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Showing posts from 2024

क्रिसमस पर दोबारा गौर

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इंटरनेट क्रिसमस संदेशों से भरा पड़ा है। कोई नहीं जानता कि प्रभु यीशु कब पैदा हुआ था।  बेथलहम का अर्थ है 'रोटी का घर'। परन्तु पूरा नाम बेतलेहेम एफ्राता (मीका 5:2) था, जो रोटी और फल को सन्दर्भित करता है। गौरतलब है कि प्रभु यीशु को रोटी और दाखरस के रूप में उनके जन्म के स्थान पर दर्शाया गया है। बेथलहम को पर्वों के समय बलिदान के लिए मेमनों को पालने के लिए भी जाना जाता था। तीर्थयात्रियों को मंदिर के बाजार में लूटा जाता था, इसलिए कई लोग बेथलहम तक 7 किलोमीटर की दूरी पैदल चलकर सीधे चरवाहों से मेमने खरीदना पसंद करते थे । गौरतलब है कि मसीहा के जन्म की खुशखबरी सबसे पहले चरवाहों ने सुनी थी। वे फैंसी कपड़े पहनकर नहीं बल्कि चरवाहों के खुरदरे कपड़े पहनकर आए थे और हो सकता है कि एक मेमना भेंट चढ़ाया होगा। एक और दिलचस्प बात यह है कि अधिकांश ईसाई सोचते हैं कि वह एक गौशाला में पैदा हुआ था, हालांकि पवित्रशास्त्र में कहीं भी इसका उल्लेख नहीं किया गया है। यह सिर्फ इसलिए है क्योंकि 'चरनी' शब्द का उल्लेख किया गया है जिसका अर्थ है एक जानवर का खाने का लकड़ी का डब्बा। अनेक विद्वानों का म...

भ्रांति - यीशु के भारत आने संबंधित

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प्रभु यीशु के भारत आने की परिकल्पना केवल काल्पनिक निकली? विगत कुछ वर्षो से इस परिकल्पना को बहुत अधिक प्रचार-प्रसार मिल रहा है कि मसीह क्रूस की मृत्यु से बचकर अपनी माता मरियम तथा शिष्य यूहन्ना के साथ भारत चले आए थे और शेष जीवन यहीं व्यतीत किया । इस परिकल्पना के अनुसार मृत्यु के पश्चात् यीशु मसीह को श्रीनगर के रोजबल में दफनाया गया और यह कब्र आज तक है। प्रमाणस्वरुप भविष्य पुराण में वर्णित उस घटना को प्रस्तुत किया जाता है जिसमें हिमालय पर्वत प्रदेश में श्वेत वस्त्र धारी महर्षि ईसा, राजा शालिवाहन से मिलकर कहते है. "मैं म्लेच्छ देश में कुंवारी कन्या से उत्पन्न परमेश्वर का पुत्र हूं सत्य, प्रेम तथा करुणा मेरा धर्म हैं। "इस परिकल्पना की सहायतार्थ कुछ विद्वान रुसी यात्री निकोलस नेलोविच द्वारा 1887 में लददाख भ्रमण की डायरी प्रस्तुत करते हैं जिसके अनुसार उतर भारत में मसीह के आने के प्रमाण पाये जाते हैं। निकोलस तथा उसके पश्चात् कलकता के स्वामी अभेदानन्द लद्दाख स्थित, प्रमुख मठ हेमिग्वें पहुंचे तो प्रधान लामा ने प्राचान पाण्डुलिपियों में से पढ़कर सुनाया कि यीशु बुध्दावतार है, समस्त लामाओं...

भ्रांति - इस्टर संबंधित

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महारानी इश्टर जी हाँ, मेरा मतलब महारानी इश्टर से ही है, इस्तेर से नहीं। बेबिलॅन की देवी इश्टर के नाम पर मसीहियों का सबसे महत्वपूर्ण पर्व इस्टर है। पूरी बाइबिल में सिर्फ एक जगह इस्टर शब्द आया है, यानी प्रेरितों 12:4 में - वह भी सिर्फ kjvमें | वह मूल यूनानी शब्द (यास्का) का गलत अनुवाद है। इसका सहीं अनुवाद Passover (फसह का पर्व) होना चाहिए था, जो ASV समेत भारतीय भाषाओँ में अनुवादित बाइबिल में पाया जाता हैं। प्रभु यीशु के जी उठने का पर्व मनाने का नये नियम में कहीं कोई जिक्र नहीं है। यहूदी मसीहियों ने इसे फसह के पर्व से जोड़ दिया और यहूदी महीने निसान के 14 वें दिन मनाना शुरु कर दिया। चाहे वह जिस किसी दिन पडता । मगर गैर-यहूदी मसीही इसे प्रभु यीशु के दिन रविवार को मनाने लगे नाइसिया की महासभा (325ई.) के बाद यह पर्व 21 मार्च के बाद की पूर्णिमा के बाद आने वाले पहले रविवार को मनाया जाने लगा यह हमेशा 22 मार्च और 25 अप्रैल के बीच पड़ता हैं। पूर्वी ऑर्थोडॉक्स कलीसियाय इस पर्व को तेरह दिन बाद मनाती है। 'इस्टर' का मसीहियत में समावेश कहाँ तक बाइबिल सम्मत है, यह आगे चलकर स्पष्ट हो जाएगा। इस्टर (...

भ्रांति - गुड फ्राईडे संबंधित

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प्रभु यीशु की देह कब्र में रहने की अवधि की गलत परम्परा कैसे पड़ी ? सामान्य रूप से माना जाता है कि प्रभु यीशु को क्रूसीकरण शुक्रवार को हुआ । उसी मध्यान्ह उन्होंने प्राण त्यागे, उन्हें कब्र में दफनाया और रविवार की प्रातः पौ फटने के समय वे पुनर्जिवित हो गए। इसी परम्परा के आधार पर हम सारे विश्व में शुक्रवार को गुड़ फ्रायड़े और रविवार को ईस्टर मनाते आ रहे हैं । कुछ मसीही विद्वानों ने इस 'गुड फ्रायडे - ईस्टर' की वर्तमान परम्परा के औचित्य पर प्रश्न उठाए और इसे सिध्द करने के लिए कहा। परन्तु बाइबल हमें अन्य विषयों की तरह इस विषय पर सतय प्रमाण देती हैं। इन प्रमाणों को हमें भी जानना चाहिए।  प्रभु यीशु के पुनर्जीवित होने या कब्र में से उनके निकल कर बाहर आने का कोई 'आँखों देखा' गवाह तो नहीं हैं। यहाँ तक कि प्रेरितों में से भी किसी ने उन्हें कब्र में से निकलते नहीं देखा। हमारे पास आज जो बचे हुए प्रमाण इस मामले में हैं, वह केवल बाइबिल ही है। तब प्रश्न उठता है कि उपलब्ध प्रमाण क्या हैं? प्रभु यीशु ने स्वयं कहा था, इस युग के बुरे और व्यभिचारी लोग चिन्ह ढूंढते हैं, परन्तु यूनुस (योना) भव...

भ्रांति - 25 दिसंबर (बड़ा दिन संबंधित)

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25 दिसम्बर, बड़ा दिनःकब, कहां और कैसे? क्या आप जानना चाहेगे कि बडा दिन या क्रिसमस 25 दिसम्बर को क्यों और कबसे मनाना शुरु हुआ? विद्वानों ने बडा दिन 25 दिसम्बर के अतिरिक्त अन्य तारीखों को भी मनाने पर बडा गंभीर चिंतन-मनन किया है और अंत में 25 दिसम्बर ही बड़े दिन के रूप में मनाना तय हुआ। उसके बाद सारा संसार 25 दिसंबर को ही बड़ा दिन मनाता आ रहा है। बडा दिन 25 दिसम्बर को मनाया जाए । यह परम्परा यूरोप से शुरू हुई, जो आज तक निभाई जा रही हैं। अब देखिए, यह भी कितना विचित्र है कि बडे दिन का प्रादुर्भाव अर्थात् प्रभु यीशु का जन्म जो एशियाई देश याने इसराइल में हुआ, लेकिन बडा दिन कब मनाया जाए? इसका निर्धारण यूरोपीय देश और यूरोपीय विद्वानों ने किया। काफी गंभीर चिंतन-मनन के बाद यह स्थापित सत्य पाया गया कि मसीह का जन्म एपिफेनी से निकट संबंधित है। प्रभु के चेले मरकूस ने जो सुसमाचार लिखा है, उसका प्रारंभ उसने मसीह के जन्म से ही नहीं, बल्कि प्रभु यीशु के बपतिस्में से किया है। ( मरकुस 1:9 ) लेकिन विश्व के कई बर्डे एवं शक्तिशाली चर्च ने बड़े दिन को एपिफेनी के कई वर्षों बाद अपनाया । बडे दिन को कैलेण्डर में ल...

भ्रांति - यीशु के जन्म संबंधित

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तो क्या यीशु का जन्म ईश्वरीय चमत्कार नहीं था, दो वैज्ञानिकों द्वारा नई धारणा फैलाने का प्रयास : यह विज्ञान का युग हैं और हर घटना, सच्चाई को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखने का प्रयास किया जाता है। लेकिन विज्ञान के क्षेत्र में कार्य करते समय कई लोग विज्ञान को जन्म देने वाले ईश्वर को भी या तो भूल जाते हैं या नकार देते हैं । विश्वप्रसिध्द वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्टीन ने जब गुरुत्वाकर्षण शक्ति की खोज की थी, तब अनेक पत्रकार दौडे-दौडे उनके पास गए और पूछा, 'इस खोज के बाद ईश्वर के प्रति आपकी आस्था तो नहीं रही होगी?' तब आईस्टीन ने बड़े सहज भाव से कहा था, 'इस खोज के बाद ईश्वर के अस्तित्व के प्रति मेरी और भी आस्था बढ़ गई है क्योंकि ईश्वर ने मनुष्यों के लाभ के लिए इस प्रकृति में ऐसे हजारों लाखों या अनगिनत वैज्ञानिक सत्य छिपा रखें हैं जो मनुष्य के जीवन के लिए उपयोगी हैं परन्तु मैने तो उन ईश्वर प्रदत हजारों लाखों रहस्यों में से केवल एक ही खोज की है । उन्होने फिर कहा, मैनें तो इस गुरुत्वाकर्षण शक्ति की केवल खोज की है, इसे बनाया नहीं। बनाया तो ईश्वर ने है ।  महान वैज्ञानिक, चिन्तक, दार्शनिक, अलब...

भ्रांति - यीशु के नाम संबंधित

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मसीह के नामकरण का दिन यहुदियों के दस्तुर क अनुसार हर लड़के का आठवें दिन खतना होना चाहिए। उत्पति 17:10 । इसी के अनुसार बालक यीशु को आठवें दिन मंदिर लाया गया था। इसी दिन उसका नाम स्वर्गदूत के कहे अनुसार 'यीशु ' रखा गया। लूक 1:31 में 'तू उसका नाम यीशु रखन।'लूक 2:21 में 'उसका नाम यीशु रखा गया ।' पर हम यीशु के कई नाम पाते हैं। जैसे Jrsus ईसा, येसू, ऐसे ही कई ओर नाम हैं। यीशु के पूर्वज इब्रानी थे, उनकी भाषा इब्रानी थी। वह राजवंश का पुत्र था, नाम भी इब्रानी में ही था। प्रश्न यह उठता है कि यीशु का असली नाम कौन सा हैं? इब्रानी में उसका नाम चार अक्षरों से बनता हैं, अंग्रेजी में उसका उच्चारण 'Y' shua " जैसा लिखा जाता है। पर बोलने में Ye-shoo यीशु जैसी आवाज आती है। फिर भी Ye की आवाज धीमी या बहुत ही छोटी आवाज होनी चाहिए। जैसे हम Macdonald को Mc Donald कहते हैं। Mac नहीं कहते पर एक छोटी आवाज के साथ Donald जोर से बोलते हैं। हिन्दी भाषा में भी शु थोड़ा सा अन्तर के साथ है पर इब्रानी शब्द को बिगाड़ा नहीं जा सकता। अंग्रजी शब्द Jesus, पर विचार करने पर कोई यह कहेगा कि ...

भ्रांति - कलिसिया में सिध्दांतों की घुसपैठ

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इतिहास के पन्नों से, AD 150 - डूब के बपतिस्में का छिड़काव के बपतिस्में में परिवर्तन । AD211 - मरे हुओं के लिए प्रार्थना प्रारंभ । AD 250 - मरियम का चिरस्थायी कुंआरीपन । AD 310 - क्रुस के निशान का उपयोग प्रारंभ । AD 320 - चर्च में मोमबत्ती जलाना प्रारंभ । AD 321 - रविवारिय सूर्य पूजा अविवार्य घोषित अन्यथा मौत की सजा,  AD 375 - चर्च में मुर्तियों का इस्तेमाल प्रारंभ । AD 394 - प्रभु भोज में रोटी और दाख रस का प्रार्थना द्वारा लहू और मांस में तत्व परिवर्तन (कैथोलिक मास ) AD 431 - मरियम की स्वर्ग की रानी के रूप में आराधना प्रारंभ । AD 476 - मृतकों के लिए पाप क्षमा का प्रावधान प्रारंभ । AD 500 - याजकीय वस्त्रों का चलन । AD 525 - क्रिसमस मनाना प्रारंभ । AD 600 - मरियम,मृत संतों एवं स्वर्गदूतों की निर्दिष्ट प्रार्थना प्रारंभ । AD 600 - अन्य भाषाओं में प्रार्थना की मनाही एवं केवल लातिनी भाषा में प्रार्थना करने का आदेश । AD 709 - पोप के पांव चुमने की प्रथा प्रारंभ, लोग पोप के पांव चुमने लगे  । AD 787 - मुर्तियों / अस्थि अवशेषों की पूजा व सम्मान अधिकृत । AD 819 - मरियम की भ...