वरीय घटना को गलत सिध्द करनेमें और भी अनेक ऐतिहासिक घटनाओं को क्यों नजरअंदाज कर रहे हैं, यह समझ से परे हैं।

यदि इन वैज्ञानिकों के ये निष्कर्ष सही मान भी मान भी लिए जाए तो फिर यीशु के जन्म के 600 वर्ष पूर्व यशायाह भविष्यवक्ता ने जो भविष्यवाणी की थी कि यीशु नामक उध्दारकर्ता का जन्म होगा, क्या वह भी झूठी घटना थी । जबकि यशायाह हुआ है ओर उसने ऐसी घोषणा की थी, यह केवल बाइबल में ही नहीं है, यह ऐतिहासिक प्रमाण भी है। ऐसे ऐतिहासिक प्रमाण को ये वैज्ञानिक कैसे झूठला सकेंगे। यही नहीं यशायाह ने तो साफ कह दिया था कि यीशु का जन्म कुंवारी कन्या से बैतलहम में होगा। तो क्या यशायाह को 600 वर्ष बाद होने वाले इस विज्ञान के अपवाद की जानकारी थी? या उसने ईश्वरीय प्रेरणा ही रही हैं । यहीं नहीं यीशु बैतलहम गांव के नहीं थें, उनके माता-पिता तो नाजरथ के रहने वाले थे पर भविष्यवाणी ईश्वरीय आधार पर की अतः यीशु के जन्म के समय उनके माता-पिता को बैतलहम जाना पडा। इसके साथ जब यीशु का जन्म हुआ तब एक चमकदार तारा दिखाई दिया था, उस तारे के उस समय दिखाई देने के भी ऐतिहासिक प्रमाण मौजूद है।

हाल ही में वैज्ञानिकों ने फिर खोज की है और यह तथ्य फिर से जुटाया है कि यीशु के जन्म के समय एक चमकदार तारा दिखाई दिया था। इन वैज्ञानिकों ने इस तारे को दो पुच्छल तारे का सम्मिश्रण बताया है और उसे बैतलहम का तारा ही नाम दिया हैं। तो क्या ये सारे ऐतिहासिक प्रमाण झूठे है और रोजर हाईफील्ड तथा प्रो. सैम बैरी की ये सम्भावनाएं सही है। इनके अतिरिक्त प्रभु यीशु परमेश्वर की योजना के अनुसार ही इस संसार में आया, इसके बाद धार्मिक प्रमाणों, बाइबिल के तथ्यों के अतिरिक्त ऐतिहासिक प्रमाण भी मौजूद हैं, जिनके अनुसार यीशु ने मृतकों को जीवित किया, स्वयं क्रूस पर चढ़ें और जब क्रूस पर मृत्यु अपनाई तब मंदिर का परदा फट गया, चटटानें तडक गईं और स्वयं कब्र में से जीवित होकर निकल आए। इन सब प्रमाणें को जिन्हें ये वैज्ञानिक स्वयं भी इसाई होने के नाते भी जानते हैं, झूठलाना सम्भव नहीं होगा। इतने प्रमाणों के बाद यीशु के जन्म को प्रजनन विज्ञान का एक अपवाद या दूर्लभ प्रक्रिया सिध्द करने का प्रयास करना केवल धार्मिक आस्था का मखौल उड़ाने के अलावा कुछ नहीं हो सकता।

(लेखक :बापू परमार)

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