भ्रांति - 25 दिसंबर (बड़ा दिन संबंधित)

25 दिसम्बर, बड़ा दिनःकब, कहां और कैसे?

क्या आप जानना चाहेगे कि बडा दिन या क्रिसमस 25 दिसम्बर को क्यों और कबसे मनाना शुरु हुआ? विद्वानों ने बडा दिन 25 दिसम्बर के अतिरिक्त अन्य तारीखों को भी मनाने पर बडा गंभीर चिंतन-मनन किया है और अंत में 25 दिसम्बर ही बड़े दिन के रूप में मनाना तय हुआ। उसके बाद सारा संसार 25 दिसंबर को ही बड़ा दिन मनाता आ रहा है। बडा दिन 25 दिसम्बर को मनाया जाए । यह परम्परा यूरोप से शुरू हुई, जो आज तक निभाई जा रही हैं।

अब देखिए, यह भी कितना विचित्र है कि बडे दिन का प्रादुर्भाव अर्थात् प्रभु यीशु का जन्म जो एशियाई देश याने इसराइल में हुआ, लेकिन बडा दिन कब मनाया जाए? इसका निर्धारण यूरोपीय देश और यूरोपीय विद्वानों ने किया। काफी गंभीर चिंतन-मनन के बाद यह स्थापित सत्य पाया गया कि मसीह का जन्म एपिफेनी से निकट संबंधित है। प्रभु के चेले मरकूस ने जो सुसमाचार लिखा है, उसका प्रारंभ उसने मसीह के जन्म से ही नहीं, बल्कि प्रभु यीशु के बपतिस्में से किया है। ( मरकुस 1:9 ) लेकिन विश्व के कई बर्डे एवं शक्तिशाली चर्च ने बड़े दिन को एपिफेनी के कई वर्षों बाद अपनाया । बडे दिन को कैलेण्डर में लेने पर भी विद्वानों में एकमत नहीं था। कोई 6 जनवरी, कोई 25 मार्च और कछ विद्वान 25 दिसंबर को बड़े दिन के रुप में कैलेण्डर में शामिल करने पर जोर देते रहे। अपने कथन के पीछे वे प्रायः जोरदार तर्क भी देते थें लेकिन बडा दिन अर्थात् यीशु का जन्म 25 दिसंबर को हुआ। इसका प्रथम प्रमाण एन्टियाक के थियोफिसिस में पहली बार मिला। यह पुस्तक लेटिन भाषा में ओर यह ई. सन् 171 - 183 के आसपास लिखी गई थी इसमें लिखी गई थी। इसमें लिखा है कि 'गालस' लोग प्रभु का जन्मदिन 25 दिसंबर को ही मनाते थे, चाहे वह सप्ताह का कोई भी दिन हो। इसी कारण वे 25 मार्च को पुनरुत्थान का दिन अर्थात् 'पाशा' का दिन भी मनाते आए थे।

25 दिसंबर ही बडा दिन है, इसका दूसरा संकेत हिपोलिट्स की टिप्पणी में मिलता है। हिमोलिट्स की टिप्पणी डानियल 4:23 पर है। उसमें उसने लिखा है कि यीशु का जन्म बैथलेहम में आगस्ट्स के राज्यकाल के 42 वें वर्ष में बुधवार 25 दिसम्बर को हुआ था, परंतु हिपोलिट्स ने अपने इस विवरण में ऐसा कहीं जिक नहीं किया कि इस दिन को तब बड़े दिन के उत्सव के रूप में मनाया जाता था । रुढ़िवादीयों से भी उनके विचारों का मेल नहीं होता है। लेविटिक्स के आवें होमिली में वह यीशु के जन्म और यीशु को फिरौन राजा से तुलना करने के विचार को भी पाप मानता है ।

यीशु का जन्म 25 दिसंबर को ही हुआ। इसका एक और सशक्त प्रमाण मिला। यह प्रमाण 354 ई. सन् में लैटिन कोनोग्राफर मामयेन ने प्रकाशित किया। उसने लिखा कि यीशु का जन्म सिजर और पौलूस के काल में 25 दिसंबर को हुआ था और यह दिन शुक्रवार का था, यह नए चंद्रमा पर पंद्रहवा दिन था। परंतु यहां पर भी उन दिनों 25 दिसंबर को किसी तरह का उत्सव मनाने का कोई वर्णन नहीं है।

बाद में भी यीशु के जन्मदिन की तारीखों पर अनेक अटकलें और चर्चाएँ चलती रहीं । यहाँ तक कि इस मामले पर दूसरी शताब्दी तक कई अटकलों का जन्म हुआ। एलेकजेण्ड्रिया का क्लेमेंट भी इस प्रकार की कई अटकलों का जन्मदाता माना जाता हैं उसने कई अटकलों की ओर इशारा किया और यह भी कहा कि ये अटकलें केवल कल्पनिक हैं। वह कहता है कि कुछ इतिहासकार बताते हैं कि यीशु का जन्म अगसतुस राजा के शासनकाल के 28 वें वर्ष में मिस्त्री महीने पाशोन की 25 तारीख को हुआ था। इस तारीख के अनुसार ईस्वी सन् में यह जन्मदिन 20 मई को आता है।

यीशु के जन्म के संबंध में कुछ संदर्भ और भी है, जो इस प्रकार है। कुछ विद्वानों का मानना है कि फारमुथी माह की 24 या 25 तारीख को अर्थात् 19 या 20 अप्रैल को यीशु का जन्म हुआ था। लेटिन ट्रेक्ट के अनुसार जो अफ्रीका में लिखा गया, यीशु का जन्म 25 मार्च को हुआ। ट्रेक्ट के अनुसार सूर्य और चन्द्रमा बुधवार के दिन बनाए आए थे। मार्च माह में सारी पृथ्वी पूर्णतः सृजी गई थी, इस कारण यीशु धार्मिकता का सूर्य होने के कारण उसका जन्म 28 मार्च को हुआ था ।

इसी प्रकार प्रालिकेप यीशु का जन्म रविवार को मानते हैं। वे कहते है कि रविवार सप्ताह का प्रथम दिन और संसार के सृजन का भी प्रथम दिन था, परन्तु वे यह भी मानते है कि यीशु का बपतिस्मा बुधवार को हुआ। इस आधार पर मनुष्य रूप में यीशु का जन्म 6 जनवरी से 25 दिसंबर में बदल दिया गया ।

सीरियन्स और आर्मीनियन्स इस विचार पर जोर देते थे कि यीशु का जन्म 6 जनवरी को हुआ था। वे रोमियों पर आरोप लगाते थेकि वे सूर्य की पूजा करने से मूर्तिपूजक हैं। अतः संभवतः 25 दिसंबर का बडे दिन का उत्सव सर्नियस के चेलों द्वारा निर्मित किया गया। इस दिन को यीशु के मनुष्य रूप में प्राकृतिक जन्म के उत्सव के रूप में मनाए ।

किसोसटोम भी स्वीकार करता है कि 25 दिसंबर की मान्यता पश्चिम से आई प्राचीन काल के अनेक विद्वानों की मान्यता है कि यीशु का जन्म कुवांरी मरियम से 6 जनवरी को हुआ और यीशु के जन्म कुवांरी मरियम से 6 जनवरी को हुआ और यीशु के जन्म को उत्सव के रूप में उस काल में काना के विवाह के साथ मनाया जाता था। क्रिसोसटोम ने 20 दिसम्बर 386 या 388 ई. में जो उपदेश एन्टियाक में दिए थे, कहा था पश्चिम देशों के कुछ लोग यीशु के जन्म का उत्सव 25 दिसंबर को मनाते थें, यीशु के जन्म को उत्सव के रूप में मनाने की परम्परा पश्चिम में जन्मी और पूर्व की ओर आई और यहां भी 25 दिसंबर को यीशु का जन्मोत्सव क्रिसमस या बड़े दिन के रूप में मनाया जाने लगा। सबसे पहली बार 387 ई. मॅजुलियन कैलेण्डर में 25 दिसंबर को यीशु के जन्म और नए उत्सव के रुप में स्थान दिया गया। ई. सन् 400 से रोम में इसे उत्सव के रूप में मनाने की रोमन साम्राज्य की स्वीकृति मिल गई। इसी के बाद मसीहियों के तीन प्रमुख उत्सव ईस्टर, एपिफनी और क्रिसमस को 514 ई. सन् में शासकीय स्वीकृति प्राप्त हुई ।

लेकिन इसके पूर्व 353 ई. सन् तक यीशु के जन्म का उत्सव उसके बपतिस्में के दिन अर्थात् 6 जनवरी को ही मनाया जाता रहा था । यरुशलेम में बिशप जूबोनल ने 25 दिसंबर को यीशु के जन्मदिन के रुप किया। धीरे-धीरे सारे संसार में यीशु मसीह के जन्म का उत्सव 25 दिसंबर को ही मनाया जाने लगा - (आर्थर सनी )

कैसे शुरू हुआ बडा दिन 25 दिसम्बर को

संसार में आज कल 6 अरब में से लगभग 4 अरब लोग बड़े दिन को एक महत्वपूर्ण त्यौहार मानते है। बड़े दिन की विशेष तैयारियां होती है, परन्तु बहुत कम इस पर विचार करते हैं कि बडे दिन का आरम्भ कैसे हुआ ?

बडे दिन सम्बन्धी आरम्भ का इतिहास अंधकार में है। मसीहीयों को ईसा के जन्मदिन की तारीख की इतनी चिन्ता नही थी। बाद में लोग इस पर विचार करने लगे और ईसा के जन्मदिन की तारीख पर चर्च के अगुओं में बहुत मतभेद था। धीरे-धीरे एक तारीख तय की गई। एलेक्जेन्ड्रिया का एक व्यक्ति था क्लेमेंट । इसने मसीही धर्म को स्वीकारा और वर्तमान शब्द में वह बाइबल स्कूल का प्राचार्य सन् 190 में बना। उसे बडा आश्चर्य हुआ कि कुछ इतिहासकारों ने प्रभु के जन्मदिन, महीना व सन् के बारे में अपने विचार व्यक्त किए हैं। प्रारंभ में ईसा की जन्म तारीख 20 मई, 19 या 20 अप्रैल और 6 जनवरी मानी जाती थी। 6 जनवरी कई वर्षो तक जन्म तारीख मानी गई।

क्लेमेंट का एक विद्यार्थि ओरिजेन था। जिसने क्लेमेंट की मृत्यु के बाद उसका पद सम्हाला । ओरिजेन यूनानी दर्शन का प्रकांड पंडित था । उसने बाइबल का अध्ययन किया ओर इस बात का खंडन किया कि इसे मसीही भी क्यों मनाते हैं। बाद में जुलियस प्रथम जो सन् 337 से 352 तक पैतीसवां पोप रहा उसने क्रिसमस की तारीख 25 दिसम्बर चुनी। इस प्रकार चौथी शताब्दी से 25 दिसम्बर को बड़ा दिन मनाया जाने लगा ।

• आरंभ में बड़ा दिन सादगी से मनाया जाता था। धीरे- धीरे कई गिरजों में गाने, ड्रामें, झांकियां बनाना आरंभ हुआ। पांचवी सदी में गिरजों में गाने गाए जाने लगें। कुछ स्थानों पर केम्प फॉयर तथा एक-दूसरे को ईनाम वितरण शुरु हुआ । ऐसा माना जाता है कि ब्रिटिश मिशनरी बोनिफिस जो जर्मनी का प्रेरित माना जाता है, उसने आठवी शताब्दी में जर्मनी में क्रिसमस ट्री की शुरुआत की। उसने ओक वृक्ष की लकड़ी से एक पूरा गिरजाघर बनाया था। तैरहवीं शताब्दी में असीसी के फ्रांसिस ने क्रेच' अर्थात् ईसा के जन्म संबंधी दृश्य मैदान में बनाना शुरू किया उसने क्रिसमस कैरॉल की भी शुरुआत की।

यह धर्म पुस्तक से बाहर का विवरण है। बाइबल केइतिहास को हम सब जानते हैं । मती 2:1 यद्यपि मसीह की जन्म तारीख का इतना महत्व नहीं हे जितना कि उसके जन्म का है । परन्तु उसे खोज निकालना आवश्यक हैं (प्रेरितों के काम 17:27 ) - आर्थर सनी

ख्रिष्ठ जयंती: वास्तविक सन् तथा दिन

बहुत विद्वानों ने गहन जाँच पड़ताल तथा विचार मंथन के पश्चात् प्रभु यीशु के जन्मदिन तथा सन् का निर्धारण किया हैं। ईस्वी सन् का निर्धारण प्रभु की अनुमानित जन्मतिथि के आधार पर दिनानुस एक्सीगुस नामक विद्वान (मृत्यु लगभग 550 ई.) ने किया था। पर अब यह प्रमाणित हो गया कि प्रभु यीशु का जन्म ई.पू. 6 में क्विरिनियस के शासन में नाम लिखवाई (लूका 2:1 ) का समय माना है।

इस प्रकार ख्रीष्ट जयन्ति पर भी तीसरी सदी के पहले वर्षों से विचार- विमर्श होता रहा हैं। उदाहरणार्थ सिकंदरिया के क्लेमेंत सन्त (150 ई. 215 ई.) ने 20 मई का सुझाव प्रस्तुत किया। 25 दिसम्बर के दिन को मसीह के जन्मदिन के रूप में मनाने का प्रारंभ 336 ई. से हुआ। जहाँ फिलोकाली जंत्री में एक रोमी प्रथा का वर्णन है जिसके अनुसार 25 दिसम्बर को यहूदिया के बैतलहम में मसीह का जन्म हुआ । यह दिन इसलिये चुना गया क्योंकि यह दिन प्रसिध्द गैरमसीही त्यौहार "अविजेय सूर्य” के जन्मदिन के रुप में मनाया जाता था ।

महान रोमन साम्राज्य में अविजेय सूर्य का जन्म दिवस भारी शान-शौकत से पर बहुत ही वीभत्सतापूर्वक मनाया जाता था। इस दिन हजारों नरबलियां, पशुबलियां सूर्य को चढ़ाई जाती थी। मनोरंजन के लिए हजारों निरीह कैदियों को बड़ी पाशविकतापूर्वक मौत के घाट उतार दिया जाता था । हजारों मसीही जन खेल-खेल में अपने विश्वास के कारण मार दिए जाते थे। कालांतर में जब रोमी शासन ने मसीही धर्म की सत्यता जानी और शनैःशनैः अपने घिनौने धर्म की नश्वरता तथा व्यर्थता से परिचित हुए तो समस्त रोमी शासन अपने झूठे तथा पापयुक्त धर्म को त्यागकर मसीह की शरण में आ गए।

मसीही के जन्म से सैकड़ों हजारों वर्ष पूर्व से ही अनेकों भविष्यवक्ताओं द्वारा मसीह से संबंधित अनेकों भविष्यवाणियां की जाती रही, इसी तारतम्य में 538 ई. पू. में मलाकी नामक भविष्यवक्ता ने भी मसीह के सन्दर्भ मैं कई भविष्यवाणी की थी। उस मसीह को 'धर्म का सूर्य' की उपमा दी थी ।(मलाकी 4:2) अतः 336 से यह प्रथा प्रारंभ हुई कि 25 दिसम्बर सूर्य के जन्म के स्थान पर 'धर्म के सूर्य' मसीह के जन्म दिवस के रुप में मनाया जाए। रोम से प्रारंभ यह त्यौहार शीघ्र ही समस्त जगत में फैल गया। पर्व में प्रभु प्रकाशन का उत्सव 6 जनवरी जो ख्रीष्ट के बपतिस्मे के स्मरणार्थ होता था। पहले पहल अधिक महत्वपूर्ण माना जाता था, परन्तु 4 थी सदी से उसका संबंध ख्रीष्ट जन्म से किया जाता था। विशेषकर सीरिया में पांचवीं सदी के मध्य तक पूर्वीय कलीसिया के अधिक भाग में 25 दिसंबर को ख्रीष्ट जयन्ति मान लिया गया । परन्तु 549 ई. तक यरुशलेम की कलीसिया 6 जनवरी को ही ख्रीष्ट जयन्ति के रूप में मनाती हैं।

दरअसल प्रथम मसीही काल से ही मसीह से संबंधित जयन्ति के दिन से अधिक महत्व उनकी शिक्षाओं, क्रियाकलापों को दिया जाता रहा है, क्योंकि प्रत्येक मसीही लेखकों के लेखन का उद्देश्य मसीह की शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार कर सामाजिक बुराईयों को मिटाना था अतः उन्होनें इतिहास का आंशिक वर्णन करते हुए मसीह को अपनी लेखनी का केन्द्र बिन्दु बनाकर सृजन कार्य किया, प्रत्येक मसीही ने जयन्तियों के समय-काल से अधिक उसके महत्व संजय पीटर पर ध्यान दिया।

बाइबल और बड़ा दिन ?

पूरी बाइबिल में जन्मदिन मनाने का सिर्फ दो बार जिक है, उत्पति 40:20-22 में फिरौन का जन्मदिन और मती 14:6 - 11 (जिसकी पुनरावृति मरकस 6:21-28 में हैं) में हैरोदेस का जन्म दिन। आप से महज इतफाक कह सकते हैं, मगर दोनों ही जन्मदिन पर एक-एक हत्या हुई। यह बताने की जरुरत नही कि प्रभु यीशु मसीह के जन्म के समय (साल, महीना, दिन) की बाइबिल में कहीं कोई चर्चा नहीं ओर न ही उनके जन्मदिन पर किसी जश्न मनाए जाने का कोई उल्लेख है। पूरब से जो ज्योतिषि उनके दर्शन को आए थे और अपने साथ बेशकीमती उपहार) लाए थे, वे प्रभु के जन्मदिन के महीनों बाद आए होगे, क्योंकि उन्होने पूरब में पहले उनका तारा देखा और इसके बाद ही हजारों मील की दूरी तय करके (भारत) फिलस्तीन पहुंचे होगें ।

जो भी हो, 25 दिसंबर को उनका जन्म नहीं हुआ, जिस समय स्वर्गदूतों ने प्रभु यीशु मसीह के पैदा होने की खबर गडरियों को दी, वे खुले मैदान में अपनी भेडों की रखवाली कर रहे थें। (लूका 2:8) फिलिस्तीन में दिसंबर से लेकर फरवरी तक कडाके की सर्दी पडती है, इसलिए अक्टूबर के बाद से ही वहां के गडेरिये भेडों को रात के समय खुली जगहों में नहीं रखतें दूसरी बात यह कि प्रभु यीशु मसीह के जन्म के समय हर औरत और बच्चे को अपने पास के शहर जाकर अपना-अपना नाम लिखवाना था। किसी-किसी को काफी लम्बी यात्रा करनी पडती थी, जिसके लिए दिसंबर का महीना कतई उपयुक्त नहीं था खासकर गर्भवती और दूधपिलाती महिलाओं के लिए। प्राचीनकाल के सभी इतिहासकार मानते हैं कि रोम के कानून - कायदे अत्यंत युक्तिसंगत थें सर्दी कितनी भयानक हुआ करती थी, यह जानने कि लिए ये दो उदाहरण पर्याप्त होगें-

भाकल पूराने नियम में युसुफ लबान से शिकायत के लहजे में कहता है, मेरी तो यह दशा थी कि दिन को तो घाम और रात को पाला मुझे खा गया (उत्पति 31:40) स्वयं प्रभु यीशु ने अपने चेलों से कहा, प्रार्थना किया करो कि तुम्हें जार्डे में या सब्त के दिन भागना न पड़ें। (मती 24:20)

प्रभु यीशु के जन्म के समय का अनुमान इन तथ्यों के आधार पर लगाया जा सकता हे, युहन्ना बपतिस्मा देने वाले का जन्म उनके जन्म उनके जन्म से छ महीने पहले हुआ था लूका 1:5 के अनुसार, जब अबिय्याह के दल में जकरयाह याजक था, स्वर्गदूत ने नौ महीने बाद यूयहन्ना के जन्म की पूर्व घोषणा की अबिय्याह के दल का निर्धारित समय इब्रानी महीने ईयार 27 से सीवान 5 (यानी जून 1 से 8 तक) था। इसके एक हफ्ते बाद, चूँकि वह हफ्ता पिन्तेकुस्त का था, जकरयाह यरुशलेम से 20 मील दूर अपने घर आया और उसकी पत्नी इलीशिबा गर्भवती हुई। इस तरह यूहन्ना का जन्म 15 मार्च के करीब हुआ और प्रभु यीशु का ठीक छह महीने बाद, यानी 15 सितंबर के आसपास ।

जन्मदिन चाहे जब भी रहा हो, बाइबिल में न तो क्रिसमस शब्द का कहीं कोई प्रयोग है, न इसे मनाने की प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में कोई आज्ञा । हां, स्वयं प्रभु यीशु ने अपनी मृत्यु को स्मरण कराने के लिए प्रभु भोज की व्यवस्था दीं 1 कुरि, 11:23- 26 एक स्पष्ट आदेश है, जबकि प्रेरित पौलुस कहते हैं.

तुम दिनों और महीनों ओर नियत समयों और वर्षो को मानते हो। मैं तुम्हारे विषय में डरता हूं, कहीं ऐसा न हो कि जो परिश्रम मैने तुम्हारे लिए किया है, व्यर्थ ठहरे । (गलतियों 4:10-11) हममें से बहुत कम लोगों को मालूम है कि क्रिसमस मनाने का रिवाज प्रभु यीशु के जन्म के कई सौ साल बाद शुरु हुआ । दरअसल 5 वीं शताब्दी में रोमन कैथोलिक चर्च ने 25 दिसंबर को मसीह का जन्मदिन मनाने का फरमान जारी किया, चूँकि यह दिन सूर्य देवता के जन्मदिन के रूप में पहले से ही मनाया जा रहा था, कई मसीही विद्वानों ने इस प्रथा का खुलकर विरोध किया । टरटलियन, मीड, आर्चडीकन वुड, लौरीमर, ग्रीसेलर जैसे अनेको नाम गिनाए जा सकते हैं 9 देखें - सर पीटर कींग का एनक्वायरी इन्टू द वरशिप आव द प्रिमीटीव चर्च) क्रिसस्टम अपने Monitum in Hom De Natal Chrisrti खंड 2, पृष्ट 352) में कहते हैं, दस साल भी नहीं हुए इस दिन को मनाए जाने की परंपरा को । यह ग्रंथ 380 में एनिटओक में लिखा गया।

आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि प्रभु मसीह के जन्म से कई सौ साल पहले से ही 25 दिसंबर का दिन बाबिल (बैबिलॅन) रोम, यूनान, मिस्त्र , अरेबिया, वकैरह में विभिन्न देवताओं के जन्मदिन के रुप में मनाया जाता रहा था । सैटरनेलिया, ब्रमेलिया, मेट्रो नलिया, जेनस पर्व, बालाक का जन्मदिन, मिथरा का जन्मदिन, तम्मूज का जन्म दिन । यह दिन औसाइअरिस, होरस, हरक्यूलीज, बैकस, अडौनिस, जूपिटर आदि देवताओं के जन्मदिन के रूप में भी प्रसिध्द था। खासकर यह दिन सूरज ओर चंद्रमा के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता था अरेबिया के लोग चंद्रमा को देवी नही देवता मानते थे, और उसका जन्म दिन 25 दिसंबर को ही मनाते थे। उपहारों का आदान-प्रदान होता था। मौजमस्ती लम्पटता ओर स्वेच्छाचार का नंगा नाच हफ्तेभर चलता था। ऐसा ही कुछ क्रिसमस में नही होता? (अरटलिययन के आइडौलेट्रिया खंड 1, पृष्ठ 682 प्लुटार्क के डी आयसाइड खंड 2 पृष्ठ 377 )

यशायाह 65:11-12 में ऐसे अवसर पर चंद्रमा की पूजा का उल्लेख है, जिससे प्रभु परमेश्वर को सख्त घृणा हैं 'तुम जो यहोवा को त्याग देते और मेरे पवित्र पर्वत को भूल जाते हो, जो भाग्य देवता के लिए मेज पर भोजन की वस्तुएँ सजाते और भावी देवी के लिए मसाला मिला हुआ दाखमधु भर देते हो' मैं तुम्हे गिन-गिनकर तलवार का कौर बनाऊंगा।

रोम में 25 दिसंबर का दिन Natalis Inveis Solis (यानी अजेय सूर्य का जन्मदिन) के रूप में मनाए जाने की पुष्टि ग्रीसेलट ने की हैं। बाबुल देश में यह दिन बाबुल के मसीहे के सम्मान दिवस के तौर पर मनाया जाता था । Christmas अपने आप में एक अत्यंत आपतिजनक शब्द है christ+mass क्राइस्ट (मसीह) के नाम के साथ मास (एक विशेष प्रकार की मूर्ति पूजा पध्दति जिसे प्रोटेस्टेंट कलीसियाएं वचन विरोधी मानती हैं) शब्द जोडकर हम परमेश्वर के पवित्र नाम को अपवित्र करते हैं। (यहेजकेल 20:39)


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