मेरा घर सब जातियों के लिये प्रार्थना का घर कहलायेगा
प्रभुजी ने कहा “क्या यह नहीं लिखा है,
कि मेरा घर सब जातियों के लिये प्रार्थना का घर कहलाएगा ?
पर तुम ने इसे डाकुओं की खोह बना दी है । (मरकुस 11:17)
महान आदेश
सतसंग का लक्ष्य और आदेश
शिष्य-निर्माण हेतु महान आदेश: “जाओ और सभी जाति के लोगों को शिष्य बनाओ, उन्हें पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम से जल दीक्षा दो और उन्हें मेरी सारी आज्ञाएँ मानना सिखाओ और देखो, मैं युग के अन्त तक तुम्हारे संग हूँ ” (मत्ती 28:19, 20) ।
भौगोलिक प्रसार हेतु महान आदेश: “ पवित्र आत्मा की सामर्थ से तुम यरूशलेम, यहूदिया, सामरिया और पृथ्वी के छोर तक मेरे गवाह होगे ” (प्रेरितों के काम 1:8) ।
सतसंग का लक्ष्य: प्रभु ने अपने महान आदेश के कार्य को पूरा करने की लिए सतसंग का निर्माण किया है । केवल महान आदेश को पूरा करके ही हम प्रभु यीशु द्वारा की गई भविष्यवाणी को पूरा कर सकते हैं, “राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में सब जातियों पर गवाही के लिये प्रचार किया जाएगा, और तब अन्त आ जाएगा” (मत्ती 24:14)
न्याय का दिन: “और मैंने मरे हुओं को, छोटे और बड़े, परमेश्वर के सामने खड़े देखा । और पुस्तकें खोली गईं, और एक और पुस्तक खोली गई, जो जीवन की पुस्तक है । और जो कुछ किताबों में लिखा था, उसके अनुसार उनके कामों के अनुसार मरे हुओं का न्याय किया गया । और जिस किसी का नाम जीवन की पुस्तक में लिखा न पाया गया, वह आग की झील में डाल दिया गया ” (प्रकाशितवाक्य 20:12,15) ।
सनातन साम्राज्य: हर एक जाति, कुल, लोग और भाषा में से एक ऐसी बड़ी भीड़, जिसे कोई गिन नहीं सकता था श्वेत वस्त्र पहिने, और अपने हाथों में खजूर की डालियां लिये हुए सिंहासन के साम्हने और मेम्ने के साम्हने खड़ी है । वे पुकार रहे थे, “सिंहासन पर विराजमान हमारे परमेश्वर की जय हो और मेमने की जय हो” (प्रकाशितवाक्य 7:9,10)
महान आदेशीय आज्ञाकारी मसीही जिनके नाम जीवन की पुस्तक में लिखे होते हैं वे अनन्त जीवन के वारिस होते हैं और असली सनातनी होते हैं ।
1. प्रभु यीशु के शिष्य बनें ।
2. दूसरों को प्रभु यीशु के शिष्य बनने में मदद करें ।
3. साथ में, स्वर्ग के राज्य को पृथ्वी पर लाकर दुनिया को बदलें ।
सतसंग का जन्म और पतन
जन्म: सतसंग युग की शुरुआत पिन्तेकुस्त के दिन 3,000 लोगों के जल दीक्षा से शुरू हुआ । उनके पास न तो कोई आराधनालय था, न कोई प्रशीक्षित पासबान, रविवारीय आराधना, संगीत वाद्ययंत्र, दशमांश, या क्रिसमस, ईस्टर जैसे त्योहार, यहाँ तक कि कोई लिखित सुसमाचार भी नहीं था, और न कोई राजनीतिक या वित्तीय शक्ति और न संसाधन था - फिर भी वे अत्यंत तेज रफ्तार से बढ़ते गए, क्योंकि उनके पास पवित्र आत्मा की सामर्थ थी । वे घर-घर रोटी तोड़ते थे, याने मिलकर भोजन करते थे, और वचन से सीखकर वार्तलाप करते और शिष्य बनाने की धुन में लगे रहते थे ।
पतन: समय के साथ, ये सभी बाइबिल से परे चीजें मनुष्यों द्वारा कलीसिया में जोड़ दी गईं जो उस मूर्ख मनुष्य के समान हैं जिसने अपना घर रेत पर बनाया । इससे कलीसिया का विस्तार धीमा और अंततः बंद हो गया और वो बाँझ और अवैध हो गयी । आज जो भी विकास है वो पैदाइशी या स्थानांतरण या फिर भेड़ चोरी द्वारा होता है । रविवार को आप जो कुछ भी करते हैं वह नए नियम में नहीं पाया जाता, यानी गीत संगीत, आराधना, उपदेश, फिर इस एक घंटे भर के मनोरंजन के लिये दान दक्षिणा चढ़ाना और फिर छह दिन की छुट्टी । ऐसी सतसंग को प्रभुजी कहतें हैं, “ मैं तुम्हारे कामों को जानता हूँ तुम सोचते हो कि हम जीवित हैं लेकिन तुम मृतक हो” । (प्रकाशितवाक्य 3:1)
प्राथमिक कलीसिया का संस्थागत कलीसिया में परिवर्तन
- परमेश्वर के परिवार के बदले रीति रिवाजी संस्थागत कलीसिया । (इफिसियों 2:19,20)
- दीवट – कलीसिया के अन्धकार में ज्योति होने का प्रतीक के बदले क्रूस जो मृत्यू का प्रतीक है । (प्रकाशितवाक्य 1:20; मत्ती 5:14-16)
- विश्वासियों के घरों के बदले धार्मिक इमारतों में । (प्रे. के का. 7:48,49; मलाकी 1:11)
- राजपदधारी याजक के बदले आम सदस्य । (1 पतरस 2:9)
- प्रतिदिन की कलीसिया के बदले सिर्फ रविवारीय कलीसिया । (प्रे. के का. 2:46, 47)
- अपनी कमाई से सेवा करनेवालों के बदले वेतनभोगी पासबान (प्रे. के का. 20:33-35)
- स्वेच्छा दान के बदले दशमांश । (2 कुरिन्थियों 9:6,7)
- स्त्रियों के अधिकार के बदले पुरुष प्रधान कलिसिया । (गलातियों 3:28)
- देह, प्राण और आत्मा की देखभाल करनेवाली समग्र कलीसिया के बदले सिर्फ एक मनोरन्जन केन्द्र । (2 थिस्सलुनीकियों 5:23; प्रेरितों के काम 4:32-35)
- शिष्य बनाने वाले शिष्यों के बदले बिना फल वाले सदस्य । (मत्ती 28:19)
- वचन पर चलनेवालो के बदले केवल सुननेवाले जो धोखे में हैं । (याकूब 1: 22)
मार्टिन लूथर ने 500 साल पहले गृह कलीसिया के बारे में लिखा था: गृह कलीसिया सही कलीसिया है । विश्वासियों को प्रार्थना करने, अध्ययन करने, जल दीक्षा देने, प्रभु भोज प्राप्त करने और अन्य मसीही कार्यों का अभ्यास करने के लिए घरों में इकट्ठा होना चाहिए । स्वतंत्र इच्छा से दान देकर गरीबों की सहायता करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए (2 कुरिन्थियों 9:6,7) । यहाँ विशेष संगीत और गायन की कोई आवश्यकता नहीं है । यहां हम छोटे और सरल तरिके में जल दीक्षा और प्रभु भोज कर सकते हैं । और सब कुछ वचन और प्रार्थना और प्रेम की ओर प्रेरित कर सकते हैं । दूसरे शब्दों में, यदि वे लोग जो सच्चे मसीही बनने की लालसा रखते हैं, तो उन्हें चाहिए कि वे बाइबल पर आधारित कलीसिया के इस रूप और नमूने को अपनाएं ।
परमेश्वर के राज्य में प्रवेश के लिए शर्तें
- पहिली शर्त: “यदि कोई व्यक्ति जल और आत्मा से जन्म न ले तो वह परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना तो दूर, उसको देख भी नहीं सकता ।” (यूहन्ना 3:3,5)
- जीवन की पुस्तक में नाम: “फिर मैं ने छोटे बड़े सब मरे हुओं को सिंहासन के साम्हने खड़े हुए देखा, और पुस्तकें और जीवन की पुस्तक खोली गयी और उनके कामों के अनुसार मरे हुओं का न्याय किया गया । और जिस किसी का नाम जीवन की पुस्तक में लिखा हुआ न मिला, वह आग की झील में डाल दिया गया” (प्रकाशित 20:12, 15)
- आपकी व्यतिगत नाम की डायरी में आपके कामों का उल्लेख प्रतिदिन किया जाता है और उसके मुताबिक आपका नाम जीवन की किताब में लिखा जाता है ।
- फलवन्त होना: “ मैं दाखलता हूँ : तुम डालियां हो; जो मुझ में बना रहता है, और मैं उस में, वह बहुत फल लाता है । जो डाली फल नहीं लाती उसे काटकर आग में झोंक दिया जाता है, और वे जल जाती हैं । मेरे पिता की महिमा इसी से होती है, कि तुम बहुत सा फल लाओ, तब ही तुम मेरे चेले ठहरोगे”(यूहन्ना 15:1-8) । यदि आपके जीवन में कोई फल (बचाई गयी आत्माएं) नहीं हैं तो स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करना नामुमकिन है।
- मसीहत आज्ञाकारिता पर आधारित है: अधिकांश ईसाई सोचते हैं कि वे प्रभु यीशु को जानते हैं, क्योंकि वे बाइबल पर आधारित बिश्वासी हैं, लेकिन यह उसे जानना की परिभाषा नहीं है । बाइबिल कहती है, "यदि तुम उसकी आज्ञाओं का पालन करते हैं तब तुम उसे जानते हैं । जो यह कहता है, कि मैं उसे जानता हूं, और उसकी आज्ञाओं का पालन नहीं करता वह झूठा है, और उसमें सत्य नहीं” । प्रभु यीशु ने कहा, "यदि तुम मुझ से प्रेम रखते हो, तो मेरे आज्ञाओं का पालन करोगे।" (1 यूहन्ना 2:3,4; यूहन्ना 14: 15)
- “लेकिन कोई कहे, “आपके पास विश्वास है और मेरे पास कर्म हैं । मुझे कर्म के बिना अपना विश्वास दिखा, और मैं अपने कामों से तुम्हें अपना विश्वास दिखाऊंगा । आप मानते हैं कि ईश्वर एक है । दुष्टात्माएँ भी विश्वास करते हैं और कांपते हैं । मूर्ख आदमी, क्या आप सबूत चाहते हैं कि कर्मों के बिना विश्वास व्यर्थ है ?” (याकूब 2:18-20)
- “जो मुझ से, हे प्रभु, हे प्रभु कहता है, उन में से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है । उस दिन बहुतेरे कहेंगे; हे प्रभु, हे प्रभु, क्या हम ने तेरे नाम से भविष्यद्वाणी नहीं की, और तेरे नाम से दुष्टात्माओं को नहीं निकाला, और तेरे नाम से बहुत अचम्भे के काम नहीं किए? तब मैं उन से खुलकर कह दूंगा कि हे कुकर्म करनेवालों, मेरे पास से चले जाओ” । (मत्ती 7:21-23)
- सभी जाति और समुदाय के बच्चे: प्रभु यीशु ने कहा, “छोटे बच्चों को मेरे पास आने दो, क्योंकि परमेश्वर का राज्य उन्हीं का है” । (लूका 18:16) 12 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों और 13 वर्ष के लड़कों को यहूदियों के अनुसार निर्दोष माना जाता है ।
- आमंत्रित लोग छूट जायेंगे: भोज के लिए कई बड़े लोगों को आमंत्रित किया गया था, लेकिन वे नहीं आए, तब राजा ने अपने सेवकों को गलियों में भेजा ताकि वे विकलांगों, बहरे और गूंगे लोगों को इकट्ठा करके भोज में लायें । (लूका 14:23)
- धनवान नहीं: “परमेश्वर के राज्य में किसी धनी के प्रवेश कर पाने से, किसी ऊँट का सुई के नाके में से निकल जाना आसान है !” (मरकुस 10:25)
प्रभु यीशु क्यों आये?
- खोए हुओं को खोजने और उनका उद्धार करने के लिए । (लूका 19:10)
- शैतान के कामो को नष्ट करने के लिए । (1यूहन्ना 3:8)
- परमेश्वर का मेमना होकर जगत के पापों को उठा ले जाने हेतु । (यूहन्ना 1:29)
- ज्योति होकर: उनके लिए जो अन्धकार और मृत्यु की छाया में हैं । (मत्ती 4:16)
- कंगालों को सुसमाचार सुनाने, बन्धुओं को छुटकारे का और अन्धों को दृष्टि पाने का सुसमाचार प्रचार करने और कुचले हुओं को छुड़ाने, और प्रभु के प्रसन्न रहने के वर्ष का प्रचार करने के लिए । (लूका 4:18,19)
- सत्य की गवाही देने: "मैं इस लिए उत्पन्न होकर जगत में आया, कि सत्य की गवाही दूं ।" (यूहन्ना 18:37)
- पिता की इच्छा पूरी करने: "मैं अपनी इच्छा पूरी करने के लिए नहीं, बल्कि पिता की इच्छा पूरी करने स्वर्ग से आया हूं ।" (यूहन्ना 6:38)
- कि लोग जीवन पाएं, और बहुतायत से पाएं । (यूहन्ना 10:10)
- अनन्त जीवन देने के लिए । (यूहन्ना 3:16)
- “प्रभु यीशु ने कहा, “मैं न्याय करने के लिये इस जगत में आया हूं, कि जो नहीं देखते वे देखें, और जो देखते हैं वे अन्धे हो जाएं ” (यूहन्ना 9:39-41) ।
यदि आप प्रभु यीशु के सच्चे भक्त हैं और उनसे प्रेम करते हैं तो उनके आने के मुख्य उद्देश्यों को पूरा करने की भरसक कोशिश करेंगे, ताकि इस पृथ्वी पर परमेश्वर का राज्य स्थापित हो ।
प्रभु यीशु की प्रमुख आज्ञाएँ
- तू प्रभु अपने परमेश्वर से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी शक्ति और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख; (लूका 10:27) ।
- अपने पड़ोसी से प्रेम रख: प्रभुजी ने बताया की पड़ोसी वो नहीं जो पड़ोस में रहता है बल्कि वे जो जरूरतमंद है जैसा कि एक सामरी राहगीर ने एक जख्मी यहूदी की सहायता की थी जबकि धर्मगुरु याजक और लेवी कतरा कर चले गए थे ।
- अपने आप से प्रेम कीजिये: आप जैसे भी हो, काले, गोरे, मोटे, दुबले, ऊंचे या छोटे कद वाले, पढ़े लिखे या अनपढ़, आप परमेश्वर के स्वरुप और समानता में सिरजे गए हैं। आपको प्रभुजी ने अपनी संतान, अपना राजदूत और राजपदधारी याजक बनाया है इसलिए उसी हैसियत से काम कीजिये ।
- शिष्यता की पहचान: “एक दूसरे से प्रेम रखो: जैसा मैं ने तुम से प्रेम रखा है, वैसा ही तुम भी एक दूसरे से प्रेम रखो । यदि आपस में प्रेम रखोगे तो इसी से सब लोग जानेंगे, कि तुम मेरे चेले हो” (यूहन्ना 13:34,35)
- प्रभुजी ने चेतावनी दी: कि अपने बैरियों से प्रेम रखो और अपने सतानेवालों के लिये प्रार्थना करो, जिससे तुम अपने स्वर्गीय पिता की सन्तान ठहरोगे क्योंकि वह भलों और बुरों दोनो पर अपना सूर्य उदय करता है, और दोनों पर मेंह बरसाता है । (मत्ती 5:44,45)
- मनुष्यों का मछुवारा: तुम मेरे पीछे होलो तो मै तुम्हे मनुष्यों का मछुवारा बना दूंगा । सतसंग में मनुष्यों के मछुवारा से बढ़कर और कोई उपाधी नहीं है । (मत्ती 4:19)
- पहिले सामर्थ के काम फिर प्रचार: उन्हें सब दुष्टात्माओं और बिमारियों को दूर करने की सामर्थ और अधिकार दिया और फिर प्रचार करने भेजा । (लूका 9:1,2)
- प्रभुजी का अंतिम और सबसे प्रमुख आदेश: “ तुम जाकर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ और उन्हें पिता और पुत्र और पवित्राआत्मा के नाम से जल दीक्षा दो, और उन्हें सब बातें जो मैं ने तुम्हें आज्ञा दी है, मानना सिखाओ: और देखो, मैं जगत के अन्त तक सदैव तुम्हारे संग हूँ” । (मत्ती 28:19, 20)
- यदि तुम मुझ से प्रेम रखते हो: तो मेरी आज्ञाओं का पालन करोगे । (यूहन्ना 14:15)
परमेश्वर ने आपको क्यों चुना ?
आपको चोगाधारी, डिग्रीधारी, वेतनभोगी पादरी, रेवरेंड या बिशप, धर्मशास्त्री, पेशेवर संगीतकार आदि बनने के लिए नहीं चुना गया है, बल्कि आपको:
- परमेश्वर का राज्य स्थापित करने के लिए । (उत्पत्ति 1:28)
- मनुष्यों के मछुआरे बनाने के लिए । (मत्ती 4:19)
- प्रचुर मात्रा में फल बटोरने वाले । (यूहन्ना 15:8,16)
- सुसमाचार के बीज बोने वाले । (मरकुस 4:26)
- फसल काटने वाले मज़दूर । (यूहन्ना 4:35)
- अन्यजातियों की आँखें खोलने के लिए और उन्हें अंधकार से प्रकाश की ओर, और शैतान के बंधन से छुड़ाकर परमेश्वर की ओर ले जाने के लिए । (प्रेरितों 26:17,18)
- पृथ्वी की छोर तक प्रभु के गवाह बनने के लिए । (प्रेरितों के काम 1:8)
- जल दीक्षा देने वाले, शिक्षक और शिष्य बनानेवाले । (मत्ती 28:19,20)
- राज पुरोहित की हैसियत से परमेश्वर के राज्य को बढ़ाने वाले । (1पतरस 2:9)
- तुच्छ होकर भी, बुद्धिमान और शक्तिशाली को लज्जित करने वाले । (1कुरि.1:27)
- जीवित जल के फव्वारे बनने के लिए । (यूहन्ना 4:14)
- प्रेरित, भविष्यवक्ता, प्रचारक, चरवाहे और शिक्षक बनकर सतसंग की उन्नति के लिए संतों को सेवकाई के लिए तैय्यार करनेवाले । (इफिसियों 4:11,12)
- आपको राजदूत बनाकर बाहर भेजने के लिए । (2 कुरि. 5:20)
- अन्यजातियों और पापियों का शुद्धिकरण करके उनको जीवित बलिदान स्वरुप पेश करने के लिए । (रोमियों 15:16; याकूब 5:20)
- दुनिया को उलट पुलट करने के लिए । (प्रेरितों के काम 17:6)
इस सूची में आप किस श्रेणी में आते हैं क्योंकि बुलाए हुए तो बहुत हैं, परन्तु चुने हुए बहुत थोड़े हैं । (मत्ती 22:14)
प्रभु ने आपको सतसंग में मूक दर्शक होकर बठने के लिए नहीं लेकिन प्रत्येक मानव निवास में जाकर परमेश्वर के राज्य को स्थापित करने के लिए चुना है । इस प्रक्रिया से शीघ्र सारे विश्व में परमेश्वर का राज्य आ जायेगा ।
प्रभु के पर्बों का महत्व
क्रिसमस, ईस्टर इत्यादि त्यौहार इसाई लोग बड़े जोश के साथ मनाते हैं जो बाइबिल में नहीं हैं । कॉन्स्टेन्टाईन नाम के रोमन बादशह जो सूर्य और प्रभु यीशु दोनों को मानता था उसने सन 312 में रविवार को सूर्यनमस्कार और प्रभु यीशु की भक्ति के लिए निर्धारित कर दिया और एक सेटरनेलिया नाम के त्यौहार को जब लोग शराब पीकर नाचते गाते थे उसको क्रिसमस में बदल दिया था । अधिकांश इसाई आज भी यही करते हैं ।
एक घर में चरवाहों ने भेड़ चढ़ाकर और ज्योतिषियों ने उसे सोना, लोबान, और गन्धरस की भेंट चढ़ाकर प्रभु की आराधना की थी (मत्ती 2:11) । अब आप उससे और भी बेहतर उपहार खोई हुई भेड़ों को भेंट स्वरुप दे सकते हैं । (याकूब 5:20)
पर्वों में परमेश्वर का समय सारणी का रहस्य छिपा है, जिसमें उत्पत्ति में स्त्री के बीज द्वारा शैतान के सिर को कुचलने और भूमि के श्राप से लेकर प्रकाशितवाक्य में भूमि के श्राप को दूर करने और सनातन राज्य की स्थापना तक शामिल है । इसलिए उनको मनाना और उनके महत्व को समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है। (उत्पत्ति 3:15,17; प्रका. 22:3)
फसह और अखमिरी रोटी का पर्ब: फसह यानि कुर्बानी का पर्ब घर में और अखमीरी रोटी का पर्ब येरूशलेम के मंदिर के परिसर में मनाया जाता था । इस्रालियों ने पहली बार अपने परिसर में मेमने की बलि आखिरी रात को की थी जब उन्होंने 400 साल की गुलामी के बाद मिस्र छोड़ दिया था । उन्होंने भुना हुआ मेमना, अख़मीरी रोटी और कड़वी साग खाईं । ख़मीर भ्रष्टाचार को दर्शाता है, और कड़वा साग उनकी गुलामी के 400 वर्षों के कड़वे अनुभव की याद दिलाती हैं । अब, हम जानवरों की बलि नहीं चढ़ाते हैं क्योंकि प्रभु यीशु हमारे उद्धार के लिए क्रूस पर बलि का मेमना बन गया और हम खोई हुई आत्माओं को जीवित बलिदान के रूप में अर्पित करतें हैं ।
विद्वानों का मत है कि इस दिन प्रभु यीशु का जन्म बैतलहम (रोटी का घर) में फसह के मेमने के रूप में हुआ था, जो मेमनों को पालने के लिए प्रसिद्ध था । अब हम प्रभु की कुर्बानी की याद में घर घर रोटी तोड़तें हैं ।
अब फसह का पर्ब प्रभु भोज में बदल गया हैं । प्रभुजी ने शुक्रवार को नहीं लेकिन गुरुवार को क्रूस पर कुर्बान हुए थे, अन्यथा योना नबी के तीन दिन और तीन रात पूरे नहीं होते । इसे शुभ शुक्रवार नहीं, बलिदान दिवस कहना चाहिए । (मत्ती 12:38-40)
पहला फल: प्रभु यीशु तीसरे दिन कब्र से जी उठे और अपने दूसरे आगमन पर पुनर्जीवित होने वाले सभी में से पहला फल बने । पहला फल इस बात का संकेत है कि फसल की कटाई शुरू हो गई है, हालाँकि बहुत सा फसल आना बाकी हैं । ईस्टर एक बेबीलोन की देवी का नाम है; इसलिए, इसे पुनरुत्थान दिवस कहना चाहिए । (1 कुरि. 15:20-22)
पिन्तेकुस्त का अर्थ है पचास: प्रभु यीशु के पुनरुत्थान के पचास दिन बाद, पवित्र आत्मा महिलाओं सहित 120 शिष्यों पर आग की जीभ के रूप में उतरा । पतरस ने वचन सुनाया। परिणाम स्वरूप, 3,000 लोगों ने जल दीक्षा लिया और सतसंग का जन्म हुआ । हमें भी गैर मसीहियों का जल दीक्षा देकर सतसंग का जमोत्सव मनाना चाहिए । इस दिन मूल्यांकन कीजिये कि पिछ्ले साल कितने जल दीक्षा और कितने सतसंग स्थापित हुए । यदि नही हुए हैं तो आपकी सतसंग बांझ है । (प्रेरित 2:1-37; 3-41)
तुरहियों का पर्व: इस दिन, “प्रभु जयजयकार और नरसिंगे के शब्द के साथ स्वर्ग से उतरेंगे, और जो मसीह में सो गए हैं वे पहिले जी उठेंगे । तब जो जीवित हैं वे उनके साथ बादलों पर उठा लिये जायेंगे” और हम सदैव प्रभु के साथ रहेंगे" (1 थिस्स. 4:15-17) । कोई नहीं जानता कि प्रभु यीशु कब लौटेंगे । लेकिन जिस दिन ख्रीष्ट-विरोधी हस्ती, इज़रायेल को यरूशलेम में अपना मंदिर बनाने की अनुमति देगा उस दिन से क्लेश शुरू हो जायेगा और ठीक सात साल बाद, प्रभु यीशु वापस आएंगे और उस इब्लीस को हजार वर्ष के लिये अथाह कुंड में डालकर अपना हज़ार वर्ष का साम्राज्य सारी पृथ्वी पर स्थापित करेंगे । (मत्ती 24:35-37; दानिय्येल 9:27; प्रकाशित 20:1-3)
प्रायश्चित का दिन: यह अति पवित्र दिन माना जाता है क्योंकि यह वर्ष का एकमात्र दिन है जब महायाजक मंदिर के अति पवित्र स्थान में प्रवेश करके अपने पापों के लिए वाचा के सन्दूक पर एक बकरे का खून छिड़कता था । दूसरे बकरे के सर पर लोगों के सारे पापों को डालकर उसे वीरान में भेज दिया जाता था जहाँ वह मर जाता था । (लैव. 16:8-10)
यहूदियों ने प्रभुजी को बलि के बकरे की तरह यरूशलेम के बाहर सूली पर चढ़ाया, "पूर्व पश्चिम से जितनी दूर है, उसने हमारे अपराधों को उतनी ही दूर कर दिया"(भजन 103:12)
झोपड़ियों का पर्व: प्रायश्चित्त के पर्व के पांच दिन बाद शुरू होकर आठ दिनों तक चलता है, जो झोपड़ियों में रहने की 40 साल की यात्रा की याद दिलाता है । (व्यव. 16:13)
यहूदी इस पर्व को घर के पास झोपड़ियों का निर्माण करके मनाते हैं । कुछ लोगों का मानना है कि प्रभु यीशु का जन्म पर्व के पहले दिन इस तरह की झोपड़ी में हुआ था न की गौशाला में । उसने “ मनुष्यों के साथ निवास किया ” और आठवें दिन खतना हुआ ।
आठवें दिन, महायाजक गाते और नाचते हुए भीड़ के साथ सिलोम के कुण्ड से एक सोने के बर्तन में पानी लाकर वेदी पर डाल देता था । इस दिन, प्रभु यीशु ने बड़ी आवाज़ से भीड़ को पुकारा, “ यदि कोई प्यासा हो, तो मेरे पास आए, और पीए । जो मुझ पर विश्वास करेगा, उसके अन्दर से जीवन के जल की नदियाँ बह निकलेंगी ।” (यूहन्ना 7:37-38)
फसह, पेंटेकोस्ट और झोपड़ियों के तीन अनिवार्य तीर्थयात्रा पर्व हैं जब सभी यहूदी पुरुष यरूशलेम के मंदिर में परमेश्वर के सामने उपस्थित होते थे । किसी को भी खाली हाथ आने की अनुमति नहीं थी (व्यव. 16:13-16) । परमेश्वर अपनी प्रजा के साथ राजाओं के राजा और प्रभुओं के प्रभु होकर डेरा करेगा, और व्यवस्था यरूशलेम से निकलेगी (प्रका.17:4; 21:3) । भूमि का श्राप दूर हो जाएगा, और पृथ्वी प्रचुर मात्रा में अन्न, दूध और मधु उत्पन्न करेगी । हम प्रभुजी से मिलने पैदल, गधे, ऊंट या बैलगाड़ी से यरूशलेम जाएंगे क्योंकि प्रदूशनकारी परिवहन उपलब्ध नहीं होगा । रास्ते में, हम भोजन की प्रचुरता के कारण मुफ़्त आतिथ्य के साथ झोपड़ियों में रुकेंगे । (उत्पत्ति 8:21; प्रका. 22:3)
प्रभु यीशु मसीह स्वयं मंदिर हैं और हम भी मंदिर हैं ।
“इस मंदिर को ढा दो, और मैं उसे तीन दिन में खड़ा कर दूंगा” (यूहन्ना 2:19)। सुलेमान के मंदिर में एक बाहरी आँगन में पीतल से मढ़े आग की वेदी और हाथ पैर धोने के लिए एक हौदी थी । पवित्र स्थान में सोने से मढ़े दीपक, और मेज पर 12 रोटी और दाखरस का पात्र था । यहाँ धूप चढ़ाने के लिए स्वर्ण वेदी थी । स्वर्ण वाचा का सन्दूक पर्दे के पीछे परमपवित्र स्थान में था, जहाँ परमेश्वर की आत्मा निवास करती थी ।
मंदिर, मसीह की देह को दर्शाता था । मसीह के क्रूस पर बलिदान होने के बाद मूसा के तम्बू और सुलेमान के मंदिर में पशु बलिदान का कोई औचित्य नहीं रहा क्योंकि अब हम पवित्र आत्मा के मंदिर बन गए हैं । (यूहन्ना 2:19-21; 1 कुरिन्थियों 3:16)
- केवल पुजारी और: उद्धार पाने के लिए पशु बलि चढ़ाने वाले यहूदी भक्त ही द्वार में प्रवेश कर सकते थे । प्रभु यीशु ने कहा, “ मैं द्वार हूँ । जो कोई मेरे द्वारा भीतर आएगा, वह उद्धार पाएगा ।” प्रभुजी ने मेम्ना की तरह बलिदान होकर सब जातियों के लिए विश्वास का द्वार खोल दिया है । (यूहन्ना 10:9; प्रेरितों 14:7)
- प्रभु यीशु परमेश्वर का मेम्ना है: जिसने अपना लहू बहाकर हमारे पापों को दूर कर दिया । “शरीर का प्राण रक्त में है, और रक्त बहाए बिना मुक्ति नहीं मिल सकती ।” अब हम जब भी मिलते हैं तो हमारे उद्धार के लिए प्रभु यीशु द्वारा बहाए खून की याद में दाखरस (अंगूर का रस) पीते हैं । (यूहन्ना 1:29; लेवी. 17:11; इब्रा. 9:22; 1 कुरिं. 11:25, 26)
- आग की वेदी: अब पवित्र आत्मा है जो हमें पूर्ण रूप से बदल देती है । अब हम शाही याजक की हैसियत से अपने निवास स्थानों की वेदी पर खोई हुई आत्माओं को जीवित बलिदान के रूप में चढ़ातें हैं । (प्रेरितों के काम 2:1-3; मलाकी 1:11)
- जल का हौद : जहाँ याजक हाँथ धोकर शुद्ध होता था अब हमारा जल दीक्षा से शुद्धिकरण होता है । प्रभुजी ने शिष्यों का पैर धोकर उनका शुद्धिकरण किया ।
- स्वर्ण वेदी: यहाँ धूप को आग की अंगार पर जलाया जाता था । यहाँ से सभी जातियों के मोक्ष के लिए मध्यस्थता की प्रार्थना सुगन्धित धुंए के साथ स्वर्ग तक पहुंचती थी । अब प्रभु यीशु स्वर्ग में हमारे लिए मध्यस्तता कर रहा है । (प्रका. 8:3,4; इब्रानियों 7:25)
- बारह रोटी और दाखरस की मेज: इस्राएल ले बारह गोत्रों को दर्शता है । प्रभुजी जीवन की रोटी है जो स्वर्ग से उतरी । अब हम उसके देह के क्रूस पर टूटने की याद में घर-घर रोटी तोड़ते हैं और दाखरस पीते हैं ताकि प्रभु का देह घर-घर बढ़ता रहे । (प्रेरित 2:42-46; 20:7; यूहन्ना 6:35, 47-51)
- दीवट: प्रभु यीशु जगत की ज्योति है । उसने हमें अंधकार में चमकने के लिए ज्योति बनाई है ताकि जो प्रकाश में चलेगा, उसे अनन्त जीवन मिलेगा । दीवट के बीच की प्रमुख शाखा प्रभुजी हैं जबकि फूल और फलों से भरी बाजू की छै शाखाएं हमें दर्शाती हैं । क्रूस नहीं, बल्कि दीवट कलीसिया का प्रतीक है । (यूहन्ना 8:12; मत्ती 5:14; प्रका.वा. 1:20)
- पर्दा: नीले (स्वर्ग), बैंगनी (बादशाही), और लाल रंग (रक्त) के सामग्री से बनाया गया था, जो पवित्र परमेश्वर को पापी मनुष्य से अलग करता था । प्रभु यीशु की देह क्रूस पर तोड़े जाने के बाद, परमेश्वर के मंदिर में पवित्र स्थान का पर्दा फटने से परमेश्वर का आत्मा बाहर निकल गया और फिर कभी मनुष्यों के हांथों द्वारा निर्मित मंदिर में नहीं रहा बल्कि अपने हांथों से निर्मित मनुष्यों के ह्रदय में निवास करने लगा । (प्रेरितों के काम 7:48, 49; 17:24; इब्रानियों 10:19-22)
- वाचा का सन्दूक: परमेश्वर की उपस्थिति (पत्थर की पट्टियों पर लिखे कानून), परमेश्वर के प्रावधान (मन्ना का जार), परमेश्वर की सुरक्षा (हारून की छड़ी) का प्रतिनिधित्व करता है । अब प्रभु यीशु हमारा रक्षक और प्रबंधक है और उसकी पवित्र आत्मा हमारे अन्दर रहती है । उनके कानून अब हमारे दिलों में लिखे हैं । (2 कुरिन्थियों 3:3)
वाचा का महत्व
“वाचा दो पक्षों के बीच खून से बना बंधन है ” । “वाचा” शब्द बाइबिल में 301 बार आता है ।
आदम के साथ “गुणन” की एक वाचा स्थापित की गई थी, “फूलो, फलो, पृथ्वी को भर दो, उसे अपने अधीन करो और उस पर प्रभुत्व करो” (उत्पत्ति 1:28) ।
हव्वा के साथ, “ तेरा बीज (प्रभु यीशु) सर्प के सिर को कुचल डालेगा” ।
नूह से इंद्रधनुष के चिन्ह के साथ “संरक्षण” की वाचा, “ कि सब प्राणी फिर जलप्रलय से नाश न होंगे और पृथ्वी के नाश करने के लिये फिर जलप्रलय न होगा” ।
इब्राहीम – “तू पृथ्वी के सभी लोगों के लिए आशीष का कारण होगा” (उत्पत्ति 3:15; उत्पत्ति 9: 9-11;12:3; 15:18) ।
दाऊद – तेरे वंश से एक चरवाहा और राजा (प्रभु येशु) निकलेगा जो सभी कुल, जातियों और भाषाओं के राजाओं का राजा होगा (निर्गमन 24:8; भजन संहिता 89:3) । इन वाचाओं का मुख्य लक्ष्य उद्धार है । (यिर्मयाह 31:31-34; लूका 22:20)
अपने अंतिम भोज में, प्रभु यीशु के लंबे समय से प्रतीक्षित नई वाचा का प्रगटीकरण करने के 24 घंटे के अंदर उनका शरीर सलीब पर तोड़ दिया गया और खून बहा दिया गया; “यह कटोरा मेरे खून में नई वाचा है; जब कभी तुम इसे पियो, तो मेरी याद में ऐसा किया करो ।' क्योंकि जब कभी तुम यह रोटी खाते, और यह कटोरा पीते हो, तो प्रभु की मृत्यु का उसके आने तक प्रचार करते हो" (1 कुरिन्थियों 11:23-26) ।
परमेश्वर, वाचा का पालन करनेवाला परमेश्वर है ।
नई वाचा “अनन्त वाचा” है (इब्रा. 13:20)। संत वे हैं जो अनंत राज्य में प्रवेश करेंगे क्योंकि उन्होंने जीवित बलिदान के साथ (खोई हुई आत्मा को बचाकर) प्रभु के साथ वाचा बाँधी है । “मेरे संतों को मेरे पास इकट्ठा करो; जिन्होंने बलिदान देकर मेरे साथ वाचा बाँधी है ।” (याकूब 5:20; भजन 50:5)
सतसंग (कलीसिया) का उद्देश्य पौलुस की तरह मसीह का अनुकरण करने वालों को उत्पन्न करना है, “जैसा मैं मसीह का अनुकरण करता हूँ, वैसे ही मेरा अनुकरण कर । (1कुरिन्थियों 11:1)
आगे पौलुस कहता है,” “जो बातें तुम ने मुझ से सीखीं, और ग्रहण की, और सुनी, और मुझ में देखीं, उन्हीं का पालन किया करो, तब परमेश्वर जो शान्ति का सोता है तुम्हारे साथ रहेगा”। (फिलिप्पियों 4:9)
पिन्तेकुस्त जिसने दुनिया बदल दी
जब यहूदी धर्म मसीहियत में परिवर्तित हुआ तो फसह, पहिला फल और पिन्तेकुस्त के पर्ब में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए और आने वाले तुरही और प्रायश्चित और झोपड़ी के पर्बों में सारी दुनिया में और भी भयावह परिवर्तन होंगे ।
2000 साल पहले, पिन्तेकुस्त के दिन, पवित्र आत्मा शिष्यों पर उतरा, और स्वर्ग के नीचे हर देश के 3000 लोगों ने जल दीक्षा लिया, और एक वैश्विक सतसंग (कलीसिया) का जन्म हुआ (प्रेरितों 2:1-5; 41) । 30 वर्षों के भीतर, सुसमाचार यरूशलेम से यहूदिया तक पहुंच गया (प्रेरितों 8:1); सामरिया (प्रेरितों 8:5-12); उत्तरी अफ़्रीका में मिस्र (प्रेरित 18:24) और इथियोपिया (कुश) तक (प्रेरित 8:26-40); दमिश्क से सीरिया और अरब (प्रेरित 9:19); बेबीलोन (1पतरस 5:13) से इराक, ईरान, भारत तक; एशिया में तुर्की (प्रेरित 19:8-10); रोम से रोमन साम्राज्य तक (रोमियों 16 वाँ अध्याय); यूनान के एथेंस (प्रेरित 17 वाँ अध्याय) से मैसेडोनिया (प्रेरितों के काम 16:12) और इलीरिकुम (रोमियों 15:19,20) से लेकर यूरोप तक और जहाँ भी यहूदी प्रवासी थे - पोंटस, गलातिया, कप्पाडोसिया, एशिया और बिथिनिया । (1पतरस 1:1)
यह कैसे हो गया ?
- “न तो बल से, और न शक्ति से, परन्तु यहोवा कहता है मेरी आत्मा से” (जकर्याह 4:6)
- परमेश्वर ने अपना निवास स्थान बदल दिया: पत्थर पर लिखी पुरानी वाचा को एक नई वाचा से बदल दिया गया, जो दिल और दिमाग में लिखी गई थी, “मैं तुम्हारे दिल पर अपनी नई वाचा लिखूंगा” । परमेश्वर की आत्मा ने पत्थर के येरूशलेम में यहूदी मंदिर को छोड़कर अब उसकी आत्मा बिश्वासियों के हृदयों में निवास करती है, और हम परमेश्वर के जीवित मंदिर बन जाते हैं । (यिर्मयाह 31:31-34; 2 कुरिन्थियों 6:16; मत्ती 24:1,2)
- मृत पशुओं की बलि चढ़ाकर आराधना करने के बदले अब हम जीवित बलिदान चढ़ाकर आराधना करते हैं । लोहे की तलवार परमेश्वर के वचन में बदलकर दोधारी तलवार बन गई, और लकड़ी की आग की जीभ के रूप में पवित्र आत्मा में बदल गई ।
- आराधना का स्थान यरूशलेम में मंदिर से अन्य जातियों के घरों में बदल गया । हमारा घर अब सभी जातियों के लिए प्रार्थना का घर हैं । (मलाकी 1:11; मरकुस 11:17)
- आराधना का समय मंदिर में सुबह और शाम की बलि देने से बदलकर "सूरज के उगने से लेकर डूबने तक" हो गया । सिर्फ सब्त के बदले हम किसी भी दिन और समय आराधना कर सकते हैं । (मलाकी 1:11; रोमियों 13:10; 14:5,6; इब्रा. 3:13; 10:25)
- प्रार्थना बदल गई: यहूदी एक दूरस्थ भययोग्य और सर्वशक्तिमान एलोहीम से प्रार्थना करते थे, लेकिन हम प्यार करने वाले "हमारे पिता" से प्रार्थना करतें हैं । हम अन्य समुदाय के लोगों के मोक्ष के लिए प्रार्थना करते हैं कि, “तू उन की आंखे खोले, कि वे अंधकार से ज्योति की ओर, और शैतान के अधिकार से परमेश्वर की ओर फिरें; कि पापों की क्षमा, और विश्वासी लोगों के साथ मीरास पाएं ”। अपने शासकों और शहर के लिए और अपने देश में परमेश्वर के राज्य के आने के लिए प्रार्थना करते हैं । ”(लूका 11:2; प्रे. काम 26:18; 1 तिमोथी 2:1-4; यिर्मयाह 29:7; 2 इतिहास 7:14)
- संगीत और गायन बदल गया: दाऊद ने वीणा, झांझ, तारदार वाद्ययंत्र बजाकर भजन गाया और नाचा लेकिन नए नियम में, अब हम चुप चाप मन में गाकर ज्ञान बाट्तें हैं, "और आपस में भजन और स्तुतिगान और आत्मिक गीत गाया करो, और अपने अपने मन में प्रभु के साम्हने गाते और कीर्तन करते रहो” । “ मसीह के वचन को अपने हृदय में अधिकाई से बसने दो; और सिद्ध ज्ञान सहित एक दूसरे को सिखाओ, और चिताओ, और अपने अपने मन में अनुग्रह के साथ परमेश्वर के लिये भजन और स्तुतिगान और आत्मिक गीत गाओ ।" (भजन सहिंता 150; इफिसियों 5:19; कुलुस्सियों 3:16)
- हमारी विरासत और मीरास बदल गयी: हमारी विरासत के रूप में सांसारिक संपत्ति मांगने के बजाय, परमेश्वर कहता है कि, “ मुझ से मांग और मैं तुम्हें विरासत के रूप में अन्य जातियों को और तुम्हारी मीरास के लिए पृथ्वी की छोर तक दे दूंगा ।” (भ. सं. 2:8)
- पुरोहितवाद बदल गया: जब मंदिर का पर्दा ऊपर से नीचे तक फट गया, तो पशु बलि चढ़ाने वाला पेशेवर, चोगेधारी पुरोहित, अब सब विश्वासी राज पदधारी पुरोहित में बदल गए । अब, पुरोहित के रूप में, हम उन लोगों को जीवित बलिदान स्वरुप चढ़ाते हैं जो अंधकार और मृत्यु की छाया में बैठे हैं" । (1पतरस 2:9, मत्ती 4:16; याकूब 5:20)
- परिधान बदल गया: याजकों द्वारा पहने जाने वाले चोगा पशु बलि चढ़ाने के लिए अलग रखे जाने का प्रतीक था । जबकि विश्वासियों द्वारा पहने गए परमेश्वर के कवच में शैतान के गढ़ों को ध्वस्त करने के लिए रक्षात्मक और आक्रामक दोनों हथियार हैं । (निर्गमन 28-29; इफिसियों 6:12-17; 2 कुरिन्थियों 10:3-5)
- दशमांश परिवर्तित: साल में तीन बार मंदिर में भोजन सामग्री जैसे पशु, अनाज, पहला फल, तेल, दाखरस आदि चढ़ाने के बाद उसे गरीबों, अनाथों, विधवाओं और लेवियों के साथ मिलकर खाते थे लेकिन अब हम घर घर रोटी तोड़कर, जरूरतमंदों और नवागंतुकों के साथ मिलकर अपना भोजन खाते हैं । (मलाकी 3:10; व्यवस्थाविवरण 14:22-29; प्रेरित 2:46,47; 4:34,35; 1 कुरिन्थियों 11:20-23)
- भोजन बदल गया: पुराने नियम में सिर्फ जुगाली करने वाले और फटे खुर वाले जानवर वैध थे । सूअर, मांसाहारी जानवर और पक्षी, बिना छिलके वाली चिकनी मछली, गला घोटे और मरे जानवर और खून पर प्रतिबन्ध था, परन्तु नये नियम में प्रभु यीशु ने कहा कि जो कुछ तुम्हारे सामने रखा जाये उसे खाओ । क्योंकि हम क्या खाते है उससे हम दूषित नहीं होते परन्तु जो गन्दगी हमारे मुंह से बाहर निकलती है उससे हम दूषित होते है। फिर भी अगर सब प्राणियों का सृष्टिकर्ता परमेश्वर ने जिन चीजों को मना किया है उनको न खाने में ही बुद्धिमानी है । अंत में नयी सृष्टि में हम सब शाकाहारी हो जायेंगे और शेर, बैल की तरह भूसा खायेगा (प्रे. काम 15:20; लूका 10:5-8;मत्ती 15:11; यशा. 65:25)
- भविष्यवक्ता बदल गए: यूहन्ना जल दीक्षा देनेवाले तक, सभी भविष्यवक्ताओं ने मसीहा के आने की भविष्यवाणी की, लेकिन अब, सतसंग में, हम सभी भविष्यवाणी करके एक-दूसरे को शिक्षा, प्रोत्साहन और सांत्वना दे सकते हैं और सेवकाई के लिए एक-दूसरे को तैय्यार कर सकते हैं । (मत्ती 11:11-13; 1कुरिन्थियों 14:3,29-32)
- जल दीक्षा बदल गया: यूहन्ना का जल दीक्षा पश्चाताप का था, लेकिन अब प्रभु यीशुआ की दीक्षा, पवित्र आत्मा द्वारा हमें बुरी आत्माओं को निकालने, बीमारों को चंगा करने और परमेश्वर के राज्य को जमीन पर लाने के लिए सशक्त बनाता है; और प्रताड़ित होने पर आग की दीक्षा मिलती है । प्रभु यीशु ने कहा, “मैं पृथ्वी पर आग लगाने आया हूं। मेरे पास एक दीक्षा है जो मुझे लेना है”। यह क्रूस पर दीक्षा से सम्बंधित है । (मत्ती 3:11; प्रेरितों के काम 2:37-39; लूका 9:1-3; 12:49,50)
- व्यवस्था बदल गईं: यहूदियों को मूसा के 613 कानूनों और आदेशों का पालन करना पड़ता था, लेकिन अब, "क्योंकि जो दूसरे से प्रेम करता है, उसने व्यवस्था को पूरा किया है"। हम स्वेच्छा से परमेश्वर से, अपने पड़ोसियों से, एक-दूसरे से और अपने दुश्मनों से भी प्रेम करते हैं और प्रभु यीशु से उनके महान आदेश का पालन करते हैं । उसने कहा, “यदि तुम मुझ से प्रेम रखते हो, तो मेरी आज्ञाओं का पालन करोगे” । (व्यव. 6:1-4; रोमियों 13:8; मत्ती 5:44; 22:37-40; 28:18-20; यूहन्ना 13:34,35; 14:15)
यह किसने किया ? साधारण लोगो ने, बहुत बुद्धिमान या महान या शक्तिशाली नहीं थे, लेकिन वे जहां भी गए या उत्पीड़न के कारण तितर-बितर हो गए, उन्होंने दूसरों के साथ अपना विश्वास साझा किया, शिष्य बनाए और सब जातियों के लिए प्रार्थना का घर स्थापित किया । आज भी, फिर से साधारण लोग ही हैं जो परमेश्वर के राज्य को बढ़ा रहे हैं और कीमत भी चुका रहे हैं । (प्रेरितों 8:4,5; 11:19,20; 1 कुरिन्थियों 1:26-29)
उन्होंने क्या किया ? उनके पास कोई भवन, कोई पुरोहित और कोई दशमांश नहीं था । घर-घर रोटी तोड़ते, और सुसमाचार दूसरों के साथ साझा करते, शिष्य बनाते और उन्हें भी ऐसा करने के लिए आगे भेज देते थे । (प्रेरितों के काम 2:42, 46; 4:34,35)
परिणाम: हर दिन नए विश्वासी जुड़ते जाते थे, शिष्यों की संख्या में विस्फोटक वृद्धि हुई, और हर दिन गुणवत्ता वाले नए सतसंग स्थापित हुए । (प्रेरितों के काम 2:47; 6:7; 16:5)
बुरी खबर: चर्च संस्थावादी और सांप्रदायिक (डिनोमीनॅशनल) हो गयी और सदियों तक चार दीवारों के भीतर रीति रिवाजों के दलदल में फंसकर संस्थागत और निष्क्रिय हो गयी। बिश्वसियों का ज्ञान एक बेफायदा भंडार है क्योंकि उसका कोई उपयोग नहीं है । वे हमेशा सीखते तो रहते हैं, लेकिन सत्य की पहिचान तक कभी नहीं पहुंचते । (2 तीमुथियुस 3:7)
अच्छी खबर: लगभग 2000 वर्षों तक भटकने के बाद, पिछले 30 वर्षों में, शिष्य बनाने के मूल सिद्धांतों पर आधारित सतसंग पूरी दुनिया में विस्फोटक रूप से आगे बढ़ रही है । जल्द हर जनजातियों के संतों की एक बड़ी भीड़ प्रभु के सिंहासन के सामने खड़ी होगी और उसकी आराधना करेगी । (प्रकाशित वाक्य 7:9,10; 20:12,15)
पारिवारिक सतसंग क्यों ?
क्योंकि परमेश्वर मनुष्यों के द्वारा निर्मित मकान में नहीं रहता (प्रेरित 7:47- 49): वह हमारे दिलों में रहता है (2 कुरि. 6:19) । यह कहीं भी, कभी भी, किसी के भी अगुवाई में मिल सकती है, किसी पेड़ की छाय में, पार्क में, स्कूल/कॉलेज परिसर में, कार्यालय में, चाय की दुकान में, या किसी व्यावसायिक केंद्र में । दरअसल, जहाँ भी दो या तीन प्रभु के नाम पर इकट्ठा होते हैं, प्रभुजी वहाँ मौजूद हो जाते हैं और वो उनकी सतसंग बन जाती है (मत्ती 18:18-20) । लुदिया की सतसंग नदी के किनारे मिलती थी । (प्रेरित 16:13)
प्रभु यीशु ने पतरस से कहा, "मैं अपनी कलीसिया बनाऊँगा, और अधोलोक के फाटक उस पर प्रबल न होंगे”। (मत्ती 16:18) 'कलीसिया का मतलब “ बुलाए हुए लोग ” या “ सभा," या “ मण्डली ” है लेकिन न्यायालय भी है ।
“देमेत्रियुस और अन्य लोगों को अदालत में जाने दें, जहां न्यायाधीश एक वैध सभा ('कलीसिया) में निर्धारित करेंगे । (प्रेरित के काम 19:38)
लोकतंत्र में, जनता अपने शासकों का चुनाव करते हैं, लेकिन कलीसिया में, शासकों को राजा नियुक्त करता है, जो उसके कानूनों के मुताबिक शासन करते हैं । कलीसिया एक धार्मिक संस्था नहीं है, बल्कि परमेश्वर की न्याय पालिका है, जिसका काम हर कुल, गोत्र और भाषा के लोगों पर उसके कानून को लागू करना है । हमारे प्रभु की कलीसिया में, सब प्रताड़ित लोग प्रेम, न्याय, गरिमा और मोक्ष पा सकते हैं और मत्ती 18:15-17 के अनुसार, आत्मिक अपराधियों को समझाया, दंडित या बहिष्कृत भी किया जा सकता है।
2000 साल पेंटेकोस्ट के दिन 3000 आत्माओं के बपतिस्मा के साथ कलीसिया युग का आरम्भ हुआ था। उनके पास कोई धार्मिक भवन, पास्टर, रविवारीय आराधना, संगीत वाद्ययंत्र, दशमांश, न इंजील या वित्तीय या राजनीतिक शक्ति नहीं थी, लेकिन उनके पास पवित्र आत्मा की सामर्थ थी, इसलिए वे अत्यंत तेज रफ़्तार से बढ़ते थे । वे घरों में मिलते थे, रोटी तोड़ते थे, दोस्तों और पड़ोसियों के साथ सुसमाचार साझा करते थे, शिष्य बनाते थे और हर जगह गृह कलीसिया स्थापित करते थे। गृह कलीसिया प्रभु की दुल्हन होने से एक जीवित प्राणी है जबकि परमपरागत कलीसिया एक मानव निर्मित संस्था है ।
उनके बीच मूलभूत अंतर यह है कि जबकि पारंपरिक चर्च स्तुति और आराधना के साथ परमेश्वर से सीधा संबंध पर केंद्रित है, लेकिन ख्रीष्ट की नए नियम की कलीसिया, सदस्यों की उन्नति और विकास पर केन्द्रित है जैसे एक दूसरे से प्रेम करना (यूहन्ना 13: 34,35), एक दूसरे के लिए प्रार्थना करना (याकूब 5:16) और एक दूसरे को प्रोत्साहित करना और उन्नति करना (1 थिस्सलुनीकियों 5:11), यहां तक कि एक दूसरे के लिए गीत गाना (इफिसियों 5:19; कुलिस्सियों 3:15,16) और शास्त्र में दिए 45 और "एक दूसरे" के लिए । यदि आपके पास भवन, तन्ख्वाधारी पास्टर, संगीत यंत्र और आराधना है तो वह मानव-निर्मित कलीसिया है न कि प्रभु येशु द्वारा निर्मित नए नियम की कलीसिया ।
समय के साथ, कलीसिया संस्थागत हो गयी और गृह कलीसिया पर प्रतिबंध लगा दिया गया और वह करीबन लुप्त हो गयी । पिछले 25 वर्षों में, वह फिर उभर कर सामने आयी हैं; अब यह दुनिया की सबसे तेज रफ़्तार से बढती कलीसिया है । वर्तमान में दुनिया भर में कम से कम दो करोड़ गृह कलिसियाएँ हैं, जिनमें लगभग 30 करोड़ सदस्य हैं ।
सतसंग परमेश्वर का घराना है: इसलिए घर में मिलना स्वभाविक है जहाँ आपसी संगति, वचन की संगति, भोजन की संगति और शिष्य बनाने की सारी सुविधायें उपलब्ध होती हैं जिससे शिष्यों और सतसंग की संख्या में गुणात्मक वृद्धि होती है । (इफिसियों 2:19,20)
जैसे एक घर में माता-पिता, दादा-दादी, बच्चे और पोते-पोतियां होते हैं, इसी प्रकार, एक आत्मिक परिवार में आत्मिक माता-पिता, दादा-दादी, बच्चे और नये विश्वासी होते हैं । यहाँ कोई अधिकारी या ऊंचे या नीचे होने या लिंग भेद की भावना नहीं होती । हर एक का कार्य क्षेत्र उनकी योग्यता के अनुसार अलग अलग होता है । (1 कुरिन्थियों 7:17)
सतसंग यीशु मसीह की दुल्हन है : दुल्हन एक जीवित प्राणी है जो बच्चे पैदा करती है, न कि कोई बेजान संस्था जो बाँझ होती है । सतसंग को शुरू करने और चलाने में कुछ भी खर्च नहीं होता है क्योंकि घर में सभी सुविधाएं उपलब्ध होती हैं इसलिए दसवांश वसूलने की जरूरत नहीं होती ।
सुरक्षा: यहाँ बड़ी भीड़ या कान फोड़ू संगीत, नाच गाना और गलाफाड़ उपदेश नहीं होता है इसलिए सताव से बेहतर सुरक्षा होती है ।
बिश्वासी और अबिश्वासी सब का स्वागत : क्योंकि प्रभु का घर किसी जाति विशेष के लिए नहीं लेकिन सब जातियों के लिए प्रार्थना का घर है । एक अविश्वासी को भी गृह सतसंग के मैत्रीपूर्ण माहौल में आने और अपने संदेह दूर करने की अधिक संभावना होती है, बनिस्बत के एक परम्परागत सतसंग में जहां उसका स्वागत भी नहीं होता ।
न्याय के दिन आपका फैसला : आपकी बाइबिल के ज्ञान पर, चर्च में उपस्थिति, दशमांश, संगीत, योग्यता, या मिशन संस्था में काम करने पर या मसीहियों के कब्रस्तान में गड़ाए जाने पर निर्भर नहीं करता है, चाहे वे कितने भी अच्छे हों, लेकिन आपका न्याय कितने फलदायी होने पर यानि आपने कितनी आत्माएं बचाए उस पर निर्भर करता है क्योंकि "मनुष्य अपने फलों से पहचाना जाएगा (बचाई गई आत्माएं)" (मत्ती 7:20) ।
यहां तक कि प्रभु का नाम पुकारने से भी एक आत्मा को बचाया जा सकता है, "क्योंकि जो कोई प्रभु का नाम लेगा, वह उद्धार पाएगा ।" (रोमियों 10:13; योएल 2:32)
यदि आप अपने मसीही जीवनकाल में एक भी खोय हुए आत्मा को बचाने में सक्षम नहीं हुए तो आप अनन्त जीवन का वारिस होने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं ?
“जो कोई मुझ से और मेरी बातों से लजाएगा; मनुष्य का पुत्र भी जब अपनी, और पिता की, और पवित्र स्वर्ग दूतों की, महिमा सहित आएगा, तो उससे लजाएगा” (लूका 9:26)
सम्पूर्ण प्रक्रिया :
- प्रचारक - बंजर खेत में जाकर खोए हुओं को उद्धार का मार्ग बताते हैं और
- शिक्षक - जो प्रभुजी को ग्रहण करते हैं उन्हें वचन में परिपक्व करते हैं फिर
- प्रेरित - खलियान में ले जाकर फसल बटोरने का प्रत्यक्ष प्रशिक्षण देते हैं ।
ये प्रक्रिया परमपरागत सतसंग में संभव नहीं है इसलिए वो बाँझ होती है जबकि ये सारी सुविधाएं सिर्फ गृह सतसंग में ही उपलब्ध होती हैं । इन्ही कारणों से गृह सतसंग इतनी तेजी से उन्नति करती है ।
सतसंग की परिभाषा और कार्य
पहिली परिभाषा "मैं अपनी कलीसिया बनाऊँगा, और नरक के फाटक उस पर प्रबल न होंगे ।" कार्य – अधोलोक के फाटकों को ध्वस्त करना (मती 16:18) ।
दूसरी परिभाषा - "मेरा घर सब जातियों के लिये प्रार्थना का घर कहलाएगा"
कार्य – हर जाति के विश्वासियों और अविश्वासियों का स्वागत है । (मरकुस 11:17) ।
तीसरी परिभाषा - "जहां दो या तीन मेरे नाम पर इकट्ठे होते हैं, वहां मैं उपस्थित होता हूं । कार्य - सिर्फ मात्रा नहीं, गुणवत्ता आवश्यक (मत्ती 18:20) ।
चौथी परिभाषा - कलीसिया परमेश्वर का घर है ।
कार्य: पारिवारिक संबंध बनाना । (इफिसियों 2:19,20) ।
पांचवी परिभाषा - कलीसिया मसीह की देह है ।
कार्य - प्रत्येक सदस्य के पास एक अलग वरदान और बुलाहट है । (रोमियों 12:3-8) ।
छठी परिभाषा - कलीसिया मसीह की दुल्हन है ।
कार्य - प्रजनन और गुणात्मक वृद्धि (इफिसियों 5:25-27) ।
सातवीं परिभाषा - कलीसिया एक आध्यात्मिक मंदिर है ।
कार्य – अन्य जातियों को जीवित बलिदान के रूप में चढ़ाना (1 पतरस 2:5) ।
आठवीं परिभाषा - कलीसिया एक पारिवारिक न्यायालय है ।
कार्य - जहां आहत लोगों को न्याय और मोक्ष मिलता है और आत्मिक अपराधियों को दंडित किया जाता है । (प्रेरितों. 19:36-40; 1 कुरिन्थियों 5:4,5) ।
नौवीं परिभाषा – एक समग्र कलीसिया है जहाँ जरूरतमंदों की शारीरिक, मानसिक और आध्यामिक जरूरते पूरी होती हैं (प्रेरित 2:44-46) ।
दसवीं परिभाषा – कलीसिया राजपदधारी याजकों का समाज है । कार्य - ताकि तुम परमेश्वर के अद्भुत कामों की घोषणा करो । (पतरस 2:9)
जिस कलीसिया में आप जाते हैं, वह बाइबल में नहीं है, क्योंकि वहाँ उपरोक्त कार्यों में से कोई भी कार्य नहीं होता है । वह केवल नाच गाना, फैशन परेड, और मनोरंजन केंद्र है ।
कलीसिया के अनेक कार्य हैं जो अंततः परमेश्वर के राज्य के विकास, गुणन और विस्तार में परिणित होते हैं । प्रभु यीशु की कलीसिया एक गतिशील जीवित प्राणी है, जिसका लक्ष्य सब कुल, भाषा, गोत्रों और जातियों के मध्य परमेश्वर का राज्य स्थापित करना है ।
कलीसिया की गुणवत्ता उसके मनभावने गीतों, मधुर संगीत, मनुष्य को खुश करनेवाले उपदेशों, शानदार इमारतों या पैसा कमाने की क्षमता से नहीं बल्कि प्रचुर मात्रा में शिष्य बनानेवाले शिष्य तैय्यार करने की क्षमता से आंका जाता है ।
महिलाओं की भूमिका
नए नियम के समय में सतसंग में महिलाओं की भूमिका कभी भी कोई मुद्दा नहीं था । मानव निर्मित लिंग भेद एक वर्तमान अभिशाप है । यदि एक महिला प्रभु यीशु को पैदा करके पाल पोस सकती है और पेंतेकुस्त के दिन पवित्र आत्मा का वरदान प्राप्त कर सकती है और जिनके नाम जीवन की पुस्तक में लिखे हैं तो वह पुरुष से कम कैसे हो सकती है ? (मत्ती 1:23; प्रेरित 1:8; फिलिप्पी 4:3) महिलाओं ने नए नियम में उल्लेखित सभी घरेलू सतसंगों की अगुवाई की – प्रिसिल्ला – (1 कुरिन्थियों 16:19) ; लुदिया – (प्रेरित 16:15) ; फीबे – (रोमियों 16:1) ; अफ्फिया – (फिलेमोन 1:2) ; निम्फा – (कुलुस्सियों 4:15) ; मरियम – (प्रेरित 12:12) ।
महिलाएं शिक्षा दे सकती हैं । 1कुरि. 14:34-35; 1 तीमुथि 2:11,12 जहां औरतों को सार्वजनिक रूप से सिखाने की अनुमति नहीं है लेकिन यथार्थ में ये पति और पत्नी के संदर्भ में हैं । वे अपने पति को कलिसिया में शिक्षा नहीं दे सकती, लेकिन दूसरों को सिखाने के बारे में कोई रोक नहीं है । मरियम मग्दिलिनी सब से प्रथम प्रचारिका थी और प्रिस्किल्ला, लुदिया, फीबे और जूनिया (रोमियों 16:7) उच्चतम शिक्षिकाएँ थीं । और सामरी स्त्री ने अपनी गवाही से अपने पूरे नगर को प्रभु के चरणों पर ला दिया था ।
पौलुस अपने शिष्य तीमुथियुस से कहता है, "जो बातें तू ने मुझ से सुनी है, उन्हें विश्वासयोग्य 'पुरुषों' को सौंप दे, जो औरों को सिखाने के योग्य हों ।" यहाँ 'पुरुषों' के लिए यूनानी शब्द 'एंथ्रोपोस' का प्रयोग किया गया है जिससे एंथ्रोपोलॉजी (मानव जाती का अध्ययन) शब्द आता है, इसलिए यह उन पुरुषों और महिलाओं दोनों के बारे में है जो शिक्षा देने में सक्षम हैं । (2 तीमुथियुस 2:2)
पास्टर पॉल योंगी चो, जिनके पास दक्षिण कोरिया में दुनिया की सात लाख सदस्यों की सबसे बड़ी सतसंग है, और 4000 गृह सतसंग हैं उनका कहना है कि उनके 80% गृह कलिसियाओं को महिलाओं ने ही स्थापित किए हैं ।
धर्मग्रंथ की गलत व्याख्या करके लिंग आधारित 50% मसीही महिलाओं को अक्षम करना सर्वोच्च स्तर की मूर्खता है।
सतसंग सिर्फ भाइयों का जमावड़ा नहीं है, "तुम में से जितनों ने जल दीक्षा लिया है उन्हों ने मसीह को पहिन लिया है । अब न कोई यहूदी रहा और न यूनानी; न कोई दास, न स्वतंत्रा; न कोई नर, न नारी; क्योंकि तुम सब मसीह में एक हो”। (गलतियों 3:27, 28)
सतसंग में कौन अगुवाई कर सकता है ?
कलीसिया में, ऊँचे नीचे का भेदभाव नहीं होता, क्योंकि सभी बिश्वासी मेमने के लहू से शाही याजक बनाए गए हैं (प्रकाशितवाक्य 5:9,10) । इसलिए, कलीसिया में सभी विश्वासियों को पुरोहित होने का अधिकार है । आप जहां भी रहते हैं और काम करते हैं वहाँ के आप पुरोहित हैं और उनकी आत्माओं के लिए जवाबदेह हैं ।
“परन्तु परमेश्वर ने बुद्धिमानों को लज्जित करने के लिये इस जगत के मूर्खों को चुन लिय। और शक्तिशाली लोगों को लज्जित करने के लिए इस संसार की कमजोर लोगों को चुना जिसे दुनिया बेकार, अनुपयोगी और कुछ भी नहीं समझतें है, उन्हें परमेश्वर ने दुनिया महत्वपूर्ण लोगों को नष्ट करने के लिए इस्तेमाल किया है” । (1 कुरिन्थियों 1: 26,27)
गृह सतसंग की अगुवाई कोई भी, पुरुष और महिलाएं और युवा भी कर सकतें हैं । किसी प्रशीक्षित पासबान की आवश्यकता नहीं होती । प्राचीनो का काम झुंड को प्रजनन परिपक्वता तक लाने के लिए मार्गदर्शन, सुरक्षा, शिक्षण, अनुशासित और सलाह देना है:
प्राचीनों के आवश्यक गुण : (तीतुस 1:5-9; 1 तिमोथी 3:1-7)
- प्राचीनों को चरित्रवान होना चाहिये,
- अतिथि सत्कार करने वाला,
- परमेश्वर के धन और अन्य संसाधनों का ईमानदार प्रबंधक,
- धर्म शास्त्र से खरी शिक्षा देने में सक्षम,
- विवादियों का मुंह बन्द करने की योग्यता हो और
- जिनके बच्चे बिश्वास में चलते हों :
अधिकांश मसीही माता-पिता इस परीक्षा में फेल हो जाएंगे, क्योंकि उन्होंने शुरू से ही गलत रास्ते को अपनाकर अपने बच्चों को परमेश्वर रहित अनन्तकाल में ढकेल दिया है । वे खुद पैसा कमाने में व्यस्त हैं और अपने बच्चों पर भी ऐसा करने का दबाव बनाते हैं । वे अपने बच्चों को शिक्षित करने के लिए बेहिसाब समय और धन का उपयोग करते हैं लेकिन बाइबिल की शिक्षा देने और परिवारिक प्रार्थना के लिए कोई समय नहीं रहता । बाइबल कहती है, कि "अज्ञानता के कारण मेरी प्रजा नाश हो रही है इसलिए मै तेरे संतान को त्याग दूंगा” और “पैसे का प्यार सभी बुराइयों की जड़ है” । कोई आश्चर्य नहीं कि आज की पीढ़ी पैसे के पीछे दौड़ रही है, जिसके लिए माता-पिता ही जिम्मेदार हैं जिन्होंने अपने बच्चो को परमेश्वर के राज्य से वंचित कर दिया है । (1तीमु. 6:10. होशे 4:6)
बाइबिल हिदायत देती हैं कि, “बच्चों को शिक्षा उसी मार्ग की दें, जिस में उसको चलना चाहिये, और वह बुढ़ापे में भी उस से न हटेगा (नीति. 22:6)। इंजील - "मुझे इस से बढ़कर और कोई आनन्द नहीं कि मेरे लड़केबाले सच्चाई पर चलते हैं । (3 यूहन्ना 1:4)
"तब यहोशू ने सब लोगों से कहा, आज चुन लो कि तुम किसकी सेवा करोगे; परन्तु मैं और मेरा घराना यहोवा की ही सेवा करेंगे" जैसा यहोशू के दिनों में हुआ था, वैसा ही आज भी हमारे साथ है । (यहोशू 24:2, 15)
सम्बन्ध बनाकर रखना : पौलुस ने स्थानीय अगुवो को खड़ा किया और उनसे व्यक्तिगत रूप से सम्बन्ध रखा । कभी अपने शिष्यों को भेजा या पत्र लिखा ताकि रास्ते से न भटकें, "और कुछ दिनों के बाद, पौलुस ने बरनबास से कहा, आओ हम फिर चलें और भेंट करें हमारे भाई हर उस शहर में हैं, जहाँ हमने प्रभु का वचन सुनाया है, यह देखने के लिए कि वे कैसे स्थिर है” (प्रेरितों के काम 15:36-41) । उसने तीतुस को क्रेते भेजा, ताकि वहाँ की कलीसियाओं में सुधार करें और प्राचीन नियुक्त करें । (तीतुस 1:5)
स्थानीय संस्कृति की महत्वता : पौलुस ने तिमोथी, तीतुस, बरनबास जैसे बाहरी व्यक्ति को किसी स्थानीय सतसंग का पासबान नियुक्त नहीं किया, क्योंकि सतसंग स्थानीय भाषा, संस्कृति, और संदर्भ में स्थापित किए जाते हैं । स्थानीय प्राचीन, होने से अन्य समुदाय के लोगों को उपस्थित होकर भाग लेने में संकोच नहीं होता । स्थानीय लोग अपने लोगों को मान्यता देते हैं, और बाहरी लोगो को शंका के दृष्टी से देखते हैं । पौलुस ने इस रणनीति से सतसंग आन्दोलन प्रज्वलित कर दावा किया कि, “अब इन प्रदेशों में कोई स्थान नहीं बचा है, जहाँ मैंने प्रचार नहीं किया”। (रोमियों 15:23)
चौथी शताब्दी में भारत में, पूर्वी सतसंग ने आराधना में दमिश्क की सिरिएक भाषा का उपयोग किया, जिसे कोई नहीं समझता था, जिससे सतसंग गंभीर रूप से सीमित हो गयी। 16 वीं सदी में संस्थावादी कैथोलिक सतसंग ने स्थानीय भाषा का उपयोग किया लेकिन स्थानीय अगुवों को बढ़ावा नहीं दिया। 18 वीं शताब्दी में, प्रोटेस्टेंट कलीसियाओं ने पारिवारिक सतसंगों को उचित सतसंग नहीं माना। उनके अनुसार उचित सतसंग एक इमारत है, जिसमे चोगाधारी पुरोहित, विदेशी संगीत और व्यवस्था के कारण अन्य जाति के लोग मसीहियत को विदेशी धर्म समझते हैं, और उसका तिरिस्कार करते हैं । धर्मपरिवर्तन एक विवादास्पक मुद्दा है, इसलिए स्थानीय पारिवारिक सतसंग विदेशी धार्मिक पहचान के बजाय स्थानीय समुदाय के संकृति से होना चाहिए। बाइबल भी इसका पुष्टिकरण करती कि तुम जिस स्तिथि से आये हो उसी में बने रहो। (1कुरिन्थियों 7:20,24) इसीलिए यहूदी और यूनानी अपने समुदाय में बने रहकर यीशु भक्त कहलाये।
"अब न कोई यहूदी रहा और न यूनानी; न कोई दास, न स्वतंत्रा; न कोई नर, न नारी; क्योंकि तुम सब मसीह में एक हो” । (गलतियों 3:27, 28)
यहाँ चर्च, बपतिस्मा, पास्टर, क्रिसमस, ईस्टर, क्रिस्चियन, रेवरेंड जैस विदेशी शब्दों का उपयोग नहीं करना चाहिए। इनके बदले सतसंग, जल दीक्षा, पुरोहित, प्रभु का जन्मोत्सव, बलिदान दिवस, पुनुर्थान दिवस जैसे शब्दों का उपयोग करना चाहिए । प्रभु का सुसमाचार पृथ्वी के अंत तक तभी पहुंच पायेगा जब पूरी तरह से स्वदेशी दिखाई दे।
प्रमुख धर्मों के दृष्टिकोण
मसीही दृष्टिकोण : मसीहत कोई धर्म नहीं है ही क्योंकि प्रभू यीशु कोई धर्म स्थापित करने नहीं आए थे बल्कि परमेश्वर का राज्य स्थापित करने आये थे ।
इस्लामिक दृष्टिकोण; और मसीहियत में समानता : हज़रत ईसा एक कुंवारी से पैदा हुआ (क़ुरआन 19:20) । वह रूहुल्लाह (अल्लाह की रूह) और कलीमतुल्लाह (कलाम) है (क़ुरआन 3:45; 4:171) । वे पैदायशी पाक़ थे (क़ुर.19:19) । अल्लाह ने उन्हें पाक़ इंजील दिया (क़ुर. 19:30) । उसने अंधों को दृष्टि दी, बीमारों को शिफा दिया, बदरूहों को निकाला, कोढ़ियों को पाक साफ़ किया और मुर्दों को ज़िन्दा किया (क़ुरआन 3:48,49) । वो अल्लाह के नज़दीक है (क़ुरआन 5:117; 3:55; 4:158) । वह आखिरत में सब का फैसला करने आयेंगे । (क़ुरआन 4:159;43: 61)
ख़ास अंतर: हज़रत ईसा अल मसीह अल्लाह के बेटे नहीं बल्कि सिर्फ एक पैगम्बर हैं । हज़रत ईसा अल मसीह सलीब पर नहीं मरे, बल्कि अल्लाह ने उन्हें अपने पास ज़िन्दा उठा लिया और किसी और को हमशक्ल बनाकर पर चढ़ा दिया । ईसाई तीन ईश्वरों- पिता, पुत्र और माता मरियम में विश्वास करते हैं जो शिर्क – याने अक्षम्य गुनाह है । बाइबल भ्रष्ट हो गई है और बदल गई है और इसलिए 'मनसूख' (निरस्त) कर दी गई है, लेकिन क़ुरआन अल्लाह का लब्ज़ दर लब्ज़ कलाम है ।
जवाब : अल्लाह का कलाम भ्रष्ट नहीं किया जा सकता क्योंकि उसने कहा, "मैं अपने ज़िक्र = कलाम की हिफाज़त करता हूँ" (क़ुरआन15:9) । यहां अल्लाह न केवल क़ुरआन बल्कि सभी ज़िक्र की रक्षा करता है, जिसमें पिछले धर्मग्रंथ भी शामिल हैं (क़ुरआन 5:48; 2:106) । यदि बाइबिल भ्रष्ट नहीं है, तो बाइबल और क़ुरआन दोनों सही नहीं हो सकते क्योंकि उनके बीच बुनियादी विरोधाभास हैं । यदि बाइबल सही है तो क़ुरआन सही नहीं हो सकता । क़ुरआन ईसाइयों को स्पष्ट रूप से आदेश देता है, "(ऐ रसूल) तुम कह दो कि ऐ एहले किताब जब तक तुम तौरेत और इन्जील और जो (सहीफ़े) तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से तुम पर नाजि़ल हुए हैं उनके (कानून) को क़ायम न रखोगे उस वक़्त तक तुम्हारा मज़बह कुछ भी नहीं "(क़ुरआन 5:68) । क़ुरआन आगे फरमाता है, "और इन्जील वालों (नसारा) को जो कुछ ख़ुदा ने (उसमें) नाजि़ल किया है उसके मुताबिक़ हुक्म करना चाहिए और जो शख़्स ख़ुदा की नाजि़ल की हुई (किताब के मुआफि़क) हुक्म न दे तो ऐसे ही लोग बदकार हैं" (क़ुरआन 5:47) ।
लेकिन, क़ुरआन परिवर्तनशील है क्योंकि अल्लाह कहता है, "हम जब कोई आयत मन्सूख़ करते हैं या तुम्हारे ज़ेहन से मिटा देते हैं तो उससे बेहतर या वैसी ही नाजि़ल भी कर देते हैं "(क़ुरआन 2:106) क्योंकि यहूदियों और ईसाइयों ने इस्लाम से इनकार कर दिया, तो मोहम्मद विरोधी हो गए और कहा, "काफिरों को जहाँ भी पाओ, क़त्ल कर दो" (क़ुर. 2:191; 9:5:9; 29) । क़ुरआन में इस तरह की 100 से अधिक हिंसक आयतें हैं ।
सनातन दृष्टिकोण: सनातन धर्म “वसुधैव कुटुंबकम” के आदर्श पर स्थापित है, (महा उपनिषद VI. 71-73), अर्थ - "दुनिया एक परिवार है"। वे “अहिंसा परमोधर्म” का भी दावा करतें हैं हालाँकि, वर्तमान में हिंदुत्व ने हिंसक रूप धारण कर लिया है । मसीही लोग “पवित्र लोगों के संगी स्वदेशी और परमेश्वर के परिवार के होते हैं । (इफिसियों 2:19)
ईसाई हिंदुओं से ज्यादा हिंदू हैं - यह कैसे संभव है ? क्योंकि वेद कहते हैं: "एकम् ब्रह्म, द्वितीय नास्ते नेह न नास्ते किंचन" अर्थात - "केवल एक ही ईश्वर है, दूसरा नहीं, बिल्कुल नहीं, रत्ती भर भी नहीं ।" "न तस्य प्रतिमा अस्ति" - "उस परमेश्वर की कोई छवि या मूर्ति नहीं है ।" (यजुर्वेद 32:3)
रामायण के अनुसार धर्म की परिभाषा : "परहित सरिस धर्म नहीं भाई, परपीड़ा सम नहीं अधमाई ।" अर्थात, "दूसरों का भला करने जैसा कोई धर्म नहीं और दूसरों को कष्ट पहुंचाने जैसा कोई पाप नहीं ।" (रामचरितमानस: उत्तर कांड 40:1)
जो लोग ईसाईयों को रोको, टोको और ठोको कहकर कष्ट पहुचाते हैं तो क्या वे हिन्दू हैं?
“ राम एक तापस तिय तारी; नाम कोटि खल कुमती सुधारी” (बाल कांड 23-25:1- 4) अर्थात - राम ने केवल अहिल्या को मोक्ष दिया लेकिन "नाम" ने लाखों का उद्धार किया। यहूदी लोग परमेश्वर के नाम यहोवा को अति पवित्र मानते है इसलिए वे यहोवा नहीं कहते है लेकिन उसे “नाम” (हाशेम) कहते है । प्रभु यीशु मसीह का यहूदी नाम यहोशुआ है अर्थात “यहोवा का उद्धार” बाइबल कहती है, "और (प्रभु यीशु को छोड़ कर) किसी और के द्वारा उद्धार संभव नहीं है, क्योंकि स्वर्ग के नीचे मनुष्यों में और कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया, जिसके द्वारा हम उद्धार पा सकें । ("प्रेरितों के काम 4:12)
जब अर्जुन श्री कृष्ण के पास गए और उनसे मोक्ष मांगा, क्योंकि उन्होंने अपने भाइयों की ह्त्या करके पाप किया था । श्री कृष्ण ने उनसे कहा, "उनके पास जाओ जो केवल अपनी कृपा से तुम्हें परम शांति और शाश्वत जीवन देते हैं"। (गीता 18:62-63)
प्रभु यीशु ने अपना पूरा जीवन दूसरों की ओर कृपा और भलाई करते हुए बिताया और अपना जीवन प्रदान कर दिया और अपनी कृपा से जो भी उनके पास आता है उसे मोक्ष, शांति और शाश्वत जीवन प्रदान करते हैं ।
ईशा मसीह अभिशिक्त मुक्तिदाता: दि प्राप्ता नित्य शुधा शिवकारी, ईशा मसीह इतिच मम नाम प्रतिष्ठम । अनुवाद: जिस परमेश्वर का दर्शन सनातन पवित्र कल्याणकारी एवं मोक्ष दाई है । जो हृदय में निवास करता है । उसी का नाम ईशा मसीह अर्थात अभिशिक्त मुक्तिदाता प्रतिष्ठित किया गया । (भविष्य पुराण भारत खंड उपसर्ग पद 22-31)
हिन्दू ग्रन्थो में लिखे कारणों से मसीही लोग एक ईश्वरवादी होते हैं, प्रतिमा पूजा और हिंसा नहीं करते और गरीबों और समाज से तिरिस्क्रित लोगों की सेवा करने का प्रयास करते हैं, इसलिए वे हिन्दुओं से बेहतर हिन्दू होते हैं ।
योग: का अर्थ व्यायाम, ध्यान और मंत्रों के माध्यम से आत्मा की दुनिया के साथ मिलन। इसका उद्देश्य कुंडलिनी को खोलना है, जो सर्प की तरह निचली रीढ़ में निवास करता है। योग से, कुंडलिनी ऊपर जाकर, मस्तिष्क से, और माथे से तीसरी आंख के रूप में बाहर निकल जाती है । अब, आप सिद्ध होकर "अहम् ब्रम्हास्मि" कह सकते हैं, याने "मैं ईश्वर हूँ”। मसीही मत के अनुसार, जो कोई इंसान खुद को ईश्वर कहता है वह शैतान से है ।
प्रभु यीशु और अहिंसा : उन्होंने कहा कि यदि कोई तुम्हें एक गाल में थप्पड़ मारे तो दूसरा गाल भी आगे कर देना । उन्होंने तलवार उठाने से मना किया और कहा कि जो कोई तलवार से हत्या करेगा, वह तलवार से ही मरेगा । क्रूस पर अत्यंत तकलीफ सहते हुए भी उन्होंने पिता परमेश्वर से अपने शत्रुओं को क्षमा करने की प्रार्थना की । उन्होंने अपने शिष्यों को अपने शत्रुओं से प्रेम करना और उनके लिए प्रार्थना करने का आदेश दिया ।
बौद्ध दृष्टिकोण : चार महान सत्य सिखाता है, जो इच्छा से उत्पन्न दुख के बारे में हैं । आठ गुना पथ सिखाता है कि निर्वाण प्राप्त करने के लिए इच्छा की आग को कैसे बुझाया जाए । बौद्ध धर्म जन्म और पुनर्जन्म के चक्र से पर्याय है और किसी ईश्वर पर विश्वास नहीं करता, न ही वे शाकाहारी होते हैं । भिक्षु को जो मिल जाये वे खा लेता है ।
अधिकांश बौद्धों को गहन तपस्या और ध्यान के बावजूद जीवन की इच्छाओं का बोझ उतारना असंभव लगता है । प्रभु यीशु जो आपके पापों को क्षमा करते हैं और शाश्वत निर्वाण देते हैं, वे कहतें हैं कि अपने सारे बोझ प्रभु यीशु पर डाल दो । सदियों से ऊंची जातियों द्वारा शोषण किए जाने के कारण, लाखों दलित हिंदू धर्म से बौद्ध धर्म में पलायन कर रहें हैं, लेकिन सामाजिक सम्मान न मिलने के कारण अब वे प्रेम, न्याय, सम्मान और मोक्ष पाने के लिए प्रभु यीशु मसीह की ओर रुख कर रहे हैं ।
सिख दृष्टिकोण : केश, कंघा, किरपान, कड़ा, और कच्छा उनकी पहचान है । सिख धर्म गुरु नानक देव और नौ गुरुओं की शिक्षाएं गुरु ग्रंथ साहिब में निहित आधारित धर्म है । यह एकेश्वरवादी धर्म है । सिख धर्म का लक्ष्य प्रेम, भक्ति और सेवा के माध्यम से आत्मा को परमात्मा में लीन करना है । सिख धर्म जन्म और पुनर्जन्म के चक्र में विश्वास करता है। जबकि सिख धर्म में मुक्ति गुरुओं की तालीम और नेक कामों के माध्यम से है, तो वहीँ मसीही धर्म प्रभु यीशु के ऊपर बिश्वास और बलिदान में विश्वास और नेक कामों से है ।
सिख शब्द का अर्थ है शिष्य, और मसीही, प्रभु यीशु के शिष्य हैं । पंजाब का सिख-बहुल राज्य तेज रफ़्तार से गुरुओं से महासदगुरु यीशु मसीह की ओर आ रहा है, इसलिए पिछले दो दशकों में मसीहत में भारी वृद्धि हुई है । हालात ये है की आज पंजाब में मसीही आराधनालयों की संख्या गुरुद्वाराओं की संख्या से अधिक है ।
आदिवासी दृष्टिकोण : इस देश में करीब 50 किस्म के आदिवासी हैं जिनकी भाषा और संस्कृती अलग-अलग हैं । उत्तर पूर्व के करीबन 90 प्रतिशत आदिवासी मसीहियत को अपना चुके हैं जबकि बिहार, ओड़िसा, झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में इस प्रक्रिया तेज गति पकड़ ली है । हालाँकि उनका हिन्दूकरन का अभियान भी तेजी से चलाया जा रहा है, लेकिन आदिवासी हिन्दू नहीं हैं – उनमे वर्ण व्यवस्था और मूर्ती पूजा नहीं होती बल्कि वे बड़ादेव, पूर्वजो और प्रकृति की पूजा करते हैं । बंजारा, भील, संथाल, ओरों, कोरकू और गोंड सबसे प्रमुख हैं ।
नास्तिक दृष्टिकोण : नास्तिकता दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाला धर्म है । पारंपरिक ईसाई धर्म सहित सभी धर्म विस्फोटक रूप से अन्दर से नष्ट हो रहे हैं, और युवा लोग बड़ी संख्या में नास्तिक बन रहे हैं । लेकिन परमेश्वर पर विश्वास नहीं करने का अर्थ यह नहीं है कि परमेश्वर का अस्तित्व नहीं है । यह ऐसा कहने जैसा है कि मैं देश के कानूनों के अस्तित्व में विश्वास नहीं करता । बस एक अपराध करिये और देखिये कि कानून कैसे अस्तित्व में आ जाता है । बौद्धिक रूप से नास्तिकता अमान्य है, क्योंकि एक इमारत को बनाने के लिए एक निपुण बिल्डर की आवश्यकता होती है, और एक वाहन को एक ज्ञानी इंजीनियर की आवश्यकता होती है, इसलिए निश्चित रूप से सृष्टि की जटिल सर्रचना के लिए एक सर्वज्ञानी और सर्वशक्तिमान सृष्टिकर्ता की आवश्यकता होगी ।
नास्तिकता हृदय से संबंधित है, मस्तिष्क से नहीं । दाऊद कहता है, "मूर्ख ने अपने दिल में कहा है, कि कोई परमेश्वर है ही नहीं” । प्रभु ने कहा, "बुरे विचार, हत्या, परस्त्रीगमन, व्यभिचार, चोरी, झूठी गवाही, और निन्दा ह्रदय ही से निकलती है”। यीशु भक्त व्यभिचार नहीं करता, अन्यथा वह पाखंडी होगा, इसलिए वह सृष्टिकर्ता को नकार कर नास्तिक बन जाता है, ताकि जो दिल चाहे वो कर सकता है" (भ. सं. 14:1; मत्ती 15:19)
कबीरपंथी: कबीर एक सूफी संत थे, जो पेशे से जुलाहे थे । भारत में उनके अनेक अनुयायी हैं । उन्होंने संगठित धर्म, मूर्ति पूजा और सामाजिक बुराई के खिलाफ कई कविताएं लिखीं । उन्होंने सुसमाचार संदेश लिखे जैसे:
"अमरापुर को जात हैं सब को कहत पुकार, आवन है तो आइये, सूली ऊपर यार" जिसका का अर्थ है कि मैं स्वर्ग जा रहा हूँ । यदि आप आना चाहते हैं, तो आप भी आ सकते हैं, मै घोषणा कर रहा हूँ कि हमारा मित्र क्रूस पर है ।
उन्होंने यह भी लिखा, “ना तीरथ मे ना मूरत में, ना मै मंदिर ना मस्जिद में, ना मैं काबा (इस्लाम का निवास) और कैलाश (शिव का निवास) में, न मैं योग मैं न तपस्या में, न मै व्रत और उपवास में । मुझको क्यो ढूंढे रे भाई, मैं तो तेरे पास हूँ । याने हमें प्रभु परमेश्वर को यहाँ वहाँ ढूंढने की जरुरत नहीं है, वह हमेशा अपने भक्तों के साथ है । प्रभु यीशु ने कहा, "जहां दो या तीन मेरे नाम से इकट्ठे होते हैं, मैं उनके साथ हूँ” । उसने यह भी कहा, "देखो! मैं हमेशा तुम्हारे साथ सृष्टि के अंत तक हूँ”। (मत्ती 18:18; 28:20)
प्रभु यीशु ने कहा, “यदि कोई मुझ से प्रेम रखे, और मेरी आज्ञाओं को माने, तो मेरा पिता और मैं आकर उसके अन्दर निवास करेंगे” । (यूहन्ना 14:20, 23) अन्य धर्मों के दर्शन और दृष्टिकोण को जाने और समझे बगैर उनके बीच कलीसिया रोपण आन्दोलन प्रज्वलित करना नामुमकिन है ।
सताव एक आशीर्वाद
प्रभु येशु ने कहा, "धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के कारण सताए जाते हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है (मती 5:10)। सताव कलीसिया के इतिहास का एक लंबा, दर्दनाक परन्तु फलदायी हिस्सा रहा है । जब चेलों को यरूशलेम मंदिर के शासकों द्वारा सताया गया, तो सभा मंदिर के परिसर से घरों में स्थानांतरित हो गई (प्रेरितों के काम 2:46,47; 4:1-3)। जब सताव ने घरों पर आक्रमण किया, तब सभाएँ यहूदिया और सामरिया में स्थानांतरित हो गईं और अन्ताकिया और अन्यजातियों तक पहुँच गईं (प्रेरितों के काम 8:1-4; 13:1-3)। तब रोमन महाराजाओं ने सताव की सारी सीमा पार कर विश्वासियों को जंगली जानवरों को खिलाया और उन्हें आरी से काटा । लेकिन आखिरकार, 300 साल बाद रोमन सम्राट कॉन्सटेंटाइन एक बिश्वासी बन गया, और रोम शहर रोमन कैथोलिक चर्च का मुख्यालय बन गया । तब कैथोलिक लोगों ने प्रोटेस्टेंट लोगों को प्रताड़ित किया जिससे वह पूरे यूरोप में फैल गया । हाल के दिनों में, अनेक देश मासीहियों के प्रताड़ित करते हैं, लेकिन COVID-19 के कारण, यहां तक कि सबसे कट्टरपंथी देशों में भी गृह कलीसिया आंदोलन अब इंटरनेट के माध्यम से विस्फोटक रूप से फ़ैल रहा है।
विभिन्न प्रकार के सतसंग विदेशी मॉडल : विदेशी इमारतें, विदेशी पोशाक, विदेशी संगीत, विदेशी भाषा, विदेशी दानदाताओं द्वारा शुरू किया गया एक बाहरी अगुवा, ये सब बाइबल के खिलाफ हैं । उनका नेतृत्व विशिष्ट लोग विशिष्ट वर्ग के द्वारा किया जाता है । उनके पास विकास और गुणन का डीएनए नहीं होता । फैशन परेड देखना है तो ऐसे चर्चों में चले जाइये ।
विदेशी का अनुकरण नमूना : भाषा स्थानीय होने के अलावा सब कुछ समान है । वे बच्चे पैदा करके या स्थानान्तरण द्वारा या भेड़ चुराकर बढ़ते हैं ।
हाइब्रिड (मिश्रित) सतसंग : इसकी शुरुआत एक पारिवारिक सतसंग के रूप में हुई थी लेकिन अगुवे ने 'रेवरेंड' की नकली उपाधि हासिल करके भटक गया और इसे पैसा कमाने के केंद्र में बदल दिया । कभी-कभी बाहरी व्यक्ति कुछ सुविधाओं का प्रलोभन देकर इस पर कब्जा कर लेता है और उसका बढ़ना और फैलना बंद करके बाँझ बना देता है ।
मेगा कलीसिया : वे एक मेगा आपदा हैं ये भेड़िये हैं, जो भेड़ों के भेष में आते हैं । वे नादान लोगों को बंदी बनाकर उन्हें लूटते हैं । ये करिश्माई अगुवे मनमोहक संगीत, मनुष्यों को खुश करने वाला उपदेश, चिन्ह और चमत्कार जैसे आकर्षक कार्यक्रमों और मुफ्त उपहार देकर हजारों लोगों को आकर्षित करते हैं । उनके पास गुणन का डीएनए नहीं होता। वे मेगा बजट और आंकड़ों पर गर्व करते हैं । जब करिश्माई अगुवा किसी धोखाधड़ी या पाप में पकड़ा जाता है या उसकी मृत्यु हो जाती है तो यह सतसंग भी मर जाता है । सच्ची कलीसिया में कितने आये से नहीं लेकिन कितने भेजे गए से प्रमाणित होती है ।
नकली सतसंग : प्रभु यीशु ने पहले से भविष्यवाणी कर दी थी, कि अंतिम दिनों में झूठे भविष्यवक्ता उठ खड़े होंगे । आज, इसाईयत नकली रेवरेंड, भविष्यवक्ताओं, प्रेरितों और नकली उपाधियों और कागजी डिग्री वाले अन्य भ्रष्ट लोगों से भरा हुआ है, जो चिकनी-चुपड़ी बातें करके 'रेवरेंडाइटिस' नाम के वायरस को महामारी की तरह फैला कर प्रभु के सतसंग को चार दीवारों में सीमित करके भ्रष्ट कर रहें हैं ।
परमेश्वर ने यिर्मयाह से कहा कि उसे गैर-बाइबिल संरचनाओं के बारे में क्या करना चाहिए, “देख, मैं ने अपने वचन तेरे मुंह में डाल दिए हैं । मैं ने आज तुझे जाति जाति और राज्य के ऊपर इसलिये नियुक्त किया है, कि तुम उजाड़ डालो, उखाड़ डालो, नाश कर डालो, और ढा दो, और फिर से निर्मित करो और रोपित करो ।” (यर्मियाह 1:9,10)
पागल सतसंग : इन सतसंगों में रविवार को हो हल्ला और हल्लेलुयाह ज्यादा होता है लेकिन पूरे सप्ताह भर अपने पड़ोस और कार्यस्थल पर अन्य समुदाय के मध्य चुप्पी साधे रहते हैं, “जब सतसंग में सब भिन्न-भिन्न भाषाएँ बोलें, और यदि अविश्वासी भीतर आएँ, तो क्या वे न कहेंगे कि तुम पागल हो?” (1 कुरिन्थियों 14:23)
स्वदेशी सतसंग : स्थानीय लोगों द्वारा अपने घरों या सुविधाजनक स्थान पर शुरू किया जाता है । उनमें से अधिकांश नवधर्मी हैं जो चंगाई या किसी अलौकिक घटना के माध्यम से आए हैं । उनमें प्रजनन का डीएनए है क्योंकि नए विश्वासी अपनी गवाही दूसरों को बताकर प्रभु में लाने का जोश होता है । वे अपने विश्वास के प्रति कोई भी कीमत चुकाने को तैय्यार होते हैं । यह बहुत तेजी से बढ़ रही है और आज दुनिया की सबसे बड़ी सतसंग है । अपने अगुवों के लिए नहीं लेकिन शिष्य बनाने वाले भेजने के लिए जाना जाता है ।
गुप्त बिश्वासी : यहाँ परिवार या समुदाय के दबाव के कारण या इस्लामी और कम्युनिस्ट देशों में उनके लिए खुले में अपनी आस्था कबूल करना मुश्किल होता है लेकिन इनकी संख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है । आज मुसलमान मसीहत को तेजी से ग्रहण कर रहें हैं जो इस्लाम के 1,400 वर्षों में नहीं देखा गया । जो 6 करोड़ ने इस्लाम छोड़ दिया है, उनमें से एक करोड़ मसीही बन गए हैं । ईरान जैसे कट्टर देशों में जहाँ इस्लाम को त्यागने की सजा मौत है वहां दस लाख से अधिक लोग मसीही बन गए हैं और 50,000 मस्जिदें बंद हो गई हैं । संसार का सबसे बड़ा मुस्लिम मुल्क 22 करोड़ आबादी वाला इंडोनेशिया है वहां हर साल 20 लाख लोग मसीहत को ग्रहण कर रहें हैं । अफगानिस्तान जो सबसे कट्टरपंथी तालिबानी मुल्क है वहां मसीहत बड़ी तेजी से फ़ैल रही है ।
आपकी बुलाहट
पतरस को यहूदियों को बचाने के लिए बुलाया गया था, जो विश्वास नहीं करते थे कि यीशु, मसीहा हैं और पौलुस को अन्यजातियों को बचाने के लिए बुलाया गया था, जो प्रतिमा पूजक थे । प्रभुजी ने पहिले 12 शिष्यों को और फिर 70 नए शिष्यों को अबिश्वासियों के बीच 2x2 करके शिष्य बनाने के लिए भेजा था । पता लगाइए कि परमेश्वर ने आपको किस लिए बुलाया है ? (लूका 9:1-3; 10:1; 19:10; गलातियों 2:7)
सबसे बड़ी समस्या भूले भटके और खोए हुए अन्य जाति के लोग नहीं हैं, बल्कि भूले भटके और खोए हुए मसीही हैं, जो चर्च के बेंचों पर निष्क्रिय बैठे हैं । अफसोस की बात है, यह है कि अधिकांश बाइबल पर विश्वास करने वाले, चर्च जाने वाले ईमानदार ईसाई इस श्रेणी में आते हैं । पहला कदम ऐसे बिश्वासी जिनके पास गुणक डीएनए नहीं है, उन्हें जागृत करना है, नहीं तो वे बेफल वाली डालियों के समान काट कर आग में झोंक दिए जायेंगे । (यूहन्ना 15:6; यहेजकेल 9:3-6)
मसीह में आपकी पहचान
हम अपने नाम, प्रसिद्धि, शैक्षिक योग्यता, पेशे या रंग आदि से परिभाषित नहीं होते क्योंकि वे बाहरी हैं और इसलिए नाशवान हैं । यथार्थ में हम पृथ्वी के नमक हैं (मत्ती 5:13); जगत की ज्योति (मत्ती 5:14); परमेश्वर की संतान (यूहन्ना 1:12); फल लाने के लिए चुने गये (यूहन्ना 15:16); परमेश्वर के मंदिर जहाँ उसका पवित्र आत्मा रहता है (1 कुरिन्थियों 3:16); नई सृष्टि (2 कुरिन्थियों 5:17); उसके शांति के राजदूत (2 कुरिन्थियों 5:20); परमेश्वर के घराने के सदस्य (इफिसियों 5:19); शाही पुजारी (1 पतरस 2:9), प्रेरित, भविष्यद्वक्ता (इफिसियों 4:11), शिष्य-निर्माता (मत्ती 28:19), उसके साक्षी (प्रे.के काम 1:8), मनुष्यों के मछुवारे (मत्ती 4:19), बीज बोने वाले (मरकुस 4:26), फसल काटने वाले (यूहन्ना 4; 35), आत्मा बचाने वाले (याकूब 5:20), दुनिया को उलट पुलट कर देने वाले (प्रेरितों के काम 17:6) । परमेश्वर के राज्य के उत्तराधिकारी (रोमियों 8:17); हम जो भी हैं हम परमेश्वर के अनुग्रह से हैं (1 कुरिन्थियों 15:10) ।
इन सभी का लक्ष्य एक ही है - शैतान के साम्राज्य को ध्वस्त करना और परमेश्वर के राज्य को पृथ्वी पर लाना ।
हमें बैपटिस्ट, लूथरन, प्रेस्बिटेरियन, मेथोडिस्ट, ऑर्थोडॉक्स या पेंतिकोस्टल बनने के लिए नहीं बुलाया गया है । ये सभी प्रभुजी के सतसंग को विभाजित करते हैं । हम कभी 'रेवरेंड' (पूजनीय) नहीं हो सकते क्योंकि यह परमप्रधान परमेश्वर की उपाधि है (भ.स.111:9) प्रभु ने आपको शत्रु की सारी शक्ति पर सामर्थ दी है । “सुनो! साँपों और बिच्छुओं को पैरों तले रौंदने और शत्रु की समूची शक्ति पर प्रभावी होने का सामर्थ्य मैंने तुम्हें दे दिया है । तुम्हें कोई कुछ हानि नहीं पहुँचा पायेगा । जो कुछ तुम पृथ्वी पर बाँधोगे वह स्वर्ग में बंधेगा और जो कुछ तुम पृथ्वी पर खोलोगे वह स्वर्ग में खुलेगा”। (लूका 10:19; मत्ती 16:19)
“परमेश्वर के अधीन होकर शैतान का सामना करो तो वह भाग जाएगा"। (याकूब 4:7)
ये खैरात में नहीं बल्कि उपवास और प्रार्थना और कुशल शिक्षकों के तहत प्रशिक्षण से प्राप्त कौशल हैं । परिपक्व मसीही, विरोधियों के बीच अपने विश्वास को बाटने की क्षमता रखते हैं । पौलुस कट्टर यहूदियों से 'वार्तालाप' करता था; अगर वो कामगर नहीं हुआ तो उन्हें 'मनाने' की कोशिश करता और फिर 'विवाद' करता और अंत में उन्हें छोड़ देता था और अन्यजातियों के बीच चला जाता था । (प्रेरितों के काम 18:4; 19:8,9; 15:7)
क्या आप अपने सतसंग के साथ चर्चा करने को तैय्यार हैं और यदि वे परिवर्तन के लिए सहमत नहीं हैं, तो क्या आप अन्यजातियों के बीच जाकर सेवा करने के लिए तैय्यार हैं ?
“पर तुम एक चुना हुआ वंश, और राज-पदधारी, याजकों का समाज, और पवित्र लोग, और परमेश्वर की निज प्रजा हो, इसलिये कि जिस ने तुम्हें अन्धकार में से अपनी अद्भुत ज्योति में बुलाया है, उसके गुण प्रगट करो“। (1पतरस 2:9)
राजा के गुण : परमेश्वर राजाओं का राजा और प्रभुओं का प्रभु है, और हर एक मसीही राजपदधारी याजक है, इसलिए उसे एक राजा स्वरूप परमेश्वर के लक्ष्य को पूरा करना है यानि, “ फूलो फलो और पृथ्वी को भर दो, और उसे अधीन करके अधिकार (प्रभुत्व) करो ”(उत्पत्ति 1:28)
पुरोहित के गुण : आपको “शिष्य बनाना, उन्हें जल दीक्षा देना और आज्ञा पालन करना सिखाना है”। इस तरह आप सारे राजपदधारी पुरोहित की भूमिका को पूरी करने में सफल हों जायेंगे । (1 पतरस 2:9; मत्ती 28:19, 20)
प्रभु ने पवित्र आत्मा से प्रत्येक विश्वासी का 'ऑरडीनेशन’ किया है, "तुमने मुझे नहीं चुना है, लेकिन मैंने तुम्हें चुना और तुम्हारा 'ऑरडीनेशन’ (नियुक्त) किया है कि तुम ऐसा फल लाओ, जो बना रहे (यानि जो और फल पैदा कर सके)" । (यूहन्ना 15:16)
हर कोई अपनी बुलाहट और वरदानों के अंतर्गत कार्य करता है, कोई भूमि तैय्यार करता है, कोई बीज बोता है, कोई खाद डालता है, कोई पानी देता है और कोई उसकी निगरानी करता है और फसल काटता हैं लेकिन उन्नति परमेश्वर देता है । (1 कुरिन्थियों 3:6-9)
परमेश्वर का राज्य
प्रभु यीशु ने सुसमाचार में केवल तीन बार "चर्च" शब्द का इस्तेमाल किया (मत्ती 16:18; 18-17) और "राज्य" शब्द 80 बार । कलीसिया का एकमात्र वास्तविक कार्य आत्माओं को बचाना और पृथ्वी पर परमेश्वर के राज्य को स्थापित करना है । प्रभु यीशु के सेवकाई के शुरुआती शब्द थे, "मन फिराओ क्योकि परमेश्वर का राज्य निकट है” (मत्ती 4:17। उसने हमें प्रार्थना करना सिखाया, "तेरा राज्य आए, तेरी इच्छा पृथ्वी पर पूरी हो" (मत्ती 6:10)। उसने आज्ञा दी कि, "राज्य का प्रचार करो”(लूका 9:1-3) और कहा, "पहिले उसके राज्य और धार्मिकता की खोज करो, तो ये सब वस्तुएं भी तुम्हें मिल जाएंगी" (मत्ती 6:33)। अंत में, "इस दुनिया के राज्य हमारे प्रभु और उसके मसीह का राज्य बन गए है, और वह हमेशा हमेशा के लिए राज्य करेगा” । (प्रकाशितवाक्य 11:15)
राज्य की परिभाषा - राज्य के पांच तत्व - 1. एक राजा, 2. उसकी प्रजा, 3. उसकी सेना, 4. उसके सेवक और 5. उसका संविधान । प्रभु यीशु राजा है; हम उसकी प्रजा हैं । सेना नए क्षेत्रों को खोलती है, और सेवक उसके संविधान (बाइबिल) को लागू करते हैं ।
स्वर्ग का राज्य क्या है - प्रभु यीशु ने अनेक दृष्टान्त बताए, जैसे कि बोने वाला, उपजाऊ और ख़राब जमीन, राई का बीज, खरपतवार, खमीर, अच्छी और बुरी मछलियाँ और पांच समझदार और पांच लापरवाह कुवारियां । (मत्ती अध्याय 13; 25:1)
राज्य कहाँ है - यह हमारे मध्य और अनंत, दोनों है । (लूका 17:21; 2 पतरस 2:11)
राज्य में कौन होगा - जिनके नाम मेम्ने की पुस्तक में लिखे गए हैं । (प्रका. 20:12,15)
आप मेम्ने की पुस्तक में अपना नाम कैसे लिखवाते हैं - उसकी महिमा करके, ''और जब तुम बहुतायत से फल (बचाये हुएआत्माएं) लाते हो तब परमेश्वर की महिमा इसी की होती है । (यूहन्ना 15:8, 16; मत्ती 7:20)
कलीसिया का प्राथमिक कार्य क्या है – संतों को सिद्ध करके परमेश्वर के राज्य को आगे बढ़ाने के लिए आगे भेजना । (इफीसियों 4:12)
राज्य कब आएगा – यह आपको जानना जरूरी नहीं है, लेकिन आप पवित्र आत्मा के माध्यम से शक्ति प्राप्त करेंगे और जहां कहीं भी आप हैं होंगे, वहां से पृथ्वी की छोर तक प्रभूजी के गवाह होगे । (प्रेरितों के काम 1:6)
आखिरी लक्ष्य क्या है - हर बस्ती में परमेश्वर के राज्य को सत्यापित करके पूरी दुनिया को पर्मेश्वर के राज्य में बदल देना । वे विश्वासी जो ऐसा करते हैं वे ही प्रभु के सच्चे आज्ञाकारी शिष्य हैं जिनका नाम जीवन की पुस्तक में लिखा जाता है ।
प्रभु यीशु ईसाई धर्म के संस्थापक नहीं लेकिन परमेश्वर के राज्य के संस्थापक है । राज्यों की निश्चित सीमाएँ होती हैं, लेकिन उसके राज्य की सीमाएँ गतिशील होती हैं जो बढ़ती जाती हैं, "फूलो-फलो, बढ़ो, पृथ्वी में भर जाओ, उसे अपने वश में कर लो, और उस पर प्रभुता करो।" (उत्पति 1:28) प्रभु यीशु ने परमेश्वर के राज्य को पृथ्वी पर लाने को प्राथमिकता दी । दुःख की बात है कि ज़्यादातर मसीही नियमित तौर पर प्रार्थना तो करते हैं कि, "तेरा राज्य आए" लेकिन परमेश्वर के राज्य को अपने इलाकों में लाने के लिए कुछ भी नहीं करते ।
कलीसिया सरकार है :“हमें एक पुत्र दिया गया है; और प्रभुता उसके कांधे पर होगी, और उसका नाम अद्भुत युक्ति करनेवाला पराक्रमी परमेश्वर, अनन्तकाल का पिता, और शान्ति का राजकुमार रखा जाएगा” (यशायाह 9:6,7) । प्रभुता याने सरकार प्रभु यीशु के कन्धों पर होगी । कलीसिया प्रभुजी के देह है और हम उसके कंधे हैं इसलिए कलीसिया का काम प्रजा की देखभाल करना उनकी रक्षा करना, विदेशों में उसकी वर्चस्वता कायम करना इत्यादि है ।
सतसंग का संचालन कैसे करें
पारंपरिक चर्च पोप ग्रेगरी के ऑर्डर ऑफ सर्विस (आराधना की विधि) का पालन करता है, जिसमें स्तुति और प्रशंसा शामिल है, इसके बाद बाइबल से कुछ पाठ, एक उपदेश, चंदा और एक आशीर्वाद शामिल है । इसका नेतृत्व उन अगुवों द्वारा किया जाता है, जो मंच पर से सब पर नियंत्रण करते हैं, और सदस्यों को दुधारू गाय के रूप में देखतें हैं । बेंचों पर बैठे लोगों में बाइबल के ज्ञान का भण्डार होता हैं, लेकिन उसका उपयोग परमेश्वर के राज्य के विस्तार के लिए नहीं किया जाता है । वे सप्ताह दर सप्ताह ऐसा करते हैं, जिससे कि कलीसिया में न कोई बदलाव होता है और न परमेश्वर के राज्य की बढोत्तरी के लिए नए अगुवे तैय्यार होते हैं । प्रभुजी ने यहूदी अगुवों को उनकी मानव-निर्मित परंपराओं द्वारा परमेश्वर की आज्ञाओं का उल्लंघन करने के लिए फटकार लगाई । (मत्ती 15:3)
गृह कलीसिया में कोई आगे से निर्धारित स्तुति आराधना नहीं होती । इसके अगुवे दूसरों को 1 कुरिन्थियों 14: 23-32 के नमूने के आधार पर भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करते हैं । परमेश्वर ने कलीसिया के प्रत्येक सदस्य को वरदान दिया है । इसलिए, हर कोई अपना योगदान देता है ।“ दो या तीन वरदानी लोग बोलें और बाकि लोग उसको परखें”। किसी भी शिक्षण के बाद चर्चा होती है, जिससे बेहतर समझ और परिपक्वता होती है । लोग गवाही भी देते हैं और चंगाई, छुटकारे और मध्यस्थता के लिए प्रार्थना करते हैं । पुरुष और महिला दोनों भाग लेते हैं । “क्योंकि तुम सब एक-एक करके बोल सकते हो, ताकि सभी लोग सीखें और शांति पायें”। इसके बाद मिलकर भोजन किया जाता है।
दोनों सतसंगों का नेतृत्व, स्थान और संरचना बहुत अलग हैं । पारंपरिक सतसंग में निर्धारित समय में रविवार को सिर्फ ईसाई ही निर्धारित भवन में आते हैं, लेकिन पारिवारिक सतसंग कभी भी, कहीं भी मिल सकती है, जहां विधर्मियों का स्वागत होता है ।
प्रभु भोज क्या है ?
परमेश्वर ने कहा, “मैं यहोवा हूं, और तुम्हें मिस्रियों की दासता से निकालूंगा, और मैं उन्हें दण्ड दूंगा, और मैं भुजा बढ़ाकर, और बड़े न्याय के द्वारा तुम्हें छुड़ाऊंगा, और मैं तुम्हें अपना बना लूंगा । और मैं तुम्हारा परमेश्वर होऊंगा” (निर्गमन 6:6,7) । जिस रात को इस्राएलियों ने मिस्र छोड़ा उस रात को उन्होंने पहली बार फसह का पर्व अपने घरों के परिसर में मनाया गया था । (निर्गमन 12:3-14)
चार प्याले : यहूदी फसह का पर्ब चार प्याले भरे दाखरस और भुने हुए मेम्ने, अखमीरी रोटी और कड़वा साग के भोजन के साथ मनाते हैं । ख़मीर भ्रष्टता को दर्शाता है और अखमीरी रोटी मसीह के देह के दर्शाता है, जो कब्र में भ्रष्ट नहीं हुआ । मात्सा रोटी में बहुत से छेद होते हैं, जो मसीह के शरीर को दर्शाता है, जो कीले और भाले से छेदा गया था ।
पहला प्याला पवित्रीकरण का प्याला है । परमेश्वर ने 600,000 परिवारों को लाल समुद्र में जल दीक्षा देकर उनका पवित्रिकरण किया । (निर्गमन 12:37; 1कुरिं. 10:1-2)
दूसरे प्याले को क्रोध का प्याला कहा जाता है, क्योंकि परमेश्वर ने मिस्रियों पर अपना क्रोध बरसाकर अपने लोगों को बचाया । इसलिए यहूदी इस प्याले को नहीं पीते, इसके बजाय वे अपनी उँगलियों को दाखरस के प्याले में डूबा डूबाकर सभी विपत्तियां, जैसे साँप, खूनी नील नदी, मेंढक, टिड्डियाँ, मवेशी, सूर्य आदि, एक एक का नाम लेकर एक रुमाल पर छिड़कते हैं, जिन्हें मिस्रवासी देवताओं के रूप में पूजते थे, उन्हें परमेश्वर ने ध्वस्त कर दिया था ।
तीसरा प्याला जिसे हम मसीही मनाते हैं, वह मुक्ति का प्याला है जिसे प्रभु यीशु ने क्रूस पर बाहें फैलाकर पूरा किया । उसने कहा, “यह कटोरा मेरे खून में नई वाचा है; जब भी तुम इसे पीओ, मेरी याद में ऐसा किया करो” । (1 कुरिन्थियों 11:25)
चौथा प्याला जो अनंत जीवन का प्याला है जिसे प्रभु यीशु ने पीने से इनकार कर दिया, क्योंकि वे अभी तक क्रूस पर महिमान्वित नहीं हुए थे । वे इसे उस भव्य भोज में पियेंगे जब वे नए साम्राज्य की स्थापना करके हर जाति, कुल, गोत्र और भाषा के लोगों को अनंत जीवन के हकदार बनायेगे । (लूका 14:15-24)
अपने पारिवारिक संगति में प्रभु का भोज मनाने से आप :
- एक पुरोहित: जब परिवार के मुखिया ने मेमने की बलि दी, तो वह परिवार का पुजारी बन गया । अब शाही पुजारी के रूप में, हम खोई हुई आत्माओं को जीवित बलिदान के रूप में चढ़ाते हैं । (1 पतरस 2:9)
- एक रक्षक : जब उसने मृत्यु की आत्मा को अपने घर में प्रवेश करने से रोकने के लिए दरवाजे की चौखट पर मेमने का खून छिड़का, तो वह अपने परिवार का रक्षक बन गया । अब यीशु का बलिदान हमें शैतान से रक्षा करने की योग्यता देता है । (प्र. वाक्य 12:11)
- एक प्रबंधक : और जब उसने मांस खिलाया तो वह अपने घर का प्रबंधक बन गया जो अपनों का भरण-पोषण नहीं करता, वह काफ़िर से भी बदतर है । (1 तीमुथि. 5:8)
- इस प्रकार घर का अगुवा अपने परिवार का याजक, रक्षक और प्रबंधक होता है ।
- अंतिम भोज: एक ऊपरी कमरे में, प्रभुजी ने अपने शिष्यों को भुना हुआ मेम्ना, अखमीरी रोटी, कड़वा साग और अंगूर का रस, दाखमधू (wine) नहीं क्योंकि फसह के पर्ब पर खमीरयुक्त रोटी और दाखमदु वर्जित था) प्रदान किया (मत्ती 26:29; निर्गमन 12:3,7,8)। बाकि समय वे दाखमधू और खमीरी रोटी खाते थे । खाने के बाद, वह उठे और अपने शिष्यों के पैर धोए और फिर रोटी ली और उसे अपने शरीर के प्रतीक में और प्याले को अपने खून के प्रतीक के रूप में बाटा । फसह का भोज कभी भी मंदिर या आराधनालय में नहीं मनाया जाता था बल्कि हमेशा घर पर मनाया जाता था । (यूहन्ना 13:3-17)
पवित्र भोज एक द्विपक्षीय वाचा है : उपस्थित सभी लोगों को पूर्ण भोजन परोसा जाता है, चाहे उन्होंने जल दीक्षा लिया हो या नहीं । प्रभुजी ने अपने अंतिम भोज में सबसे पहिला प्याला और रोटी ख्रिस्त विरोधी यहूदा इस्कार्योती को प्रदान किया था (युहन्ना 13:26) । लेकिन भोजन के बाद जो रोटी और दाखरस बांटा जाता है वह वे ही लोग लें जो प्रभुजी के कुर्बानी की गवाही देने को तैय्यार हैं (1कुरिन्थियों 11:26) । यह दो पक्षों के बीच खून से बनी एक वाचा है । प्रभू यीशु अपना रक्त और देह प्रदान करता है और जो लोग भाग लेते हैं उन्हें दूसरों को उसके बलिदान की घोषणा करनी चाहिए । प्रभु भोज के बाद खोए हुए लोगों के साथ प्रभु के बलिदान की खुशखबरी साझा न करना प्रभु भोज को अनुचित रीति से लेना है । "जब तुम भोजन करने के लिये इकट्ठे होओ, तो एक दूसरे की प्रतीक्षा करो।" "क्योंकि जितनी बार तुम यह रोटी खाते, और उस कटोरे में से पीते हो, उतनी बार प्रभु की मृत्यु का उसके आने तक प्रचार करते हो" (1 कुरिं.11:26,33)
इब्राहीम ने एक पेड़ की छांव में परमेश्वर और दो स्वर्दूतों को दोपहर में भुना हुआ गोश्त, रोटी, और दही खिलाया था (उत्पत्ति 18:1-8) । मलकिसिदेक ने इब्राहीम और उसकी सेना को सड़क के किनारे रोटी और दाखरस परोसा था । (उत्पत्ति 14:18)
प्रभुजी ने मछली भूंजकर गरम रोटी के साथ शिष्यों को झील के किनारे तड़के सबेरे नाश्ता करवाया था (यूहन्ना 21:9) । प्रभुजी ने चुंगी लेने वाले पापी जक्कई के घर में भोजन किया और उसने उद्धार पाया, और अनेक चुंगी लेने वाले पापियों का उद्धार करवाया (लूका 19:1-10) । प्रभुजी ने सामरिया में दो दिन की संगती करके गैर-यहूदियों की रोटी खाकर उनके लिए उद्धार का मार्ग खोल दिया । प्रभुजी ने कहा कि मेरा भोजन परमेश्वर पिता की इच्छा को पूरी करना है (यूहन्ना 4:34)। वे हमेशा भोजन के समय महत्वपूर्ण सिद्धांत सिखाते थे । प्रभुजी ने कहा कि,“देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूं; यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके साथ भोजन करूंगा” । (प्रकाश. 3:20)
बाइबिल में कहीं नहीं लिखा कि पुरोहित ही प्रभु भोज दे सकता है । इसे कोई भी बिश्वासी भाई या बहन दे सकता हैं क्योंकि “प्रभुजी ने रोटी तोड़ा और कटोरा उठाकर धन्यवाद दिया और कहा,“लो इसे आपस में बाँट लो”। (लूका 22:17-19)
प्रभु भोज से विजातियों के बीच प्रचार करनेवाले, गरीबों, अनाथों, विधवाओं की शारीरिक, मानसिक और आत्मिक जरूरतें पूरी होती हैं और वो समग्र सतसंग बन जाती है और मसीही उनके याजक, रक्षक और प्रबंधक बन जाते हैं।
स्वस्थ सतसंग के गुण
प्रेरिताई प्रशिक्षण : प्रेरिताई प्रशिक्षण “जाओ और शिष्य बनाओ” के बारे में हैं जबकि पासबानों की शिक्षा "आओ गीत गाओ, हमारा उपदेश सुनों, आशीष पाओ, दान दक्षिणा दो और फिर छ: दिन की छुट्टी मनाओ" के बारे में होती हैं । (प्रेरितों के काम 2:42)
संगती : यूनानी शब्द कोइनोनिया (संगती) का अर्थ "हाय, हैलो" नहीं है लेकिन परमेश्वर के राज्य को बढ़ाने के लिए एक योजनाबद्ध रणनीति तैय्यार करना है । (प्रेरितों 2:42)
रोटी तोड़ना : हम परमेश्वर के परिवार के रूप में एक साथ भोजन करते हैं, विधवा, अनाथ और गरीबों को कम से कम एक समय पेट भर भोजन और दूसरी जरूरतमंद चीजें भी मिल जाती हैं । इसमे नए लोग भी सम्मिलित होते हैं । और मिलकर परमेश्वर के राज्य के सम्बंध में शांति और गहराई से चर्चा करते हैं । (प्रेरितों के काम 2:42,46; इफिसियों 2:19,20)
प्रार्थना : प्रभुजी ने प्रार्थना करना सिखाया कि “तेरा राज्य आवे तेरी इच्छा जैसे स्वर्ग में पूरी होती है वैसे जमीन पर भी पूरी हो...” आगे परमेश्वर ने विशेष रूप से आज्ञा दी, "मुझ से मांग, और मैं जाति जाति के लोगों को तेरी सम्पत्ति होने के लिये, और दूर दूर के देशों को तेरी निज भूमि बनने के लिये दे दूंगा"। (भजन संहिता 2:8) इसलिए, वे जातियों और उनके निवास स्थान के लिए और अपने रहने और काम के क्षेत्र में परमेश्वर का राज्य आने के लिए और भटके हुए लोगों और देश विदेश के शासक और अधिकारियों के लिए मध्यस्थता की प्रार्थनाएँ करते थे । (प्रेरितों के काम 2:42; 2 तिमोथी 2:1- 4)
सामर्थ के काम : पारिवारिक सतसंग में पवित्र आत्मा की सामर्थ से यहाँ छोटे बड़े चमत्कारी समाधान होने से विश्वासी और अविश्वासी दोनों पर गहरा प्रभाव पड़ता है । और दूसरे बीमार और दुष्ट आत्मा से ग्रसित आकर चंगाई तो पाते हीं है साथ में उद्धार भी पाते हैं, और अपनी गवाही दूसरों को सुनाते हैं । (प्रेरितों के काम 2:43)
समग्र सतसंग : यहाँ न केवल आध्यात्मिक जरूरतों का बल्कि शारीरिक, आर्थिक और मानसिक जरूरतों का भी ख्याल रखा जाता है । (प्रेरितों के काम 2:44-45)
दो पैर की मछली पकड़ना : प्रभु जी के कई शिष्य मछुआरे थे, जो जानते थे कि कब और कहाँ मछली पकड़ने जाना है । मंदिर परिसर में प्रार्थना के समय लोगों की बड़ी भीड़ इकट्ठी होती थी, इसलिए शुरुआत में, वे वहां दो पैर की मछली पकड़ने जाते थे, जिसके लिए उन्हें मंदिर के अधिकारियों द्वारा जेल भी भेजा गया । खतरा होते हुए भी उन्होंने निर्भीकता के लिए प्रार्थना किया कि परमेश्वर पिता अपने हाथ आगे बढ़ा और हमें और अधिक चिन्ह और चमत्कार करने के लिए सामर्थ दे । (प्रेरितों के काम 2:46; 4:29-30)
शिष्यों और सतसंगों की संख्या में गुणात्मक वृद्धि : वे दो पैरों वाली ताज़ी मछलियाँ पकड़कर लाते थे, और उनके साथ रोटी तोड़ते और उन्हें प्रभु यीशु की सभी आज्ञाओं का पालन करना सिखाते थे । परिणाम स्वरूप, “और परमेश्वर का वचन बढ़ता गया; और यरूशलेम में चेलों की गिनती बहुत बढ़ गई; और इस प्रकार सतसंग विश्वास में स्थिर होती गई और गिनती में प्रति दिन बढ़ती गई” (प्रेरितों 2: 46, 47; 6:1,7; 16:5) ।
भविष्यवक्ताओं का सतसंग : यहाँ बिश्वासी और अबिश्वासी एक सुविधाजनक स्थान पर एकत्र होते हैं जहां हर कोई, पुरुष और महिलाएँ भजन, शिक्षाएँ, प्रकाशन, दर्शन आदि बाट्तें हैं । भविष्यवाणी में सिर्फ भविष्य नहीं बल्कि शिक्षा, प्रोत्साहन और सांत्वना शामिल है“ (1कुरि. 14:3)। गैर-विश्वासियों के साथ धर्मशास्त्र से खुले दिल से चर्चा करने से परिपक्वता बहुत तेजी से हासिल होती है, जिससे सब लोग शिष्य बनाने और सतसंग-रोपण आंदोलन को गति देने में सक्षम हो जाते हैं । (1 कुरिन्थियों 14:24-32)
पारिवारिक सतसंग के क्या कार्य हैं ?
मसीही सतसंग प्रभु की दुल्हन है और दुल्हन का प्रमुख काम बच्चे पैदा करना है अन्यथा वो अस्वस्थ (बाँझ) सतसंग कहलाएगी । प्रभु यीशु ने अपनी सेवकाई के आरम्भ में कहा, "मेरे पीछे आओ और मैं तुम्हें मनुष्यों को पकड़ने वाले मछुवारा बनाऊंगा” (मत्ती 4:19) । एक मछुवारा बचपन से अपने बच्चों को मछली पकड़ना सिखाता है उसी तरह हमें भी अपने बच्चों को सफल मनुष्यों के मछुवारे बनाने के लिए बचपन से प्रयत्न करना चाहिए । रविवारीय आराधना, युवा कार्यक्रम और यहां तक कि बच्चों के लिए संडे स्कूल सहित सतसंग की सभी गतिविधियां उन्हें मनुष्यों के मछुआरे बनाने के लिए प्रतिबद्ध होनी चाहिए जैसा कि प्रभु यीशु और उनके शिष्यों ने किया था अन्यथा यह सब केवल मनोरंजन का केंद्र बन जाते हैं ।
निम्न लिखित चार खेत (क्षेत्र):
- एक बंजर खेत (खोए हुए समुदाय) में प्रवेश करके सामर्थ के काम से शैतान के गढ़ों नष्ट करना क्योंकि खरपतवार को नष्ट किये बिना खेत में बीज बोना व्यर्थ है -
- फिर सुसमाचार का बीज बोना
- फिर खेत में खाद, पानी डालना यानि उद्धार पाए लोगों को शिष्य बनाना और,
- फसल काटना और बटोरना यानि सतसंग का निर्माण करना और अगुवों को प्रशीक्षित करना ताकि हर एक मसीही इस रणनीति को दोहरा सके ।
यहाँ हम परमेश्वर और मनुष्य को फसल बोने, उसकी रक्षा करने और काटने के लिए साझेदारी में मिलकर काम करते हुए देखते हैं । “परमेश्वर का राज्य ऐसा है, जैसे कोई मनुष्य भूमि पर बीज बोए और रात को सोए, और दिन को जागे और वह बीज कैसे उगे कि वह न जाने । पृथ्वी आप से आप फल लाती है पहले अंकुर, तब बाल, और तब बालों में तैय्यार दाना । परन्तु जब दाना पक जाता है, तब वह तुरन्त हंसिया लगाता है, क्योंकि कटनी आ पहुंची है”। (मरकुस 4: 26-29)
सतसंग को विश्वासियों को प्रचारकीय सेवा के लिए तैय्यार करने का लक्ष्य रखना चाहिए और ऐसे कलीसियाओं का निर्माण करना चाहिए जो ऐसे शिष्य बनाते हैं जो इस रणनीति को दोहराने के लिए सक्षम होते हैं । वह योजना चार खेतों या "क्षेत्रों" की समझ पर निर्भर करती है: बंजर खेत में प्रचार करना, शिष्य बनाना, सतसंग रोपण करना और अगुवे तैय्यार करना । यदि आप इस प्रक्रिया के चारो कदमों के अनुसार काम करते हैं तो शीग्र आप में शीग्र सतसंग रोपण आन्दोलन कर सकेंगे अन्यथा चार दीवारों के अन्दर जीवन पर्यन्त सीमित रह जायेंगे । (प्रेरितों के काम 17:6)
प्रभु यीशु ईसाई धर्म का संस्थापन करने नहीं, लेकिन परमेश्वर के राज्य का संस्थापन करने आये थे । राज्यों की सीमाएँ निश्चित होती हैं लेकिन परमेश्वर के राज्य की सीमाएँ निरंतर आगे बढ़ती जाती हैं, क्योंकि परमेश्वर ने आदम को आशीष दी और कहा, "फूलो-फलो, बढ़ो, पृथ्वी में भर जाओ, इसे अपने वश में करो और इस पर प्रभुत्व रखो ।" (उत्पत्ति 1:28) इसलिए कलीसिया का प्राथमिक लक्ष्य प्रत्येक मानव बस्ती में परमेश्वर का साम्राज्य स्थापित करके पूरी दुनिया को परमेश्वर के राज्य को स्थापित करना है । इसलिए, इसलिए कलीसिया का प्राथमिक कार्य ऐसे मजदूरों को सुसज्जित करना जो परमेश्वर के राज्य को आगे बढ़ाने में सक्षम हों ।
"यदि मनुष्य सारा संसार प्राप्त कर ले और अपना प्राण खो दे तो उसे क्या लाभ होगा? (लूका 19:10; मत्ती 16:26)
“और बुद्धिमान आकाश में चमकेंगे; और जो बहुतों को धर्म की ओर ले आते हैं, वे सर्वदा तारों के समान चमकते रहेंगे ।” (दानिय्येल 12:3)
सतसंग में अलग अलग स्तर और उनके कार्य
पहिले स्तर में उद्धार पाई हुई आत्माएं हैं । अपनी खुद की आत्मा को बचाने का सबसे अच्छा तरीका एक खोई हुई आत्मा को बचाना है, "जो कोई भटके हुए पापी को लौटा लाता है, वह उसको मृत्यु से बचाएगा, और बहुत से पापों को छिपाएगा" । (याकूब 5:20)
दूसरा स्तर: बचाई गई आत्माओं को 'विश्वासियों' में परिवर्तित करना है जिनका पवित्र आत्मा से सामर्थिकरण हो गया है और अब वे दुष्ट आत्माओं को निकाल सकते और बीमारों को चंगाई दिला सकते हैं । (मरकुस 16:17,18)
तीसरा स्तर: 'विश्वासियों' को '”शिष्यों' में बदलना है । शिष्य वे होते हैं जो फलों से यानि जीती हुई आत्माओं से लदे होते हैं, “परमेश्वर की महिमा इससे होती है कि तुम बहुत सा फल लाओ तब ही तुम मेरे “चेले” ठहरोगे” । (यूहन्ना 15:8)
कुशल मछुवारा: प्रभु यीशु ने अपने सेवा के आरंभिक वक्तव्य में इसकी पुष्टि की, "मेरे पीछे होलो और मैं तुम्हें मनुष्यों को पकड़ने वाले बनाऊंगा”। (मत्ती 4:19) यीशु भक्त होना पर्याप्त नहीं है, प्रभुजी का सही शिष्य वो होता है जो दो पैरों वाली मछलियों को पकड़ने में कुशल होता है । सतसंग में मनुष्यों का मछुवारा सबसे बड़ी उपाधि है।
चौथा स्तर: प्रेरितों, भविष्यवक्ताओं, प्रचारकों, चरवाहों और शिक्षकों जैसे प्रतिभाशाली प्राचीनों की पहचान करना है। उनका कार्य मिलकर "संतों को शिष्य बनाने की सेवा के काम के लिए प्रशीक्षित करना ताकि सतसंग में निरंतर उन्नति होती रहे”। “और उसने कुछ को प्रेरित, और भविष्यद्वक्ता, और समाचार सुनानेवाले, और कुछ को रखवाले और शिक्षक नियुक्त करके दे दिया, जिससे पवित्र लोग सिद्ध हो जाएँ और सेवा का काम किया जाए, और मसीह की देह उन्नति पाए” । (इफिसियों 4:11,12)
- प्रेरित: स्थानीय अगुवे खड़ा करके बंजर खेत में ऐसी सतसंग स्थापित करते हैं जहां पहिले कोई बिश्वासी नहीं था । (प्रेरितों के काम 19:8-10)
- भविष्यवक्ता: येशुआ ने यूहन्ना जल दीक्षा देने वाले को सबसे महान और आखिरी भाविश्यवक्ता घोषित किया, क्योंकि उसने खुलासा किया कि मसीहा आ गया है, "देखो, परमेश्वर का मेम्ना जो जगत के पाप उठा लिए जाता है" (मत्ती 11:11-14; यूहन्ना 1: 29) । अब हम भविष्य की भविष्यवाणी नहीं करते हैं, “बल्कि प्रोत्साहित करते हैं, शिक्षा देते हैं और शांति देते हैं ।'' (1कुरिन्थियों 14:3)
- प्रचारक: जहां मसीह का नाम नहीं है, वहां चिन्हों और चमत्कारों के साथ सुसमाचार का प्रचार करते हैं । (रोमियों 15:19,20)
- चरवाहे: मेमनों को पौष्टिक आत्मिक भोजन खिलाकर परिपक्व करते हैं ताकी वे आत्मिक संतान पैदा करें । यदि चरवाहा ऐसा नही करता है तो वे सदाकाल के लिए दूध पीते हुए बांज भेड़े रह जाते हैं और उन्हें क़त्ल खाने में भेज दिया जाता है । (यूहन्ना 21:15-17; इब्रानी 5:13)
- शिक्षक: धर्म शास्त्र के गहराई से शिक्षा देते हैं कि, "पवित्र शास्त्र लोगों को सत्य की शिक्षा देने, उनको सुधारने, उन्हें उनकी बुराईयाँ दर्शाने और धार्मिक जीवन के प्रशिक्षण में उपयोगी है, ताकि परमेश्वर का प्रत्येक सेवक शास्त्रों का प्रयोग करते हुए हर प्रकार के उत्तम कार्यों को करने में सक्षम हो ।" (2 तीमुथियुस 3:16,17)
- आत्मिक माता पिता: जो पैसों के लालच से नहीं लेकिन माँ बाप की तरह प्यार से नए शिष्यों की देख रेख और मार्गदर्शन करतें है, ताकि वे परिपक्व होकर परमेश्वर के राज्य वहां बढ़ाएं जहां मसीह का नाम नहीं पहुंचा । (1 कुरिन्थियों 4:15)
जैसे एक स्कूल में अलग-अलग विषयों में कुशल शिक्षक बच्चों को सिखाते हैं ताकि उनको संतुलित ज्ञान मिले, ठीक उसी तरह जब वरदानी सेवक मिलकर संतुलित प्रशिक्षण देते हैं तो भक्तजन दो पैर वाली मछलियां पकड़ने में कुशल हो जाते हैं ।
आप फल लाने के लिये चुने गए हैं (यूहन्ना 15:8,16) । आप बाइबिल पढ़ते, दुआ करते और सतसंग जातें हैं लेकिन आपके जीवन में कोई फल नहीं है, क्योंकि आप सही तरीके से प्रभु से नहीं जुड़े हैं । प्रभु ने आश्वासन दिया है कि “जो मुझ में बना रहता है, और मैं उस में, वह बहुत फल लाता है, लेकिन जो डाली फल नहीं लाती वो काटकर आग में झोंक दी जाती हैं” (यूहन्ना 15:5,6) । इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपकी सतसंग के गीत संगीत और कार्यक्रम कितने आकर्षक हैं, लेकिन अगर आप फल नहीं ला रहें हैं, तो आप उस अंजीर के पेड़ की तरह होगे जिसमें बहुत सारी हरी पत्तियां थीं, लेकिन बेफल होने से प्रभुजी ने श्राप दे दिया दिया और वह सूख गया । (मत्ती 21:19) न्याय के दिन आप अपनी धार्मिकता पर नहीं लेकिन अपने फलों से पहिचाने जायेगे । (मत्ती 7:20)
संत ही परमेश्वर के अनंत राज्य में प्रवेश करेंगे क्योंकि उन्होंने जीवित बलिदान के साथ (खोई हुई आत्मा को बचाकर) प्रभु के साथ वाचा बाँधी है । “मेरे संतों को मेरे पास इकट्ठा करो; जिन्होंने बलिदान देकर मेरे साथ वाचा बाँधी है ।” (याकूब 5:20; भजन 50:5)
बाइबिल स्कूल
मूल रूप से, ईसाई तीन प्रकार के होते हैं - 1. चर्चियन - जो अपने चर्च और उसके कार्यक्रमों के प्रति समर्पित होते हैं, उन्हें खोए हुए लोगों की कोई चिंता नहीं होती । बाइबल स्कूल केवल चर्चियन के लिए वेतनधारी पासबान प्रशीक्षित करते हैं । 2. ईवेंजेलिस्ट - वे केवल रिवाइवल और क्रूसेड आयोजित करके मरकुस 16:15 के आदेश को पूरा करते हैं, जहां वे बहुत नाम और पैसा कमाते हैं और कुछ नवधर्मी बनाते हैं लेकिन कोई स्थायी फल नहीं मिलता क्योंकि वे शिष्य नहीं बनाते हैं । 3. प्रेरित – प्रचार, शिक्षण और शिष्य-निर्माण आंदोलनों को उत्प्रेरित करके महान आदेश (मत्ती 28:19) को पूरा करतें हैं ।
सेमिनरी धर्मशास्त्रियों को प्रशिक्षित करते हैं, न कि शिष्य बनानेवाले शिष्यों को, जो कलीसिया को अप्रवाभी बनाने का मूल कारण हैं । सेमिनरी ज्ञान पर आधारित हैं न कि पवित्र आत्मा पर । वे मसीह को जानने की अपेक्षा पवित्रशास्त्र को जानने पर ध्यान केन्द्रित करते हैं । मेडिकल कॉलेज बीमारों की सेवा करने का प्रशिक्षण देते हैं लेकिन सेमिनरी भटके हुओं की नहीं, लेकिन ईसाईयों की सेवा करने का प्रशिक्षण देते हैं । उन्हें अन्य धर्मो के दर्शन और सिद्धांतों का कोई ज्ञान नहीं होता इस लिये वे उनसे वार्तालाप नहीं कर सकते । वे अपने विद्यार्थियों को हर रविवार चर्चों में अभ्यास के लिए भेजते हैं जबकि उनको 2x2 करके एक परामर्शदाता के साथ अन्य जातियों के कस्बों में भेजना चाहिए ताकि वे उनकी संस्कृति और परिस्तिथि को समझ कर उनसे वार्तालाप करना सीखें ।
वर्तमान में प्रशिक्षण के बाद वे इसाई लोगों को ही ज्ञान बाँट सकते हैं, लेकिन विरोधियों को मुंह तोड़ जवाब देने की योग्यता नहीं रखते । बाइबिल सेमिनरियों द्वारा इसकी उपेक्षा के कारण आज सेमिनरी और चर्च दोनों पतन पर हैं । इस समस्या का समाधान ये है कि ऐसे प्रशिक्षक से प्रशिक्षण लें जो विजातियों को प्रभु में लाने में दक्ष हैं । आज, तन्ख्वाधारी पासबान के बदले ऐसे स्वैच्छिक प्रशीक्षकों की आवश्यकता है, जिनमे अन्य धर्मों के लोगों के साथ खुलकर चर्चा करने की क्षमता हो (तीतुस 1:9)। तब ही तो सुसमाचार हर जाति, कुल और गोत्र में पृथ्वी की छोर तक पहुँच पायेगा । प्रभु जी चर्च को ईसाईयों के मनोरंजन के लिए नहीं लेकिन भटके हुओं को उद्धार देने के लिए स्थापित किया है ।
सतसंग के कार्य क्या नहीं हैं ?
येरूशलेम के मंदिर के याजक और नए नियम के प्राचीन तन्ख्वाधारी नहीं लेकिन पौलुस की तरह काम धंधे करके अपने परिवार का पालन पोषण करते थे और मंदिर और कलीसिया में स्वैच्छिक सेवा प्रदान करते थे ।
सतसंग का काम दसवाअंश देनेवाले सदस्य बनाना नहीं लेकिन शिष्य बनाने वाले शिष्य बनाना है । बच्चों को जल दीक्षा देना, जोड़ों की शादी कराना और मृतकों को दफनाना, सतसंग के कार्य नहीं हैं । यीशु को एक शिशु के रूप में समर्पित किया गया था लेकिन जब वह तीस वर्ष के थे तो यर्दन नदी में जल दीक्षा दिया गया था ।
हिंदू, मुस्लिम और यहूदी घरों में की विवाह करतें हैं । काना की शादी भी एक घर में हुई थी जिसमे प्रभूजी ने दाखमधु उपलब्ध कराया था । विवाह गाँव के पंचायत या जिले के सरकारी कार्यालय में 250 रुपये में हो सकती हैं । यहाँ आपको सरकारी प्रमाण पत्र मिलेगा और आप गृह सतसंग में जश्न मनाएं । आप बेफिजूल खर्च से बच जायेंगे । पास्टर भी सतसंग में तब ही शादी दे सकता है जब उसको सरकार से मान्यता मिली है ।
यहूदी याजकों को किसी शव के पास जाने की अनुमति नहीं थी । (लैव्यवस्था 21:11)
प्रभु यीशु को अर्मेथिया के युसूफ ने बिना किसी धार्मिक रीति रिवाज़ के दफनाया था । वहाँ मातम मनाने वालों की भीड़ भी नहीं थी, सिर्फ दो औरतें, थी । नवयुवकों ने हनन्याह और सफीरा को बिना किसी रीति रिवाज़ के दफनाया था (प्रेरितों के काम 5:1-11) । हम नहीं जानते कि बेचारे गरीब लाजर के शरीर का क्या हुआ; लेकिन उसकी आत्मा स्वर्गलोक चली गई (लूका 16:19-31) । इसके विपरीत धनी मनुष्य को पूरे लाव लश्कर और धार्मिक विधि विधान से दफनाया गया था लेकिन उसकी आत्मा नरक में चली गयी। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि किसने आपको जल दीक्षा दिया, विवाह किया और कहाँ दफनाया; या आपके शरीर को जलाकर राख कर दिया या आप समुद्र में डूब जाएं और मछलियां आपके शरीर को खा जाएं, यदि आप प्रभु की आज्ञाओं का पालन करते हैं, तो अंतिम दिन पर आप जहाँ भी हो, प्रभुजी आपको ढूंढ कर आपको पुनर्जीवित करके नया शरीर देंगे जो अविनाशी होगा और आप चौरासी लाख योनी वाला नहीं, लेकिन अनंत जीवन प्राप्त करके असली सनातनी बन जायेंगे । (यूहन्ना 14:15; इफिसियों 3:11)
कलीसिया की गुणवत्ता उसके गीत संगीत, उपदेश, भव्य भवन और धन अर्जित की योग्यता पर नहीं लेकिन प्रचुर मात्रा में शिष्य बनाने की योग्यता से पहिचाना जाता है ।
सिर्फ धर्मान्तरन नहीं लेकिन पूर्ण परिवर्तन
मनान्तरण (Conversion) प्रारंभिक प्रक्रिया है जो आपको उद्धार दिलाती है; ''इसलिये तुम अपना मन फिराओ और परमेश्वर की ओर लौट आओ ताकि तुम्हारे पाप धुल जायें (प्रेरितों के काम 3:19)। परन्तु पूर्ण परिवर्तन (Transformation) तब होता है जब आप पिता की इच्छा को पूरा करना आरम्भ करते हैं, ताकि कोई भी नाश न हो, "और इस संसार के सदृश न बनो, परन्तु अपनी बुद्धि के नए हो जाने से तुम्हारा पूर्ण परिवर्तन हो जाए, कि परमेश्वर की इच्छा भली, और भावती, और सिद्ध हो" । (रोमियों 12:2)
“सो यदि कोई मसीह में है तो वह नई सृष्टि है”। (2 कुरिन्थियों 5:17)
प्रभु यीशु को उद्धारकर्ता मानने और बपतिस्मा लेने से सिर्फ आस्था बदलती हैं जिसे मनान्तरण कहा जाता है । धर्मान्तरण करने का अधिकार सिर्फ कलेक्टर के पास होता है जो कागजी प्रक्रिया है लेकिन पूर्ण परिवर्तन पवित्र आत्मा की सामर्थ से होता है ।
परमेश्वर ने सब लोगों को अन्य-अन्य समुदाय में बांटा है और आदेश दिया है कि जिस किसी स्थिति में तुम्हें बुलाया गया है उसी में बने रहो (1कुरिन्थियों 7:17-22; प्रेरितों के काम 17:26) । बाइबिल की इन आयातों में सात बार चेतावनी दी गयी है कि “जिस दशा में तुम्हें बुलाया गया है उसी में तुम बने रहो” । यानी यदि हिन्दू या मुसलमान या बौद्धिष्ट या आदिवासी में से हैं तो आप इसाई नहीं बनते बल्कि अपने ही समुदाय में रहेंगें बस फिर्क इतना होगा कि अब आप प्रभु यीशु के भक्त कहलायेंगे ।
उदहारण के लिए सनातनी अपने को महासदगुरु यीशु भक्त और मुस्लिम खुदावंद ईसा के पैरोकार इत्यादि नाम से जाने जायेंगे । यहूदी बिश्वासी अपने को क्रिशियन नहीं लेकिन वे अपने को “मेसियानिक (मसीही यहूदी)” बोलते हैं । उसी प्रकार से गैर-विश्वासी लोग जो प्रभु में हजारों से जुड़ रहे थे, उन्होंने अपनी जाति, ज़ुबान, संस्कृति, लिबाज़ और ख़ानपान नहीं बदला । येरूशलेम के महा सतसंग में सिर्फ प्रतिमा पूजा, व्यभिचार, और धर्मशास्त्र के सिद्धांतों के ख़िलाफ़ शिक्षा वर्जित किया गया था । (प्रेरितों के काम 15:20)
उद्धार पाने के लिए केवल दिल से बिश्वास करना है कि प्रभु यीशु मुर्दों में से जिन्दा हो गया और अपने मुँह से अंगीकार करना है कि वो मेरा प्रभु है (रोमियों 10:9,10) । प्रभु का नाम पुकारने से भी एक आत्मा को बचाया जा सकता है, "क्योंकि जो कोई प्रभु का नाम लेगा, वह उद्धार पाएगा ।" (रोमियों 10:13; योएल 2:32)
आपको किसी भी चर्च या संस्था में शामिल होने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि आप अपनी गृह सतसंग में अपनी गवाही और शिक्षण के माध्यम से अपने परिवार और समाज के लिए मोक्ष का कारण बन सकते हैं । शुरुआती कलीसिया में, "सब लोग उन से प्रसन्न थे: और जो उद्धार पाते थे, उनको प्रभु प्रति दिन उन में मिला देता था" । (प्रे. का. 2:47) ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि वे सभी जातियों के लिए प्रार्थना के घर थे, न कि केवल ईसाइयों के लिए । चर्चों का नाम कुरिन्थ, इफिसुस, कुलुस्से, थिस्स्लोनिका आदि नगरों के नाम पर रखा गया था, न कि किसी संप्रदाय के नाम पर ।
आज सतानेवाले समस्या नहीं हैं लेकिन ईसाईयों का विदेशी छबि के साथ अलगाववादी होने के कारण घृणा और उत्पीड़न का माहौल है । यदि इसे मसीह की कलीसिया कहलाना है तो स्थानीय संस्कृति और भाषा में घुल मिलकर इस समस्या को ठीक करना पड़ेगा ।
कोर्ट कचहरी जाना मना है
जब सताने वालों द्वारा आरोप लगाया गया तो पौलुस कई बार अदालत के सामने पेश हुए और अपने नागरिकता के अधिकारों का इस्तेमाल किया, लेकिन उन्होंने कहा, "यदि आपसी विवाद है, तो इसे प्रभु के लोगों को छोड़कर अधर्मियों की अदालत में क्यों ले जाते हो ? क्या तुम नहीं जानते कि प्रभु के लोग स्वर्गदूतों का और जगत का न्याय करेंगे? तो क्या तुम तुच्छ मामलों का न्याय करने में भी असमर्थ हो? विश्वासी अगर दूसरे विश्वासी के खिलाफ अविश्वासियों के सामने जाता हैं तो ये शर्म की बात है”(1कुरिन्थियों 6:1-6)
चर्च में ज्यादातर विवाद पदवी, संपत्ति और पैसे को लेकर होते हैं । पवित्रशास्त्र स्पष्ट रूप से कहता है, "यदि आप सांसारिक वस्तुओं को संभालने में भरोसेमंद नहीं हैं, तो स्वर्गीय धन के मामले में आप पर कौन भरोसा करेगा"? (लूका 16:10-14) । गृह सतसंग में ये समस्या नहीं होती क्योंकि उसके पास कोई धन संपत्ति नहीं होती ।
रेवरेंड बनने का बुखार
प्रभुजी ने नहीं कहा कि मैं तुम्हे रेवरेंड, पास्टर, बिशप या डॉक्टर बना दूंगा । अपने आप को ऊंचा करना एक शैतानिक सोच है जैसे शैतान ने कहा था कि, “मैं सर्वोच्च परमेश्वर सा बनूँगा । मैं आकाशों के ऊपर जाऊँगा” (यशायाह 14:13,14)। धर्मशास्त्र कहता है, “प्रभु के सामने दीन बनो । वह तुम्हें ऊँचा उठाएगा । (याकूब 4:10)
आजकल ‘रेवरेंडाइटिस’ का वायरस बड़ी तेजी से फ़ैल रहा है । कुछ फर्जी लोगों ने तो इसे धंधा बना लिया है, और फर्जी कागजाद देकर अच्छी कमाई कर रहे हैं । रेवरेंड का मतलब पूज्य या भय योग्य (worthy of reverence) होता है । परमेश्वर को छोड़ कोई पूज्य नहीं हो सकता इसलिए अपने को रेवरेंड यानि पूज्य की उपाधि से सुसज्जित करना परमेश्वर का ठट्ठा करना है । धर्मशास्त्र चेतावनी देती है, “धोखा न खाओ, परमेश्वर ठट्ठों में नहीं उड़ाया जाता, क्योंकि मनुष्य जो कुछ बोता है, वही काटेगा” (गलातियों 6:7) ।
बाइबिल में शाऊल और दाउद के ऊँचे पूरे और सुन्दर होने का वर्णन है लेकिन प्रभु यीशु के बारे में कुछ नहीं लिखा की वे ऊंचे थे या नाटे या वे गोरे या काले या सांवले थे । हमारे अगुवों के विपरीत वे कोई धार्मिक कपड़े नहीं पहिनते थे । वे इतने साधारण व्यक्ति थे कि यहूदा इस्कोरियोती को प्रभु को चूमकर सिपाहियों को बताना पड़ा की प्रभु कौन है । बाइबिल कॉलेज में बाइबल शास्त्र का ज्ञान हासिल करने से आप शास्त्री बनते हैं, पूज्य नहीं हो जाते । पतरस और पौलूस जैसे प्रेरितों ने अपने आप को कभी रेवरेंड नहीं कहा बल्कि अपने आप को प्रभु यीशु मसीह के दास कहा । (रोमियों 1:1; 2 पतरस 1:1)
यूहन्ना को प्रभु ने सबसे महान नबी ठहराया, उसने कहा,“मैं उसके जूते के बंधन खोलने के योग्य नहीं हूँ । अवश्य है कि वह बढ़े और मैं घटूं ” (मत्ती 11:11; यूहन्ना 1:27; 3:30) जबकि इन फर्जी लोगों का लक्ष्य है कि, “मैं बढूँ और वो घटें” क्योंकि मनुष्यों की प्रशंसा उन को परमेश्वर की प्रशंसा से अधिक प्रिय लगती है । (यूहन्ना 12:43)
प्रभु यीशु ने कहा, “परन्तु, तुम धर्मगुरू न कहलाना; क्योंकि तुम्हारा एक ही गुरू है: और तुम सब भाई हो । और पृथ्वी पर किसी को अपना पिता न कहना, क्योंकि तुम्हारा एक ही पिता है । स्वामी भी न कहलाना, क्योंकि मसीह तुम्हारा स्वामी है”(मत्ती 23:8-12) । अन्य जातियों के हाकिम उन पर प्रभुता और अधिकार जताते हैं । परन्तु तुम में ऐसा न होगा; परन्तु जो कोई तुम में प्रधान और बड़ा होना चाहे, वह तुम्हारा सेवक और दास बने। जैसे कि मनुष्य का पुत्र, वह इसलिये नहीं आया कि उस की सेवा टहल की जाए, परन्तु इसलिये आया कि आप सेवा टहल करे” । (मत्ती 20:25-28)
“प्रभु यीशु ने अपने आप को ऐसा शून्य कर दिया, और दास का स्वरूप धारण किया, और मनुष्य की समानता में हो गया । और मनुष्य के रूप में प्रगट होकर अपने आप को दीन किया, और यहां तक आज्ञाकारी रहा, क्रूस की मृत्यु भी सह ली” । (फिल. 2:7,8)
बाइबिल की चेतावनी: “उसका नाम पवित्र और भययोग्य (रेवरेंड) है” (भजन. 111:9) प्रभु जी ने चेतावनी दिया है कि, जो अपने आपको को धर्मगुरु, पिता या स्वामी कहकर ऊँचा उठायेगा, वह नीचे गिरेगा, “जो कोई अपने आप को बड़ा बनाएगा, वह छोटा किया जाएगा और जो अपने आप को छोटा बनाएगा, वह बड़ा किया जाएगा” । (मत्ती 23:12) गृह सतसंग के अगुवे, प्रेरित होते हैं जो शीर्ष उपाधि है, लेकिन नासमझ लोग पैसे देकर खुद को रेवरेंड कहकर परमेश्वर के क्रोध को न्योता दे रहें हैं । एक बिश्वासी को प्रभु का सेवक कहलाना सर्वोच्च उपाधि है । (इफिसियों 4:11)
सनातन धर्म की परिभाषा ?
सनातन धर्म का प्रणेता एक सनातन सृष्टिकर्ता परम पवित्र परमेश्वर ही हो सकता है, जो सर्वज्ञानी, सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी, परम ब्रम्हचारी, सर्वदा जीवित, अविनाशी और अद्वैत है, जो अगम्य ज्योति मे रहता है जिसके पवित्र नाम से प्राण प्रतिष्ठा (जल दीक्षा) और उसके सनातन संविधान के संस्कारों पर चलने से हमें मोक्ष यानि सनातन जीवन प्राप्त होता है (यूहन्ना 3:36) ।
बाइबिल धर्मशास्त्र सनातन के विषय क्या कहती है: “इब्राहीम ने सनातन ईश्वर से प्रार्थना की (उत्पत्ति 21:33) । वह सब से ऊंचे सनातन स्वर्ग में रहता है (भजन 68:33) । वह “सनातन चट्टान है” (यशायाह 26:4) । और वह चट्टान मसीह है (1 कुरिन्थियों 10:4) जिस सनातन चट्टान पर वह अपनी सनातन सतसंग बना रहा है । (मत्ती 16:18) उसके पास स्वर्ग और नरक की कुंजी है । (प्रकाश 1:17-18; मत्ती 16:19) प्रभु यीशु राजाओं का राजा और प्रभुओं का प्रभु है जिसके पास स्वर्ग और पृथ्वी का अधिकार है और अंधों को दृष्टि, देने, बीमारों को चंगा करने और मुर्दों को जिन्दा करने की सनातन सामर्थ है (1तिमोथी 1:17; प्रकाशित 19:16; मत्ती 28:18; यूहन्ना 5:26-29; रोमियों 1:20) । जो शांतिदाता पापियों की हत्या करने नहीं लेकिन उन्हें बचाने के लिए अवतार लेकर उनके पापों की क्षमा के लिए बलिदान हो गया । (1 तिमोथी 1:15)
उसके पास सनातन वचन है जो हर जाति, कुल, और भाषा, के लोगों के मोक्ष के लिए है । (प्रका. 14:6; 2 तिमोथी 3:16,17) उसकी सनातन मनसा (इच्छा) है कि कोई भी नाश न हो । (1 तिमोथी 2:4; 2 तिमोथी 1:9) वह सनातन आत्मा है (इब्रानि. 9:14)। उसका घर सब जातियों के लिए प्रार्थना का घर है (मरकुस 11:17) । वह मनुष्यों के बनाये मंदिर में नहीं रहता लेकिन लोगों के दिलों में निवास करता है । (प्रेरित 7:48,49; 2 कुरिन्थियों 6:19) वह धर्मी और अधर्मी दोनों पर अपना सूर्य उदय करता और मेह बरसाता है । (मत्ती 5:45) अंत में वह संसार की सब जातियों का न्याय करेगा और अपने भक्तजन को अविनाशी (सनातन) उत्तराधिकारी बनाकर सारे संसार में सनातन साम्राज्य स्थापित करेगा । (2 कुरिन्थियों 5:10; 1पतरस 1:4)
आराधना क्या है ?
बाइबल में कहीं नहीं लिखा है कि रविवार आराम और आराधना का दिन है और हमें सतसंग जाना चाहिए । सप्ताह का पहला दिन पूरी रात शनिवार की सभा थी (प्रेरितों 20:7-14) । यहूदियों के लिए, सब्त शुक्रवार को सूर्यास्त के समय शुरू होता था और सप्ताह का पहला दिन शनिवार को सूर्यास्त के समय शुरू होता था । मसीहियों के लिए हर दिन आराधना का दिन है । (यूहन्ना 5:17-18; मलाकी 1:11)
गीत संगीत आराधना नहीं है; यह केवल प्रशंसा (Praise) है (भजन 98:4) । नए नियम में वाद्य यंत्र का उपयोग नहीं किया और न प्रभु यीशु ने, न पतरस और न पौलुस ने कभी सेवकाई में गीत गाया । झांझ, डफ, तबला और तारदार बाजे पुराने नियम में हैं जो दाऊद बजाकर परमेश्वर की स्तुति करता था, लेकिन बलिदान चढ़ाकर आराधना करता था ।
स्तुति/प्रशंसा (Praise) : होठों से प्रभु की स्तुति “हे प्रभु, मेरे होंठ खोल ताकि मेरा मुँह तेरी स्तुति का वर्णन करेगा” । (भजन संहिता 51:15; इब्रानी 13:15)
महिमा (Glorify) : बहुत फल लाने से महिमा होती हैं, “मेरे पिता की महिमा इससे होती है कि तुम बहुत सा फल लाओ, तब ही तुम मेरे चेले ठहरोगे” (यूहन्ना 15:8) ।
आराधना (Worship) : आप अपनी देह को जीवित बलिदान के रूप में चढ़ातें हैं, “कि आप अपने शरीरों को एक जीवित, पवित्र, ईश्वर को स्वीकार्य बलिदान के रूप में प्रस्तुत करते हैं, जो आपकी उचित सेवा (लैत्रिया = आराधना) है । (रोमियों 12:1)
बाइबिल में पहली बार “आराधना” (worship) का उल्लेख जब इब्राहीम अपने बेटे इसहाक को बलि चढ़ाने के लिए “आराधना” (दंडवत) करने सिय्योन पर्वत पर जा रहे थे। जब इसहाक ने आराधना शब्द सुना तो उसने पूछा, “तलवार और आग तो हमारे पास है, परन्तु बलि का पशु कहां है” ? (उत्पत्ति 22:5-7) एक बालक होते हुए भी, उसे पता था कि आराधना के लिए तलवार, आग और बलि के लिए पशु की आवश्यकता होती है । मूसा की तम्बू में और सुलेमान के मंदिर में, आराधना के लिए एक तलवार, आग की वेदी और बलि के जानवर की आवश्यकता होती थी । (इब्रानियों 9:1,6)
पिन्तेकुस्त के दिन महत्वपूर्ण बदलाव :
- लोहे की तलवार - परमेश्वर का वचन दो धारी तलवार में बदल गया, “तब सुननेवालों के हृदय छिद गए, और वे पतरस और शेष प्रेरितों से पूछने लगे, कि हे भाइयो, हम क्या करें ? (प्रेरितों 2:37; इफिसियों 6:17; इब्रानियों 4:12) और
- लकड़ी की आग - पवित्र आत्मा की जीभ के रूप में आग में बदल गई, “और उन्हें आग की सी जीभें फटती हुई दिखाई दीं; और उन में से हर एक पर आ ठहरीं । और वे सब पवित्र आत्मा से भर गए” (प्रेरितों के काम 2:3-4) और
- पशु बलि - अब जीवित बलि के रूप में 3000 जल दीक्षा प्राप्त जीवित आत्माओं में बदल गई । (प्रेरितों के काम 2:41)
- अन्यजातियां भी शामिल: फसह के पर्व पर, केवल अखमीरी रोटी की भेंट की जाती थी, जो यीशु के पापरहित शरीर को दर्शाती थी, लेकिन पिन्तेकुस्त के दिन, दो खमीरी रोटियां चढ़ाई जाती थीं जो पापी यहूदियों और अन्यजातियों दोनों को दर्शाती थीं । (लैव्यव्यवस्था 23:15,17)
अब, हम पशु नहीं लेकिन टूटे हुए और पिसे हुए दिलों को जीवित बलिदान के रूप में अर्पित करके परमेश्वर की आराधना करते हैं । (भजन संहिता 51:17)
दाऊद ने भजन गाकर और नृत्य करके परमेश्वर की स्तुति की और बलिदान चढ़ाकर परमेश्वर की आराधना की (2 शमूएल 6:12-14) । सुलैमान ने 22,000 बैल और 120,000 भेड़ें भेंट अर्पित करके परमेश्वर की आराधना की (2 इतिहास 7:5) । पर्व मनाने के लिए मन्दिर में खाली हाथ आना वर्जित था । (व्यवस्थाविवरण 16:16)
अब हम पहले अपने देह को जीवित बलिदान स्वरूप चढ़ाते हैं, जो सच्ची आराधना है, “मैं तुम से परमेश्वर की दया स्मरण दिला कर बिनती करता हूँ, कि अपने शरीरो कों जीवित, और पवित्र, और परमेश्वर को भावता हुआ बलिदान करके चढ़ाओ: यही तुम्हारी आत्मिक सेवा (Latreia=आराधना) है” (रोमियों 12:1,2)
भटके हुओं का बलिदान, “यह जान लो कि जो पापी को उसके भटके हुए मार्ग से लौटा लाएगा, वह एक आत्मा को मृत्यु से बचाएगा और अनेक पाप छिपाएगा” ।(याकूब 5:20) पौलुस, प्रभु यीशु के याजक की हैसियत से अन्यजातियों का पवित्रीकरण करके उनको जीवित बलिदान के रूप में पेश करता था । (रोमियों 15:16)
“जो आंसू बहाते हुए बोते हैं, वे जयजयकार करते हुए लवने पाएंगे । वे रोते हुए जायेंगे, परन्तु पूलियां लिए जयजयकार करते हुए लौटेंगे। (भजन 126:5, 6)
प्रभु यीशु ने कहा, "परमेश्वर आत्मा है; और अवश्य है कि आराधक आत्मा और सच्चाई से उसकी आराधना करे ।" मूर्तिपूजक सामरी ने सच्ची आराधना का अर्थ समझा और अपनी गवाही से पूरे गाँव को एक जीवित बलिदान के रूप में चढ़ाया । (यूहन्ना 4:24)
आप भी अपने मित्रों, पड़ोसियों और सहकर्मियों को अपने पारिवारिक वेदी पर अर्पण करके आत्मा और सच्चाई में परमेश्वर की आराधना कर सकते हैं । (मलाकी 1:11)
जल दीक्षा क्या है ?
धर्मशास्त्र में अनेक प्रकार के पवित्र स्नानों का उल्लेख किया गया है:
मिकवाह (शुद्धिकरण का जल दीक्षा) : यहूदी जल दीक्षा नहीं लेते क्योंकि उनका मानना है कि जब उन्होंने लाल सागर पार किया तो परमेश्वर ने उनकी सभी पीढ़ियों को सदाकाल के लिए पवित्रीकरण कर दिया था (1 कुरिन्थियों 10:1, 2) । जब वे पर्ब मनाने के लिए मंदिर आते थे या प्रदूषित होते थे, जैसे किसी मृत शरीर के संपर्क में आना इत्यादि, तो वे शुद्धिकरण का जल दीक्षा किया करते थे । वे इसे मिकवाह (कुण्ड) कहते हैं । उन दिनों यरूशलेम में सैकड़ों कुण्ड थे । आज भी जहाँ भी यहूदी आबादी होती है उस शहर में आपको मिकवाह मिलेगा । कट्टर यहूदी औरतें तो हर महीने अपने माहवारी के बाद शुद्धिकरण का मिकवाह लेती हैं । स्त्रियाँ, स्त्रियों को और पुरुष, पुरुषों को अलग अलग कुण्ड में जल दीक्षा देतें हैं । दो गवाहों के सामने जल दीक्षा खुद लिया जाता हैं ।
याजक किसी को जल दीक्षा नहीं देता था वो सिर्फ मंदिर में बलिदान चढ़ाता था।
पश्चाताप और जल दीक्षा : यह यूहन्ना का जल दीक्षा है जो पर्याप्त नहीं है । ये केवल धार्मिक औपचारिकता है लेकिन उद्धार के लिए यह जल दीक्षा आवश्यक नहीं है (इफि. 2:8; रोमियों 3:28; 6:3-4;10:13) । एक डाकू जो प्रभुजी के साथ क्रूस पर लटका था वह यीशु को प्रभु मानकर और पश्चताप करके बिना जल दीक्षा के सीधे स्वर्गलोक चला गया (लूका 23:42-43) । कई कट्टर देशों में खुले आम जल दीक्षा लेना संभव नहीं है लेकिंन “जो कोई दिल से बिश्वास करता है, कि वो मुर्दों में से जिन्दा हो गया और अपने मुंह से अंगीकार करता है कि वो मेरा प्रभु है, उसका उद्धार हो जाता है” (रोमियों10:9,10)।
प्रभुजी ने भी सारी धार्मिकता को पूरा करने वाला जल दीक्षा लिया, लेकिन पश्चाताप का नहीं क्योंकि वे पाप रहित थे । साथ में उन्होंने पवित्र आत्मा का भी दीक्षा पाया जब वो कबूतर की नाई उन पर उतरा । (मत्ती 3:13-17; यूहन्ना 1:32; प्रेरित 19:3,4)
पवित्र आत्मा की दीक्षा: जल दीक्षा के तुरंत बाद, पतरस और पौलुस ने उन पर हाथ रखा और वे पवित्र आत्मा से भर गए (प्रेरितों के काम 2:37-39; 8:14-17; 19:5,6) । बिना जल दीक्षा के भी लोग पवित्र आत्मा की दीक्षा पा सकतें हैं जैसा कर्नेलिउस और उसके साथियों ने पाया था (प्रेरितों के काम 10:44) । पवित्र आत्मा हमें हियाव से वचन का प्रचार करने की हिम्मत देता है, और बुरी आत्माओं को बाहर निकालने और बीमारों आदि को चंगा करने में सहायता देता है । (प्रेरितों के काम 4:29)
आग की दीक्षा: जब आप सताए जाते है, तो आपको आग की दीक्षा दिया जाता है । प्रभु यीशु स्वयं आग की दीक्षा से गुजरे और विश्वासियों के लिए सताव की गारंटी दी, “यदि उन्होंने मुझे सताया, तो वे तुम्हें भी सताएंगे”। (यूहन्ना 15:20)
यूहन्ना जल दीक्षा देने वाले ने कहा, “मैं तुम्हें पश्चाताप के लिए जल दीक्षा देता हूँ: लेकिन वह जो मेरे बाद आएगा वह मुझसे अधिक शक्तिशाली है, जिसके जूते मैं उठाने के योग्य नहीं हूँ: वह तुम्हें पवित्र आत्मा और आग की दीक्षा देगा” (मत्ती 3:11) ।
अग्नि दीक्षा - गेहूँ को भूसा से अलग करता है । “उसका सूप उसके हाथ में है, और वह अपना खलिहान साफ करेगा, और अपना गेहूं तो खत्ते में इकट्ठा करेगा, परन्तु भूसा को कभी न बुझनेवाली आग में जला देगा।” (मत्ती 3:12) "इसलिए, क्योंकि तुम गुनगुने हो, और न गर्म और न ठंडा, मैं तुम्हें अपने मुंह में से उगल दूंगा”। (प्रकाशित 3:16)
याद रखें – “जब तुम अपने विश्वास के लिए सताए जाओ, तो तुम्हे अत्यंत खुश होना है क्योंकि स्वर्ग में तुमको बड़ा इनाम मिलेगा । तुम्हें अपने सतानेवालों से भी प्रेम करना है और उनके लिये प्रार्थना करना है ।” (मत्ती 5:10-12; 5:44)
प्रताड़ित होना आपकी मसीहत की सक्रियता की पहचान है । यदि शैतान आपको नहीं सता रहा है तो आपने उससे समझौता कर लिया है । लेकिन सत्ताव की तलाश नही कीजिये । प्रभु ने कहा, “मैं तुम्हें भेड़ों के समान भेड़ियों के बीच भेज रहा हूँ । इसलिए साँपों की तरह चतुर और कबूतरों की तरह भोले बनो । (मत्ती 10:16-18)
पश्चाताप और जल दीक्षा लेने से आपका उद्धार जरूर हो जायेगा (मरकुस 16:16) लेकिन ये पर्याप्त नहीं है । स्वर्गलोक में प्रवेश के लिए दूसरों का उद्धार करना आवश्यक है क्योंकि आप अपने जल दीक्षा से नहीं पर अपने फलों से पहिचाने जाओगे । (मत्ती 7:20)
धर्मशास्त्र में ऐसा कहीं नहीं लिखा की सिर्फ एक पास्टर ही जल दीक्षा दे सकता है । पौलुस का जल दीक्षा अनानिअस नाम के एक साधारण शिष्य ने एक घर में दिया था (प्रेरित 9:18; 22:16) । इथिओपिया के वित्त मंत्री का जल दीक्षा एक मेज साफ़ करनेवाले प्रचारक फिलिप ने एक तालाब में दिया था । (प्रेरितों के काम 8:36-39) ।
हर एक बिश्वासी जल दीक्षा दे सकता है, आरंभिक सतसंग में कोई पास्टर नहीं थे लेकिन उन्होंने लाखों को जल दीक्षा दिया । डबल-डेकर महान आदेश आपको जाकर शिष्य बनानेवाले शिष्य, जल दीक्षा देनेवाले और शिक्षा देनेवाले बनाने का आदेश देता है ।
आप चाहे पुरुष हो या स्त्री, प्रभुजी ने खुद आपका ओर्डीनेशन (नियुक्त) किया है (यूहन्ना 15:16) और स्त्री और पुरुष दोनों को आदेश दिया कि जाओ और सब जाती के लोगों को जल दीक्षा दो और उनको अनंत जीवन का वारिस बनाओ (मत्ती 28:19, 20)।
आप सोचते होंगे की आप के काम अच्छे हैं लेकिन याद रखिये “नींव स्वयं प्रभु यीशु ही है और उससे भिन्न दूसरी नींव नहीं हो सकता । यदि वे उसमें सोना, चाँदी, बहुमूल्य रत्न, लकड़ी, या फूस का प्रयोग करें । क्योंकि उस दिन हर व्यक्ति के कर्मो को आग परखेगी। यदि उस के कर्म ठीक होंगे तो वह उसका प्रतिफल पायेगा और यदि किसी का कर्म उस आग में भस्म हो जायेगा तो उसे हानि उठानी होगी” (1 कुरिन्थियों 3:11-14)
प्रार्थना कैसे करें
मंदिर में पहिले बलिदान चढ़ाते थे और फिर पांच कदम की प्रार्थना करते थे:
“ मैं हिदायत देता हूं, कि सब से पहिले बिनती, प्रार्थना, मध्यस्थता, और धन्यवाद सब मनुष्यों के लिये किया जाए; राजाओं के लिये, और उन सब के लिये जो अधिकारी हैं; कि हम पूरी भक्ति और ईमानदारी से एक शांत और शांतिपूर्ण जीवन जी सकें । क्योंकि यह हमारे उद्धारकर्ता परमेश्वर की दृष्टि में अच्छा और गृहण करने योग्य है; क्योंकि वो चाहता है कि सभी मनुष्यों का उद्धार हो, और वे सत्य को जानें ” (1तीमुथियुस 2:1-4)
1. टेकिन्नाह (बिनती) – भक्तजन बलि के जानवर के सिर पर हाथ रखकर, अपने पापों को स्वीकार करके परमेश्वर से बलिदान को स्वीकार करने और अपने पापों पर परदा डालने के लिए बिनती करता था । अब नए नियम में, “जो किसी भटके हुए पापी को फेर लाएगा, वह एक प्राण को मृत्यु से बचाएगा, और अनेक पापों पर परदा डालेगा”(याकूब 5:20) “तब सिखानेवालों की चमक आकाशमण्डल की सी होगी, और जो बहुतों को धर्मी बनाते हैं, वे सर्वदा की नाईं प्रकाशमान रहेंगे । (दानिएल12:3)
2. टेफिलाह (प्रार्थना = आत्म-परीक्षा) - वेदी पर बलिदान चढ़ाने के बाद, याजक हौद के पानी से अपने हाथ और पैर धोता था, और खुद की जांच करता था कि वह कुछ गलत तो नहीं कर रहा है क्योंकि वह धूप जलाने के लिय पवित्र स्थान में प्रवेश करने वाला था। हारुन के बेटे नादाब और अबीहू पवित्र स्थान के अंदर मर गए थे, क्योंकि उन्होंने बलि के बिना आग पर धूप अर्पित की थी (लैव्यव्यवस्था 10:1,2) । नए नियम में, प्रभु भोज लेने के समय हम स्वयं की जाँच करते हैं, कि क्या हम इसे अयोग्य रूप से यानि प्रभु यीशु के बलिदान को बिना प्रचार प्रसार किये तो नहीं ले रहे हैं । (1कुरिन्थियों 11:28-33)
3. बक्कदोश (मध्यस्थता) – याजक पवित्र स्थान के अंदर स्वर्ण वेदी पर आग के अंगार पर बहुत सा धूप डालता था । धूप कई देशों से आता था । जैसे ही धुआं परदे के माध्यम से अति पवित्र स्थान में जाता था, जहां परमेश्वर की आत्मा वाचा के सन्दूक पर वास करती थी, याजक अपने दोनों हाथ उठाकर सब देशों के लिए मध्यस्ता की प्रार्थना करता था । अब, परमेश्वर मध्यस्थों की तलाश कर रहा है, “और मैं ने उन में ऐसा मनुष्य ढूंढ़ना चाहा जो बाड़े को सुधारे और देश के निमित्त नाके में मेरे साम्हने ऐसा खड़ा हो कि मुझे उसको नाश न करना पड़े, परन्तु ऐसा कोई न मिला । और प्रभु यीशु स्वयं स्वर्ग में हमारे लिए मध्यस्तता कर रहें हैं ” । (यहेजकेल 22:30; इब्रानियों 7:25)
4. होदयाह (धन्यवाद) - जब बाहरी आंगन में खड़े लोग तम्बू की छत से धुआं निकलता देखते थे, तो वे सब अपना हाथ ऊपर उठाकर उनकी भेंट स्वीकार करने के लिए परमेश्वर को धन्यवाद की प्रार्थना करते थे ।
5. परमेश्वर की प्रतिक्रिया - राजा सुलैमान ने हजारों पशुओं की बलि चढ़ाकर आराधना की, तो परमेश्वर ने उससे कहा, “यदि मेरी प्रजा के लोग, जो मेरे कहलाते हैं, दीन होकर प्रार्थना करें, और मेरे दर्शन के खोजी होंकर, अपनी बुरी चालों से फिरें, तब मैं उनके पापों को क्षमा करूंगा, और उनके देश को ज्यों का त्यों कर दूंगा” (2 इतिहास 7:5,14) यदि हम खोये हुए को सही रास्ते पर लाकर जीवित बलिदान के रूप में अर्पित करके प्रार्थना करें, तो हमारा देश बदल जायेगा । (रोमियों 12:1,2; याकूब 5:20)
यदि प्रभु यीशु स्वयं अदृश्य परमेश्वर का प्रतिरूप है तो वो किससे प्रार्थना करते थे, और क्या वे परमेश्वर से कुछ माँगते थे ? जी नहीं! त्रिएकता का हिस्सा और पुत्र होने के नाते, वे अपने पिता के साथ "डेवेन" (वार्तालाप) करते थे । (कुलुस्सियों 1:15; मत्ती 14:23)
“और एक स्वर्गदूत सोने का धूपदान लिये हुए आकर वेदी पर खड़ा हुआ । और उसे बहुत सी धूप दी गई, कि वह उसे सब पवित्र लोगों की प्रार्थनाओं के साथ सिंहासन के साम्हने सोने की वेदी पर चढ़ाए । और धूप का धुआं, जो पवित्र लोगों की प्रार्थनाओं के साथ आया, स्वर्गदूत के हाथ से परमेश्वर के साम्हने चढ़ गया” । (प्रकाशितवाक्य 8:3,4)
यदि आपकी प्रार्थना किसी खोई हुई आत्मा को जीवित बलिदान के रूप में अर्पित करने के साथ जाती है, तो वह परमेश्वर तक पहुँचती है अन्यथा वह वेदी की आग में जलकर भस्म हो जाती है । परमेश्वर के पास छूछे हाँथ आना मना है । (व्यव्स्थाविवरण 16:16) परमेश्वर कहता है, “मेरे भक्तों को मेरे पास इकट्ठा करो, जिन्हों ने बलिदान चढ़ाकर मुझ से वाचा बान्धी है!” (भजन 50:5)
चंगाई के लिए प्रार्थना: हर कोई जिसके लिए आप प्रार्थना करते हैं वह चंगा नहीं होगा। पौलुस ने त्रुफिमुस को मीलेतुस में बीमार छोड़ दिया था (2 तीमुथियुस 4:20) । उसने तीमुथियुस से अपने पेट की बीमारी के लिए कुछ दाखरस पीने को कहा (1 तीमु 5:23) । पौलुस स्वयं अपने शरीर के कांटे के लिये तीन बार दुआ किया, परन्तु प्रभु ने उससे कहा कि मेरा अनुग्रह तेरे लिए पर्याप्त है (2 कुरिन्थियों 12:7-9) । अपनी कमज़ोरियों के बावजूद भी, पौलुस दूसरों के लिए प्रार्थना करता रहा । पुराने नियम में परमेश्वर ने अय्यूब को पीड़ित होने की अनुमति दी थी और एलीशा जैसा एक सामर्थी भविष्यवक्ता जिसने नामान कोढ़ी को शद्ध किया था, बीमार होकर मर गया (2 राजा 13:14-25) । चंगाई ईश्वर की इच्छा और आपके विश्वास पर निर्भर करता है । प्रभु ने दो अंधों से कहा, “तुम्हारे विश्वास के अनुसार तुम्हारे लिये हो और उनकी आंखे खुल गई” । (मत्ती 9:28-30)
प्रार्थना भ्रमण: “परमेश्वर का पुत्र इसलिये प्रगट हुआ, कि शैतान के कामों को नाश करे” (1 यूहन्ना 3:8) । इसके पहले कि “शांति के व्यक्ति” को पाया जा सके और उसको शिष्य बनाकर उसके घर में गृह सतसंग स्थापित की जा सके, उस क्षेत्र के बलवंत “दुष्ट आत्माओं” को बांधने और नर्क के द्वारों को ध्वस्त करने के लिए प्रार्थना भ्रमण एक महत्वपूर्ण रणनीति है (मत्ती 12:28-30; लूका 10:2, 5) । खेत से कांटें और खरपतवार को निकाले बिना बीज बोना व्यर्थ है, क्योंकि आपको वहाँ कोई फसल नहीं मिलेगी ।
यहोशू की सात दिन की प्रार्थना भ्रमण से येरिहो के गढ़ की दीवारें ध्वस्त हो गईं थीं । योना ने अन्यजातियों के शहर नीनवे में तीन दिन तक प्रार्थना भ्रमण किया और राजा और प्रजा ने पश्चाताप किया और इस प्रकार उसने शहर को पूर्ण विनाश से बचाया ।
प्रभावी प्रार्थना के लिए, सभी को सुबह जल्दी इकट्ठा होकर एक साथ प्रार्थना करना । फिर, 2x2 में विभाजित होकर अलग-अलग दिशाओं में जाएं । शैतान के सभी गढ़ों को, जैसे मूर्तिपूजा, व्यभिचार, जुआ सट्टा के केंद्र, शराब और तंबाकू बेचने वाली दुकानें, गंदे भोजन की जगह आदि । अदालतों, शासकों और पुलिस के लिए वे घूस न लें । स्कूलों और अस्पतालों को आशीष दें ताकि वे जाने कि वास्तविक ज्ञान और चंगाई परमेश्वर से आती है । समय-समय पर एक साथ मिलकर अपने प्रयास के परिणाम का मूल्यांकन करें।
आप शहर की परिक्रमा करके शैतान के गढ़ों को घोषणा करें कि, "जिन देवी देवताओं ने स्वर्ग और पृथ्वी को नहीं बनाया, वे पृथ्वी और आकाश से नष्ट हो जाएंगे" । (यिर्म.10:11)
बाइबिल पर आधारित प्रार्थनाएँ
ये विशिष्ट प्रार्थनाएँ विभिन्न विषयों पर हैं जिनके लिए पवित्रशास्त्र हमें बाध्य करता है । वे केवल शब्द नहीं हैं बल्कि उनमें किए जाने वाले कार्य भी निहित हैं ।
“मुझ से मांग: और मैं जाति जाति के लोगों को तेरी सम्पत्ति होने के लिये, और दूर दूर के देशों को तेरी निज भूमि बनने के लिये दे दूंगा” । (भजन संहिता 2:8)
यरूशलेम की शान्ति के लिये: प्रार्थना करो; “जो तुझ से प्रेम रखते हैं वे सफल होंगे” (भजन संहिता 122:6)
अपने देश की चंगाई के लिए: (2 इतिहास 7:14; यहजकेल 22:30)
अपने नगर के लिए: “परन्तु जिस नगर में मैं ने तुम को बंधुआ कराके भेज दिया है, उसके कुशल का यत्न किया करो, और उसके हित के लिये यहोवा से प्रार्थना किया करो । क्योंकि उसके कुशल से तुम भी कुशल के साथ रहोगे” । (यिर्मयाह 29: 7)
अपने बैरियों के लिए: “परन्तु मैं तुम से यह कहता हूं, कि अपने बैरियों से प्रेम रखो और अपने सतानेवालों के लिये प्रार्थना करो” । (मत्ती 5:44)
परमेश्वर के राज्य के लिए: इस रीति से तुम प्रार्थना करो, “कि तेरा राज्य आए । तेरी इच्छा जैसे स्वर्ग में पूरी होती है, वैसे पृथ्वी पर भी पूरी हो” । (मत्ती 6:10)
मज़दूरों के लिए: “इसलिये खेत के स्वामी से बिनती करो कि वह अपने खेत काटने के लिये मजदूर भेज दे” । (मत्ती 9:38)
शासकों के लिए: “कि बिनती, और प्रार्थना, और निवेदन, और धन्यवाद, सब मनुष्यों के लिये किए जाएं । राजाओं और सब ऊंचे पदवालों के निमित्त इसलिये कि हम विश्राम और चैन के साथ सारी भक्ति और गम्भीरता से जीवन बिताएं । यह हमारे उद्धारकर्ता परमेश्वर को अच्छा लगता, और भाता भी है” । (1तिमोथी 2:1,2)
वचन के फैलने के लिए: “निदान, हे भाइयो, हमारे लिये प्रार्थना किया करो, कि प्रभु का वचन ऐसा शीघ्र फैले, और महिमा पाए, जैसा तुम में हुआ” (2 थिस्सलुनिकियो 3:1)
प्रेम और ज्ञान की बढ़ोत्तरी के लिए: “और मैं यह प्रार्थना करता हूं, कि तुम्हारा प्रेम, ज्ञान और सब प्रकार के विवेक सहित और भी बढ़ता जाए” । (फिलिप्पियों 1:9)
रोगियों के लिए: “यदि तुम में कोई रोगी हो, तो सतसंग के प्राचीनों को बुलाए, और वे प्रभु के नाम से उस पर तेल मलकर उसके लिये प्रार्थना करें” । (याकूब 5:14)
एक दूसरे के लिये: “इसलिये तुम आपस में एक दूसरे के साम्हने अपने अपने पापों को मान लो; और एक दूसरे के लिये प्रार्थना करो, जिससे चंगे हो जाओ; धर्मी जन की प्रार्थना के प्रभाव से बहुत कुछ हो सकता है” । (याकूब 5:16)
दुष्टात्माओं को कैसे निकालें
“प्रभु यीशु इसलिये प्रगट हुआ, कि शैतान के कामों को नाश करे“(1 यूहन्ना 3:8)
“परन्तु यदि मैं परमेश्वर की आत्मा से दुष्टात्माओं को निकालता हूं, तो परमेश्वर का राज्य तुम्हारे पास आ गया है । या फिर कोई किसी बलवन्त के घर में घुसकर उसकी सम्पत्ति (लोगों) को कैसे लूट सकता है, जब तक कि पहले वह उस बलवन्त को बाँध न ले, और फिर उसका घर लूट ले? जो मेरे साथ नहीं वह मेरे विरूद्ध है, और जो नहीं बटोरता वह बिखेरता है” । (मत्ती 12:28-30)
वही पवित्र आत्मा हमको भी बीमारों को शिफा देने और दुष्ट आत्माओं के निकालने के लिए उपलब्ध है, लेकिन इसके तुरंत बाद उन्हें बटोरना आवश्यक है । (मत्ती 12:28-30)
“परमेश्वर के सारे हथियार पहन लो ताकि तुम शैतान की युक्तियों के विरुद्ध खड़े हो सको। क्योंकि हम मांस और रक्त के विरुद्ध नहीं, बल्कि प्रधानताओं के विरुद्ध, शक्तियों के विरुद्ध, संसार के शासकों के विरुद्ध, इस युग के अंधकार के विरुद्ध, ऊंचे स्थानों पर आध्यात्मिक दुष्टता के विरुद्ध लड़ते हैं । इसलिये परमेश्वर के सारे हथियार अपने लिये रख लो, कि तुम बुरे दिन में साम्हना कर सको, और सब कुछ करके स्थिर रह सको ।
इसमें पांच हथियार बचाव के लिए हैं जबकि आत्मा की तलवार हमले के लिए है ।
इसलिये अपनी कमर सत्य से बान्धकर, और धर्म का कवच पहिनकर, और पांवों में मेल के सुसमाचार की तैयारी के जूते पहिने हुए खड़े रहो । सबसे बढ़कर, विश्वास की ढाल ले लो, जिससे तुम दुष्टों के सभी उग्र तीरों को बुझा सकोगे । और उद्धार का टोप, और आत्मा की तलवार, जो परमेश्वर का वचन है, ले लो, और आत्मा में सब प्रकार की प्रार्थना और विनती के साथ सदा प्रार्थना करते रहो, और सब पवित्र लोगों के लिये सारी दृढ़ता और विनती के साथ इसी बात का ध्यान रखो” । (इफिसियों 6:10-18)
सबसे पहले, पहचानें कि बुरी आत्मा कितनी शक्तिशाली है । यदि वो कमज़ोर है तो प्रभु यीशु का नाम लेते ही भाग जायेगी । लेकिन अगर वो ताकतवर है, तो आपको उपवास करना होगा, “ऐसी दुष्टात्मा सिर्फ प्रार्थना या उपवास करने से निकलती हैं” (मत्ती 17:21) फिर आपको उस घर या इलाके के चारों ओर प्रार्थना भ्रमण करके उसे बांधना होगा, जैसे यहोशू ने यरीहो के चारों ओर भ्रमण करके उसकी दीवार को ध्वस्त किया था ।
शैतानिक शक्तियों को ध्वस्त करने के लिए हमारे अस्त्र शस्त्र:
- परमेश्वर के आधीन हो जाओ; और शैतान का साम्हना करो, तो वह तुम्हारे पास से भाग जायेगा । (याकूब 4:7)
- प्रभु का नाम: विश्वासी मेरे नाम से दुष्टात्माओं को निकालेंगे । (मरकुस 16:17)
- उपवास और प्रार्थना से । (मत्ती 17:21)
- परमेश्वर के वचन से जो दोधारी तलवार से भी तेज है । (इब्रानियों 4:12)
- पवित्र आत्मा की मदद से बलवंत को बांधना । (मत्ती 12:28)
- मेम्ने के लोहू और अपनी गवाही से, वे शैतान पर जयवन्त हुए, और उन्होंने अपने प्राणों को प्रिय न जाना, यहां तक कि मृत्यु भी सह ली । (प्रकाशित 12:11)
जो हथियार तेरी हानि के लिये बनाए जाएं, उनमें कोई सफल न होगा । (यशायाह 54:17)
याद रखें कि प्रभु यीशु ने आपको "शत्रु की सारी सामर्थ पर अधिकार दिया है और जो कुछ तुम पृथ्वी पर बांधोगे वह स्वर्ग में बंधेगा, और जो कुछ तुम पृथ्वी पर खोलोगे वह स्वर्ग में खुलेगा" । (लूका 10:19; मत्ती 16:19)
“यद्यपि हम शरीर के अनुसार चलते हैं, तौभी शरीर के अनुसार युद्ध नहीं करते । क्योंकि हमारे युद्ध के हथियार गढ़ों को गिराने, कल्पनाओं और परमेश्वर के विरुद्ध ऊंची वस्तु जो अपने आप को ऊंचा उठाती है, खंडन करने और हर विचार को मसीह की आज्ञाकारिता में कैद करने के लिए परमेश्वर के द्वारा शक्तिशाली हैं ।” (2 कुरिन्थियों 10:3-5)
आपको अपने क्षेत्र में प्रार्थना भ्रमण करके बुरी आत्मा का सामना करना होगा और प्रभु यीशु मसीह के नाम से उसे बाहर निकलने का आदेश देना होगा । वहां प्रार्थना मत करना – आदेश देना कि प्रभु यीशु मसीह के नाम से निकल जा । यदि वह बहस करता है, तो आप प्रभु यीशु मसीह के खून के रूप में उस पर थोड़ा पानी छिड़क सकते हैं । योना नबी के समान, परमेश्वर की घोषणा शहर में भ्रमण करते हुए लोगों से पश्चाताप करवाएं ।
जब दुष्ट आत्मा निकल जाए, तो तुरंत उपस्थित सभी लोगों को इकट्ठा करके उन्हें बताइए कि: “जब अशुद्ध आत्मा मनुष्य में से निकल जाती है, तब विश्राम ढूंढ़ती हुई सूखी जगहों में फिरती है, और नहीं पाती । तब वो कहती है कि मैं जहां से निकली हूं, वहीं अपने घर में लौट जाऊंगी । और जब वह आती है, तो उसे खाली, साफ-सुथरा और सजा सजाया पाती है । तब वह जाकर अपने से भी बुरी सात आत्माओं को अपने साथ ले आती है और उस आदमी की दशा पहले से भी बदतर हो जाती है ।” (मत्ती 12:43-45)
आप उन्हें बताएं कि यदि वे ऐसा नहीं चाहते, तो उन्हें पश्चाताप करके जल दीक्षा लेकर प्रभु यीशु मसीह के प्रभुत्व को स्वीकार करना होगा । (प्रेरित 2:37-39; रोमियों 10:9,10)
शैतान के साम्राज्य को नष्ट किए बिना वचन का प्रचार करना व्यर्थ साबित होगा । प्रभु यीशु और उसके शिष्यों ने हमेशा सबसे पहले बीमारों के लिए प्रार्थना करके और दुष्टात्माओं को निकालने के बाद सुसमाचार का प्रचार किया । शैतान के साम्राज्य को निष्कासित करने के बाद ही, सुसमाचार के बीज बोने से आत्माओं की फसल प्राप्त होगी।
भ्रमण के वक्त गढ़ों को यह घोषणा करें, “ये देवता जिन्हों ने आकाश और पृथ्वी को नहीं बनाया वे पृथ्वी के ऊपर से और आकाश के नीचे से नष्ट हो जाएंगे” । (यर्मियाह 10:11)
अंत में कभी भी दुष्ट आत्माओं को निकालने का श्रेय न लें कि “मैंने निकाला है” क्योंकि हे प्रभु हे प्रभु, कहकर दुष्ट आत्माओं के निकालने और बीमारों की शिफा देनें का श्रेय लेने वालों का न्याय के दिन प्रभु बहिष्कार कर देगा । (मत्ती 7:21-23)
सतसंग वो है जहाँ परम सत्य जो स्वयं प्रभु यीशु मसीह रहता हैं जिसके नाम से शैतान भाग जाता है और लोग शास्वत जीवन प्राप्त करके अनन्त जीवन के वारिस हो जाते हैं ।
मंदिर का कर – दसवांश – और स्वेच्छा दान
पुराने नियम में, दान देने के तीन तरीके थे:
1. टेम्पल टैक्स: यरूशलेम के मंदिर के रखरखाव के लिए आधा शेकेल टैक्स दिया जाता था (निर्गमन 30:13) । ये बीस साल की उम्र के ऊपर वालों को मंदिर की सदस्यता के लिए देंना पड़ता था । प्रभु यीशु ने पतरस को मछली पकड़ने के लिए भेजा जिसके गले में एक सिक्का फंसा हुआ था, जिसे मंदिर टैक्स के रूप में पेश किया । (मत्ती 17:24-27)
2. दसवांश: (भोजन), "अपना दसवांश लाओ कि मेरे घर में भोजन हो" (मलाकी 3:10) । ज़मींदार ही अपनी वृद्धि का दसवांश देते थे, जैसे पशु, अनाज, तेल, दाखरस, फल इत्यादि । होमबलि में, पूरे जानवर को वेदी पर भस्म कर दिया जाता था, लेकिन शांति और धन्यवाद के भेंट में से याजक एक पैर अपने लिए रखता था और बाकी जानवर को भक्तजन को लौटा देता था, जो उसे लेवियों, विधवाओं, अनाथों और अपने मजदूरों के साथ मिलकर भोजन करता था” (व्यवस्था. 14:22-29) । आज भी घर घर रोटी तोड़ना जहाँ गरीब और नवागुन्तुक को छोड़ सब लोग अपने खाना लाकर मिलकर खाते हैं ।
प्रभु यीशु मसीह, पतरस और पौलुस ने कोई दशमांश नहीं दिया क्योंकि उनके पास कोई ज़मीन नहीं थी । दशमांश के रूप में सोना, चाँदी या पैसा कभी भेंट नहीं चढ़ाया जाता था क्योंकि इसे आग की वेदी पर अर्पण नहीं किया जा सकता था । हर तीसरे साल वे अपने घर के परिसर में अपने परिवार के साथ लेवियों, विधवाओं, अनाथों और परदेशियों के साथ मिलकर अपना दसवांश खाते थे । (व्यव. 14:22-29)
3. स्वेच्छा भेंट: एक गरीब विधवा ने मंदिर के बाहर रखे दान के डब्बों में अपनी दो दमड़ी डाल दीं, जिसे प्रभुजी ने सबसे बड़ा दान घोषित किया क्योंकि उसने 100% दान दिया था । (मरकुस 12:42) स्वेच्छा दान में आप सोना, चाँदी या धन जितना चाहे भेंट दे सकते हैं लेकिन याद रखें:“जो थोड़ा बोता है वह थोड़ा काटेगा भी; और जो बहुत बोता है, वह बहुत काटेगा । हर एक जन जैसा मन में ठाने वैसा ही दान करे, न कुढ़ कुढ़ के, और न दबाव से, क्योंकि परमेश्वर हर्ष से देनेवाले से प्रेम रखता है ।“ (2 कुरिन्थियों 9:6,7) स्वेच्छा भेंट चर्च के रख रखाव के लिए नहीं लेकिन फसल काटने वालों के लिए है, जो गैर-विश्वासियों के बीच जाकर आत्माओं की फसल काटते हैं । (2 कुरिन्थियों 9:6,7)
आप चर्च को दसवांश के रूप में जो भुगतान करते हैं, वह दसवांश नहीं लेकिन सही में टेम्पल टैक्स है, क्योंकि आप ये भुगतान सतसंग में अपनी सदस्यता के लिए देते हैं ताकि आपके बच्चे का जल दीक्षा हो, आपकी बेटी की शादी हो और आपके मरने पर आपको दफनाने के लिए एक सेवा प्रदाता के रूप में मंदिर का टैक्स है ।
पिन्तेकुस्त के बाद, दसवांश घर-घर रोटी तोड़ना, यानि भोजन में बदल गया । संपन्न लोग गरीबों के लिए अतिरिक्त भोजन लाते थे, जिसे वे साथ मिलकर खाते थे । (प्रेरित 2:46)
दसवांश और भेंट गरीब, अनाथ और विधवाओं के भोजन और दीगर ज़रूरतों को पूरा करने के लिए है जो सतसंग में आते हैं, न कि कर्मचारियों के वेतन और सतसंग के रखरखाव के लिए । पुराने नियम में, याजकों को मंदिर में सेवा करते समय भेंट का दसवांश प्राप्त होता था, जो मांस, अनाज, फल, तेल और दाखरस आदि जैसे भोजन थे ।
याजक वेतनधारी नहीं होते थे और न उनके पास जमीन होती थी (गिनती 18:20; व्यवस्था 10:9)। इसीलिए बर्नाबास/यूसुफ़ जो लेवी था उसने अपनी अवैध जमीन बेचकर पैसों को प्रेरितों के पैरों पर रख दिया और फिर अपनी सेवकाई पौलुस के साथ शुरू किया (प्रेरित 4:36,37)। याजकों के 24 परिवार थे जो मंदिर में पारी पारी से साल में दो सप्ताह के लिए सेवा देते थे। बाकी समय वे अपने क्षेत्र में मदरसा चलाते थे, बच्चे का आठवें दिन खतना करते थे, शादी ब्याह में भाग लेते थे और मूसा की व्यवस्था और पर्बों को मानने की महत्वता सिखाते थे, जिससे उनको पर्याप्त आमदनी हो जाती थी ।
"परन्तु यदि कोई, विशेष करके अपने घरानेवालों की चिन्ता न करे, तो वह विश्वास से मुकर गया है, और अविश्वासी से भी बुरा बन गया है" (1 तीमुथियुस 5:8)
नया नियम जरूरतमंदों और संतों को देने के लिए प्रोत्साहित करता है, लेकिन चर्च को दशमांश और भेंट देने के बारे में कुछ भी उल्लेख नहीं है । (रोमियों 12:13; इब्रानी 13:16)
हालाँकि अगुवों को कभी-कभी दान मिलता था, नए नियम में कोई भी सेवक वेतनधारी नहीं होता था (फिलिप्पियों 4:15) । वे सभी द्वि-व्यवसायिक यानि वे अपने धंधा की कमाई से प्रचार प्रसार करते थे, जैसे पौलुस, प्रिसिला और एक्विला तम्बू बनाने वाले थे। पतरस और यूहन्ना मछुआरे थे जिन्होंने अपनी नावें किराए पर दी थीं । लुदिया और फीबे व्यवसायी थीं, लूक चिकित्सक था । योअन्ना का पति चूज़ा हेरोदेस का भण्डारी था, और मरियम मगदलीनी और सुसन्नाह अपनी संपत्ति से प्रभु की सेवा करते थे । (लूका 8:2,3)
पौलुस हर बिश्वासी से अपेक्षा करता है की वो धन अर्जित करे और स्वतंत्र सेवकाई करे (1 थिस्स. 4:11-12) । वह "अपने हाथों से काम करने" (1 थिस्स. 4:11) और "किसी की कमी न होने" (1थिस्स. 4:12) के लिए प्रोत्साहित करता है: “मैंने किसी मनुष्य के चाँदी, सोना या परिधान का लालच नहीं किया । तुम आप ही जानते हो, कि इन हाथों ने मेरी और मेरे साथियों की आवश्यक्ताओ को पूरा किया । मैं ने तुम्हें दिखा दिया कि किस रीति से काम करते हुए हमें निर्बलों की सहायता करनी चाहिए, और प्रभु यीशु के वचन स्मरण रखना चाहिए, कि उस ने आप ही कहा, लेने से देना धन्य है” (प्रेरित 20:33-35)
पौलुस अपने कमाई को अपने लिए और अपने साथियों के लिए खर्च करता था, और जो बच जाता था उसे वह गरीबों को बाँट देता था । (प्रेरितों के काम 20:33-35)
अंत में, जो कुछ भी आप कमाते हैं वह आपका नहीं बल्कि परमेश्वर का है, "सावधान रहें, ऐसा न हो कि आप अपने दिल में कहें, 'मैंने अपनी सामर्थ से यह धन कमाया है ।' तू अपने परमेश्वर को स्मरण रखना, जो तुझे धन प्राप्त करने का सामर्थ देता है, जिस से उस वाचा को जो मैने तेरे पूर्वजों से शपथ खाकर बान्धी है उसको पूरा कर सके" (व्यव. 8:17,18) । परमेश्वर ने पिता इब्राहीम के साथ एक वाचा बाँधी कि तुम पृथ्वी के सभी परिवारों के लिए एक आशीर्वाद बनोगे । इसलिए, न केवल दशमांश बल्कि आपकी सारी संपत्ति उन परिवारों को आशीषित करने के लिए है, जो अभी तक प्रभु से वंचित हैं ।
न्याय के दिन, हर एक जन से परमेश्वर द्वारा दिए गए समय, योग्यता, प्रतिभा और संसाधनों के भण्डारी के रूप में हिसाब लिया जाएगा । (लूका 16:2)
शिष्य कैसे बनाए ?
प्रभु यीशु ने हमें चर्च निर्माण करने और चलाने के लिए नहीं कहा । उन्होंने हमसे शिष्य बनाने का आदेश दिया और कहा कि, “मै अपनी सतसंग (कलीसिया) स्थापित करूँगा” (मत्ती 16:18) । लूका अध्याय 9 और 10 में, प्रभु यीशु विस्तार से बताते हैं कि शिष्य कैसे बनाए जाते हैं । अध्याय 9 में, उसने 12 शिष्यों 2x2 करके को बीमारों को चंगा करने और दुष्टात्माओं को बाहर निकालने की सामर्थ के साथ भेजा । वे 72 शिष्यों को लेकर आये । फिर प्रभुजी उन 72 को भी 2x2 करके भेजा और हिदायत दी कि सूट बूट पहिनकर और बाजे गाजे लेकर और भीड़ लेकर न जाये, बल्कि चुपचाप बिना दिखावा के जाएं । जाते जाते फसल के परमेश्वर से स्थानीय मजदूर प्रशीक्षित करने के लिए प्रार्थना करें ।
उसने उनसे कहा कि सबसे पहले उस क्षेत्र के बलवंत (बुरी आत्माओं) को उसके चारों ओर प्रार्थना भ्रमण करके बाँध दें, क्योंकि कचरा साफ़ किये बगैर खेत में बीज बोना व्यर्थ है (मत्ती 12:28-30) । प्रभु जी “शांति की संतान” को प्रकट करेगा, जो अपने घर में आपको खाने और ठहराने की सेवा प्रदान करेगा । पहले ढोलकबाजी और प्रचार नहीं कीजिये, बल्कि बीमारों को चंगा कीजिये और बुरी आत्माओं को निकालिए । फिर वे आपसे पूछेंगे कि आप किस सामर्थ से यह करते हैं ? अब, आप खुलकर सुसमाचार का प्रचार कर सकते हैं और उन्हें डिस्कवरी बाइबल अध्ययन पद्धति सिखा सकते हैं, ताकि जब आप वहां न हों तो वे वचन में बढ़ सकें और बहुगुणित हों ।
डिस्कवरी (खोज प्रक्रिया) बाइबल अध्ययन: विश्वासी और अविश्वासी साथ मिलकर परमेश्वर के वचन का अध्ययन वार्तालाप से करते हैं । किसी बाइबिल ज्ञाता पर नहीं लेकिन स्वयं बाइबल और पवित्र आत्मा पर निर्भर करती है ।
इस पद्धति में:
- बाइबल का एक अंश पढ़कर सवाल जवाब करके निष्कर्ष खोजा जाता है कि
- 1. हमने क्या सीखा, 2. क्या अमल करेंगे और 3. किसके साथ बाटेंगे
- अगले वक्त उनसे पहिले हिसाब लीजिये की जो निर्णय लिया था उसे पूरा किया या नहीं । ये अत्यंत प्रभावशाली पद्धति है, जिससे परिपक्वता बहुत जल्दी आती है ।
शिष्य बनाने के अनेक तरीके हैं । यह हिन्दू, मुस्लिम, बुद्धिस्ट संदर्भ पर आधारित होता है पतरस ने यरूशलेम और यहूदिया को यहूदी शिष्यों से भर दिया । पौलुस ने आराधनालय में यहूदियों से वाद-विवाद किया, परन्तु अन्यजातियों के साथ सामर्थ के कामों का प्रयोग किया । एथेंस में उन्होंने बुतपरस्त मंदिरों का दौरा किया और फिर प्रभु यीशु या बाइबिल का उल्लेख किए बिना उनके स्वयं के ग्रंथों से प्रासंगिक शिक्षा दिया ।
अगर आप सिर्फ बाइबिल का ज्ञान रखतें है, तो ईसाईयों के बीच गोल गोल घुमतें रर्हेंगे लेकिन अन्य जातियों के धर्म सिधान्तों को सीखकर उसका का उपयोग करके आप उन्हें भी उद्धार दिलाकर आशीष का कारण बन सकते हैं, क्योंकि हर धर्म की किताबों में, रामायण, गीता, वेद या कुरआन हों, प्रभु यीशु का वर्णन प्रगट और गुप्त रूप में मौजूद है ।
अंत का समय
प्रभु यीशु ने अंत के समय के बारे में अनेक भविष्यवाणियाँ कीं जो तेजी से पूरी हो रही हैं - जैसे युद्ध और युद्धों की अफवाहें, जाति के विरुद्ध जाति, अकाल, महामारियाँ, भूकंप, आकाश में चिन्ह, मेरे नाम के कारण सभी लोग तुमसे घृणा करेंगे, कई झूठे भविष्यद्वक्ता उठ खड़े होंगे और बहुतों को धोखा देंगे; अधर्म बहुत बढ़ जाएगा, बहुतों का प्रेम ठंडा हो जाएगा । परन्तु जो अन्त तक स्थिर रहेगा, वही उद्धार पाएगा । और बेशक आज ये सारे वारदात अत्यंत तेज रफ़्तार से पूरे हो रहें हैं, जैसा पहिले कभी नहीं हुआ । इसका अर्थ है कि प्रभुजी का आना बहुत नज़दीक है लेकिन “राज्य का ये सुमाचार सारे जगत में प्रचार जायेगा और तब अंत आ जायेगा” (मत्ती 24:6-14) । वे तभी आयेंगे जब सुमाचार हर जाती, गाँव और मोहल्ले में न पहुँच जाये ताकि न्याय के दिन कोई न कह सके कि हमने तो ये नहीं सुना ही नहीं कि, “प्रभु यीशु ही मार्ग, सत्य और जीवन है”।
आपको सिर्फ भटकी हुई आत्माओं को बचाने से स्वर्गलोक मिलेगा । लक्ष्य निर्धारित करके उसमे संलग्न हो जाईये । प्रभुजी कब आयेंगे ये किसी को नहीं मालूम । हमें आज उन पांच समझदार कुमारियों की तरह तैय्यार रहना है (मत्ती 13:1-13) क्योंकि कल का कोई भरोसा नहीं है । हम जहां रहते और काम करते हैं, वही हमारा मिशन क्षेत्र है।
आज, स्थानीय, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के आन्दोलनकर्ता दुनिया की आध्यात्मिक छबि को चुपचाप और गुप्त रीति से तेजी से पूर्ण रूप से बदल रहे हैं।
पौलुस की मिशनरी यात्रायें
पौलुस ने यीशु मसीह के सुसमाचार का प्रचार करते हुए 16,000 KM से अधिक पैदल और पानी जहाज़ से अनेक यातनायें सहते हुए यात्राएँ की । लिस्त्रा में उसे मारकर शहर के बाहर फेंक दिया गया था, लेकिन निडर होकर दूरे दिन फिर से उस शहर वापस गया ।
पहली मिशनरी यात्रा में पौलुस साइप्रस, पम्फूलिया और गलातिया से होकर गुजरा । अपनी दूसरी यात्रा में गलातिया,मक्किदूनिया और अखाया से होकर गुजरा । तीसरी यात्रा गलातिया, एशिया (तुर्की), मक्किदूनिया, अखाया से होते हुए यरूशलेम में समाप्त हुई । उन्होंने मुख्य रूप से वर्तमान इज़राइल, सीरिया, तुर्की और यूनान तक भ्रमण किया ।
सतसंग रोपण का आंदोलन प्रज्वलित करने का लक्ष्य: पौलुस ने विभिन्न शहरों में “सतसंग रोपण आन्दोलन” को प्रज्वलित किया । अब वो दावा कर सकता था कि, “अब इन प्रदेशों में कोई स्थान नहीं बचा है जहाँ मैंने प्रचार नही किया” । (रोमियों 15:23)
सतसंग रोपण आंदोलन की परिभाषा: जहाँ स्थानीय विश्वासयों द्वारा अपने ही संसाधनों से अपने क्षेत्र में शिष्य बनाने और सतसंग रोपण आन्दोलन को तेज रफ़्तार से गतिमान करते हैं । यदि बाहरी अगुवों द्वारा यह संचालित है तो वह स्वचलित आन्दोलन नहीं है । सतसंग आन्दोलन का अगुवा कहलाने के लिए आपके शिष्यों के द्वारा कम से कम 100 सतसंग स्थापित किये गए हों और 1000 जल दीक्षा दिए गए हों ।
पौलुस ने चेतावनी दी कि, “तुम मेरा अनुकरण वैसे ही करो जैसे मैं मसीह का अनुकरण करता हूँ । और जो शिक्षाएँ मैंने तुम्हें दी हैं, उनका सावधानी से पालन करो । और यदि स्वर्गदूत भी आकर दूसरी शिक्षा दें तो वे श्रापित हों । (1कुरि. 11:1,2; गलातियों 1:8)
यदि आपकी सतसंग (कलीसिया) पौलुस के सिखाये नमूने और संरचना और ढांचे पर नहीं चल रही है तो सावधान हो जाईये । भला ये होगा कि आप खुद अपने घर में या कार्य क्षेत्र में सतसंग शुरू करें और खोए हुए लोगों के लिए उद्धार का कारण बने ।
मसीही एक महान परमेश्वर पर बिश्वास करते हैं लेकिन कूप मंडूक की तरह उनका दर्शन चर्च के चार दीवारों के अंदर सीमित रहता है । यदि आप सच में महान परमेश्वर पर बिश्वास करते हैं तो परमेश्वर के महान आदेश को पूरा करने का दर्शन रखना आवश्यक है ।
पीढ़ी दर पीड़ी शिष्य बनाना
युवा लोग विवाह करते हैं और बच्चे पैदा करते हैं, और वे माता-पिता बन जाते हैं । जब उनके बच्चे बड़े हो जाते हैं और बच्चे पैदा करते हैं, तो वे दादा-दादी बन जाते हैं; जब पोते-पोतियां उत्पन्न होते हैं, तो वे परदादा-परदादी बन जाते हैं । परिवार का प्रत्येक सदस्य वंश को पीढ़ीगत बढ़ानेवाली प्रक्रिया में सक्रीय होता है । और इस प्रकार, परिवार बढ़ता और बहुगुणित होता है । ठीक इसी प्रकार, प्रत्येक विश्वासी को पीड़ी दर पीड़ी आत्मिक परिवार पैदा करने में सक्रीय होना चाहिए जिससे परमेश्वर के राज्य में गुणात्मक वृद्दि हो और पृथ्वी परमेश्वर के परिवारों से भर जाये ।
भारत में अनुमानित 5 करोड़ नवधर्मी और 2.5 करोड़ पारंपरिक मसीही हैं । यदि मात्र दस परसेंट बिश्वासी जीवन भर में सिर्फ एक आत्मिक परिवार का पुनरुत्पादन करें, तो लाखों कलीसियाओं से हर जाति, कुल, गोत्र और भाषा में पहुँच जायेगा और भारत जल्द ही एक मसीही देश बन जाएगा, क्योंकि यहाँ कुल मिलाकर सिर्फ 6.5 लाख छोटे बड़े गाँव और 400 शहर जहां कुछ हजार मोहल्ले और बस्तियां हैं ।
और हम पौलुस के समान दावा कर सकेंगे की, “क्योंकि अब इन प्रदेशों में कोई स्थान नहीं बचा है जहाँ मैंने प्रचार नहीं किया, इसलिए अब मै इसपानिया (स्पेन देश = उस समय पृथ्वी की छोर माना जाता था) जाऊँगा । (रोमियों 15:23,24)
पौलुस ने वंशानुगत वृद्धि और बहुगुणित होने का मन्त्र अपने शिष्य तीमुथियुस को दिया: "और जो बातें तुम ने बहुत गवाहों के बीच मुझ से सुनी हैं, उन्हें विश्वास योग्य मनुष्यों को सौंप दो जो औरों को भी सिखा सकें" । (2 तीमुथियुस 2:2)
यहां, पौलुस पहली पीढ़ी है जिसे बरनबास ने प्रशिक्षित किया था, दूसरी पीढ़ी के तीमुथियुस है और तीसरी पीढ़ी विश्वासयोग्य पुरुष (एंथ्रोपोस=पुरुष और महिलाएं) हैं और चौथी पीढ़ी ‘दूसरें’ हैं ।
यदि आप अगली पीढ़ी को परमेश्वर के राज्य के लिए प्रेरित और गतिमान करने में विफल होते हैं, तो आप अगली पीढ़ी को बरबाद कर चुके हैं और उन्हें परमेश्वर विहीन अनंत काल के लिए दंडित घोषित कर दिया है । इसीलिए, किसी व्यक्ति को सतसंग में प्राचीन तभी नियुक्त किया जा सकता है जब उसके बच्चे विश्वास में चलतें हों । (तीतुस 1:6) और औरतों के विषय लिखा है कि “तौभी वे बच्चे जनने के द्वारा उद्धार पाएंगी, यदि वे (बच्चे) संयम सहित विश्वास, प्रेम, और पवित्रता में स्थिर रहते हैं” (1 तीमुथियुस 2:15) । यदि आप बिश्वास में नहीं हैं तो आपकी माँ नरक चली जाएगी ।
परमेश्वर का वायदा है कि "वे अन्यजातियों के बीच में अपने वंश को, और देश देश के लोगों के बीच में अपने वंश को जान लेंगे; जो कोई उन्हें देखेगा, वह जान लेगा, कि ये वही वंश हैं, जिस को यहोवा ने आशीष दी है" । (यशायाह 61:9)
विश्वासियों को परमेश्वर के राज्य को बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करने का सबसे सरल तरीका यह है, कि जब भी आप बिश्वासियों से मिलें तो उनसे पूछें कि उनके आत्मिक बच्चे और पोते-पोतियाँ क्या कर रहे हैं ?
परमेश्वर की प्रतिज्ञा
“उन बातों के बाद मैं सब प्राणियों पर अपना आत्मा उण्डेलूंगा; तुम्हारे बेटे- बेटियां भविष्यद्वाणी करेंगी, तुम्हारे पुरनिये स्वप्न देखेंगे, और तुम्हारे जवान दर्शन देखेंगे । तुम्हारे दास और दासियों पर भी मैं उन दिनों में अपना आत्मा उण्डेलूंगा और मैं आकाश और पृथ्वी पर चमत्कार, अर्थात् लोहू और आग और धूएं के खम्भे दिखाऊंगा । यहोवा के उस भयानक दिन के आने से पहिले सूर्य अन्धियारा होगा और चन्द्रमा रक्त सा हो जाएगा । उस समय जो कोई यहोवा का नाम लेगा वह छुटकारा पाएगा” । (योएल 2:28-32)
धर्मशास्त्र हिदायत देती है कि,“जहाँ दर्शन की बातें नहीं होती वहां लोग नाश हो जाते हैं” । (नीतिवचन 29:18)
क्या आपके बेटे बेटियां और आपके नौकर चाकर पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होकर गवाही दे रहें हैं ? अफ़सोस ये है कि घर में सालों साल काम करने वालों को प्रभु में लाना तो दूर सुसमाचार भी नहीं सुनाया जाता । वे सब ख्रिस्त विहीन अनंत काल व्यतीत करेंगे, लेकिन याद रखें कि उनके खून का हिसाब परमेश्वर आप से लेगा । (यहेजकेल 3:18)
फिलहाल यहूदियों ने यीशु को अपने मसीहा (परमेश्वर के अवतार) के रूप में अस्वीकार कर दिया है, लेकिन क्लेश के दौरान, 144,000 यहूदी राज्य में आएंगे ।(प्रकाश 7:1-10)
इसी तरह, इश्माएल के संतान मुस्लिम की बहुत बड़ी भीड़ प्रभू में आएगी, ''मिद्यान, एपा और शेबा से ऊंटों की एक सेना आएगी; वे सोना और धूप लायेंगे और यहोवा का भजन गाएंगे । इश्माएल के बेटे केदार और नबायोत की सारी भेड़-बकरियां मेरी वेदी पर चढ़ेंगी, और मैं अपने महिमामय भवन को और भी महिमान्वित करूंगा” (यशायाह 60:6,7)
“अन्य समुदाय के लोग, यहां तक कि हिजड़े (ट्रांसजेंडर) भी प्रभु से जुड़ेंगे,“मैं उन्हें अपने प्रार्थना के घर में आनंदित करूंगा; क्योंकि मेरा घर सब लोगों के लिये प्रार्थना का घर कहलाएगा” । (यशा. 56:3-7)
स्वर्ग, स्वर्गलोक और नरक
धोखा मत खाओ । सिर्फ इसलिए कि आप बाइबल पढ़ते हैं, प्रार्थना करते हैं, चर्च जाते है, इसका मतलब यह नहीं है कि आप स्वर्ग जा रहे हैं । वास्तव में स्वर्ग कोई नहीं जायेगा। वह परमेश्वर का रहन स्थान है। प्रभु यीशु ने कहा, “स्वर्ग में ऊपर कोई नहीं गया, सिवाय उसके, जो स्वर्ग से उतर कर आया है यानी मानव-पुत्र“ । “किसी ने पिता को नहीं देखा परन्तु जो परमेश्वर की ओर से है, सिर्फ उसी ने पिता को देखा है ।“ (यूहन्ना 3:13, 6:46)
धर्मशास्त्र कहता है, “देह ज्यों की त्यों मिट्टी में मिल जाएगी, और आत्मा परमेश्वर के पास जिस ने उसे दिया लौट जाएगी (सभोपदेशक 12:7) । पौलुस कहता है, “विश्वासियों के लिए, शरीर से अनुपस्थित होना प्रभु के साथ उपस्थित होना है (2 कुरिन्थियों 5:6-8; प्रेरितों के काम 2:10), फिलिप्पियों 1:23, 3:20-21) । वह आगे कहता है, "मनुष्यों के लिये एक बार मरना और न्याय का होना नियुक्त है" (इब्रानियों 9:27) ।
अन्तिम पुनरुत्थान होने तक, “स्वर्गलोक” (Paradise), एक अस्थायी स्थान है (लूका 23:43; प्रेरितों के काम 23:43, 2 कुरिन्थियों 12:4) और एक अस्थायी नरक—अधोलोक (Hades) (प्रकाशितवाक्य 1:18; 20:13-14) । अधोलोक (Hades) ग्रीक शब्द है'' जो मरे हुओं का स्थान''। प्रभु यीशु ने कहा, "मैं अपनी कलीसिया बनाऊँगा, और अधोलोक के फाटक प्रबल न होंगे" (मत्ती 16:18) । प्रभु यीशु ने क्रूस पर डाकू से नहीं कहा, "मैं तुम्हें स्वर्ग (Heaven) ले जाऊंगा लेकिन स्वर्गलोक (Paradise) में” (लूका 23:43)।
स्वर्गलोक के दो भाग हैं । गरीब लाजर अब्राहम की गोद में चला गया, जबकि धनी व्यक्ति पीड़ा के स्थान पर चला गया (लूका 16:19-41) ।
नरक ग्रीक शब्द "गेहन्ना" (Gehenna) से लिया गया है । यह आग और गंधक की झील है । यह अंतिम मुकाम है जहाँ शैतान, दुष्टात्माएँ और अविश्वासी जो परमेश्वर को अस्वीकार करते हैं, उन्हें यातना दी जाएगी । (प्रका. 20:10-15; मत्ती 25:46, 2 थिस्स. 1:9)
स्वर्ग जाने के योग्य होने के लिए, आपका नाम मेमने की पुस्तक में लिखा होना अनिवार्य है (प्रका. वाक्य 20:12,15) । इसके लिए, आपको नया जन्म लेना पड़ेगा और एक नई सृष्टि बनना पड़ेगा और परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करना पड़ेगा (यूहन्ना 3:3,5; 2 कुरिं, 5:17; इब्रानियों 1:12, यूहन्ना 14:15) । आप अपनी धार्मिकता से नहीं परन्तु अपने फलों (बची हुई आत्माएं) से पहचाने जाओगे । (यशायाह 64:6; मत्ती 7:20)
परमेश्वर ने अदन की वाटिका को सभी प्राणियों के लिए अनन्त जीवन के लिए सृजा था, परन्तु शैतान ने आदम और हव्वा को धोखा देकर इसे नष्ट कर दिया । लेकिन परमेश्वर की योजना को कोई नष्ट नहीं कर सकता, इसलिए वह इसे पुनह स्वर्गलोक (Paradise) यानी अदन की बारी के रूप में पुनर्वास करेगा । तब नया स्वर्ग दुल्हन की तरह सजकर स्वर्ग से उतरेगी और प्रभु परमेश्वर नई पृथ्वी पर अपने लोगों के साथ हमेशा हामेशा के लिए डेरा करेगा । (प्र.वाक्य 21:1-3)
वर्तमान स्थिति
सभी उतार चदाव के बावजूद, हमारे प्रभु की कलीसिया जो प्रभु की देह है वह कभी नहीं मर सकती । पश्चिमी नमूने का जो चर्च है वह विफल हो गया है क्योंकि वे अर्थहीन रीती रिवाजों, कार्यक्रमों, घोटालों, गर्भपात, समलैंगिक विवाह, उदारवाद और नास्तिकता में फंस गए हैं । विशेष रूप से युवा लोग, ऐसी कलीसिया की तलाश कर रहे हैं जहाँ एक पारिवारिक वातावरण हो जिसमे वे स्वतंत्र रूप से स्वयं को व्यक्त कर सकते हैं, प्रेम पा सकते हैं और संबंध बना सकते हैं, वचन में गहराई से बढ़ सकते हैं, और प्रभावशाली हो सकते हैं । इसलिए, दुनिया भर में पारिवारिक सतसंग की संख्या तेजी से बढ़ रही है ।
वर्तमान में दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ते मसीही आंदोलन: हिंदू - नेपाल; मुस्लिम - ईरान, इंडोनेशिया, मिस्र और अफगानिस्तान; बौद्ध - दक्षिण कोरिया, थाईलैंड, लाओस और कंबोडिया; कम्युनिस्ट - चीन; कैथोलिक क्यूबा और बुतपरस्त मंगोलिया में, बर्मा के रोहिंग्या और जादू-टोना करने वाले अफ्रीकी देश और निश्चित रूप से भारत शीर्ष पर हैं । पिछले 25 वर्षों में भारत के अधिकाँश प्रान्तों में करीबन 50% गाँवों में छोटी मोटी सतसंग रोपण हो चुकी हैं । इसका श्रेय नवधार्मियों को जाता है जो सताव सहते हुए परमेश्वार के राज्य को गतिमान कर रहें हैं । यदि आपके क्षेत्र में ये नहीं हो रहा है तो आप जिम्मेदार हैं। बेशक शीघ्र यह आंदोलन पृथ्वी के छोर तक पहुँच जायेगा और फिर अंत आ जाएगा ।
आप माने या ना माने और आप कुछ करें या ना करें लेकिन बेशक़:
- “येरूशलेम से यहूदिया से समरिया से पृथ्वी की छोर तक बिश्वासी लोग उसकी गवाही देंगे” । (प्र. वाक्य 1:8)
- "सभी जतियों में से शिष्य बनाये जायेंगे । (मत्ती 28:19)
- "राज्य का यह सुसमाचार एक गवाह के रूप में दुनिया भर में प्रचार किया जाएगा, और तब अंत आ जाएगा ।” (मत्ती 24:14)
- “तब पृथ्वी यहोवा की महिमा के ज्ञान से ऐसे भर जाएगी जैसे समुद्र जल से भरा रहता है” । (हबक्कूक 2:14)
- "हर कुल, गोत्र, जाति और भाषा के लोग सिंहासन के सामने खड़े होकर परमेश्वर की आराधना करेंगे ।” (प्रका. 7:9,10)
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