भ्रांति - गुड फ्राईडे संबंधित
प्रभु यीशु की देह कब्र में रहने की अवधि की गलत परम्परा कैसे पड़ी ?
सामान्य रूप से माना जाता है कि प्रभु यीशु को क्रूसीकरण शुक्रवार को हुआ । उसी मध्यान्ह उन्होंने प्राण त्यागे, उन्हें कब्र में दफनाया और रविवार की प्रातः पौ फटने के समय वे पुनर्जिवित हो गए। इसी परम्परा के आधार पर हम सारे विश्व में शुक्रवार को गुड़ फ्रायड़े और रविवार को ईस्टर मनाते आ रहे हैं । कुछ मसीही विद्वानों ने इस 'गुड फ्रायडे - ईस्टर' की वर्तमान परम्परा के औचित्य पर प्रश्न उठाए और इसे सिध्द करने के लिए कहा। परन्तु बाइबल हमें अन्य विषयों की तरह इस विषय पर सतय प्रमाण देती हैं। इन प्रमाणों को हमें भी जानना चाहिए।प्रभु यीशु के पुनर्जीवित होने या कब्र में से उनके निकल कर बाहर आने का कोई 'आँखों देखा' गवाह तो नहीं हैं। यहाँ तक कि प्रेरितों में से भी किसी ने उन्हें कब्र में से निकलते नहीं देखा। हमारे पास आज जो बचे हुए प्रमाण इस मामले में हैं, वह केवल बाइबिल ही है।
तब प्रश्न उठता है कि उपलब्ध प्रमाण क्या हैं? प्रभु यीशु ने स्वयं कहा था, इस युग के बुरे और व्यभिचारी लोग चिन्ह ढूंढते हैं, परन्तु यूनुस (योना) भविष्यवक्ता के चिन्ह को छोड़ कोई और चिन्ह उनको न दिया जाएगा। युनूस तीन रात दिन जल जन्तु के पेट में रहा, वैसे ही मनुष्य का पुत्र तीन रात दिन पृथ्वी के भीतर रहेगा।' (मती 12:39 - 40) यहां प्रभु यीशु ने स्वयं स्पष्ट रूप से कह दिया था कि वह पृथ्वी के भीतर अर्थात् कब्र में तीन रात और तीन दिन रहेगा। प्रभु यीशु का इंकार करने वाले फरीसियों ने जब उनसे चिन्ह मांगा तो प्रभु यीशु ने अपने पुनर्जीवित होने का समय नही दिया था, परन्तु स्पष्ट कहा था कि वह पृथ्वी के भीतर तीन दिन और तीन रात रहेगा। पुनरुत्थान तो इसके बाद की बात है। इसका सीधा अर्थ यही है कि प्रभु यीशु उद्धारकर्ता सिध्दकर दिया। यदि वह इतनी अवधि तक कब्र में नहीं रहता तो फरीसी ओर यहूदी न केवल उसे अमान्य कर देते, बल्कि प्रभु यीशु के पुनर्जीवित हो उठने के बाद भी भारी बखेड़ा खड़ा कर देते। और उसे झूठा बताते हैं। निश्चित ही शैतान ने इस मामले पर भी अपना काम किया और अविश्वासियों ने योना के साथ घटी घटना पर भी ध्यान नहीं • दिया। सम्भवतः इसीलिए शैतान ने प्रभु यीशु को मसीहा के रूप में स्वीकार करने से इनकार कराने के लिए एक अलग परम्परा स्थापित कर दी।
प्रभु यीशु ने स्वयं को अपने जीवन काल में मसीहा सिद्ध करने का यही एकमात्र प्रमाण दिया इसी प्रमाण से प्रभु यीशु की दिव्यता सिद्ध की जाती है। लेकिन इस एकमात्र प्रमाण का बाइबिल के आधार पर विश्लेषण करने पर गुड फ्रायडे - ईस्टर की वर्तमान परम्परा भरभरा कर ढह जाती है। वर्तमान परम्परा को मान्य कयिा जाए तो विशेषज्ञ कहते हैं कि प्रभु यीशु जितनी अवधि तक कब्र में रहा, वह तो उसके कब्र में रहने की केवल आधी अवधि ही थी। ग्रीक भाषा जिसमें नया नियम लिखा गया, कहा गया है 'तीन दिन और तीन रात' का अर्थ दिन व रात की अवधि है। अर्थात् शुक्रवार को सूर्यास्त के समय प्रभु यीशु की देह कब्र में रखी गई ओर रविवार प्रातः वे कब्र से बाहर आ गए अर्थात् दो रात (शुक्रवार व शनिवार) तथा एक दिन शनिवार। फिर रात दिन के बारे में बाइबिल की परिभाषा बड़ी सरल है। योना साफ लिखा है तीन दिन और तीन रात' का अर्थ 72 घंटे की अवधि है - 12 घण्टों का एक दिन व बारह घंटे की एक रात । योना 1:17 में स्पष्ट लिखा है और योना उस मगरमच्छ के पेट मेंतीन दिन और तीन रात पड़ा रहा।' इस अवधि को विशेषज्ञ 72 घंटे ही मानते हैं और यीशु ने भी साफ कहा था, जैसा योना तीन दिन और तीन रात जल जन्तु के पेट में रहा, वैसे ही मनुष्य का पुत्र तीन रात और तीन दिन पृथ्वी के भीतर रहेगा । अर्थात् वही अवधि प्रभु यीशु ने स्वयं की देह को कब्र में रहने के लिए बताई। योना जिस तरह 72 घण्टे अधोलोक (योना 2:2) में रहा, और परमेश्वर ने चमत्कारिपूर्वक मगरमच्छ के उगल देने से योना को बाहर निकाला (योना 2:10) ताकि वह निनवे के लोगों में परमेश्वर का प्रचार कर उन्हें उध्दार के रास्तें पर लाए। इसी तरह प्रभु यीशु को भी 72 घण्टे कब्र में रहना था, उसके बाद परमेश्वर पिता ने उसे कब्र से बाहर निकाला कि वह विश्व का उध्दारकर्ता बने । यहाँ यह भी प्रश्न उठता हैं कि क्या प्रभु यीशु दिन और रात की अवधि या समय के बारे में अच्छी तरह जानते थे | स्वयं उन्होने कहा था, 'क्या दिन के 12 घण्टे नहीं होते ? (यूहन्ना 11:9) बाइबिल में तीसरे दिन पुनर्जीवित हो उठने का विवरण या तीसरे दिन की जो परिभाषा है, उस पर ध्यान दें। बाइबिल में आया यह उदाहरण बताता है कि वह तीसरे दिन जी उठा, यही नहीं तीसरे दिन की अवधि की जरुरत की भी बाइबिल में परिभाषा दी गई हैं। उत्पति 1:4-5 में लिखा है, 'परमेश्वर ने उजियाले को अंधकार से अलग किया और परमेश्वर ने उजियाले को दिन कहा ओर अंधियारे को रात कहा। तथा साँझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार पहला दिन हो गया।' इस प्रकार इसी स्थिति का विवरण उत्पति 1:4 से 13 तक देखें।
बाइबिल द्वारा दी गई समय की परिभाषा में ही यह 'तीसरा दिन' भी शामिल है, जिसमें तीन उजियाले की अवधि जिसे दिन कहा गया- तीन दिन ओर तीन रात और यीशु ने कहा था, दिन में 12 घण्टे होते है, अर्थात् तीन दिन तीन रात में 3 दिन, 3 रात, 12 घण्टे 72 घण्टें इसके बाद और क्या चाहिए। परन्तु प्रभु यीशु के, इस सरल व सामान्य समझ रखने वाले को भी समझने योग्य शब्दों को समझने में गलती कहाँ हुई? किस तरह कुछ थियोलॉजिस्ट एवं बुध्दिमानों ने यह जाना कि क्रूसीकरण शुक्रवार को तथा पुरुत्थान ईस्टर सण्डे को हुआ? कैसे उन्होने शुक्रवार को शुभ शुक्रवार और रविवार को ईस्टर सण्डे बताया । इसका बड़ा सरल उतर है कि गुड फ्राईडे - ईस्टर सण्डे' की परम्परा शुरू करने वाले यह सच जानते ही नहीं थे । यह सच है । क्योंकि यह एक परम्परा हे जो हम सभी को बचपन से सिखाई गई कि क्रूसीकरण शुक्रवार का होने से वही गुड फ्रायडे और पुनरुत्थान रविवार को होने से वह ईस्टर सण्डे हुआ और इस परम्परा को हमने लापरवाहीपूर्वक स्वीकार किया। प्रभु यीशु इस मामले में साफ चेतावनी देता है, 'इस प्रकार तुम अपनी रीतियों से, जिन्हें तुमने ठहराया है, परमेश्वर का वचन टाल देते हो ।'
मत्ती और योना ने प्रभु यीशु की देह के कब्र में रहने की अवधि तीन दिन रात बताई है जो रहने की अवधि तीन दिन रात बताई है जो बाइबिल क अनुसार 72 घण्टे होती है। यहाँ बइबिल के अनुसार 72 घण्टे होती है यहाँ बाइबिल के कुछ और प्रमाण हैं, जो इस बात को ही प्रमाणित करते हैं। मरकुस 8:31 में लिखा हैं, और वह उन्हें सिखाने लगा कि मनुष्य के पुत्र के लिए अवश्य है कि वह बहुत दुख उठाए और पुरनिए और महायाजक और शास्त्री उसे तुच्छ समझकर मार डालें और वह तीन दिन के बाद जी उठे।' इस उदाहरण में तो स्पष्ट प्रभु यीशु बताता हैं । यदि यीशु की देह शुक्रवार को कब्र में रखी गई तो क्या केवल एक दिन (रविवार) के बाद वह पुनर्जीवित हो गया? यदि रविवार की रात को ही पुनर्जीवित हुए तो वह दिन (रविवार) ही नहीं हो जाएगा। यदि वह दो दिन में पुनजीर्वित हुआ तो उसका समय रविवार की संध्या होता क्योंकि शुक्रवार की संध्या उन्हें कब्र में रखा गया। यदि वह तीसरे दिन जी उठा तो वह सोमवार की संध्या होती। यह गणना शुक्रवार की संध्या को कब्र में रखने से आती हैं।
बाइबिल के इन सभा उदाहरणों को ध्यान में रखें तो स्पष्ट है कि किसी भी गणित के द्वारा यह अवधि (तीन दिन तीन रात) 72 घण्टे से कम नहीं होनी चाहिए। जो क्रूसीकरण के बाद कब्र में रखने के बाद से फिर से जी उठने तक की है । यदि यीशु शुक्रवार के बाद कब्र में रखने के बाद से फिर से जी उठने तक की है। यदि यीशु शुक्रवार की संध्या से रविवार की भोर तक कब्र में रहा तो बाइबिल के ये वचन और प्रभु यीशु द्वारा कहा गया 'तीन दिन रात' पूरी तरह गलत है और प्रभु यीशु फिर स्वयं भी झूठे व गलत ठहरे। यदि वे तीन दिन कब्र में रहे तो वे 72 घण्टे कब्र में रहे, इससे एक सेकण्ड भी कम नहीं। मरकुस 9:31 में भी साफ लिखा है, '... मनुष्य का पुत्र मनुष्यों के हाथ में पकड़वाया जाएगा, और वे उसे मार डालेगें, और वह मरने के तीन दिन बाद जी उठेगा। प्रभु यीशु ने यहाँ जो अवधि बताई है वह 72 घण्टे से कम नहीं, बल्कि इसमें 72 घण्टे से एक सेकंड भी कम नहीं है, क्योंकि यीशु सचमुच तीन दिन के बाद जी उठा और वह समय शुक्रवार की संध्या से रविवार की भोर की अवधि नहीं थीं, क्योंकि इस अवधि में केवल 36 घण्टे ही होते हैं। जो कब्र में रहने की निर्धारित अवधि का आधा समय 36 घण्टे हो सकते हैं। मती 27:63 में प्रभु यीशु को यह कहते हुए दूसरे लोग बताते हैं, "हे महाराज, हमें स्मरण है कि उस मरने वाले ने अपने जीते जी कहा था कि मैं तीन दिन के बाद जी उदूंगा।' यह कथन के अनुसार यह समय 72 घंटे से कम नहीं हो सकता। फिर यूहन्ना 2:19 - 21 में, यीशु ने उनको उतर दिया कि इस मंदिर को ढहा दो और मैं उसे तीन दिन में खड़ा कर दूंगा।' यहाँ वह स्वयं के शरीर रुपी मंदिर के लिए बोला था, जो उसके क्रूसीकरण से मृत्यु के बाद दफनाने और फिर जी उठने की अवधि है और यह तीन दिन 72 घंटे होते है। यदि बाइबिल के इन सभी प्रमाणों को हम स्वीकार करते हैं, तो हम इस निष्कर्ष पर ही पहुँचते हैं कि प्रभु पूरे तीन दिन और तीन रात अर्थात् 72 घंटे कब्र में रहा। यदि वह अपने कथन के अनुसार 72 घंटे कब्र में नहीं रहा, उसमें कम अवधि तक रहा, तो वह स्वयं को प्रमाणित करने में असफल रहा।
तो फिर से जी उठने का समय क्या हैः इस बात को ध्यान में रखें कि प्रभु यीशु तीन दिन और तीन रात अर्थात् क्रसीकरण के बाद दफनाने से लेकर फिर से जी उठने तक 72 घंटे कब्र में रहा अर्थात् कब्र में दफनाने से उसके जी उठने का यह समय है अर्थात् दिन के जिस समय उसे दफनाया गया, तीसरे दिन को उसी समय वह जी उठा । इसके अनुसार यदि हम दफनाने का समय जान लें, तो फिर उसके जी उठने का समय भी स्पष्ट हो जाएगा। उदाहरण के रूप में यदि सूर्योदय या भोर के समय उसकी देह को कब्र में रखा गया, तो तीन दिन और तीन रात कब्र में रहने के बाद सूर्योदय के समय ही वह कब्र से बाहर आया होगा। यदि दफन क्रिया दोपहर को हुई, तो जी उठने भी दोपहर को ही होता, तब ही तो 72 घंटे की अवधि पूरी होगी। यदि उसकी देह को संध्या समय दफनाया तो जी उठना भी तीन दिन प्रभु यीशु का क्रूसीकरण हुआ था वह तैयारी का दिन ' या सब्त का एक दिन पहले का दिन था । (मती 27:62, मरकूस 15:42, लूका 23:54) यह दिन तो प्राचीन इसराइल में सूर्यास्त के बाद एक दिन विश्राम का माना जाता था (लैव्यवस्था 23:32)।
यीशु ने क्रूसीकरण के नौवें घंटे में या मध्यान्ह बड़ेजोर से पुकाकर प्राण त्यागे । (मती 27:46-50, मरकुस 15:34-37, लूका 23:44-46) प्रभु यीशु को उस दिन के पहले, सूर्यास्त के पूर्व दफनाया गया (मत्ती 27:57 - 60, लूका 23:52 - 54, यूहन्ना 19:38 - 42 ) । यूहन्ना लिखता है, सो यहूदियों की तैयारी के दिन के कारण उन्होने यीशु को उसी में रखा, क्योंकि वह कब्र निकट थी ।' यहूदियों के नियमों के तहत सब्त प्रारंभ होने या पर्व के दिन के पहले ही शव दफना दिए जाते थे । इसी नियम के तहत् प्रभु यीशु को उसी दिन सूर्यास्त के पूर्व दफनाया गया । प्रभु यीशु ने 3 बजने के कुछ ही समय बाद प्राण त्याग दिए थे। इस प्रमाण पर ध्यान दें इसके बाद प्रभु यीशु को सीघ्र ही दफना दिया गया और जैसा कि इन उदाहरणों में विवरण है उन्हें 3 बजे और सूर्यास्त के समय के बीच दफनाया गया । बाइबिल के इन विवरणों से यहीं प्रमाणित होता है। इसलिए तीन दिन बाद उनका जी उठना भी इसी समय हुआ, सूर्योदय के समय नहीं, क्योंकि उन्हें सूर्योदय के समय नहीं दफनाया गया था। यह बाइबिल का खुला सत्य है । यदि तीन दिन के बाद प्रभु यीशु उसी समय जी नहीं उठे जिस समय उन्हें दफनाया गया था, तो फिर तीन दिन ओर तीन रात की कब्र की उनकी अवधि पूरी नहीं होती। यदि इस समय वे कुछ पहले जी उठे, तो वे अपना वचन पूरा करने में असफल रहे, लेकिन स्वयं को मसीहा सिध्द करने के लिए उन्होने फरीसियों को तो यही समय दिया था । यदि प्रभु यीशु का यह कथन जो उन्होने फरीसियाँ को चिन्ह के दिए दिया था, सही है तो वे जिस दिन जी उठे, उसका समय, दिन दिन समाप्त (सूर्यास्त) होने का रहा हैं यदि ऐसा नहीं है, तो फिर वे सच्चे मसीहा नहीं हुए, क्योकि उन्होने अपनी सच्चाई के लिए यही एक संकेत पहले ही बता दिया था। इसलिए गुड फ्राईडे - ईस्टर संडे' की समय-सीमा की परम्परा लड़खड़ा गई है। अब प्रश्न उठता है कि प्रभु यीशु का क्रूसीकरण किस दिन हुआ था? क्या सब्त के एक दिन पहले उनका क्रूसीकरण हुआ? यहाँ कुछ लोगों ने आपतियाँ भी उठाई हैं, लेकिन बहुत से प्रमाण हैं, जो यीशु के क्रूसीकरण के दिन का निर्धारण करते हैं । बाइबिल बताती है कि क्रूसीकरण के एक दिन बाद सब्त का दिन था । यही कारण है कि सदियों से लोग मानते आ रहे हैं कि क्रूसीकरण शुक्रवार को हुआ ।
चारों सुसमाचार बताते हैं कि क्रूसीकरण तैयारी के दिन' हुआ । यह तैयारी का दिन सब्त का दिन कहाँ से आ गया। यूहन्ना साफ लिखता है यह फसह की तैयारी का दिन था (यूहन्ना 19:14) क्योंकि सब्त का वह दिन, बडा दिन क्या होता हैं? कोई भी यहूदी बता सकता हैं कि यह बड़ा दिन होता हैं । इसराइली प्रतिवर्ष ऐसे सात बडे दिन मनाते हैं और वह प्रत्येक दिन वार्षिक सब्त कहलाता है । वार्षिक सब्त वर्ष के किसी विशेष दिन आता है वह भी प्रति वर्ष अलग-अलग सप्ताहों व दिनों में पडता है। यह सब्त सोमवार, मंलगवार या रविवार को भी आ सकता है। लैव्यवस्था 16:31, 23:24, 27, 26:34, 43 में इनका विवरण देखा जा सकता है।
अब मत्ती 26:2 देखें। इसमें प्रभु यीशु कहते हैं, 'तुम जानते हो कि दो दिन के बाद फसह का पर्व होगा और मनुष्य का पुत्र क्रूस पर चढ़ाए जाने के लिए पकड़वाया जाएगा ।' यदि इसी अध्याय को आगे देखें, तो 'तैयारी के दिन' ही क्रूसीकरण हुआ। (मत्ती 26:5) तैयारी का वह दिन कौन-सा था, इसके लिए निर्गमन 12 अध्याय पूरा विवरण है। इसराइली मेमने का वध करते और दरवाजों व चौखटों पर उसका खून छिड़कते थे। यह इस बात का संदेत था कि जब परमेश्वर कोप से भरा उस देश से निकलेगा, तो दरवाजों के पास लोहू देखकर उस घराने को छोड़ देगा (निर्गमन 12:12-14 ) इस तैयारी के दिन के बाद पवित्र वार्षिक सब्त का पर्व होता है। इस अध्याय के तारीख भी दी गई है। निर्गमन 12: 18-19 में लिखा है, 'पहिले महीने के चौदहवें दिन की सांझ से लेकर इक्कीसवें दिन तक तुम अमखीरी रोटी खाया करना । सात दिन तक तुम्हारे घरों में कुछ भी खमीर न रहे गिनती 28-16-17 में स्पष्ट लिखा है, फिर पहिले महिने के चौदहवें दिन को यहोवा का फसल हुआ करे और उसी महिने के पंद्रहवे दिन का पर्व्व लगा करें।' पहिले महीने के 14 वें दिन तैयारी के मेमने का वध किया जाता था, उस दिन को अबीब' कहते थे, वह ख्रीष्ट जैसा है, परमेश्वर का मेमना जो जगत के पाप उठा ले जाता है, ख्रीस्ट हमारी तैयारी का मेमना है, जो हमारे लिए बलिदान देता है (1 कुरिन्थियाँ 5:7) प्रभु यीशु का कुखीकरण ठीक उसी दिन हुआ था, जो हर वर्ष तैयारी का दिन हुआ था। प्रभु यीशु का क्रूसीकरण प्रथम यहूदी माह के 14 वें दिन 'अबीब' को हुआ और यह दिन तैयारी के एक दिन पहले का दिन था, जो कि पर्व की तैयारी का दिन था अथवा वार्षिक बड़े दिन सब्त की तैयारी का दिन था। यह दिन प्रथम माह के 15 वें दिन या 'अबीब' का दूसरा दिन था । यह सब्त, सप्ताह के किसी भी दिन हो सकता है। इसके दिन बदलते रहत है । और भी इसे देखा जा सकता है। उदाहरण के लिए 1962, 1969 व 1972, 1975 एवं 1982 में सब्त का दिन गुरुवार था पर अन्य वर्षों से सब्त का दिन गुरुवार को नहीं आया ।
प्रभु यीशु क्रूसीकरण के वर्ष का यहूदी कैलेण्डर देखें, तो जिस वर्ष प्रभु यीशु का क्रूसीकरण हुआ था, पहिले महीने के 14 वें दिन 'अबीब' तैयारी का दिन था। जिस दिन प्रभु यीशु का क्रूसीकरण हुआ वह बुधवार था और वार्षिक सब्त का दिन गुरुवार को था। इसी सब्त के कारण ही अरमितियास के जोसफ ने बुधवार की संध्या प्रभु की देह को दफनाने का काम शीघ्रता से किया । उस सप्ताह को अलग-अलग सब्त थे।
फिर से जो उठने का दिन कौन साथ : तो फिर प्रभु यीशु के फिर जी उठने का दिन सप्ताह का कौन-सा दिन था। प्रभु यीशु को खोजने आई स्त्रियां प्रथम दिन (रविवार) कब्र पर सवेरे बहुत जल्दी भोर के समय पहुंच गई । और सप्ताह के पहले दिन बड़ी भोर, जब सुरज निकला ही था, वे कब्र पर आई ।' (मरकुस 16:2, लूका 14:1, यूहन्ना 20:1 ) केवल इसी उध्दरण से लोग यह समझ बैठे कि यीशु रविवार की सवेरे (सप्ताह के प्रथम दिन की सवेरे ) कब्र से जी उठे । परन्तु इसके आगे पीछे वे कुछ नहीं देखते या सोचते । जब ये महिलाएं पहुंची, उस समय तो कब्र खुली और खाली थी। वहां यीशु नहीं था। यहां ही देखें कि स्वर्गदूत ने महिलाओं से क्या कहा ? वह कहता है, 'वह जी उठा है, यहां नहीं है।' (मरकूस 16:6, लूका 24:6, मत्ती 28:5-6 ) । अर्थात प्रभु यीशु रविवार की भोर के पहले ही जी उठा था। हां, सत्य यहीं है। वह रविवार के के पूर्व शनिवार की संध्या, सूर्यास्त के लगभग कब्र से जी उठा था । और चूंकि इस लेख में पहले आए विवरणों और प्रमाणों से जान गए हैं कि प्रभु यीशु को बुधवार की संध्या या सूर्यास्त के पूर्व दफनाया गया था, इसलिए तीन दिन के बाद ही दफनाने के समय उसे जी उठना था। इस तरह स्पष्ट है कि प्रभु यीशु शनिवार की देर संध्या या सूर्यास्त के समय समाप्त हो जाता था। जो सप्ताह के के पहले दिन के प्रारंभ के पहले हुआ। अतः प्रभु यीशु का कब्र से जी उठने का दिन रविवार नहीं था, उसका जी उठना सब्त पुर्नत्थान था ।
क्या प्रभु यीशु ने अपना कहा हुआ संकेत पुरा किया - वर्तमान हम मसीहियों में जारी परम्पराओं के अनुसार केवल यह मान लिया गया है कि प्रभु यीशु ने अपने सिध्द होने का जो संकेत दिया था कि वह तीन रात दिन पृथ्वी के भीतर रहेगा, उसे पूरा किया। परन्तु इस लेख में प्रभु यीशु के इस संकेत के प्रमाण उनकी मृत्यु के पहले उनके द्वारा दिए गए प्रमाण से ही यह प्रमाणित होता है। यहां यह भी स्मरण रखना होगा कि बाइबिल के कुछ वरिष्ठ विश्लेषक बताते हैं कि यहां प्रभु यीशु एक गलती कर बैठे। इस परम्परा को आधार माना जाए, तो प्रभु यीशु के कब्र में रहने की जो अवधि दी थी. वह आधी ही होती है। अब यहीं देखें कि क्या सच में कब्र में उतनी ही अवधि तक रहे जो उन्होंने स्वयं कही थी।
मत्ती 28:6 को देखें। स्वर्गदूत इसकी गवाही देते है, वह यहां नहीं है, क्योंकि वह जी उठा है, जैसा उसने कहा था।' अर्थात वह उसी समय जी उठा, जो उसने ताया था। इसलिए परमेश्वर के वचन में स्वर्गदूतों द्वारा कहे गए शब्द इस प्रमाण का रिकार्ड है कि प्रभु यीशु ने अपना दिया गया चिन्ह पूरा किया और वह था कि वह तीन दिन तीन रात पृथ्वी के भीतर रहेगा । वह सब्त के दिन संध्या समय जी उठा, रविवार की भोर को नहीं। प्रभु यीशु पूरी अवधि तक कब्र में रहे इसका एक और प्रमाण 1 कुरिन्थियों 15:3-4 में है, जहां लिखा है, इसी कारण मैंने सबसे पहिले वहीं बातें पहुंचा दी, जो मुझे पहुंची थी कि पवित्र शास्त्र के वचन के अनुसार यीशु मसीह हमारे पापों के कारण मारा गया, गाड़ा गया और पवित्र शास्त्र के अनुसार तीसरे दिन जी भी उठा।' अतः प्रभु यीशु की मृत्यु, दफनाया जाना और फिर जी उठना, बाइबिल के वचन के विपरीत तो दफनाया गया, वह बुधवार के तीसरे दिन सब्त का दिन था। इसके अनुसार कब्र में पूरे तीन दिन रहने पर शनिवार की संध्या का समय होता है, रविवार की भोर नहीं ।
क्रूसीकरण किस दिन हुआः प्रभु यीशु का क्रूसीकरण बुधवार को हुआ जो सप्ताह के मध्य का दिन था । उन्होंने इस दिन मध्यान्ह 3 बजे के कुछ समय बाद ही प्राण त्यागे । और उसी दिन बुधवार की संध्या सूर्यास्त के पूर्व उन्हें दफनाया गया । इसी आधार पर कब्र में रहने के तीन दिन और तीन रात की गणना करें। उनकी देह गुरुवार, शुक्रवार और शनिवार को पूरे दिन कब्र में रही । इस तरह वे शनिवार के दिन जो सब्त का दिन था, संध्या के समय सूर्यास्त को जरा पहले जी उठे । यह वही समय था, जिस समय तीन दिन और तीन रात पहले उन्हें दफनाया गया था। यह भी महत्वूर्ण है जी उठने कि '70 सप्ताह की दानियल की भविष्यवाणी (दानियल 9:24 - 27 ) को सप्ताह के मध्य में होना था । दानियल की भविष्यवाणी में एक दिन एक वर्ष के बराबर है, इसलिए 70 वाँ सप्ताह सात वर्ष का हो गया। प्रभु यीशु ने अपनी सेवकाई के साढ़े तीन वर्ष इसमें से हटा दिए और क्रूसीकरण के सप्ताह के मध्य का दिन भी कट गया ।
आपतियों का परिक्षण : मरकूस 16:9 के अनुसार कोई व्यक्ति यह विश्वास कर सकता है कि पुनरुत्थान रविवार की भोर को ही हुआ। परंतु इस पूरे परिच्छेद को पढने में ही लगता है कि ऐसा नहीं है। इसमें शब्दों का प्रयोग 'जी उठा कर' perfect tense में किया गया है। फतह के पहले दिन यीशु ने क्या कहा था? क्या उन्होने ऐसा ही कहा। सप्ताह के पहले दिन जब वे जी उठे थें । निश्चित ही वे शनिवार की संध्या या सूर्यास्त के पूर्व जी उठे थे, इसलिए वे रविवार की भोर भी, जी उठे थे। इसे संदर्भ में उपरोक्त किसी भी प्रमाण का खंडन नहीं होता ।
लूका 24:21 में यह स्थिति और भी स्पष्ट है'... और इन सब बातों के सिवाय इस घटना को हुए तीसरा दिन है।' यहाँ इन सब बातों में प्रभु यीशु का वास्तविक क्रूसीकरण, प्राण त्यागना, कब्र पर मुहर लगाना शामिल है। लूका 24:18-20 में भी इन सबका उल्लेख है । मत्ती 27:62-66 में भी यही विवरण है और अंतिम स्थिति कब्र पर मुहर लगाने एवंउसकी रखवाली की थी। इस संदर्भ के अनुसार गुरुवार को कब्र पर मुहर लगाई गई। इस संदर्भ में कहा गया है कि रविवार इन सब घटनाओं का तीसरा दिन था, क्योंकि इसी दिन (रविवार) को यह सारी चर्चाएं हो रही थी ओर सचमुच मुहर लगाने वाले दिन गुरुवार के बाद रविवार तीसरा दिन था इसी तीसरे दिन के कारण पुनर्रुत्थान के समय में संदेह पैदा हो गया, परन्तु यदि क्रूसीकरण का दिन शुक्रवार माना जाता है, जैसा कि परम्परानुसार माना भी जाता है, तो रविवार तीसरा दिन नहीं हुआ। इस सत्य को प्रमाणित करने का एक और भी अंतिम प्रमाण है। बाइबिल के उदाहरण में एक महत्वपूर्ण प्रमाण है कि उस सप्ताह में दो सब्त थे। परन्तु बाइबिलों के अंग्रेजी के सभी अनुवाद में वे नहीं आए हैं। केवल फेरर फेंटन के अनुवाद में यह आया है कि उस सप्ताह मं दो सब्त थे । मती28:1 देखें। इसमें लिखा है, 'सब्त के दिन के बाद' इसमें 'सब्त' को एक वचन के रूप में लिया गया है। परन्तु मूल ग्रीक भाषा केइसी संदर्भ में सब्त को Sabbaths बहुवचन में लिखा हैं। किसी-किसी अंग्रजी अनुवाद में फुटनोट में लिखा है मूल ग्रीक में Sabbaths बहुवचन है । मरकुस 16:1 के अनुसार मरियम मगदलीनी और उसके साथ गई महिला ने सब्त बीतने के पूर्व ही प्रभु यीशु की देह के लिए इत्र व अन्य सामान खरीदा था।' और लौटकर सुगंधित वस्तुएं और इत्र तैयार किया और किया और सब्त के दिन तो उन्होने आज्ञा के अनुसार विश्राम किया ।' लूका 23:56, कृपया पद 52 से देखें । इस संदर्भ को देखने पर एक ही सम्भावना दिखाई देती है । वार्षिक सब्त के बाद, छोडी न जाने वाली रोटी के पर्व का वह दिन गुरुवार को इत्र व मसाले खरीदे और उन्हें तैयार किया और तब साप्ताहिक सब्त के दिन जो शनिवार था, इन्होने विश्राम किया, जो आज्ञा के अनुसारा किया(निर्गमन 20:8 - 11 )
इन दोनों संदर्भों की तुलना करने पर प्रमाणित होता है उस सप्ताह दो सब्त थे । इन दोनों के मध्य एक दिन था अन्यथा ये संदर्भ विरोधाभाषी हो जाते। इस तरह प्रभु यीशु अपने ही कथन के अनुसार क्रूसीकरण के बाद कब्र में रखने के तीसरे दिन उसी समय शनिवार को जी उठे, लेकिन मरियम मगदलीनी व अन्यों ने उन्हे रविवार की भोर देखा । सप्ताह का अंतिम शनिवार 'सब्त' व विश्राम का दिन होने से वे लोग कब्र पर नही गए।
(लेखक - बापू परमार)
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