परमेश्वर के साथ रिश्ता कैसे किया जाए?
परमेश्वर के साथ रिश्ता कैसे किया जाए?
उत्तर: क्र.1. यूहन्ना 5ः14 यदि हम उसकी ईच्छा के अनुसार कुछ मांगते है, तो वह हमारी सुनता है।
क्र. 2. (1पतरस 3ः12) ‘‘क्योंकि प्रभु की आंखे धर्मियों पर लगी रहती है और उसके कान उनकी प्रार्थनाओं की ओर लगे रहते है। परन्तु प्रभु दुष्कर्मियों के विमुख रहता है।’’
क्र. 3. (यशायाह 59ः1-2) ‘‘देखो यहोवा का हाथ ऐसा छोटा नहीं कि उद्धार न कर सके, ना ही उसका कान ऐसा बहरा है कि सुन न सके, परन्तु तुम्हारे अधर्म के कामों ही ने तुम्हें तुम्हारे परमेश्वर से अलग कर दिया है, और तुम्हारे पापों के कारण उसका मुख तुमसे छिप गया है जिससे वह नही सुनता।
क्र. 4. (युहन्ना 10ः14, 27-28) ‘‘अच्छा चरवाहा मैं हूँ मैं अपनी भेंड़ों को जानता हूँ और मेरी भेंड़े मुझे जानती है।
(26) ‘‘परतन्तु तुम विश्वास नहीं करते क्योंकि मेरी भेड़ों मे से नही हो।
(27) मेरी भेंडे़ मेरी आवाज सुनती है मैं उन्हें जानता हूँ और वे मेरे पीछे-पीछे चलती है।
(28) मैं उन्हें अनन्त जीवन देता हूँ वे कभी नाश न होंगी और उन्हें मेरे हाथों से कोई भी छीन नही सकता।’’
क्र. 5. (यूहन्ना 15ः7) ‘‘यदि तुम मुझ में बने रहो, और मेरे वचन तुम में बने रहें तो जो चाहो माँगों और वह तुम्हारे लिए हो जाएगा।
क्र. 6. (1यूहन्ना 5ः14-15) ‘‘और जो साहस हमें उसके सम्मुख होता है वह यह है कि यदि हम उसकी इच्छा के अनुसार कुछ मांगे तो वह हमारी सुनता है। यदि हम जानते है कि वह जो कुछ हम उस से मांगते है वह हमारी सुनता है तो यह भी जानते है कि जो कुछ हमने उस से मांगा वह हमें प्राप्त हो चुका है।’’
क्र.7. (यशायाह 30ः18) ‘‘फिर भी यहोवा तुम पर अनुग्रह करने के लिए ठहरा रहता है और स्वर्ग में प्रतिज्ञा करता है कि तुम पर दया करे क्योंकि यहोवा न्यायी परमेश्वर है! क्या ही धन्य है वे सब जो उसकी आस लगाए रहते है।’’
क्र. 8. (भजन संहिता 18ः30) ‘‘परमेश्वर का मार्ग तो सिधा है, यहोवा जो उसका भय मानते है अर्थात जो उसकी करूणा की आस लगाए रहते है।
क्र. 9. (यूहन्ना 15ः13) ‘‘इस से महान प्रेम और किसी का नहीं कि कोई अपने मित्रों के लिए अपना प्राण दे।
क्र. 10. (रोमियों 8ः32) ‘‘वह जिसने अपने पुत्र को भी नहीं छोड़ा परन्तु उसे हमस ब के लिए दे दिया तो वह उसके साथ हमें सब कुछ उदारता से क्यों न देगा?
क्र. 11. (1पतरस 5ः7) ‘‘अपनी समस्त चिन्ता उसी पर डाल दो, क्योंकि वह तुम्हारी चिन्ता करता है।
क्र. 12 (फिलिप्पियों 4ः5-7) (5) तुम्हारी कोमलता सब मनुष्यों पर प्रगट हो। प्रभु निकट है। (6) किसी भी बात की चिन्ता न करो, परन्तु प्रत्येक बात में प्रार्थना और निवेदन के द्वारा तुम्हारी विनती, धन्यवाद के साथ परमेश्वर के सम्मुख प्रस्तुत की जाए। (7) तब परमेश्वर की शान्ति जो समझ से परे है। तुम्हारे हृदय और तुम्हारे विचारों को मसीह यीशु में सुसज्जित रखेगी। (1तिमुथियुस 2ः1-4)
क्र. 13. (यूहन्ना 14ः27) ‘‘मैं तुम्हें शान्ति दिए जाता हूँ, अपनी शान्ति तुम्हें देता हूँ। ऐसे नही देता जैसे संसार तुम्हें देता हूँ तुम्हारा मन व्याकुल न हो, और न भयभीत हो।
क्र. 14. (यिर्मयाह 31ः3) ‘‘यहोवा ने यह कहते हुए उसे दूर से दर्शन दिया कि सनातन प्रेम से मैंने तुझ से प्रेम किया है; अतः करूणा करके मैं तुझे अपने पास ले आया हूँ।
क्र. 15. (भजन संहिता 62ः8) ‘‘हे लोगों हर समय उस पर भरोसा रखो; अपने हृदय उसके सामने उंडेल दो परमेश्वर हमारा शरण स्थान है।
परमेश्वर को व्यक्तिगत रूप से जानना
(1यूहन्ना 3ः2,3) प्रियो, हम परमेश्वर की सन्तान है, और अब तक यह प्रकट नहीं हुआ कि हम क्या होंगे। पर यह जानते है कि जब वह प्रकट होगा तो हम उसके सदृश होंगे, क्योंकि हम उसको ठीक वैसा ही देखेंगे जैसा वह है। (3) प्रत्येक जो उस पर ऐसी आशा रखता है, वह अपने आप को वैसा ही पवित्र करता है जैसा कि वह पवित्र है।
(यूहन्ना 20ः21) यीशु ने फिर उनसे कहा, ‘‘तुम्हें शान्ति मिले जैसा पिता ने मुझे भेजा है, वैसे ही मैं भी तुम्हें भेजता हूँ’’
Comments
Post a Comment