प्रार्थना करनेवाली इक्लीसिया
प्रार्थना करो, स्तुति करो और बन्दीग्रह के दरोगा (जेलर) को बचा लोः प्रेरित लोग हमेशा प्रार्थना करते रहते थे, वे सुरक्षा निडरता, आश्चर्यकर्मो और फलवन्तता के लिये मांगते रहते थे। इसका परिणाम यह हुआ कि भीड़ की भीड़ विश्वासी उनमें मिलते गए (प्रेरितों के काम 5ः12-14) उनकी प्रार्थनाओं में धन्यवाद सम्मिलित होता था यहां तक कि विपरित परिस्थितियों में भी (इफिसियों 5ः18-20)। पौलूस और सिलास बंदिग्रह में थे और उनकी चमड़ी कोड़ों की भयंकर मार के कारण उधड़ चुकी थी और खून निकल रहा था। उनके हाथ और पैर काठ में ठुंके हुए थे और वे भूखे और प्यासे थे, तौभी अविश्वसनीय रीति से आधी रात के समय वे प्रार्थना कर रहे थे और स्तुति के गीत गा रहे थे जिसे दूसरे कैदी सुन रहे थे। परमेश्वर ने जेल को हिला दिया और उनके स्वतन्त्र करने और भोजन का इतंजाम किया और जेलर और उसके घराने ने उद्धार प्राप्त किया (प्रेरितों के काम 16ः24-26)।
आराधना करो और इतिहास की दिशा को बदल दोः ‘‘आराधना’’ का वास्तविक अर्थ होता है कि ‘‘कोई परमेश्वर के साम्हने साष्टांग प्रमाण की स्थिति में गिर जाए’’। जौबीसों प्राचीन परमेश्वर के सिंहासन के आगे निरन्तर यही काम कर रहे हैं। वे अपने अपने मुकुटों को उतार कर डाल देते हैं, यह दर्शाने के लिये कि महानता का कोई भी चिन्ह परमेश्वर के साम्हने किसी किमत का नहीं है और वे दीन बनकर गिर पड़ते हैं। कि उन कटोरों (धूपदानों) के साथ जो धर्मियों की प्रार्थनाओं से भरे हुए हैं, बड़े आदर के साथ मेम्ने के सिंहासन के साम्हने अपने आपको साष्टांग की स्थिति में डाल देते हैं और निरन्तर परमेश्वर की स्तूति करते हैं (प्रकाशित वाक्य 5ः8-12)।
यद्यपि मूसा फिरौन के महल में बढ़ा, जो उस समय के विश्व का सबसे प्रतापी राजा था, मूसा पृथ्वी पर सबसे नम्र व दीन पुरूष था और इसलिये परमेश्वर ने उसे सब समयों का सबसे महान अगुवा बना दिया। वह अपने प्रभु यहोवा के साम्हने मुंह के बल गिरकर प्रार्थना किया करता था (गिनती 16ः1-4)। यीशु ने भी ऊंची शब्द से पुकारकर और आंसू बहाकर प्रार्थनाएं की (इब्रानियों 5ः7)। सारे नम्र दीन मछुवारे प्रार्थना के महान पुरूष थे और उन्होंने इतिहास की दिशा बदल दिया परन्तु निर्बल जन जो परमेश्वर के हाथ में रहे। हम अखबार पढ़ते हैं और बहुत सी खबरों को टी. वी. पर और रेडियों पर सुनते हैं और फिर भी कुछ नहीं करते। मीडिया या पत्रकारिता के द्वारा विश्व मसीहियों को पुकार रहा है कि प्रार्थना करो और बुरी खबरों को सुभ संदेश में बदल दो। विश्वास के महान नायकों के विषय में पढ़ना हमें महान नहीं बना देता। विश्वास के महान नायकों के विषय में पढ़ना हमें हमान नहीं बना देता परन्तु यीशु के नाम में महान कार्य करना ही हमें महान बनाता है (दानियेल 11ः32)।
मसीहियों को छोड़, कर कोई साष्टांग प्रणाम करते हैंः हिन्दू लोग उनकी मूर्तियों के आगे साष्टांग प्रणाम करते हैं। मुस्लिम उनके अल्लाह के साम्हने दिन में पांच बार घुटने टेकते हैं, और सिक्ख लोग उनके ‘‘गुरू ग्रन्थ साहिब’’ उनकी पवित्र पुस्तक के साम्हने अपना सिर झुकाते हैं, परन्तु सर्वोच्च जीवित परमेश्वर के अनुयाईयों को परमेश्वर पिता के साथ पुत्र का सम्बन्ध व अधिकार प्राप्त है और उन्हें स्वतंत्रता है कि वे पुत्र के समान सब जगहों पर प्रार्थना कर सकते हैं (प्रेरितो के काम 2ः2)। खड़े होकर (मरकुस 11ः25), सोते हुए (मत्ती 26ः39; 2 राजा 4ः35), और जब वे चल रहे हों (लूका 13ः33-35)। परन्तु तौभी एक समय आएगा जब हर एक घुटना झुकेगा और हर एक जीभ अंगीकार करेगी कि यीशु ही प्रभु है (फिलिप्पियों 2ः10)।
अपने हाथों और अपनी आवाज को शैतान के विरूद्ध उठाओ और उसे बाहर खदेड़ दोः लोग जिन्हें सिनेगॉग (यहूदी आराधनालयों) में और सड़कों के कोनों पर प्रार्थना करना मना था वे बहुत प्रभावशाली प्रार्थनाएं करते हैं जिनमें बहुत से लच्छेदार शब्द होते हैं। तथापि प्रभु ने उन्हें कपटी कहा (मत्ती 6ः5)। नये नियम की असैम्बलियों में वे प्रार्थना करने के लिये अपनी आवाजों को और अपने हाथों को भी ऊपर उठाते थे क्योंकि हाथों को उठाना, हमारा परमेश्वर को आत्म समर्पण को दर्शाता है (प्रेरितों के काम 4ः24; 1तीमुथियुस 2ः8)। भूत काल में जब एक राजा युद्ध हारने पर होता था तब वह और उसके अनुसारण करने वाले हाथों को ऊपर उठा लेते थे, यह विजयी राजा के साम्हने आत्मसरण समर्पण करने का चिन्ह था। राजाओं पर प्रार्थना करना शैतान को देश से भगाने का पहला कदम है (याकूब 4ः6-10)।
प्रार्थना भ्रमण करो और देश (क्षेत्र) से श्राप को तोड़ डालो, मिटा डालोंः परमेश्वर कहते हैं, ‘‘मुझसे मांग और मैं जाति जाति के लोगों को तेरी सम्पत्ति होने के लिये और दूर दूर के देशों को तेरी निज भूमि बनने के लिये दे दूंगा’’ (भजन संहिता 2ः8)। प्रभु चाहते है कि सारी जाति के लोग उनके सिंहासन के साम्हने आएं। और वे यह भी चाहते है कि सुसमाचार सारी पृथ्वी के छोर तक पहुंचे क्योंकि वे नहीं चाहते कि कोई नाश हो। वे चाहते हैं कि प्रत्येक जन प्रार्थना भ्रमण करे, ‘‘मैं चाहता हूं कि हर जगह पुरूष बिना क्रोध और विवाद के पवित्र हाथों को उठाकर प्रार्थना किया करें।’’ (1तीमुथियुस 2ः8) और उस देश /क्षेत्र से श्रापों को मिटा डालो, तोड़ डालो और लोगों को स्वतंत्र कर दो। देश बिना मध्यस्थता की प्रार्थना करने वालों के शुद्ध नहीं हो सकता (यशायाह 59ः12-16;यहेजकेल 22ः24-30; इब्रानियों 7ः25)। यह सबकुछ केवल छोटी प्रेरितीय - भविष्यद्वक्ता वाली असैम्बलियों में ही सम्भव है, क्योंकि बड़े चर्चो के पास तो बड़े बड़े कार्यक्रम होते हैं और वे पैसों की भूखी फलरहित योजनाओं के लिये प्रार्थनाओं में बहुत अधिक समय व्यर्थ गंवाते हैं। क्षेत्र/देश को सुरक्षित करने का सबसे अच्छा तरीका है कि पिताओं का उनके बेटों से सम्बन्ध पुनः सुधार दो (मलाकी 4ः6)।
मजदूरों के लिये प्रार्थना करो जब तक तुम खुद मजदूर न बन जाओः प्रभु ने इस संसार के खोए हुओं पर और उन पर जो कुछ भी नही हैं, दया की। उन्होंने कहे, ‘‘पक्के खेत तो बहुत हैं, पर मजदूर थोड़े हैं,’’ तब उन्होंने विशेष तौर से हमसे कहे है कि, ‘‘इसलिये खेत के स्वामि से बिनती करो कि वह अपने खेत काटने के लिये मजदूर भेज दे‘‘। विश्व में मसीहियों की बड़ी संख्या होने के बावजूद, शायद ही किसी को आत्माओं की कटनी काटने का प्रशिक्षण प्राप्त है, इसलिए त्रणमूल स्तर के सुसमाचार प्रचारकों, इक्लीसिया स्थापकों, शिक्षकों, शिष्य बनाने वालों, प्रेरितों (प्रशासकों) की बहुत भारी कमी है। बहुत सी सरकारें अपनी सैनिक छावनियों में भरती होना प्रत्येक जवान के लिये अनिवार्य कर हेती हैं ताकि उसके पास योद्धाओं की कमी न होने पाए और सारे समय उसके पास पर्याप्त सैनिक हों। यह समय है कि प्रत्येक मसीही मजदूर शिविरों में भेजे जाएं ताकि वे सीख सकें कि परमेश्वर के कटनी के खेत में कैसे परिश्रम करना चाहिये। इसका अर्थ यह नहीं कि उन्हें बाइबिल स्कूलों में भेजना चाहिये। इसका अर्थ यह नहीं कि उन्हें बाइबिल स्कूलों में भेजना चाहिये, यह अन्तिम स्थान होगा, जहां वे कलीसिया स्थापना के विषय में कुछ सीख सकते हैं परन्तु उन्हें तो अनुभवी और सफल इक्लीसिया स्थापकों द्वारा खेत में जाकर सिखाना व पोषित करना चाहिये (मत्ती 9ः37-38; लूका 10ः2)
प्रार्थना एक प्रक्रिया हैः ‘‘अब मैं सबसे पहिले यह उपदेश देता हूं कि बिनती और प्रार्थना और निवेदन और धन्यवाद सब मनुष्यों के लिये किये जाएं। रजाओं और सब ऊंचे पदवालों के निमित्त इसलिये कि हम विश्राम और चैन के साथ सारी भक्ति और गम्भीरता से जीवन बितांए। यह हमारे उद्धारर्ता परमेश्वर को अच्छा लगता और भाता भी है। वह यह चाहता है कि सब मनुष्यों का उद्धार हो और वे सत्य (यीशु) को भली भांति पहिचान लें’’ (1तीमुथियुस 2ः1-4)। इस पद में चार कदम वर्णित है:
प्रथम है बिनती (Deesis) सिजमें प्रार्थना का आवेदन सम्मिलित होता है। यह परमेश्वर की ईच्छा में होना चाहिये ताकि जो कुछ आप मांगते हैं वह परमेश्वर के द्वारा किया जाए। यह भी महत्वपूर्ण है कि उस बात के लिये दो या तीन जनों की सहमती हो ताकि उस पर यीशु का समर्थन व अनुमोदन हो, क्योंकि उसे प्रभु यीशु के ही नाम से मांगा जाना है (मत्ती 18ः18-20)।
दूसरा भाग प्रार्थना है (Proseuche) जो मामले की चिन्ता के विषय में परमेश्वर से बातें करना है।
तीसरा भाग है मध्यस्थता के निवेदन (enteuxis) जो बीच के रिक्त स्थान में खड़े हो जाना है, अभिन्न या एक हो जाना, और तब प्रार्थना के विषय के स्थान पर होकर एकाग्रता, गिड़गिड़ाहट के साथ निवेदन करना जब तक वह अभिप्राय प्राप्त नही हो जाता। इसीलिये परमेश्वर मध्यस्थता की प्रार्थना करने वालों को ढूंढ़ रहे हैं (यहेजकेल 22ः30)। और अन्तिम है धन्यवाद देना (eucheristia), जो प्रार्थना को स्वीकृति देने के लिये परमेश्वर के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना है। इस प्रार्थना की प्रक्रिया में सभी बातें सम्मिलित होना चाहिये। सभी विश्वासीगण हर एक जगहों पर उद्धार रहित लोगों के लिये पवित्र हाथ उठाकर प्रार्थना कर रहे हैं (1तीमुथियुस 2ः8), जिसके परिणाम स्वरूप वे सत्य का ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं और उद्धार पा रहे हैं। प्रार्थना के द्वारा इक्लीसिया को बढ़ना चाहिये और उसकी संख्या में वृद्धि होना चाहिये, जैसा पिन्तेकुस्त के दिन हुआ था।
राजनीतिज्ञों को चुनो और देश पर मध्यस्थता की प्रार्थना द्वारा शासन करोः परमेश्वर चाहते हैं कि हमें अपने शासकों के लिये प्रार्थना करना चाहिये ताकि हम शान्ति और धार्मिकता का जीवन व्यतीत कर सकें। परमेश्वर चाहते हैं कि हमारे शासक उद्धार प्राप्त करें (1तीमुथियुस 2ः1-4)। यीशु के लोहू ने हमें याजक और राजा बना दिये हैं, और हमें इसी समय पृथ्वी पर राज्य करना चाहिये। हम इसे लगातार एक वर्ष तक करते रहेंगे और उसके बाद हमेशा हमेशा तक भी (2तीमुथियुस 2ः12; रोमियों 5ः17; प्रकाशित वाक्य 5ः10; 20ः6; 22ः5)। हम सेवक राजा हैं और उनकी तहर नहीं जो दूसरों पर अधिकार जताते हैं। अपनी याजकीय और राजा की भूमिका को पूरा करने का सबसे उत्तम तरीका यह होगा कि हम ‘‘सभी’’ राजनीतिज्ञों के अच्छे शासन के लिये केवल ज्ञान और समझदारी के लिये नहीं परन्तु तब तक प्रार्थना करें जब तक वे सत्य की पहिचान को प्राप्त न कर लें और उद्धार न प्राप्त कर लें (1तीमुथियुस 2ः4)। इस प्रकार हम निर्धारित लक्ष्य वाली मध्यस्थता की प्रार्थना द्वारा इस देश पर राज्य करेंगे। इसके लिये स्थानीय इक्लीसिया को, ‘‘सब’’ राजनीतिज्ञों न्यायधीशों, और अधिकारियों जो हम पर शासन और अधिकार रखते हैं, सबों के नाम जमा करना और उनके लिये लगातार अपनी व्यक्तिगत और सामुहिक प्रार्थना करना चाहिये। इसका आसान तरीका है कि इन नामों को इक्लीसिया के त्रयों (Triplets) को दे दिया जाए। इस देश पर शासन करने का सबसे आसान तरीका है कि अपनी पंसद के शासको को चुने। इसलिये चुनाव का समय मसीहियों के लिये प्रार्थना करने का सबसे व्यस्त समय होना चाहिये। प्रत्येक राजनीतिक दल और प्रत्येक प्रत्याशी को प्रार्थनाओं का स्नान कराना चाहिये, हर एक पोलिंग बूथ का प्रार्थना भ्रमण करें ताकि प्रत्येक बेलट बॉक्स की दुष्ट से रक्षा हो सके। हमें प्रार्थना करना चाहिये कि ऐसे ही व्यक्ति चुने जाएं जो धार्मिक राज्य के आनेको सरल बनाएं।
शहर के लिये प्रार्थना करेंः यरूशलेम में अपने जयवंत प्रवेश के समय, यीशु आने वाले विनाश के विषय में सोचकर बहुत व्याकुल हो गए। वे अपने नगर के लिये रोए, और प्रार्थना किए, और उस नगर के लिये नाम लेकर भविष्यद्वाणी भी किये (लूका 19ः41-44; 13ः34,35)। पिन्तेकुस्त के तुरन्त बाद लगभग पूरा यरूशलेम नगर परिवर्तित हो गया। परमेश्वर ने विशेष तौर से यहूदियों को आज्ञा दिये कि वे अन्यजातियों नगर बाबुल के लिये प्रार्थना करें, जहां परमेश्वर ने उन्हें अनाज्ञाकारिता के कारण सत्तर वर्षों के लिये दासत्व में ले गया था। यहूदी लोग बड़ी विश्वास योग्यता के साथ, सबेरे और शाम अपने मुंह यरूशलेम की ओर करके प्रार्थना कर रहे थे। परमेश्वर ने कह दिये ‘‘नहीं’’ क्योंकि अपने उन्हें वहां इसी अभिप्राय से लेकर आया था कि वे इस बाबुल (अब ईराक) अन्यजातियों के पापी नगर के लिये छुटकारे की प्रार्थना करें। यहूदियों ने तो कभी भी उस नगर के लिये प्रार्थना करने की बात नही सोचे होगें। तथापि परमेश्वर ने कहे, ‘‘परन्तु जिस नगर में मैंने तुम्हें बन्धुआ करके भेज दिया है, उसके कुशल का यत्न किया करो और उसके हित के लिये यहोवा से प्रार्थना किया करो, क्योंकि उसके कुशल से तुम भी कुशल से साथ रहोगे’’ (यिर्मयाह 29ः7)। हर एक घरेलु मण्डलियों के नाम उनके नगर के नामों पर थे। शहर की इक्लीसिया, घरेलु इक्लीसियाओं का जाल होती थी। इसलिये यह स्वाभाविक था कि वे अपने शहर के लिये प्रार्थना करें और स्वभाविक रीति से इसके परिणास्वरूप पूरा शहर परिवर्तित हो जाता था। आज भी दक्षिण अमेरिका में उपवास, प्रार्थनाओं, पैरवी, प्रार्थना के शीर्ष सम्मेलनों, और प्रार्थना के आक्रमणों द्वारा पूरे शहर परिवर्तित होते जा रहे हैं।
निडरता, बेधड़कपन व साहस के लिये प्रार्थना करोः प्रारम्भिक इक्लीसिया ने निडरता व बेधड़कपन पाने के बहुत प्रार्थना किये ताकि वे सत्ताधारी अधिकारियों, और साथ ही साथ यहूदियों और अन्यजातियों के सताव की धमकियों का सामना कर सकें। दूसरे विश्वासों से बड़ी संख्या में आकर मिलना सताव का मुख्य कारण था। अधिकांश वृद्धि या तो वंश बढ़ाने के कारण है या एक स्थान से दूसरे स्थान बदली होने के कारण है। सच्चाई यह है कि कोई कारगर व सर्थक बढ़ौत्तरी नहीं होगी जब तक साधारण मसीही भी प्रार्थना और सुसमाचार प्रचार न करें (प्रेरितों के काम 4ः17-20)। सभी व्यापारी लोग बड़े उत्साह के साथ अपने अपने उत्पादित माल को प्रोत्साहित करते हैं। यह केवल मसीही लोग हैं जिन्हें अपने विश्वास अपने विश्वास को प्रोत्साहन या बढ़ावा देने का साहस व नहीं है। वे गलत सोचते हैं कि विश्वास को प्रोत्साहन या बढ़ावा देने का साहस व उत्साह नहीं है। वे गलत सोचते हैं कि विश्वास तो एक व्यक्तिगत मामला है। ताथापि यीशु ने उनके लिये सार्वजनिक रीति से मृत्यु और लज्जा को सहा। वे केवल अपने घरों के गुप्त स्थानों (बंकरों) में छुप रहे हैं। धर्मशास्त्र कहता है कि डरपोंक लोग उस भीड़ में जिसमें हत्यारे, कामुक, घिनौने इत्यादि होंगे, वे सबसे आगे होंगे और ये लोग स्वर्ग नही जा सकेंगे। (प्रकाशित वाक्य 21ः8)। प्रभु से प्रार्थना करते हैं कि वे बंकर तोड़ने वालों को भेजे जिससे छुपने वाले मसीही अधोलोक के फाटकों को तोड़ने वाले बन जाएं, यही बात हमारी दैनिक प्रार्थनाओं की फहरिश्त में होनी चाहिये। यदि प्रारम्भिक प्रेरितों को निडरता की आवश्यक्ता थी तो हमें भी अवश्य ही इसकी जरूरत है (प्रेरितों के काम 2ः29)।
सताव से क्लेशित इक्लीसिया के लिये प्रार्थना करेंः सताव सहने वालों के लिये संयुक्त राज्य अमेरिका नहीं है, जो अधिकांशतः उन यात्रियों से बसा था जो यूरोप में धार्मिक सताव के पीड़ित बिश्वासियों की तरह नहीं थे जिन्होंने जहां कहीं वे गए इक्लीसियाएं स्थापित कर दीं, अमेरिकी शरणार्थी यात्रियों ने स्थानिय आदिवासियों को हजारों की संख्या में मार डाला था, अब समय है कि वे इसे समझें और पश्चाताप करें। प्रत्येक वर्ष विश्व में लगभग 160000 मसीही मार डाले जाते है। पिछले दशक में सूडान ने अपने 2000000 साथी नागरिकों को मार डाला जिसके सामने सुनामी लहरों में मरे लोग केवल चाय के कम में तूफान की तरह हैं। तेल के द्वारा अति धनवान बन गए साऊदी अरब अकेले ने ही अरबों रूपये लगा दिये हैं, कि अपने किस्म के कट्टरपंथियों जिन्हें वाहा ‘‘बिस्म’’ कहते है बनांए, इन्हें इस्लामिक केन्द्रों और मदरसाओं के द्वारा तैयार किया जाता है। ये लोग कट्टर पंथिता का भारी खूराक यूरोप, अमेरिका, एशिया और आफ्रिका में उनका संदेश है कि ‘‘क़ाफिरों अर्थात गैर ईमानदारों (गैरमुस्लिमों) का पवित्र युद्ध ‘‘जेहाद’’ द्वारा नाश करें।
उत्तरी कोरिया, वेतनाम, लाओस ईरान, मालदीव्स, सोमालिया, भूटान, अफगानिस्तान और दूसरे कम्यूनिस्ट, इस्लामी और बुद्धिस्ट देश सताव करने वाले देशों में अग्रणी हैं। ऊपर दी गई जानकारी में वे सम्मिलित नहीं हैं जो अपंग कर दिये गए, जिनके साथ बलात्कार किया गया, कैदखाने में डाले गए, जिनकी संपत्तियां नष्ट कर दी गई और जो अपने ही देश में शरणार्थी बना दिये गए। उनका एक ही दोष है कि वे मसीही हैं। ये सच में बहुत दुख के दिन हैं कि चर्चो के आराम तलब सदस्य अपने इन क्लेशित भाईयों और बहिनों के लिये प्रार्थना तक नहीं करत हैं। परन्तु तौभी परमेश्वर उनकी प्रार्थनाओं को सुन रहे हैं और अदभुत कार्य कर रहे हैं, प्रथम तो यह कि रेडियों प्रसारणों में वृद्धि हुई है, जो बहुत से गुप्त विश्वासियों को उत्पन्न कर रहे हैं। दूसरी बात है कि परमेश्वर अपने आपको बहुत से इमामों व मुस्लिम धर्मगुरूओं पर प्रगट कर रहे हैं, जो स्वप्नों और दर्शनों में यीशु के साथ आमने सामने भेंट कर रहे हैं। हजारों इक्लीसियाएं, मिस्र, बंगलादेश, बोस्निया, लीबिया, क़जाखस्तान, पकिस्तान और बहुत से मुस्लिम बहुत आफ्रिकी देशों में, स्थापित हो रही हैं। यहां यह सब बुछ बिना किसी खास सुसमाचार अभियान के हुआ है। जब भी परिवर्तनों में बढ़ौत्तरी होती है तो सताव उत्पन्न होता है और कलीसिया भी दिखाई देने वाली से गुप्त में बदल जाती है और कई बार तो वह रात्रि वन्दना में बदल जाती है (यूहन्ना 15ः18-25; 1पतरस 4ः1;2तीमुथियुस 3ः12)।
खुले द्वारों के लिये प्रार्थना करोः पौलुस बहुधा प्रार्थना की आवश्यक्ता के लिये कहा करते थे कि प्रभावी द्वार खोल दिये जाएं। प्रार्थनाओं को लगातार ऊपर पहुंचते रहना चाहिये कि सुसमाचार प्रचार के लिये असरदार व प्रभावशाली द्वारा खुल जांए। यीशु ने प्रतिज्ञा किये हैं कि जब वे द्वार खोलते हैं तो कोई भी उसे बन्द नहीं कर सकता। हमें खुले हुए हृदयों, खुले हाथों, खुले घरों और खुले स्वर्ग के लिये प्रार्थना करना चाहिये। (1कुरिन्थियों 16ः9; 2कुरिन्थियों 2ः12; कुलुस्सियों 4ः3; प्रकाशित वाक्य 3ः8,20)
अन बन, फूट से भरा अक्रियाशलील शहरी चर्चः यीशु ने अपने नगर के लिये नाम लेकर प्रार्थना किये, ‘‘हे यरूशलेम, हे यरूशलेम कितनी ही बार मैंने यह चाहा, कि जैसे मुर्गी अपने बच्चों को अपने पंखो के नीचे इकट्ठा करती है वैसे ही मैं भी तेरे बालकों को इकट्ठे करूं....’’ (लूका 13ः34)। धर्मशास्त्र हमसे कहता है कि हम एकता में रहने के लिये प्रार्थना करें। एक ही परमेश्वर है, एक ही यीशु, एक आत्मा, एक देह, एक आशा और एक ही बपतिस्मा है। यद्यपि अंग तो फिर उसे देह नाम नहीं दिया जा सकता क्योंकि वह बहुत शीघ्र मर जाएगी। मसीहियत सम्बन्धात्मक पर ही आधारित है, और आपसी प्रेम उसका सबसे प्रभावी माध्यम है जिससे देह आपसे में गठी रहती और क्रियाशील बनी रहती है (इफिसियों 4ः1-6,15,16)
मंगोलिया की परेशानीः मंगोलिया ऐसा देश था जहां बुद्धिष्ट, इस्लामी और शामन्स लोग निवास करते थे परन्तु वहां मसीही नहीं थे। कुछ मसीही मिशन वहां बहुत वर्षो से कार्य कर रहे थे, परन्तु मुश्किल से कुछ मंगोली लोग मसीही हुए होंगे। वे सोचते थे कि मंगोलियन लोग बड़े कठोर होते हैं। ताथापि सन् 1990 में परमेश्वर ने फिल बटलर पर यह प्रगट किया कि मंगालियन लोग समस्या नहीं हैं, परन्तु मिशनरियों में ही फूट और अनबन है जो पवित्र आत्मा को उनको बीच काम नहीं करने देरी है। उनमें एकता लाने का वहां भारी विरोध हुआ। सारे मसीही झुण्डों व डिनोमिनेशन के पास्टरों को आपस में एक होने में लगभग दो वर्ष लगगए कि वे मिलकर एक साथ प्रार्थना करें। परन्तु फिर भी जब वे एकता में आ गए तो पवित्र आत्मा ने उन्हें कायल किया और उन्होंने पश्चाताप किया, दस वर्षों के भीतर वहां दस हजार विश्वासी प्रभु के पास आ गए (प्रेरितों के काम 4ः32; मत्ती 12ः25)।
नक्शा प्राप्त करें, घराबन्दी करके नगर के चारों ओर हो जांए और उसे फिरसे बनांएः प्रभु यहोवा ने यहेजकेल भविष्यद्वक्ता सक कहा कि वह मिट्टी से नगर का एक नक्शा बनाए और उसके चारों ओर प्रतीकात्मक चिन्ह के रूप में घेरा बन्दी करे और उसके साम्हने दमदमा बान्धे और छावनी लगाए और युद्ध यंत्र भी लगाए। आगे परमेश्वर ने उससे यह भी कहा कि तू कंडे पर पकाया हुआ साधारण भोजन खाना, और केवल नपा हुआ पानी पीना, और एक पांजर पर लेटना और बनाए हुए शहर की ओर मुंह करना। परमेश्वर ने भविष्यद्वक्ता को इस प्रकार के सख्त प्रायश्चित करने की आज्ञा दी, ताकि वह नगर पश्चाताप करे (यहेजकेल 4 अध्याय)। जब इस्राएल ने पाप किया और देश को साने के बैल की उपासना करके अपवित्र कर दिया तब परमेश्वर ने उनके मध्य रहने से इन्कार कर दिया और इसलिये मूसा को मिलाप वाला तम्बू, छावनी के बाहर लगाना पड़ा (निर्गमन 33ः7)। हमें समझना चाहिये और उसका पूरा ब्योरा जान लेना चाहिये (गिनती 13ः1,2,17-25)। हमें उसके प्रत्येक गली, मोहल्लों और कानों में प्रार्थना भ्रमण करना चाहिये, प्रभु परमेश्वर की दोहाई दें और नगर पर के सारे श्रापों को तोड़कर मिटा डालें जो उस पर हमारे पापों के कारण आ पड़े हों (विलाप गीत 4ः12,13)। यहोशू की तरह हमें नगर को घेरे रखना चाहिये तब तक सारे दृढ़ गढ़ भड़भड़ाकर गिर न पड़ें। हमें उसी तरह नगर की खोजबीन करना चाहिये जिस प्रकार नहेम्याह ने आधी रात में नगर को घुमकर देखा था और स्थानीय लोगों और उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करके शहरपनाह को बनाना चाहिये। एज्रा की तरह हमें पूरे शहर में फिर से आराधना आरम्भ कर देना चाहिए और योना की तरह हमें शहर में प्रार्थना भ्रमण करना चाहिये जब तक सब पश्चाताप के लिये न आ जाएं।
यीशु चुनकर हमारी प्रार्थनाओं का जवाब देते हैंः यीशु ने हमें आश्वासन दिये है कि जब हम में से दो जन किसी बात के लिये एक मन के हों तो परमेश्वर उसे करेंगे यदि वह उनकी इच्छा में हो (मत्ती 18ः18,19)। यह हमारे कार्य, प्रदर्शन से भी सम्बन्धित है कि यदि हम ऐसे फल लाते हैं, जो बने रहते हैं, तब जो कुछ हम मांगते हैं, तो पिता जो स्वर्ग में है उसे दे देते हैं (यूहन्ना 15ः16)। यीशु तो दुष्ट आत्माओं तक की प्रार्थनाओं को सुनते हैं, कि उन्हें नरक कुण्ड में न भेजें परन्तु सुआरों में भेज दें। नरक कुण्ड इतनी भयंकर जगह है कि दुष्ट आत्माएं भी वहां नही जाना चाहतीं (मरकुस 5ः9-13)। परन्तु प्रभु हमारी व्यक्तिगत आवश्यक्ताओं की प्रार्थनाओं को हमेशा पूरी नहीं करते हैं। उन्होंने पौलूस की प्रार्थनाओं का जवाब नहीं दिये क्योंकि उसके लिये उनका अनुग्रह काफी था। (2कुरिन्थियों 12ः9)। उन्होंने उस दुष्टात्मा में से छुड़ाए गए व्यक्ति की प्रार्थना को भी नही माने कि वह उनके साथ चले। उन्होंने उससे कहे कि जाकर दिकापुलिस में जो दस नगरों का क्षेत्र था जाकर उनकी गवाही दे (मरकुस 5ः17-20) यीशु उसी बात पर सहमत होते हैं जो परमेश्वर की इच्छा में होती हैं, परन्तु वे इधर उधर घूमने फिरने और चर्च कार्यक्रम में समय बरबाद करने से प्रसन्न नहीं होते हैं। बल्कि वे हमें उनके गवाह के रूप में बहुत से सुदूर स्थानों में भेजना चाहते हैं (2कुरिन्थियों 10ः16)।
यीशु ने कहा, ‘‘यदि उन्होंने मुझे सताया तो तुम्हें भी सतायेंगे। पौलूस ने कहा, ‘‘जितने मसीह यीशु में भक्ति के साथ जीवन बिताना चाहते हैं, से सब सताए जाएंगे’’ (2तीमुथियुस 3ः12)।
स्तिफनुस के मारे जाने और यरूशलेम में सताव के कारण विश्वासी तितर बितर हो गए, जिसके परिणाम स्वरूप यहूदिया, सामरिया और जगत के अन्त तक में सौकड़ों इक्लीसिया स्थापित हो गई।
सताव कभी भी विश्व में इक्लीसिया का बढ़ाना नहीं रोक सकता है, यह केवल उसे आगे ही बढ़ाएगा। बल्कि वह सताव की कभी है जो उसे निष्क्रिय कर सकती है। परमेश्वर को उनकी प्रतिज्ञा के लिये धन्यवाद कि कोई भी हथियार जो तेरे विरूद्ध लगाया जाएगा वह सफल नहीं होगा, क्योंकि आप शत्रु की साम्हना, प्रेम, क्षमा, आशीष और प्रार्थना की जीवित गोलियों के आक्रमण से करेंगे (यशायाह 54ः17; मत्ती 5ः44)
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