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Showing posts from May, 2021

Sacrifice Centred Prayer & Worship

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 Sacrifice Centred Prayer & Worship Timotiyos I 2:1-4 Orthodox Jewish Bible (OJB)  I urge, therefore, of first importance, davening, techinnah (supplication), tefillah (prayer), bakkashot (petitions), and hodayah (thanksgiving) be made on behalf of kol Bnei Adam (all mankind),  On behalf of malchei eretz (kings) and on behalf of all the ones in authority, that we may lead a life of chayyei menuchah (life of rest) in all chasidus (piety) and yirat Shomayim (reverence).  This is good and acceptable before Hashem Moshieynu,  Who wants kol Bnei Adam to have Yeshu’at Eloheynu (the Salvation of our G-d) and to come to da’as HaEmes (knowledge of the truth).

पवित्र आत्मा के वरदान

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पवित्र आत्मा के वरदान गलातियों 5:22-23 हमें कहता है, “पर आत्मा का फल प्रेम, आनन्द, शान्ति, धीरज, कृपा, भलाई, विश्‍वास, नम्रता और संयम है।” पवित्र आत्मा का फल एक मसीही विश्‍वासी के जीवन में पवित्र आत्मा की उपस्थिति के फलस्वरूप आता है। बाइबल स्पष्ट कर देती है कि प्रत्येक व्यक्ति यीशु मसीह को ग्रहण करते समय पवित्र आत्मा को प्राप्त करता या करती है ( रोमियों 8:9; 1 कुरिन्थियों 12:13; इफिसियों 1:13-1 4)। एक मसीही विश्‍वासी के जीवन में आने का पवित्र आत्मा का एक प्राथमिक उद्देश्य उस जीवन को परिवर्तित कर देना है। यह पवित्र आत्मा का कार्य है कि वह हमें मसीह के स्वरूप में, उसके जैसे बनने के लिए ढालते चला जाए। पवित्र आत्मा का फल गलातियों 5:19-21 में लिखे हुए पाप के स्वभाव से होने वाले कार्यों की तुलना में एकदम विपरीत है, "शरीर के काम तो प्रगट हैं, अर्थात् व्यभिचार, गन्दे काम, लुचपन, मूर्तिपूजा, टोना, बैर, झगड़ा, ईर्ष्या, क्रोध, विरोध, फूट, विधर्म, डाह, मतवालापन, लीलाक्रीड़ा और इनके जैसे और और काम हैं, इनके विषय में मैं तुम से पहले से कह देता हूँ जैसा पहले कह भी चुका हूँ कि ऐसे ऐसे काम करने ...

भाग 5 कौन प्रचार कर सकता है?

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  भाग 5 कौन प्रचार कर सकता है? (अ) प्रभु यीशु के शिष्य: प्रभु यीशु मसीह ने स्वर्गारोहण से पहले अपने चेलों को आज्ञा दिया। मरकुश 16ः15 ‘‘और उसने उनसे कहा, तुम संपूर्ण जगत में जाओ और सारी सृष्टि को सुसमाचार प्रचार करो।’’ इन पदों से साफ प्रगट होता है कि प्रभु यीशु ने अपने चेलों को प्रचार करने लिए कहा। क्योंकि प्रभु यीशु को उन पर विश्वास था। वे चेले प्रभु के सामथ्र्य को जानते थे। उससे प्रेम करते थे और परमेश्वर की योजना से परिचित हो गये थे।  चेलों को आदेशः- मरकुस 6ः7 ‘‘बारहों को (बारह चेले) बुलाकर उन्हें आदेश दिया।’’ मरकुस 6ः12 ‘‘और उन्होंने जाकर मनफिराव का प्रचार किया’’। इस पद से हमें और भी साफ रीति से पता चलता है कि प्रभु यीशु ने अपने चेलों को आदेश दिया कि जाकर प्रचार करो।  (ब) चुने हुये लोगः लूका 10ः1 ‘‘और इन बातों के बाद प्रभु यीशू ने सत्तर और लागों को नियुक्त किया। (अर्थात चुना) की वे उससे पहले उसका प्रचार करे’’। लूका 10ः19 ‘देखो मैंने तुम्हे सापों और बिच्छुओं को रौंदने का और शत्रुओं की सारी सामर्थ पर अधिकार दिया है। ‘ यूहन्ना 15ः16 ‘तुमने मुझे नहीं चुना परंतु मैंने तुम...

भाग 6 सुसमाचार प्रचार कैसे करें?

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  भाग 6 सुसमाचार प्रचार कैसे करें? प्रचार कैसे करें इस बात को समझने के लिये हमें तीन बातों पर ध्यान देना होगा। (1) सुसमाचार प्रचार के पहले की तैयारी (2) ऊंचे शब्द के साथ प्रचार (3) व्यक्तिगत सुसमाचार प्रचार। (1) सुसमाचार प्रचार के पहले की तैयारी:- एक विद्यार्थी जब परीक्षा देता है तो परीक्षा से पहले वो परीक्षा की तैयारी करता है। वह पढ़ता है व सीखता है। जो पढ़ता है उसे याद भी रखता है ताकि वह परीक्षा में उत्तर अपनी तैयारी के अनुसार लिख सके। जैसे एक वि़द्यार्थी का पढ़ना आवश्यक है उसी प्रकार एक प्रचारक को सा संदेश देने वाले को परमेश्वर का वचन नितांत आवश्यक है।  स्तिफनुस ने जब प्रचार किया तब उसने पुराने नियम पर विस्तार से प्रकाश डाला। यदि उसने पुराने नियम का अध्ययन नहीं किया होता तो उसके पुराने नियम पर प्रकाश डालना मुश्किल होता। प्रभु यीशु मसीह ने भी अपने चेलों को अपने साथ रखकर उन्हें सिखाया। प्रेरितों के काम 2ः42 ‘ और वे प्रेरितों से शिक्षा पाने और संगति रखने में, और रोटी तोड़ने में, और प्रार्थना करने में लौलीन रहें। एक प्रचारक को जब वह प्रचार करता है तो उसे इन चारों बातों को पूरा कर...

भाग 7 सुसमाचार प्रचार का विषय

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भाग 7 सुसमाचार प्रचार का विषय  (1) परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार (2) परमेश्वर के अनुग्रह का सुसमाचार (3) उद्धार का सुसमाचार (4) महिमा का सुसमाचार (5) शांति या मेलमिलाप का सुसमाचार (6) सत्य का सुसमाचार।  यह परमेश्वर की इच्छा है कि लोग प्रभु यीशु के सुसमाचार को सुनें। जब प्रभु यीशु का जन्म हुआ बहुत से गड़ेरिये मैदान में अपने भेड़ो को चरा रहे थे। तो उनको स्वर्गदूतों द्वारा यह पहला सुसमाचार प्राप्त हुआ। लूका 2ः10 ‘तब स्वर्गदूत ने उनसे कहा, मत डरो, क्योंकि देखो मैं तुम्हें बड़े आनन्द का सुसमाचार सुनाता हूं जो सब लोगों के लिये होगा, कि आज दाऊद के नगर में तुम्हारे लिए एक उद्धारकर्ता जन्मा है और यही मसीह प्रभु है। यही तो सुसमाचार है कि हमारे लिए एक उद्धारकर्ता जन्मा है, प्रभु यीशु मसीहा स्वर्गदूत ने कहा जो सब लोगों के लिए होगा। तो हमें यह समझना होगा कि प्रभु यीशु मसीह का जन्म संसार के प्रत्येक व्यक्ति के लिए है। और यह परमेश्वर की योजना है कि लोग प्रभु यीशु के द्वारा उद्धार पांए। तो यह चुने हुये लोगों का कर्तव्य बनता है कि प्रत्येक मनुष्य का सुसमाचार अवश्य पहुंचाना है। सुसमाचार प्रचार कै...

भाग 4 कहां और किसको प्रचार करें?

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 भाग 4 कहां और किसको प्रचार करें? प्रचार करने के लिये जगह की कोई कमी इस संसार में नही है जहां भी परमेश्वर का वचन सुनाना चाहें सुना सकते हैं। सुसमाचार सुनाने के लिए हम जो भाषा जानते हैं, हमें यह समझना चाहिए कि उसी भाषा में प्रचार करने की आवश्यक्ता है। हम जहां रहते है वहां पर प्रचार की आवश्यक्ता है। प्रचार करने का कोई सीमित स्थान नहीं है। प्रचार का स्थान:- मरकुस 16ः15 ‘‘और उसने उनसे कहा तुम सारे जगत में सारे सृष्टि के लोगों को सुसमाचार प्रचार करो’’। इस पद से हमें यह पता चलता है कि परमेश्वर की इच्छा यह है कि संसार में व पूरे संसार की सृष्टि के लोगों को सुसमाचार सुनाया जाये।

भाग 3 ईश्वरीय इच्छा

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 भाग 3 ईश्वरीय इच्छा प्रभु यीशु के जन्म के समय स्वर्गदूतों द्वारा सुसमाचार सुनाया गया। यदि ईश्वर की इच्छा नहीं होती तो परमेश्वर अपने स्वर्गदूतों को संदेश देने हेतु नहीं भेजता। लूका 2ः10 ‘‘तब स्वर्गदूत ने कहा - मत डरो, क्योंकि देखो मैं तुझे बड़े आनन्द का सुसमाचार सुनाता हूं जो सब लोगों के लिए होगा, कि आज दाउद के नगर मेें तुम्हारे लिये एक उद्धार कर्ता जन्मा है।’’ इस पद से यह साफ प्रगट होता है कि सुसमाचार सब लोगों के लिये है। और सबको सुसमाचार सुनाया जाये यही परमेश्वर की इच्छा है। यशायाह 41ः27 ‘‘मैं ही ने पहिले सियोन से कहा देखो उन्हें देख और मैंने यरूशलेम को एक शुभ समाचार देने वाला भेजा।’’ इस पद से यह साफ प्रगट होता है शुभ समाचार या सुसमाचार परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप प्रभु यीशु मसीह के द्वारा इस संसार में आया। यशायाह 52ः7 ‘‘उनके पांव क्या ही सुहावने है जो शुभ समाचार लाता है’’। परमेश्वर का वचन बताता है, उनके पांव सुहावने हैं। जो शुभ समाचार या सुसमाचार लाना या प्रचार करना यह परमेश्वर की इच्छा है।  आज संसार के सामने प्रचार मूर्खता है। या प्रचार कार्य को मूर्खता का कार्य समझते है...

भाग 2 सुसमाचार प्रचार की आवश्यक्ता

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  भाग 2  सुसमाचार प्रचार की आवश्यक्ता (1) आवश्यक्ताः सामान्यतः यह देखा गया है कि यदि कोई कार्य मनुष्य करता है तो उसकी आवश्यक्ता होना जरूरी है। यदि कोई कार्य हम करते है और उसकी आवश्यक्ता न हो तो वह कार्य व्यर्थ ठहरता है। हम इसको इस बात से समझ सकते है। कि किसी छोटे से गांव में बड़े-बड़े दुकान, बड़े-बड़े मकान बनवा दिये जाएं परन्तु उनको खरीदने वाला उसमें कोई न हो तो वह सारी बातें व्यर्थ ठहरती हैं। इसी प्रकार प्रचार की आवश्यक्ता नहीं होता तो प्रचार करना भी व्यर्थ ठहरता। परंतु प्रचार की भी आवश्यक्ता है। लूका 10ः2-3 ‘और उसने कहा पके खेत तो बहुत हैं परंतु मजदूर थोड़े है। आज भी बहुत से लोग जिनको पहले से परमेश्वर ने चुना है उनको सिर्फ परमेश्वर का वचन सुनाना है। वे परमेश्वर के वचन को ग्रहण कर सकते हैं। परमेश्वर के वचन को सुनाने की आवश्यक्ता है। (अ) नीनवे की आवश्यक्ताः नीनवे शहर को सिर्फ परमेश्वर के वचन सुनाने वालो की आवश्यक्ता थी परमेश्वर ने नीनवे शहर में जब योना नबी को भेजा तो योना नहीं जाना चाहता था परन्तु जब दूसरी बार परमेश्वर का वचन उसके पास पहुंचा तब योना वहां गया। योना 3ः1 ‘‘तब यहोवा...

शैतान कैसे हमारी प्रार्थनाओं को रोकता है ! स्वर्गीय स्थानों में युद्ध!

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  शैतान कैसे हमारी प्रार्थनाओं को रोकता है ! स्वर्गीय स्थानों में युद्ध !  द्वारा: जौन मुलीन्ड, आबस्टीग ( आस्ट्रीया ) नवम्बर 2000      www.divinerevelations.info/combat मै आपके साथ, किसी व्यक्ति की गवाही मे से कुछ बांटना चाहता हूँ। उस व्यक्ति का उद्धार हुआ था । वह एक ऐसा व्यक्ति था जो पहिले शैतान की सेवा करता था । जब उस व्यक्ति ने अपनी गवाही दिया तो उसने मुझे ऐसी चुनौती दी , कि मै उसपर विष्वास नहीं करना चाहता था। मुझे दस दिन तक उपवास करना पड़ा, इससे पहिले कि मैं प्रभु के पास जाकर पुछू कि ‘‘ हे प्रभु , क्या यह सच है ? ’’ यह वह समय था, जब  प्रभु ने मुझे सिखाना आरम्भ किया कि जब हम प्रार्थना करते हैं, उस समय आत्मिक लोक के क्षेत्रों में क्या क्या होता है। उसके माता-पिता ने अपने आपको लूसीफर (शैतान) को अर्पित करने के बाद इस व्यक्ति का जन्म हुआ था। जब वह गर्भ  ही में था, तभी उन्होंने उसे भी लूसीफर की सेवा हेतु अर्पण कर दिया था। उसने चार वर्श की आयु से ही अपनी आत्मिक शक्ति को काम में लाना आरम्भ कर दिया था, जिसके कारण उसके माता पिता भी उससे डरने लगे। जब वह छह वर्...