प्रभु यीशु मसीह का पुनरुत्थान हमारे लिए क्या मायने रखता है?
प्रभु यीशु मसीह का पुनरुत्थान हमारे लिए क्या मायने रखता है?
1, 2. (क) कुछ यहूदी धर्म-गुरुओं ने पतरस से क्या पूछा? (ख) पतरस ने उन्हें क्या जवाब दिया? (ग) किस बात ने पतरस के अंदर ज़बरदस्त हिम्मत भर दी थी?
यीशु की मौत हुए बस कुछ ही हफ्ते हुए थे। प्रेषित पतरस अब खौफनाक यहूदी धर्म-गुरुओं के एक समूह के सामने खड़ा था, उन्हीं लोगों के सामने, जिन्होंने यीशु का नामो-निशान मिटाने का षड्यंत्र रचा था। इस बार वे पतरस पर तमतमाए हुए थे। क्यों? क्योंकि उसने एक ऐसे आदमी को चंगा किया था, जो जन्म से चल नहीं सकता था। उन्होंने पतरस से पूछा, “तुमने किस अधिकार से या किसके नाम से यह काम किया है?” पतरस ने हिम्मत के साथ उन्हें जवाब दिया: “यीशु मसीह नासरी के नाम से, जिसे तुमने सूली पर ठोंक दिया था, मगर जिसे परमेश्वर ने मरे हुओं में से ज़िंदा किया, उसी के नाम से यह आदमी यहाँ तुम्हारे सामने भला-चंगा खड़ा है।”(प्रेरितों के काम 4ः5-10)
3, 4. (क) प्रेषितों के पैदा होने से पहले, कौन-कौन-से पुनरुत्थान हुए थे? (ख) यीशु ने किन्हें ज़िंदा किया था?
3 प्रेषित जानते थे कि मरे हुए लोग फिर से ज़िंदा किए जा सकते हैं। उनके लिए यह कोई नयी बात नहीं थी। प्रेषितों के पैदा होने से काफी पहले, परमेश्वर ने एलिय्याह और एलीशा नबी को मरे हुए लोगों को दोबारा ज़िंदा करने का अधिकार दिया था। (1 राजा 17ः17.24; 2 राजा 4ः32-37) यहाँ तक कि एक बार एक आदमी की लाश एलीशा की हड्डियों को सिर्फ छूकर ही ज़िंदा हो गयी थी। (2 राजा 13:20,21) पहली सदी के मसीहियों को बाइबल की इन घटनाओं पर यकीन था और आज हमें भी यकीन है कि परमेश्वर का वचन सच्चा है।
4 बेशक, जब हम यीशु के किए पुनरुत्थान के किस्से पढ़ते हैं, तो इनका हम पर गहरा असर होता है। मिसाल के लिए, ज़रा कल्पना कीजिए कि जब यीशु ने एक विधवा के इकलौते बेटे को दोबारा ज़िंदा किया, तो वह कितनी हैरान रह गयी होगी। (लूका 7ः11-15) या ज़रा उस घटना के बारे में सोचिए, जब यीशु ने 12 साल की एक बच्ची को दोबारा जी उठाया था। अंदाज़ा लगाइए कि जब उस बच्ची के माता-पिता ने अपनी बेटी को फिर से ज़िंदा देखा, तो उनके दुख के आँसू कैसे खुशी के आँसुओं में बदल गए होंगे! (लूका 8ः49-56) और सोचिए जब यीशु ने लाज़र को ज़िंदा किया और लोगों ने उसे कब्र से सही-सलामत बाहर कदम रखते देखा, तो वे कितने खुश हुए होंगे! (यूहन्ना 11ः38-44)
यीशु का पुनरुत्थान सबसे अनोखा क्यों था
5. यीशु का पुनरुत्थान इससे पहले हुए पुनरुत्थानों से कैसे अनोखा था?
5 प्रेषित जानते थे कि यीशु का पुनरुत्थान इससे पहले हुए सभी पुनरुत्थानों से अनोखा था। वह कैसे? पहले जिन लोगों का पुनरुत्थान किया गया था, उन्हें इंसानी शरीर दिया गया था, लेकिन आगे चलकर वे दोबारा मर गए। मगर यीशु को एक आत्मिक शरीर दिया गया था, जो कभी नाश नहीं होता। (प्रेरितों केे काम 13ः34 पढ़िए) पतरस ने लिखा कि यीशु को “शरीर में मार डाला गया, मगर जब ज़िंदा किया गया तो उसे आत्मिक शरीर दिया गया।” उसने यह भी लिखा: “वह अब स्वर्ग लौट गया है और परमेश्वर की दायीं तरफ है। और स्वर्गदूत और अधिकार और ताकतें उसके अधीन की गयी हैं।” (1पतरस 3ः18-22) इससे पहले हुए पुनरुत्थान भी अपने आप में अनोखे चमत्कार थे, लेकिन यीशु का पुनरुत्थान उन सबसे कहीं बड़ा चमत्कार था।
6. यीशु के पुनरुत्थान का चेलों पर क्या असर हुआ?
6 यीशु के दुश्मनों का मानना था कि यीशु मर चुका है, लेकिन हकीकत कुछ और ही थी। वह अब एक शक्तिशाली आत्मिक शख्स के रूप में ज़िंदा हो चुका था, जिसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता था। उसके पुनरुत्थान से साबित हुआ कि वह परमेश्वर का बेटा था। उसके पुनरुत्थान का चेलों पर ज़बरदस्त असर हुआ। वे अब उदास या घबराए हुए नहीं थे, क्योंकि वे जानते थे कि यीशु ज़िंदा हो गया है। यीशु के पुनरुत्थान ने उनमें जोश और हिम्मत भर दी थी। अगर यीशु का पुनरुत्थान नहीं हुआ होता, तो परमेश्वर का मकसद पूरा नहीं होता और जिस खुशखबरी का यीशु के चेले प्रचार कर रहे थे, उसके कोई मायने नहीं रह जाते।
7. (क) यीशु आज क्या कर रहा है? (ख) इससे क्या सवाल उठते हैं?
7 हम जानते हैं कि यीशु सिर्फ एक महान इंसान ही नहीं, बल्कि उससे कहीं बढ़कर था। यीशु आज ज़िंदा है और पूरी दुनिया में हो रहे प्रचार काम की निगरानी कर रहा है। वह स्वर्ग में परमेश्वर के राज का राजा है। यह राज बहुत जल्द पूरी धरती पर से तमाम बुराइयों को मिटा देगा और धरती को एक फिरदौस का रूप देगा, जहाँ लोग हमेशा की ज़िंदगी जी सकेंगे। (लूका 23ः43) अगर यीशु का पुनरुत्थान नहीं हुआ होता, तो इनमें से एक भी बात पूरी नहीं हो पाती। तो सवाल उठता है कि हम क्यों यकीन कर सकते हैं कि यीशु का पुनरुत्थान हुआ था? और उसका पुनरुत्थान हमारे लिए क्या मायने रखता है?
यहोवा ने दिखाया कि वह मौत पर काबू पा सकता है
8, 9. (क) यहूदी धर्म-गुरुओं ने यीशु की कब्र पर पहरा बिठाने की गुज़ारिश क्यों की? (ख) जब स्त्रियाँ कब्र पर आयीं, तब क्या हुआ?
8 यीशु की मौत के बाद, यहूदी धर्म-गुरु पीलातुस के पास आए और उससे कहने लगे: “हुज़ूर, हमें याद आया है कि उस फरेबी ने जीते-जी कहा था, ‘तीन दिन बाद मुझे जी उठाया जाएगा।’ इसलिए हुक्म दे कि तीसरे दिन तक कब्र की चौकसी की जाए, ताकि उसके चेले आकर उसे चुरा न ले जाएँ और लोगों से कहें कि ‘उसे मरे हुओं में से जी उठाया गया है!’ फिर यह आखिरी फरेब, पहले फरेब से भी बदतर होगा।” इस पर पीलातुस ने उनसे कहा: “तुम पहरेदार ले जा सकते हो। और जैसा पहरा बिठाना चाहते हो वैसा बिठा दो।” उन्होंने ठीक ऐसा ही किया। (मत्ती 27ः62-66)
9 यीशु को एक कब्र में दफनाया गया, जिसे चट्टान खोदकर बनाया गया था। फिर इसके दरवाज़े को एक बड़े पत्थर से सीलबंद कर दिया गया। यहूदी धर्म-गुरु चाहते थे कि यीशु की लाश उसी कब्र में पड़ी-पड़ी सड़ती रहे। मगर यहोवा का कुछ और ही मकसद था। तीन दिन बाद, मरियम मगदलीनी और दूसरी मरियम कब्र पर आयीं। उन्होंने देखा कि कब्र पर से पत्थर हटा दिया गया है और एक स्वर्गदूत उस पर बैठा है। उस स्वर्गदूत ने स्त्रियों से कहा कि वे कब्र के अंदर जाकर देखें कि वह खाली है। उसने उनसे कहा: “वह यहाँ नहीं है, क्योंकि . . . उसे जी उठाया गया है।” (मत्ती 28ः1-6) जी हाँ, यीशु ज़िंदा हो चुका था!
10. पौलुस ने यीशु के पुनरुत्थान का क्या सबूत दिया?
10 अगले 40 दिनों में जो हुआ, उससे साफ ज़ाहिर हो गया कि यीशु ज़िंदा हो चुका था। प्रेषित पौलुस ने कुरिंथ के मसीहियों को लिखा: “जो बातें मुझे मिली थीं और जो मैंने तुम तक पहुँचायी हैं उनमें सबसे ज़रूरी यह है कि जैसा शास्त्र में लिखा है, मसीह हमारे पापों के लिए मरा और उसे दफनाया गया, हाँ, शास्त्र के मुताबिक उसे तीसरे दिन जी उठाया गया। और यह कि वह कैफा को और फिर बारहों को दिखायी दिया। उसके बाद वह एक ही वक्त पर पाँच सौ से ज़्यादा भाइयों को दिखायी दिया, जिनमें से ज़्यादातर आज भी मौजूद हैं, मगर कुछ मौत की नींद सो गए हैं। इसके बाद वह याकूब को दिखायी दिया, फिर सभी प्रेषितों को, मगर सबसे आखिर में वह मुझे भी दिखायी दिया, जो मानो वक्त पूरा होने से पहले जन्मा हो।” (1कुरिंथियों 15ः3-8)
इस बात के चार सबूत कि हम कैसे जानते हैं कि यीशु का पुनरुत्थान हो चुका है
11. यीशु का पुनरुत्थान “शास्त्र के मुताबिक” कैसे हुआ?
11 यीशु का पुनरुत्थान “शास्त्र के मुताबिक” हुआ। बाइबल में पहले से ही इस पुनरुत्थान के बारे में बताया गया था। मिसाल के लिए, दाविद ने लिखा था कि परमेश्वर के “पवित्र भक्त” को अधोलोक, या कब्र, में नहीं छोड़ा जाएगा। (भजन 16ः10 पढ़िए) ईसवी सन् 33 के पिन्तेकुस्त के दिन पतरस ने समझाया कि भविष्यवाणी के तौर पर कही गयी यह आयत यीशु पर लागू होती है, जब उसने कहा: “दाऊद ने होनेवाली बातों को पहले से देखकर मसीह के जी उठने के बारे में बताया कि उसे न तो कब्र में छोड़ा जाएगा, न ही उसके शरीर को सड़ने दिया जाएगा।”(प्रेरितों के काम 2ः23-27, 31)
12. जी उठाए गए यीशु के चश्मदीद गवाह कौन-कौन थे?
12 जी उठाए गए यीशु के बहुत-से चश्मदीद गवाह थे। यीशु के पुनरुत्थान के बाद अगले 40 दिनों तक वह अपने चेलों को कई बार दिखायी दिया, जैसे कब्र के नज़दीक एक बाग में, इम्माऊस जानेवाली सड़क पर और दूसरी जगहों पर। (लूका 24ः13-15) उसने कुछ चेलों से, जैसे कि पतरस और दूसरे कुछ समूहों से बात भी की। एक बार तो यीशु 500 से भी ज़्यादा लोगों को दिखायी दिया। हम इस सबूत को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते कि जी उठाए गए यीशु को इतने सारे लोगों ने अपनी आँखों से देखा था।
13. चेलों के जोश से कैसे ज़ाहिर हुआ कि उन्हें यकीन था कि यीशु का पुनरुत्थान हो चुका है?
14. आप क्यों यकीन करते हैं कि यीशु ज़िंदा है?
14 हमारे पास इस बात के सबूत हैं कि यीशु अब राजा बनकर राज कर रहा है और वह मसीही मंडली का मुखिया है। सच्चा मसीही धर्म फैलता जा रहा है। अगर यीशु का पुनरुत्थान नहीं हुआ होता, तो क्या यह तरक्की मुमकिन हो पाती? बिलकुल नहीं। उल्टा, अगर यीशु का पुनरुत्थान नहीं हुआ होता, तो शायद हम कभी यीशु के बारे में जान ही नहीं पाते। लेकिन आज इस बात पर यकीन करने के हमारे पास ठोस सबूत हैं कि यीशु ज़िंदा है और दुनिया-भर में हो रहे प्रचार काम की निगरानी कर रहा है।
यीशु का पुनरुत्थान हमारे लिए क्या मायने रखता है
15. मसीह का पुनरुत्थान हमें प्रचार करने की हिम्मत कैसे देता है?
15 मसीह का पुनरुत्थान हमें प्रचार करने की हिम्मत देता है। यीशु के ज़माने से परमेश्वर के दुश्मनों ने प्रचार काम को बंद करने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाए हैं, जैसे सच्चे मसीही धर्म के खिलाफ बगावत करना, खिल्ली उड़ाना, मार-पीट करना, पाबंदी लगाना, ज़ुल्म ढाना, यहाँ तक कि लोगों को जान से मार देना। लेकिन कोई भी हथकंडा, जी हाँ, ‘हमारी हानि के लिए बनाया गया कोई भी हथियार’ हमें राज की खुशखबरी का प्रचार करने से रोक नहीं पाया है। (यशायाह 54ः17) हम शैतान की जी-हुज़ूरी करनेवालों से डरते नहीं, क्योंकि हमारे साथ यीशु है। वह अपने वादे के मुताबिक हमारी मदद कर रहा है। (मत्ती 28ः20) हमें डरने की कोई ज़रूरत नहीं। हमारे दुश्मन चाहे जो भी पैंतरे अपना लें, वे हमें कभी रोक नहीं सकेंगे!
16, 17. (क) यीशु का पुनरुत्थान उसकी सिखायी सभी बातों को कैसे सच साबित करता है? (ख) यूहन्ना 11:25 के मुताबिक, परमेश्वर ने यीशु को क्या करने की ताकत दी है?
16 यीशु का पुनरुत्थान उसकी सिखायी सभी बातों को सच साबित करता है। बाइबल के एक विद्वान ने लिखा कि अगर मसीह का पुनरुत्थान नहीं हुआ है, तो फिर मसीही बेवकूफ लोग हैं, जो एक बहुत बड़े झूठ पर यकीन करते हैं। पौलुस ने लिखा कि अगर यीशु का पुनरुत्थान नहीं हुआ होता, तो मसीहियों का विश्वास करना, प्रचार करना सब बेकार होता। अगर यीशु का पुनरुत्थान नहीं हुआ होता, तो खुशखबरी की किताबों में दर्ज़ ब्यौरे और कुछ नहीं, बस एक ऐसे भले आदमी की दुख-भरी कहानी होते, जिसे दुश्मनों के हाथों मार डाला गया था। लेकिन हकीकत यह है कि यीशु का पुनरुत्थान हुआ है, जो साबित करता है कि उसकी सिखायी सभी बातें, यहाँ तक कि भविष्य के बारे में कही गयी बातें भी, सच हैं। (1कुरिंथियों 15ः14,15,20 पढ़िए)
17 यीशु ने कहा: “मरे हुओं का जी उठना और जीवन मैं ही हूँ। जो मुझमें विश्वास दिखाता है, वह चाहे मर जाए, तो भी जी उठेगा।” (यूहन्ना 11ः25) यीशु का यह वादा हर हाल में पूरा होगा। यहोवा ने यीशु को ताकत दी है कि वह न सिर्फ उन लोगों का पुनरुत्थान करे, जो स्वर्ग में उसके साथ राज करेंगे, बल्कि उन अरबों-खरबों लोगों का भी, जो इस धरती पर जीएँगे। यीशु का बलिदान और उसका पुनरुत्थान इस बात की गारंटी हैं कि मौत का नामो-निशान मिटा दिया जाएगा। क्या इस बात से आपको किसी भी परीक्षा का, यहाँ तक कि मौत का भी सामना करने की ताकत नहीं मिलती?
18. यीशु का पुनरुत्थान हमें किस बात की गारंटी देता है?
19. मसीह के पुनरुत्थान पर विश्वास करने से हम पर क्या असर होता है?
19 यीशु के पुनरुत्थान पर हमारा विश्वास हमें परमेश्वर की मरज़ी पूरी करने का बढ़ावा देता है। वह कैसे? अगर यीशु ने अपनी जान कुरबान नहीं की होती और उसका पुनरुत्थान नहीं हुआ होता, तो हम हमेशा पाप और मौत की गिरफ्त में ही पड़े रहते। (रोमियों 5ः12, 6ः23) हमारे पास भविष्य की कोई आशा नहीं होती, और शायद हम भी यही कहते: “आओ हम खाएँ-पीएँ, क्योंकि कल तो मरना ही है।”(1कुरिंथियों15ः32) लेकिन यीशु के पुनरुत्थान की बदौलत, हमें पाप और मौत की गिरफ्त से आज़ाद होकर भविष्य में पुनरुत्थान पाने की आशा मिली है। इसलिए आज हम अपना ध्यान खाने-पीने और ऐशो-आराम की ज़िंदगी जीने पर नहीं, बल्कि उस पुनरुत्थान की आशा पर लगाए रखते हैं और हमेशा यहोवा की मरज़ी पूरी करने के लिए तैयार रहते हैं।
20. यीशु का पुनरुत्थान किस तरह परमेश्वर की महानता का सबूत है?
20 यीशु का पुनरुत्थान यहोवा की महानता का सबूत है, जो “उन लोगों को इनाम देता है जो पूरी लगन से उसकी खोज करते हैं।” (इब्रानियों 11ः6) यहोवा ने यीशु का पुनरुत्थान करके और उसे स्वर्ग में अमर जीवन देकर अपनी शक्ति और बुद्धि का क्या ही ज़बरदस्त सबूत दिया! इतना ही नहीं, ऐसा करके परमेश्वर ने अपने वादों को पूरा करने की अपनी काबिलीयत भी दिखायी। इनमें से एक वादा यह था कि विश्व पर हुकूमत करने के मसले को सुलझाने में एक खास “वंश” एक बहुत बड़ी भूमिका निभाएगा। इस वादे के पूरा होने के लिए उस “वंश” का, यानी यीशु का, मरना और जी उठना ज़रूरी था। (उत्पत्ती 3ः15)
21. पुनरुत्थान की आशा आपके लिए क्या मायने रखती है?
21 क्या आप यहोवा के शुक्रगुज़ार नहीं, जिसने हमें पुनरुत्थान की पक्की आशा दी है? बाइबल हमें यकीन दिलाती है: “देखो! परमेश्वर का डेरा इंसानों के बीच है। वह उनके साथ रहेगा और वे उसके लोग होंगे। और परमेश्वर खुद उनके साथ होगा। और वह उनकी आँखों से हर आँसू पोंछ देगा, और न मौत रहेगी, न मातम, न रोना-बिलखना, न ही दर्द रहेगा। पिछली बातें खत्म हो चुकी हैं।” यह वादा प्रेषित यूहन्ना को बताया गया था और उससे कहा गया था: “ये बातें लिख ले, क्योंकि ये विश्वास के योग्य और सच्ची हैं।” किसने उसे यह बात लिखने के लिए प्रेरित किया था? जी हाँ, पुनरुत्थान पाए यीशु मसीह ने! (प्रकाशित वाक्य 1ः1,21ः3-5)
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