कलीसिया में प्राचीनों की भूमिका
यदि आपके पास एक पवित्र भवन है जिसे “चर्च” कहा जाता है, जहाँ एक वेतनभोगी पास्टर, प्रवचन, वाद्य संगीत, रविवार की आराधना सेवाएँ और दशमांश प्रणाली है, तो यह नई वाचा की कलीसिया का वास्तविक मॉडल नहीं है । ऐसा चर्च प्रायः “हैप्पी-क्लैप्पी” या “फ़ील-गुड” संस्कृति का केंद्र बन जाता है । जबकि नई वाचा का चर्च एक शिष्यत्व केंद्र था - मनोरंजन स्थल नहीं ।
मूलभूत अंतर यह है कि
आधुनिक चर्च केवल परमेश्वर की उपासना के लिए एकत्र होता है, जबकि नई वाचा की Ecclesia (कलीसिया) विश्वासियों की परस्पर शिक्षा और सशक्तिकरण के लिए मिलती थी
(प्रेरितों के काम 14:11)
।
आधुनिक चर्च
स्थानान्तरण द्वारा बढ़ता है, गुणन द्वारा नहीं; जबकि Ecclesia (कलीसिया) आत्मिक परिवर्तन से बढ़ती और गुणा
होती थी ।
एक-दूसरे
के प्रति उत्तरदायित्व
नई वाचा में allelon (एक-दूसरे) शब्द का सौ से भी अधिक बार प्रयोग
हुआ है । यह हमारे पारस्परिक संबंधों और उत्तरदायित्वों को दर्शाता है ।
विश्वासियों के लिए ये आदेश दिए गए हैं:
- एक-दूसरे के बोझ उठाओ (गलातियों 6:2)
- एक-दूसरे को शांति और सांत्वना दो (1 थिस्सलुनीकियों 4:18)
- एक-दूसरे को प्रोत्साहित करो और बढ़ाओ
(1 थिस्सलुनीकियों 5:11)
- एक-दूसरे को प्रेम और अच्छे कर्मों के
लिए उकसाओ (इब्रानियों 10:24)
- एक-दूसरे के लिए प्रार्थना करो (याकूब 5:16)
- एक-दूसरे के प्रति आतिथ्यशील रहो (1 पतरस 4:9)
- प्रभु भोज से पहले एक-दूसरे की
प्रतीक्षा करो (1 कुरिन्थियों 11:33)
- एक-दूसरे के सामने अपने पाप स्वीकार
करो (याकूब 4:16)
- प्रेम से एक-दूसरे की सेवा करो
(गलातियों 5:13)
- एक-दूसरे के पाँव धोओ (यूहन्ना 13:14)
नई वाचा में भविष्यवाणी
भविष्य बताने के लिए नहीं थी, बल्कि विश्वासियों को सिखाने, समझाने और शांति देने के लिए थी (1 कुरिन्थियों 14:3)
। यहाँ तक कि स्तुति और गीतों के माध्यम से भी – “भजन, स्तुतियों और आत्मिक गीतों में एक-दूसरे को सिखाते और चेताते रहो”
(कुलुस्सियों 3:16) ।
आज की चर्च-सभाओं में
केवल ऊर्ध्वाधर क्रियाएँ जैसे प्रार्थना और स्तुति दिखती हैं, परंतु कलीसिया की मूल आत्मा क्षैतिज क्रियाओं - एक-दूसरे
को सिखाने, गढ़ने और उन्नत करने - में
प्रकट होती थी ।
कलीसिया
भवन नहीं, एक संगति है
यीशु ने कहा, “मैं अपनी Ecclesia (कलीसिया) बनाऊँगा, और अधोलोक के फाटक उस पर प्रबल न
होंगे ।” (मत्ती 16:18) नई वाचा
में कलीसिया का अर्थ है
- विश्वासियों की सभा, मण्डली या उनकी संगति;
न कि कोई भौतिक भवन । प्रारंभिक विश्वासी घरों और सरल स्थानों में
मिलते थे (प्रेरितों 2:46-47)
।
प्राचीनों
की बहुलता
नई वाचा में “पास्टर”
का संस्थागत पद नहीं था; वहाँ प्राचीनों की बहुलता थी । प्रेरितों 14:23 में
पौलुस और बरनाबास ने “प्रत्येक कलीसिया में प्राचीनों को ठहराया ।” तीतुस 1:5 में
पौलुस कहता है, “हर नगर में प्राचीनों को ठहराना।” एफिसुस,
गलातिया और अन्य प्रदेशों की कलीसियाओं में भी प्राचीनों की यह
व्यवस्था थी (प्रेरितों 20:17; 1 पतरस 5:1-2)
।
प्राचीन, बिशप, अधीक्षक और शासक - ये
सभी एक ही आत्मिक पद के विभिन्न नाम हैं । वे न्याय, अनुशासन
और आत्मिक दिशा प्रदान करते थे । फिर भी चेतावनी दी गई थी कि “भेड़ों की खोल में
भेड़िए” भी उठेंगे जो शिष्यों को अपने पीछे खींचने की चेष्टा करेंगे (प्रेरितों 20:29-30)
।
प्राचीनों
की योग्यताएँ और सेवकाई
तीतुस 1:5-9 और
1 तीमुथियुस 3:2 में
प्राचीन के गुण दिए गए हैं -
- एक पत्नी का पति,
विश्वासयोग्य संतान वाला
- निर्दोष,
आतिथ्यशील, संयमी, धर्मी
और अनुशासित
- न अभिमानी,
न क्रोधी, न पियक्कड़, न झगड़ालू, न लोभी
- वचन में निपुण,
ताकि सुदृढ़ शिक्षा दे सके और विरोधियों का खंडन कर सके
उनका कार्य था - विश्वासियों को सिखाना, सशक्त करना और आत्मिक
परिपक्वता में पहुँचाना । “जो प्राचीन भली रीति से नेतृत्व करते हैं, उन्हें दुगुने सम्मान के योग्य समझो, विशेषकर जो वचन
और शिक्षा में परिश्रम करते हैं ।” (1 तीमुथियुस 5:17-18)
प्राचीनों की शिक्षाएँ संवादात्मक थीं, न कि
एकालाप आधारित । यह केवल छोटे समूहों में सम्भव थी । आधुनिक चर्च अथवा थियोलॉजिकल
सेमिनरी प्रायः एकालाप पर आधारित हैं, इसलिए बहुत से मसीही
अपने मित्रों या पड़ोसियों तक सुसमाचार को प्रभावी ढंग से नहीं पहुँचा पाते ।
यीशु
द्वारा दी गई सेवकाई की संरचना
यीशु ने अपनी Ecclesia (कलीसिया) को पाँच प्रकार की सेवकाई दी - प्रेरित, भविष्यद्वक्ता, सुसमाचार प्रचारक, चरवाहे और शिक्षक, ताकि वे संतों को सेवकाई के कार्य के लिए सिद्ध करें और मसीह की देह को उन्नत करें (इफिसियों 4:11-12) । शालोम,
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