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Showing posts from November, 2022

पवित्र आत्मा पाने की बाईबिल की विधि भाग 2

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  अध्याय - 2 ठहरना (बाट जोहना) या न ठहरना (लेखक केनेथ ई. हेगिन) एक बैपटिस्ट युवक प्रचारक के रूप में पवित्र आत्मा में बपतिस्मा पाने के बाद और पूर्ण सुसमाचारीय लोगों के बीच में आने के बाद और पूर्ण सुसमाचारीय लोगों के बीच में आने के बाद, मैंने पवित्र आत्मा में बपतिस्मा के विषय में उस प्रकार कभी भी सेवा नहीं की जैसे वे करते थे। उन दिनों (1937-39) में, देश के, कम से कम हमारे क्षेत्र में, जितने भी पूर्ण सुसमाचारीय लोगों को मैं जानता था (वे सभी) प्रत्येक व्यक्ति को ‘‘ठहराते’’ थे। उन्होंने इस परम्परा को लूका 24 (अध्याय) से लिया था, जहां यीशु ने कहा, ‘‘जब तक स्वर्ग से सामर्थ न पाओ, तब तक तुम इसी नगर (यरूशलेम) में ठहरे रहो (पद 49)। वास्तव में पवित्र आत्मा पाने का कोई भी सूत्र (नियम) नहीं है। यदि (लूका 24ः49) एक सूत्र ही है, (तब) हमें शब्द ‘‘इसी नगर (यरूशलेम)’’ हटाने का क्या अधिकार है? यीशु ने कहा, ‘‘तुम इसी नगर (यरूशलेम) में ठहरे रहो।’’ उनके लिए ठहरना जितना महत्वपूर्ण  था उतना ही महत्वपूर्ण यरूशलेम में (उपस्थित) होना था, क्योंकि परमेश्वर की योजना के अनुसार पवित्र आत्मा को उंडेले जाने का...

पवित्र आत्मा पाने की बाईबिल की विधि

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अध्याय - 1 पवित्र आत्मा एक दान है (लेखक केनेथ ई. हेगिन) और मैं पिता से विनती करूंगा और वह तुम्हें एक और सहायक देगा, कि वह सर्वदा तुम्हारे साथ रहे। अर्थात सत्य का आत्मा, जिसे संसार ग्रहण नहीं कर सकता, क्योंकि वह न उसे देखता है और न उसे जानता है, तुम उसे जानते हो, क्योंकि वह तुम्हारे साथ रहता है, और वह तुम में होगा। ( यूहन्ना 14ः16-17 ) इसी यीशु को परमेश्वर ने जिलाया, जिस के हम सब गवाह हैं। इस प्रकार परमेश्वर के दाहिने हाथ से सर्वोच्च पद पाकर, और पिता से वह पवित्र आत्मा प्राप्त करके जिस की प्रतिज्ञा की गई थी, उसने यह उंडेल दिया है जो तुम देखते और सुनते हो। ( प्रेरितों के काम 2ः32-33) पवित्र शास्त्र में, आत्मा से जन्मा लेने और आत्मा से भर जाने के बीच एक अन्तर है।  जब हमारा नया जन्म होता है, हम अनन्त काल का जीवन पाते हैं। परमेश्वर का जीवन और स्वभाव हमारी आत्मा-हमारे आन्तरिक मनुष्यत्व को नया बनाता है। हम वह ‘‘नई सृष्टि’’ बन जाते है जिसके विषय में 2कुरिन्थियों 5ः17 बोलता है। यूहन्ना 14ः16 में, यीशु ने सहायक (पवित्र आत्मा) के विषय में जोर देते हुए बताया कि संसार उसे ग्रहण नहीं कर सकता, ...

दो प्रतिद्वन्द्वी राजाओं का दृष्टान्त

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 दो प्रतिद्वन्द्वी राजाओं का दृष्टान्त सन्दर्भ:- लूका 14ः25-27, 31-32 - ‘‘और जब बड़ी भीड़ उसके साथ जा रही थी, तो उसने पीछे फिरकर उन से कहा। यदि कोई मेरे पास आए और अपने पिता और माता और पत्नी और लड़के वालों और भाइयों और बहिनों बरन अपने प्राण को भी अप्रिय न जाने, तो वह मेरा चेला नहीं हो सकता। और जो कोई अपना क्रूस न उठाए; और मेरे पीछे न आए; वह भी मेरा चेला नहीं हो सकता। ..........या कौन ऐसा राजा है? कि दूसरे राजा से युद्ध करने जाता हो, और पहिले बैठकर विचार न कर ले कि जो बीस हजार लेकर मुझ पर चढ़ा आता है, क्या मैं दस हजार लेकर उसका साम्हना कर सकता हूं, कि नहीं ? नही तो उसके दूर रहते ही, वह दूतों को भेजकर मिलाप करना चाहेगा।’’ प्रस्तावना एवं पृष्ठभूमि:- यह दृष्टान्त भी प्रभु यीशु मसीह ने गलील से यरूशलेम जाते समय सुनाया। उसके पीछे बड़ी भीड़ थी जो उसे सांसारिक राजा बनाना चाहती थी। लोेग सोचते थे कि इस राजा के द्वारा उन्हें रोमी साम्राज्य के अत्याचारों से मुक्ति मिलेगी। उन्हें प्रभु यीशु मसीह के पीछे चलने का वास्तविक अर्थ नहीं मालूम था। प्रभु यीशु मसीह बड़ी भीड़ और स्वयं के जय जयकार के नारों से जरा भ...

ईश्वरीय चंगाई के विभिन्न चरण - 6

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 विश्वास इस बात पर विश्वास करना है, कि जो कुछ मैंने प्रार्थना में भाग है, वह मुझे मिल गया है। इसी को ‘‘विश्वास’’ कहते है। कई लोग बरसों से परमेश्वर की प्रतिज्ञा की हुई आशीषों के लिये प्रार्थना करते है, किन्तु जब तक वे उसे देख न लें या अनुभव न कर लें। यह विश्वास नहीं करते कि जो कुछ हमने मांगा है, वह हमें मिल गया है, यह तो विश्वास नहीं है।  विश्वास का अर्थ है, कि जिस बात के लिये परमेश्वर ने प्रतिज्ञा की है, और आपने प्रार्थना की है, वह हो गई। इसके पहले कि आप उसे प्रत्यक्ष रूप से देखें या अनुभव करें। वह आपके मिल गई है। ‘‘ऐसा विश्वास केवल परमेश्वर की प्रतिज्ञा पर ही आधारित है’’। यही पर आपको स्वाभाविक मन एंव आपका विश्वास, महानतम संघर्ष करते है। यही आपके तर्क (बुद्धि) एंव परमेश्वर के वचन का राणक्षेत्र है।  आप आरोग्य के लिये प्रार्थना करते है। किन्तु कभी-कभी उत्तर तुरन्त नहीं मिलता है। प्रार्थना के बाद आप पीड़ा या बुखार का अनुभव करते है। परमेश्वर का वचन कहता है।’’ उसके कोड़े खाने से तुम चंगे हुए’’तर्क यह कहता है कि रोग अभी भी है। यदि पर आप को तर्क को छोड़ना है, और परमेश्वर के वचन पर ...

दो कर्जदारों का दृष्टान्त

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दो कर्जदारों का दृष्टान्त        सन्दर्भ :- लूका 7ः36-50 - ‘‘फिर किसी फरीसी ने उससे विनती की, कि मेरे साथ भोजन कर; सो वह उस फरीसी के घर में जाकर भोजन करने बैठा। और देखो, उस नगर की एक पापिनी स्त्री यह जानकर कि वह फरीसी के घर में भोजन करने बैठा है, संगमरमर के पात्र में इत्र लाई। और उसके पांवों के पास, पीछे खड़ी होकर, रोती हुई, उसके पांवों को आंशुओं से भिगाने और अपने सिर के बालों से पोंछने लगी और उसके पांव बार-बार चूमकर उन पर इत्र मला। यह देखकर, वह फरीसी जिस ने उसे बुलाया था, अपने मन में सोचने लगा, यदि यह भविष्यद्वक्ता होता तो जान जाता, कि यह जो उसे छू रही है, कौन और कैसी स्त्री है ? क्योंकि वह तो पापिनी है। यह सुन यीशु ने उसके उत्मेंतर कहा; हे शमौन मुझे तुझ से कुछ कहना है वह बोला, हे गुरू कह। किरी महाजान के दो देनदार थे, एक पांच सौ और दूसरा पचास दीनार : धरता था। जब उनके पास पटाने को कुछ न रहा, तो उसने दोनां को क्षमा कर दिया : सो उनमें से कौन उसे अधिक प्रेम रखेगा ? शमौन ने उत्तर दिया, मेरी समझ में वह, जिस का उस ने अधिक छोड़ दिया : उस ने उस से कहा, तू ने ठीक विचार किया है...

अंतरंग मित्र का दृष्टान्त

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अंतरंग मित्र का दृष्टान्त      सन्दर्भ :- लूका 11ः5-10 - ‘‘और उस ने उन से कहा, तुम में से कौन है कि उसका एक मित्र हो, और वह आधी रात को उसके पास जाकर उस से कहे, कि हे मित्रः मुझे तीन रोटीयां दे। क्योंकि एक यात्री मित्र मेरे पास आया है, और उसके आगे रखने के लिए मेरे पास कुछ नहीं है। और वह भीतर से उत्तर  दे, कि मुझे दुःख न दे; अब तो द्वार बन्द है, और मेरे बालक मेरे पास बिछौने पर है, इसलिए मैं उठकर तुझे दे नहीं सकता ? मैं तुम से सच कहता हूं, यदि उसका मित्र होने पर भी उसे उठकर न दे, तौभी उसके लज्जा छोड़कर मांगने के कारण उसे जितनी आवश्यकता हो उतनी उठकर देगा। और मैं तुम से कहता हूं; कि मांगो तो तुम्हें दिया जायेगा। ढूंढो, तो तुम पाओगे; खटखटाओ, तो तुम्हारे लिये खोला जायेगा। क्योंकि जो कोइ मांगता है, उसे मिलता है; और जो ढूंढता है, वह पाता है; और जो खटखटाता है, उसके लिए खोला जाएगा।’’       प्रस्तावना :- प्रभु यीशु मसीह के जीवन में प्रार्थना का विशेष महत्व था। वह एकान्त में जाकर अपना काफी समय प्रार्थना में व्यतीत करता था। प्रार्थना के कारण वह प्रतिदिन के का...

फलहीन अंजीर के वृक्ष का दृष्टान्त

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फलहीन अंजीर के वृक्ष का दृष्टान्त      सन्दर्भ :- लूका 13ः6-9 - ‘ ‘फिर उस ने यह दृष्टांत भी कहा कि, किसी की अंगूर की बारी में एक अंजीर का पेड़ लगा हुआ था : वह उस में फल ढूंढने आया, परन्तु न पाया। तब उसने बारी के रखवाले से कहा, देख तीन वर्ष से मैं इस अंजीर के पेड़ में फल ढूंढने आता हूं, परन्तु नहीं पाता, इसे काट डाल कि यह भूमि को भी क्यों रोके रहे। उस ने उस को कहा, कि हे स्वामी, इसे इस वर्ष तो और रहने दे; कि मैं इस के चारों ओर खोदकर खाद डालूं। सो आगे को फले तो भला, नहीं तो उसे काट डालना।’’        प्रस्तावना एवं पृष्ठभूमि :- पुराने नियम में उन मनुष्यों की उपमा जो परमेश्वर के वचन के अनुसार चलते थे, फलदायी वृक्षों से की जाती थी। ( भजन संहिता 1ः1-3, यिर्मयाह 17ः7-8 के अनुसार ) मसीही जीवन में आत्मा के फलों के बिना हम विश्वास की गवाही बन नहीं सकते। प्रभु यीशु मसीह ने फलहीन जीवनों के संबंध में स्पष्ट कहा कि जो डालियां फलती नहीं वे काटी जाती हैं और आग में झोंक दी जाती हैं। ( यूहन्ना 15ः2, मत्ती 7ः19 के अनुसार ) आत्मिक फल ही सच्चे मसीही होने का प्रमाण होते हैं। ...

विवाह के भोज में सम्मानित स्थान का दृष्टान्त

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विवाह के भोज में सम्मानित स्थान का दृष्टान्त      सन्दर्भ :- लूका 14ः7-14 - जब उसने देखा, कि नेवताहारी लोग क्योंकर मुख्य मुख्य जगहें चुन लेते हैं तो एक दृष्टांत देकर उन से कहा। जब कोई तुझे ब्याह में बुलाए, तो मुख्य जगह में न बैठना, कहीं ऐसा न हो, कि उसने तुझ से भी किसी बड़े को नेवता दिया हो। और जिस ने तुझे और उसे दोनों को नेवता दिया है; आकर तुझ से कहे, कि इस को जगह दे, और तब तुझे लज्जित होकर सबसे नीची जगह में बैठना पड़े। पर जब बुलाया जाये, तो सबसे नीची जगह जा बैठ, कि जब वह , जिस ने तुझे नेवता दिया है आए, तो तुझ से कहे कि हे मित्र आगे बढ़कर बैठ; तब तेरे साथ बैठनेवालों के साम्हने तेरी बड़ाई होगी। क्योंकि जो कोई अपने आप को बड़ा बनाएगा, वह छोटा किया जाएगा; और जो कोई अपने आप को छोटा बनाएगा, वह बड़ा किया जाएगा।       तब उसने अपने नेवता देने वाले से भी कहा, जब तू दिन का या रात का भोज करे, तो अपने मित्रों या भाइयों या कुटुम्बियों या धनवान पड़ोसियों को न बुला, कहीं ऐसा न हो कि वे भी तुझे नेवता दें, और तेरा बदला हो जाए। परन्तु जब तू भोज करे, तो कंगालों, टुण्डों, लंगड़ो...

ईश्वरीय चंगाई के विभिन्न चरण - 7

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  अस्वस्थ्य (रोग, बीमारी) का आविर्भाव अनेक रोग, शोक, संताप, बन्धन क्लेश, मृत्यु, ये सब मनुष्य के पाप रूपी वृक्ष के फल हैं। रोग-मृत्यु और पाप का एकत्व का सम्बन्ध है। हम इन्हें एक दूसरे से अलग नहीं कर सकते। पवित्रशास्त्र बाइबल कहता है।  परन्तु प्रत्येक व्यक्ति अपनी ही अभिलाषा से सिंचकर और फंसकर परीक्षा में पड़ता है। फिर अभिलाषा गर्भवती होकर पाप को जनती है, और पाप जब बढ़ जाता है तो मृत्यु को उत्पन्न करता है। ( याकूब 1ः14-15 ) पाप के कारण ही मनुष्यों में रोग-मृत्यु आई। एक ऐसी मृत्यु, जो कि मनुष्य की आत्मा को, अपने सृजनहार परमपिता परमेश्वर, जीवन ज्योति एंव शाश्वत परमधाम (स्वर्गिक जीवन) से रहित कर देती है। दूसरे शब्दो में इसी का नाम नरक है। ब्रम्हमोनिषद 2ः4 कहती है- ‘‘पाप का फल नरकादिमास्तु’’ । अर्थात पाप का प्रतिफल अनन्त नरक है। पवित्रशास्त्र बाइबल कहता है:  क्योंकि पाप की मजदूरी मृत्यु है। ( रोमियों 6ः23 ) पवित्रशास्त्र बाइबल में उत्पत्ती नामक प्रथम पुस्तक के अध्याय 1 से 3 अध्यायों पाप और आत्मिक मृत्यु का विश्वासनीय वृतान्त प्रकट करता है, कि हमारे आदि माता-पिता (आदम-हव्वा) को प...