महिलाएं और इक्लीसिया
महिलाएं और इक्लीसिया
महिलाएं मूल इक्लीसिया की संस्थापकः अपने जी उठने के बाद यीशु ने जो पहिला कार्य किये वह यह था कि उन्होंने एक स्त्री से कहा कि ‘‘जा और भाईयों से कह’’। उसी समय से स्त्रियां पूरे विश्व में भाईयों को शुभ संदेश देने में सबसे आगे हैं। बहुत सी स्त्रीयों ने अपना घर छोड़ दिया और चेलों के साथ एक चित्त होकर दस दिनों तक प्रार्थना में लगी रहीं। (प्रेरितों के काम 1ः14)। महिलाओं में पिन्तेकुस्त के दिन आत्मा की आग लगा दी गई। उसी दिन से वे इक्लीसिया की वृद्धि के लिये महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। महिलाएं ही सर्वप्रथम थीं। जिन्होंने अपने घरों को असैम्बलियों के इकट्ठा होने के लिये खोल दिया था। यह सच्चाई है कि नये नियम में ग्रहणियों के नाम भी लिखे गए हैं, उदाहरण के लिये - मरियम जो मरकुस की माता थी (प्रेरितों के काम 12ः5,12), लिडिया (प्रेरितों के काम 16ः14,15,40), अफफिया (फिलेमोन 2पद), नुमफास (कुलुस्सियों 4ः15), और प्रिस्किल्ला (रोमियों 16ः3)। रोमियों के 16 वें अध्याय में 9 महिलाओं के नाम लिखे हुए हैं जिन्होंने अपने घरों में सभा करने का इन्तजाम की थी।
पुरूष जीवित संगठन को मुर्दा संगठनों में बदल देते हैः यह उसी समय से हुआ। जब आराधना के लिये पवित्र भवनों का उपयोग होने लगा। और तब से पुरूष ने सारे कार्यो का जिम्मा अपने ऊपर ले लिया और उसने इक्लीसिया की अनौपचारिक घरेलू सभाओं को एक संस्था में बदलकर उसे नष्ठ कर दिया। यही कारण है कि परमेश्वर ने अपनी कलीसिया की उपमा किसी पुरूष से नहीं करके, एक दुल्हिन से किये हैं।
महिलाएं अपने पालने पोसने के वरदान को उपलब्ध कराती हैः कलीसिया के सम्पूर्ण इतिहास में असैम्बलियों की स्थापना और उनका पोषण करने में महिलाओं की सेवाएं बहुत सार्थक रही हैं। महिलाओं के पास ममता का एक विशेष गुण होता है, जो असैम्बलियों की प्रेम और चिन्ता भरी देखभाल के माहौल में बढ़ने की लिये अत्यन्त आवश्यक है। मार्था पहुनाई करने की चिन्ता में बहुत फिकरमन्द थी, जबकि मरियम यीशु के पांवों के पास बैठकर बड़े ध्यान से उनकी शिक्षाओं को सुन रही थी। सामरी स्त्री ने प्रत्येक घर में जाकर पूरे गांव के लोगों को यीशु के पास ले आई। जब सताव का आरम्भ हुआ तो वे जेल भी गई (प्रेरितों के काम 8ः3), और वे भी पुरूषों के साथ सिंहों और जंगली जानवरों द्वारा निगल ली गई थीं। उन्होंने अपने घरों को विश्वासियों के लिये खोला कि वहां पूरी रात प्रार्थना कर सकें। (प्रेरितों के काम 12ः12,13)।
अपने सिरों पर ओढ़ना रखो या फिर मुण्डन करा लो और चुप रहोः कुरिन्थियों की इक्लीसिया की महिलाओं को दिये गए निर्देश उस जगह-विशेष के लिये थे, क्योंकि वहां उस समय विशेष प्रकार की पारिस्थितियां चल रही थी। कुरिन्थ एक बन्दरगाह नगर था जो व्यापारिक जहाजों की सेवा हेतु खुला हुआ था, पूर्व की ओर एगियन सागर और पश्चिम में आन्द्रियातिक सागर के लिये और वह समुद्री यात्री, गुलाम, काम वासना शराब ,मूर्तिपूजा और दूसरी गंदगियों से भरा हुआ था। कुरिन्थ के किंक्रिया बन्दरगाह में पूरे समय रात और दिन जहाजों का भरा जाना और खाली करना चालता रहता था। लोग वहां खरीदने और बेचने में लगे रहते थे, मालिक लोग अपने गुलामों पर चिल्लाते रहते थे और कई बार उन्हें कोडे़ भी मारते जाते थे और मन्दिरों की घन्टियां बजती रहती थीं। वहां बहुत सी भाषाओं का शोरगुल होता रहता था। वहां आफ्रोदित के लिये एक भव्य मन्दिर समर्पित किया गया था। यह यूनानियों की सुन्दरता की देवी थी जिसे रोमीलोग वीनस कहते थे। यह मन्दिर स्त्रीयों की कामुक मूर्तियों के लिये और सब प्रकार की काम विषयक आराधना के लिये, प्रसिद्ध था। वहां पर हजारों पुजारिने थीं जो धर्म विधियों को पूरा करने वाली वेश्याएं थीं। वे बड़े घमण्ड के साथ अपने मुण्डे हुए सिरों को प्रदर्शित करती थी। इनमें से बहुत सी स्त्रियों का परिवर्तन हुआ और वे सभाओं में आती थी और उनके लिये जरूरी हो गया था कि वे अपने बालों को बढ़ाएं और अपने बदलाव को प्रदर्शित करने के लिये, सिरों कोढांकें। स्त्रीयों को केवल उसी समय सिर ढांकना थ्ज्ञा जब वे प्रार्थना करती थी या भविष्यद्वाणी करती थी (1कुरिन्थियों 11ः16)। तथापि इस स्पष्ट शिक्षा के विरूद्ध 5वीं सदी के चर्च ने बिशप और प्रीस्टों के लिये यह अनिवार्य कर दिया कि वे अपना मुण्डन करांए जिससे क्लर्जी (धर्म सेवकों) और परमेश्वर के लोगों के बीच का अन्तर और ज्यादा बढ़ गया।
इक्लीसिया में बड़बड़ाना, मना थाः यहां पुनः एक विशेष स्थिति थी। प्रसिद्ध मन्दिर डेल्फी की शक्तिशाली पुजारिन, तहखाने के कमरे में एक विशेष तिपाई पर बैठती थी ताकि वह आत्माओं से ग्रस्त हो जाए और बेहोशी की भावसमाधिमें चली जाए। उस समय वह एक ऊंटपटांग और न समझ पाने योग्य भाषा में बड़ बड़ाने लगती थी, जिसे उसके भक्त देवी की वाणी समझते थे। वह वहां के नागरिकों को उनके भाग्य के विषय में सलाह देती थी और उसने ओइडीपुस को उसके पिता की हत्या के डर की चेतावनी दी थी और उसकी मां के साथ विवाह करने के लिये कहा था। लाउस विली विश्व विद्यालय, जौन हेल की तरह के आधुनिक वैज्ञानिक हमें यह विश्वास कराना चाहेंगे कि वहां कोई जीव विज्ञान सम्बधित गलति हुई थी जिससे वहां से हानिकारक गैसों का रिसाव हो गया और उस स्त्री पर नशा चढ़ गया और इस नशे के परिणाम स्वरूप वह बड़बडाने लगी। वहीं पर एक पानी का झरना भी था जिसमें से वह पुजारिन अपने भक्तों के साथ विधि-विधान के अन्तर्गत पानी पीती थी।
इसी को ध्यान में रखते हुए पौलूस ने लिखा है कि, ‘‘हम सबको एक ही आत्मा पिलाया गया’’ (1कुरिन्थियों 12ः13)। चाहे इसकी व्याख्या व स्पष्टी करण जो भी हो परन्तु पौलूस ने यहां जिस यूनानी शब्द का प्रयोग किया है वह लेलेइन (Lalein) है, जिसका अर्थ बड़बड़ाहट या बक बक या ऐसी आवाजे निकालना है जो समझ में नहीं आती हों। पौलूस ने कुरिन्थ की महिलाओं को केवल यह कहे थे कि वे असैम्बली के अन्दर बड़बड़ाहट या बक बक न करें परन्तु उसने उन्हें बातें करने से मना नहीं किया है। और फिरसे यह बात दूसरी इक्लीसियाओं पर लागू नहीं की गई है (1कुरिन्थियों 14ः33-40)।
भविष्यद्वक्ताओं और पुरूषों को भी बक बक करने के लिये मना किया गया हैः पौलूस ने यही शब्द ‘‘लेलेइन’’(Lalein), और उसी के समान शब्द ‘‘सिंगातो’’ (Sigato) का उपयोग पुरूषों के लिये भी किया है। उसने उनसे कहा है कि उन्हें इक्लीसिया में अन्य अन्य भाषा में बातें नहीं करना चाहिये, जब तक वहां भाषा का अर्थ बताने वाला न हो। यह अन्तर प्रगट करने के लिये किया गया था, कि जो कोई बोल रहा है, चाहे पुरूष हो या स्त्री, वह पवित्र आत्मा की सामर्थ के द्वारा बोल रहा है न कि दुष्टात्मा के द्वारा से। उसने यह निषेधाज्ञा भविष्यद्वक्ताओं को भी दी और उनकी भविष्यद्वाणी को भी दूसरे भविष्यद्वक्ताओं द्वादा जांचा जाता था (पद 29,32)।
पुरूषों को कम से कम दो अलग अलग संदर्भों में बक बक करने के लिये मना किया गया है, परन्तु आश्चर्य है कि कोई भी पुरूषों को इक्लीसिया में बोलने से मना नहीं करता है। यद्यपि इस अध्याय में यह केवल एक बार कहा गया है, परन्तु कलीसिया द्वारा त्वरित कार्यवाही की गई है कि महिलांए कलीसिया में न बोलें (1कुरिन्थियों 14ः28,30,34)।
चुप्पी या खामोशी नहीं परन्तु शान्तिः आश्चर्य की बात है कि कुरिन्थि और किंक्रिया में ऐसी अवनति के समय में भी एक अत्याधिक सफल इक्लीसिया ने जड़ पकड़ ली। यह भी अपने आप में एक छोटा आश्चर्य कर्म था। बहुत से अन्य जातियों के लोग जो दुष्टात्माओं वाली पृष्ठभूमि के थे, कलीसिया में मिल गए। वे उन्मादी मूर्तिपूजक उपासना के आदी थे और इसी कारण से पौलूस विशेंष रूप से चिन्तित था कि यह सुनिश्चित करे कि कहीं कुछ भ्रम पैदा न हो (पद 33)। वास्तव में वह पुरूष और स्त्रीयों को मूक दर्शक बनने के लिये नहीं कह रहा है (पद 39) परन्तु वह केवल इसलिये अनुरोध कर रहा है कि वहां जो कार्यक्रम चल रहा है वह शान्तिपूर्वक और क्रमानुसार हो सके ताकि इक्लीसिया की उन्नति हो। वहां पुरूष, स्त्री और बच्चों का भी अपनी बात कहने की पूर्ण स्वतन्त्रता हो (पद 31,40)
अपने घर के गन्दे कपड़ो को सार्वजनिक स्थान पर न घोएंः क्या पौलूस ने महिलाओं को स्पष्ट रूप से मना कर दिया है कि वे इक्लीसिया में सैद्धान्तिक शिक्षाएं न दें? ’’और मैं कहता हूं कि स्त्री न उपदेश करे, और न पुरूस पर आज्ञा चलाए, परन्तु चुपचाप रहे’’ (1तीमुथियुस 2ः12)। यहां पौलूस ने स्त्री के लिये यूनानी भाषा का ‘‘गुने (Gune) शब्द का उपयोग किया है, जिसका इस संदर्भ में अर्थ ‘‘पत्नी’’ है। इसी प्रकार पुरूष के लिये यहां यूनानी शब्द ‘‘आनेर’’ (Aner) का उपयोग किया गया है, जिसका अर्थ होता है विवाद से बचना, चुप रहना, या शान्ति बनाए रखना इत्यादि। पौलूस ने वास्तव में यह कहा है कि, ‘‘मैं किसी पत्नी को उसके पति को शिक्षा देने या उस पर अधिकार जताने की अनुमति नहीं देता हूँ परन्तु यह कि वे शान्ति बनाए रखें।’’ पौलूस नहीं चाहते थे कि पत्नियां अपने पति को सार्वजनिक जगहों पर शिखा दें, और ऐसा करके उन्हें कमतिर समझे व उनका अनादर करें और उनके कुटुम्ब के याजक और संचालन करने के अधिकार को स्वंय ले लें। इसलिये उसने पत्नियों और पतियों को कहा है कि वे इक्लीसिया में शान्ति बनाये रखें और यदि कोई विवादास्पद बात हैं तो उसका समाधान घर पर करें, बजाए इसके कि अपने आपसी मन मुटाव को सार्वजनिक रूप से प्रगट करें (1कुरिन्थियों 14ः34,35; इफिसियों 5ः22-23)
केवल अपने ही पतियों की अधीनता में रहेंः पौलूस और पतरस ने पत्नियों से कहे कि अपने अपने पतियों की अधीनता में रहें जिस प्रकार पतियों से कहा गया था कि वे अपनी अपनी पत्नियों से प्रेम करें, नही तो उनकी प्रार्थनाएं रूक जायेगी (1तीमुथियुस 2ः11; 1पतरस 3ः1,7)। यह किसी और पुरूष के लिये नहीं है, जिसमें पास्टर भी सम्मिलित है कि वे किसी दूसरे की पत्नियों पर अपना अधिकार जताएं। पौलूस बड़ी स्पष्टता के साथ कहता है कि उसे अविवाहित स्त्रीयों के लिये कोई विशेष आज्ञा नहीं मिली है, इसका अर्थ है कि उन्हें इक्लीसिया में हिस्सा लेने की पूरी स्वतंत्रता है (1कुरिन्थियों 7ः25)।
जबकि अधिकार का सिलसिला स्पष्टता के साथ बताया गया है कि मसीह पुरूष की ओट है और पति, पत्नी की ओट है, यह स्त्रीयों को इक्लीसिया में पूरी तरह भाग लेने से नहीं रोकता। हव्वा ने बिना अपने पति की ओट में रहे कार्य किया और मुश्किल में फंस गई। नये नियम के समयों में महिलाएं प्रार्थनाओं में और भविष्यद्वाणी करने में अगुवाई करती थीं (1कुरिन्थियों 11ः3-5,16)। यहां पर बालों की लम्बाई या कपड़े के टुकड़े की समस्या नहीं है, परन्तु खास बात आधीनता की है, पुरूष और स्त्री दोनों के लिये। सौभाग्यवश बहुत सी संस्कृतियों में विवाहित स्त्रीयां अपने सिरों को ढांपती हैं। दुःख की बात है कि हमारे अगुवे दूसरों की पत्नियों पर अपना अधिकार जताते हैं और उन्हें पूरी भागीदारी लेने की इजाजत नहीं देते।
नया नियम महिला शिक्षकों, भविष्यद्वक्ताओं और शिष्यों से भरी पड़ी हैः सब लोग जानते हैं कि अधिकांश महान सुसमाचार प्रचारकों ने अपनी माताओं से बुनियादी धर्म की बातों को सीखा। प्रारम्भिक इक्लीसिया में महिलाओं द्वारा इस प्रकार शिक्षा देना घरेलू इक्लीसियाओं में चालू रहा क्योंकि वे प्राथमिक रीति से कौटुम्बिक सभाएं थीं। यद्यपि पौलूस ने विवाहित स्त्रीयों पर कुछ रोक लगाए थे कि वे औपचारिक सभाओं में अपने पतियों को न सिखांए परन्तु उन्हें अनुमति थी कि अनौपचारिक रीति से उन्हें शिक्षा की बातें बता सकें। उन्हें अच्छी बाते सिखाना था (तीतुस 2ः3,4)। प्रिस्किल्ला ने अपने पति के साथ मिलकर, अपुल्लोस को लिया जो धर्मशास्त्र का अच्छा व्याख्या करने वाला था, और उसे ठीक ठीक ‘‘परमेश्वर का मार्ग’’ समझाया (प्रेरितों के काम 18ः24-26)। प्रगट है कि उसे शिक्षा देने का ज्यादा कार्य प्रिस्किल्ला द्वारा किया गया था, नहीं तो उसका नाम नहीं लिखा जाता। सत्य तो यह है कि नये नियम में प्रिस्किल्ला का नाम छः बार आया है और कुछ बार उसके पति से भी पहिले। बहुत से जन सोचते है कि केवल पुरूष ही चेले थे, परन्तु तबीथा गरीबों की सेवा करती थी और उसे चेला कहा गया (प्रेरितों के काम 9ः36)। फिलिप्पुस की चारों बेटियां भविष्यद्वक्ता थीं (प्रेरितों के काम 21ः8,9)।
फीबे सैद्धान्तिक शिक्षा देती हैः चौदहवीं शताब्दी के एक सन्त ने निर्णय लिया कि वह पौलूस की पत्रियों को क्रमानुसार करेगा, एतिहासिक क्रम में नहीं जिसमें वे लिखी गई थीं परन्तु उनमें दी गई सैद्धान्तिक जटिलताओं के आधार पर। यद्यपि गलतियों की पत्री पहिले लिखी गई थी उसके बाद थिस्सलूनिकियों और कुरिन्थियों की, परन्तु उसने निर्णय लिया कि वह सबसे पहिले रोमियों की पत्री को रखेगा क्योंकि उसमें सबसे अधिक सिद्धान्त दिये गए हैं और सबसे आखिर में फिलेमोन की पत्री को रखेगा। पौलूस को एक चतुर व उत्साही व्यक्ति की आवश्यक्ता थी, जो उस समय के विश्व की राजधानी - शहर रोम के मसीहियों को ठीक तरह सम्भाल सके और रोमियों की पत्री में वर्णीत सिद्धान्तों को वहां जाकर समझा सके। उसने फीबे (अर्थात आनन्द से भरपूर) को चुना जो कुरिन्थि के बंदरगाह नगर किंख्रिया की एक व्यापारी महिला थी। उसने सिद्धान्तों की शिक्षा पौलूस, बरनबास, सिलास, तीमुथियुस, तीतुस और बहुत से दूसरों की आधीनता से प्राप्त की थी जो पांच मील दूर इस नगर कुनिन्थि की यात्रा करते रहते थे। वे उसके (फीबे के) घर में मेहमान रहते थे। यद्यपि आधुनिक चर्च हमें यह विश्वास करने के लिये चाहेगा कि वह केवल एक मूक धर्म की सेविका थी, पौलूस ने रोम की इक्लीसिया को निर्देश दिये थे कि वे फीबे को पूरा आदर व सम्मान दें। इसका अर्थ यह नहीं कि वे उसका वहां हार मालाओं के साथ इन्तजार करें, परन्तु उन्होंने उसे वहां आकर सिद्धान्तों को समझने के लिये कहा (रोमियों 16ः1-2)
भाइयों शब्द में बहनें भी सम्मिलितः यूनानी शब्द ‘‘एडिलफोटिस’’ (Adelphotes) भाईयों शब्द के लिये उपयोग में लाया जाता था, उसका अर्थ केवल ‘‘भाईयों’’ नहीं था परन्तु ‘‘भाईचारा’’ और ‘‘समुदाय’’ भी था। जब पतरस उपरौती कोठरी में एक सौ बीस जनों को संदेश दे रहा था, तब उसने उन्हें ‘‘मनुष्यों और भाईयों’’ कहा (प्रेरितों के काम 1ः14-16)। ‘‘एडिलफोस’’ (Adilphos) का अर्थ होता है ‘‘गर्म’’। यह दर्शाती है उस सम्बन्ध को जो इक्लीसियाई भाई चारे का एक दूसरे के साथ होना चाहिये। यरूशलेम की महासभा में जहां यहूदियों की परम्पराओं, सब्त और खतने के विषय में समाधान खोजना था, उस भाईचारे की सभा में स्त्रीयां भी उपस्थित थीं। वहां पतरस ने खड़े होकर कहा, ‘‘मनुष्यों और भाईयों’’ (Men and Brothren) और थोड़ी देर के बाद याकूब ने फिर वे ही शब्द दोहराए। नये नियम में 130 संदर्भ हैं जहां भाईयों शब्द आया है और जिसका अर्थ है ‘‘भाईयों और बहनों’’ जिन्होंने नये नियम की इक्लीसिया की अगुवाई की, किसी पास्टर ने नहीं जिसका जन्म 1600 ई. बाद हुआ (प्रेरितों के काम 15ः6-13)।
जूनिया जो एक विशिष्ट महिला प्रेरित थी जिसके लिंग परिवर्तन की शल्य चिकित्सा हुईः यीशु ने उनकी इक्लीसिया को पांच तरह के वरदानों की सेवकाई दी। ये वरदान किसी लिंग विशेष के लिये नहीं थे और इसमें महिलाओं के लिये प्रेरित का वरदान था (इफिसियों 4ः11)। हम पाते हैं कि पौलूस रोमी इक्लीसिया की एक महिला यूनियास की बड़ाई करता है, कि वह प्रेरितों में नामी थी। हो सकता है कि वह अन्द्रुनिकुस (शायद उसका पति) के साथ रोम की इक्लीसिया के स्थापकों में से एक होगी (रोमियों 16ः7)। एक पेपीरस का लेख जो 200 ई. बाद का है, में उसे जूलिया कहा गया है। कॉन्स्टेन्टाईनोपोल के विशप जौन क्रिओस्टोम (347 से 407 ई. बाद) लिखते है, ‘‘ओह इस महिला की भक्ति कितनी महान थी और उसे प्रेरित की उपाधि के योग्य समझा जाना चाहिये’’।
जूनिया 13वीं शताब्दी तक धर्मशास्त्र में एक महिला प्रेरित बनी रही, जब तक अनुवादकों ने, जो नारी द्वेष (Misogyny=hatred of women) से ग्रस्त मरीज थे, उनकी लिंग परिवर्तन शल्यक्रिया नहीं कर दी। उन्होंने जान बूझकर उस स्त्री जूनिया का गलत अनुवाद करके उसे पुरूष जूनियास बना दिया, क्योंकि वे एक महिला का प्रेरित होना स्वीकार नहीं करते थे। उन्होंने ऐसा ही काम नुम्फा या नुम्फ (एक समुद्री देवी या सेविका) को भी नुमफास में बदल दिया, जिसका लिंग अनिश्चित व अस्पष्ट है (कुलुस्सियों 4ः15)। हम पाते है कि यह व्यवहार और काम करने का ढंग बहुत सामान्य रीति से होता रहा। उसने सताव, कारावास और अन्त में नीरो के हाथ से धर्मशहीद होना भी सहा। हमें यह नहीं भूलना चाहिये कि प्रारम्भिक मसीहियों ने यीशु मसीह की अपने प्रभु के रूप में घोषणा की जिसके कारण मूर्तिपूजक रोम के कठोर हाथों के द्वारा बहुत अधिक सताव सहन करना पड़ा।
जूनिया के लिये एक प्रेरित बनना कोई सुअवसर नहीं था परन्तु बन्दीग्रह और मृत्यु का कारण था। हम जानते हैं कि रोम की इक्लीसिया इससे पहिले कि पतरस और पौलूस ने वहां की यात्रा की, बहुत अच्छी तरह स्थापित हो चुकी थी, और जूनिया पौलूस से भी पहिले मसीही बन चुकी थी (रोमियों 1ः7-13;16ः7)। यह भाव संगत है कि पुरूष जो इक्लीसिया में महिलाओं की सम्पूर्ण भागीदारी का विरोध करते हैं, वे दुल्हिन कलीसिया के भाग नहीं हो सकते।
महिला घरेलू इक्लीसिया सभाओं का इन्तजाम करती थीः हम प्रेरितों के विषय में क्या जानते हैं? नये नियम के अनुसार, प्रेरितों का अभिषेक परमेश्वर द्वारा होता है (लूका 11ः49; 1कुरिन्थियों 12ः28; इफिसियों 4ः11)। वे आश्चर्य कर्म करने वाले होते थे (2कुरिन्थियों 12ः12; प्रेरितों के काम 2ः43), वे गवाह थे जो यीशु के पुनरूत्थान का प्रचार करते थे (प्रेरितों के काम 4ः33), जो असैम्बलियों के अगुवे और उन्हें स्थापित करने वाले थे (प्रेरितों के काम 4ः37; 15ः4; 1कुरिन्थियों 12ः28), वे प्रचारक (1तीमुथियुस 2ः7; 2तीमुथियुस 1ः11), शिक्षक (2पतरस 3ः2; यहूदा 17 वां पद, प्रेरितों के काम 2ः42), शिष्य बनाने वाले (इफिसियों 4ः12, 13), और इक्लीसियाओं के आर्थिक प्रबंधक भी थें (प्रेरितों के काम 4ः34-37)। यद्यपि सभी प्रेरित इन सभी कार्यो में लगे हुए नहीं थे, तौभी यह सोचने का तो कोई कारण नहीं है कि एक मान्य प्रेरित जूनिया को ऐसे किसी भी काम को करने से रोका गया होगा।
कलीसिया में महिलाओं को प्राचीन नियुक्त नहीं करना पूरी तरह गलत कार्य हैः पुराने नियम में मरियम, दबोरा और हुलदा का नबिया के रूप में वृत्तन्त मिलता है। नये नियम में अन्ना और फिलिप्पुस की चार बेटियों को नबिया (भविष्यवक्तिन) के रूप में पहिचाना गया है। प्रिस्किल्ला भी यथार्थ में एक महिला प्रेरित थी जो अपने पति के साथ पौलूस की यात्रा में साथ रही। पौलूस ने अपनी पत्रियों में उसका उल्लेख कई बार किया है। पत्रियों में बहुतसी महिलाओं के नाम लिखे गए हैं। जब तक महिलाएं उच्च भूमिका नहीं निभाएंगी यहूदी उनके नामों को कभी नहीं लिखेंगे। यूनानी शब्द ‘‘प्रेस बुतरोस ‘‘(Presbuteros) का अनुवाद पुरूषों के लिये ‘‘प्राचीन‘‘ (Elder) किया गया है परन्तु कुछ अनजाने कारणों से ‘‘प्रेस बुतरास’’ जो उसी शब्द का स्त्रीलिंग है, का अनुवाद ‘‘बूढ़ी स्त्रीयों’’ किया गया है। इसे सहजता के साथ ‘‘महिला प्राचीन’’ या प्राचीनिन (Elderss) या यदि वह प्राचीन की पत्नी है तो उसे वैसा अनुवादित किया जा सकता था (1तीमुथियुस 5ः2)। यह प्रगट है कि यह कार्य जान बूझकर किया गया ताकि महिलाओं को कलीसिया का प्राचीन नहीं बनाया जाए। आज की तरह ही, प्रारम्भिक कलीसिया में भी महिलाओं की संख्या अधिक होती थी और वे काफी प्रभावशाली भी थी। प्राचीन पुरूष या स्त्री की जो प्रमुख योग्यता चाहिये थी वह यह थी कि उसका आचरण अच्छा हो, पहुनाई करने वाले, अपने घर का अच्छा प्रबन्ध करने वाले और शिष्य बनाने के योग्य हों। (तितुस 1ः5-9; 1तीमुथियुस 3ः4)। महिलांए इस पद के लिये पूरी तरह योग्य होती हैं, इसलिये यह स्वाभाविक था कि वहां महिलाएं प्राचीन हों। यह धर्मशास्त्र के अनुसार है क्योंकि स्त्रीयां भी एक ‘‘चुना हुआ वंश, राजपदधारी और याजकों का समाज हैं’’। महिलाओं को पूरा अधिकार है कि वे याजको की तरह काम करें। जिसमें आराधना करना, चेले बनाना, बपतिस्मा देना, शिक्षा देना और प्रभु की ब्यारी में भाग लेना इत्यादि है। वे बिमारों के लिये प्रार्थना करतीं, और दुष्टात्माओं से छुटकारा भी देती थीं (2यूहन्ना 1पद; 1पतरस 2ः9)। इन सारी गति विधियों के कारण असैम्बलियां विश्वास में मजबूत हुई और गुणात्मक रीति से बढ़ती गई।
इक्लीसिया में हर एक जन शिक्षा दे सकते हैंः यह इस्मरण करना अच्छा है कि घरेलू इक्लीसियाओं में प्रत्येक जन भागीदार होता था, प्रत्येक जन जिसमें महिलांए और बच्चे भी थे, ‘‘....... जब तुम्ह इकट्ठे होते हो, तो हर एक के हृदय में भजन या उपदेश, या अन्य भाषा, या प्रकाशन या अन्य भाषा का अर्थ बताना होता है, सबकुछ आत्मिक उन्नति के लिये होना चाहिये’’ (1कुरिन्थियों 14ः26)। पौलूस आगे कहते हैं कि प्रत्येक जन भविष्यद्वाणी कर सकता है, यह विचार कर सकते है कि इसमें महिलांए भी सम्मिलित हैं (पद 31), वे स्पष्ट करते हैं कि, ‘‘जो भविष्यवाणी करता है, वह मनुष्यों से उन्नति और उपदेश और शान्ति की बातें कहता है’’ (1कुरिन्थियों 14ः3)। महिलाएं, इक्लीसिया की इन सारी गतिविधियों में भाग लेती थीं।
क्या महिलाएं बपतिस्मा देस सकती हैं?: बपतिस्मा देने का काम क्लर्जी। पास्टर के ही लिये सुरक्षित है, यद्यपि इसके लिये धर्मशास्त्र का कोई आधार नहीं है। बाइबिल में ऐसा उल्लेख कहीं नहीं मिलता जो महिला द्वारा बपतिस्मा दिये जाने का विरोध करता हो। सच्चाई यह है कि महान आदेश स्पष्ट के साथ सभी विश्वासियों को अधिकार देता है कि वे जाकर शिष्य बनांए और उन्हें बपतिस्मा दें (मत्ती 28ः19)। यदि एक महिला खून खरीदी याजक और राजा है, तो वह उसके बुनियादी कामों में से एक काम है, नये विश्वासियों को बपतिस्मा देना। यह सर्वविदित है कि एतिहासिक रीति से पिन्तेकुस्त के दिन यहूदी महिलांए अपनी परम्परा के अनुसार यरूशलेम में कुण्डों के चारों ओर इकट्ठी हुई थीं और उन्होंने एक दूसरे को बपतिस्मा दिया था। इसीलिये प्रभु ने भी बहुत सी महिलाओं को ‘‘पवित्र आग’’ से बपतिस्मा दिया। पुरूष और खासकर प्रीष्ट और यहा तक की प्रेरितों को भी कुण्डों के पास जाने का कोई काम नहीं होता था। यह तर्क संगत है कि जब एक महिला प्रार्थना करती, बीमारों को चंगाई देती, और दुष्ट आत्माओं से ग्रसित लोगों को छुटकारा देती थी, तब वे उन्हें वास्तव में बपतिस्मा भी दे सकती हैं। प्रभु यीशु की मृत्यु ने बीच के परदे को नीचे से ऊपर तक फाड़ दिया ताकि सब लोगों की पतिा के पास तक पहुंच हो सके। अभाग्यवश चर्च हमेंशा कोशिश करता है कि फिरसे महिलाओं के लिये परदा लगा दिया जाए।
यह एक बहुत महत्वपूर्ण विषय है क्योंकि हमारी संस्कृति में, विशेषकर ग्रामीण महिलाओं को पुरूषों द्वारा बपतिस्मा देने में समस्या होती है। हजारों महिलाएं, विश्वास की बहनों द्वारा बपतिस्मा लेने को तैयार हैं, परन्तु यदि उन्हें पुरूषों द्वारा बपतिस्मा लेने को तैयार हैं परन्तु यदि उन्हें पुरूषों द्वारा बपतिस्मा लेना हो तो फिर पतियों से इजाजत लेना जरूरी हो जाता है और कई बार वह इजाजत नहीं मिल पाती।
औरतों की दलाली करने वाले (Pimps=भड़वे), वेश्याएं, किंकर या खोजे इक्लीसिया की ओर आ रहे हैंः औरतों की दलाली करने वालों और वेश्याओं का इक्लीसिया में प्रवेश सोम्य और कट्टर यहूदियों के लिये एक धक्का देने वाला परिवर्तन था क्योंकि इससे वह सब कुछ नष्ट हो गया जो एक यहूदीं ‘‘पवित्र’’ मानता था। उन्हें उनकी बराबरी में बैठकर आराधना करना पड़ता था, और उन्हेें वह भोजन खाना पड़ता था जो ‘‘कोशेर’’ (Kosher) नहीं था। कूश देश के खोजे का बपतिस्मा विशेष अहमियत वाली घटना थी। परमेश्वर ने प्रतिज्ञा किये हैं कि उनका घर सब जातियों के लोगों के लिये प्रार्थना का घर’’ कहलाएगा। इसमें किंकर व खोजे भी सम्मिलित हैं, ‘‘मैं उनको ऐसा नाम दूंगा जो पुत्र पुत्रियों से कहीं उत्तम होगा’’ (यशायाह 56ः3-7)। मध्यप्रदेश में अभी अभी चुनाव में बहुत से किंकरों ने राज्य चुनाव जीता है। यदि लम्बे बालों वाले ओर सिर मुुण्डाई हुई वेश्याएं, कुरिन्थि की इक्लीसिया में मिल सकती हैं (1कुरिन्थियों 11ः5-16) तब हमें लम्पट विलासी (Gay) लोगों की, समलिंग कामुकता करने वाले पुरूषों , पथभृष्ट समलिंग कामुकता करने वाली स्त्रियों , वेश्याओं और ऐसे ही अन्य बहुत से लोगों की बड़ी कटनी मिल सकती है, जो अपने आपको मसीह के लिये खोजे बना रहे हैं (मत्ती 19ः12)। कोई बात नहीं कि आप कितने अधिक दूर चले गए हैं परमेश्वर आपको ढूढ़कर पा सकते हैं और क्षमा कर सकते हैं। यही करने के लिये प्रभु यीशु मर गए। ‘‘अब न कोई यहूदी रहा और न यूनानी (अन्य जाति) ..... न कोई नर न नारी ...... क्योंकि तुम सब यीशु मसीह में एक हो’’ (गलातियों 3ः28)। यीशु की इक्लीसिया संस्कृति विरोधी (सब संस्कृतियों को तोड़कर उन्हें एक बना देने वाली) है, जो कि चर्च की सफाईदार नमूने से जिसे आजकल परोसा जा रहा है, एक दम निकाला हुआ मनुष्य भी प्रेम और जीवन पा सकता है (1कुरिन्थियों 1ः26-31; 4ः13)।
क्या आप सेवक हैं जो भविष्यद्वाणी करते हैं?: परमेश्वर ने प्रतिज्ञा किये हैं। कि अन्तिम दिनों में वे अपना आत्मा सभी मनुष्यों पर उण्डेलेंगें। जबकि आप स्वप्न और दर्शन देखेंगे और आपके बेटे बेटियाँ और सेवक भविष्यद्वाणी करेंगे और लोगों को ‘‘विश्वास में’’ लेकर आएंगे। स्वप्न देखना पर्याप्त नहीं है, उसे कर्म के द्वारा यथार्थता में परिवर्तित करना चाहिये। दुख की बात है कि मसीही माता पिता अपने सेवकों से मात्र काम निकालने और अपने बच्चों से स्कूल में अच्छे नम्बर प्राप्त करने में ही रूची रखते हैं, बजाए इसके कि वे भविष्यद्वाणी करें (प्रेरितों के काम 2ः17, 18,21; 8ः5-8; 21ः8)।
धीरे परन्तु निश्चित तौर पर महिलाएं विश्व को बदल रही हैंः पूरे विश्व में हजारों घरेलू इक्लीसियाएं प्रगट हो रही हैं, चीन, इन्डोनेशिया, कोरिया, आफ्रिका, दक्षिण अमेरिका और फिलिपीस बहुत आगे हैं। उदाहरण के तौर पर दक्षिण कोरिया में दुनिया की सबसे बड़ी इक्लीसिया में, अगुवाई पॉल (डेविड) योन्गी चो करते है, में 100,000 कलीसियाई झुण्ड हैं। इसके 80 प्रतिशत झुण्ड साधारण महिलाओं द्वारा प्रारम्भ किये गए। आज मसीहियत का गुरूत्व केन्द्र पश्चिम से सरककर पूर्व में आ गया है क्योंकि अब लगभग 70 प्रतिशत विश्वासी, 10/40 खिड़की के देशों में रहते हैं। इस असाधारण बदलाव का प्रमुख कारण महिलाओं और विशेषकर साधारण ग्रहणियों का सुसमाचार कार्य में भाग लेना हैं।
अवरूद्ध या बन्द समुदायों के लिये महिलाएं कुंजी हैंः भारतीय उप महाद्वीप में हिन्दू और मुस्लिम महिलाओं के लिये जनाना या हरम, रहने का एक अलग स्थान होता है। नेपाल, श्री लंका, और बंगलादेश और ईरान तक में मण्डलियां, महिलाओं के ही द्वारा स्थापित की गई हैं। कुछ मुस्लिम देशों में बाइबिल लेना व रखना मना है और एक साथ मिलकर आराधना करना अपराध है। केवल विश्वासी महिलाएं ही उस परदे के पीछे जा सकती हैं और उन अभागी बहिनों तक पहुंच सकती हैं और उन्हें ‘‘विश्वास में’’ ला सकती हैं। परमेश्वर का धन्यवाद हो कि परदे के पीछे के पीछे अब गुप्त असैम्बलियां स्थापित हो रही हैं।
इक्लीसिया को फल इकट्ठा करने वाली महिलाओं की आवश्यक्ता हैः विश्व का बहुत बड़ा भाग इस बात को नहीं जानता की आज महिलाओं की एक बड़ी सेना आंसू बहाते हुए बाहर जा रही हैं और आत्माओं की बालें बटोरकर ला रही हैं, (भजन संहिता 126ः5,6)। बहुत सी तो अनपढ़ हैं और यह बता भी नहीं सकती कि वे जगत को उलट पुलट कर रही हैं वे दूरदर्शन पर नहीं है और किसी मसीही पत्रिका में भी नहीं। उनके पास बहुत थोड़े संसाधन हैं परन्तु वे प्रार्थनाओं में स्नान की हुई हैं और परमेश्वर की इच्छा में एक लय हैं। यदि लुदिया, प्रिस्किल्ला, अफफिया, मरियम, और दूसरी महिलाओं ने अपने घर के द्वारों को खोल दिये थे, और तिरस्कृत सामरी स्त्री ने पूरे गांव को प्रभु के चरणों में ले आई, तब फिर हम क्यों इस काम को नहीं कर सकते, जिनके पास बहुत से सुअवसर हैं? दुःख की बात है कि बहुत सारी सुअवसर वाली महिलाएं श्रोताओं की कतार में बैठी हैं, जैसे गूंगी मूर्तियां कपड़ों की दूकानों में लगी होती हैं, सजी हुई किन्तु कहीं जाती नहीं हैं। परमेश्वर ने आज्ञा दिये हैं, हे सुखी स्त्रीयों उठकर मेरी सुनों हे निश्चित पुत्रियों , विकल हो अपने अपने वस्त्र उतार कर अपनी अपनी कमर में टाट कसो.......... जब तक आत्मा ऊपर से हम पर उण्डेला न जाए और जंगल फलदाई बारी न बने, .... वहां विधिहीन नगर, न्याय, धर्म, शान्ति और आशीष के स्थान बना जाएंगे’’ (यशायाह 32ः8-18)। हमारी अवसरों से वंचित बहिनें, चर्च में या समाज में अपने अधिकारों के लिये नहीं लड़ रही हैं, परन्तु एक घर से दूसरे घर जाकर मिल रही हैं और अनन्त फल बटोर रही हैं (मत्ती 19ः30)।
पीड़ीत लिंगः विश्व में लगभग चालीस लाख महिलाएं और बच्चे बेचे जाते है, और उन्हें बलात वश्यावृत्ति में लगा दिया जाता है, और दूसरी 20 लाख युवतियां आफ्रिका और मध्यपूर्व में अंग भंग और विकृति पैदा करने वाले खतने में से गुजरती हैं। लाखों कन्याशिशुओं का गर्भपात के बाद बाल्टियों में होता है। भारत में प्रतिवर्ष 5000 दुल्हिने दहेज प्रताड़ना में जलाकर माल डाली जाती हैं। स्त्रीयां अधिकांशतः स्वास्थ्य, आर्थिक, घरेलू और आत्मिक समस्याओं के कारण दुःख झेलती हैं। उनका सभी के द्वारा शोषण किया जाता है, उनके कुटुम्बियों और मित्रों द्वारा भी। इनमें से अधिकांश अनपढ़ हैं और उनका परमेश्वर के प्रति ज्ञान बहुत उथला और विकृत है। उन्हें धर्म प्रचार की कम और दया की अधिक आवश्यक्ता है। यदि हम विश्व को सुसमाचार से भरना चाहते हैं, तो महिलाओं की आधी सुसमाचारीय शक्ति को बन्धन में रखना एक दम मूर्खता होगी। साधारणतः महिलांए सम्बन्ध बनाने में कुशल और छोटे झुण्डों में काम करने के लिये अति उत्तम होती हैं। इसीतिये 10/40 खिड़की के देशो में जातियों को शिष्य बनामें में वे अत्यधिक सफल हुई हैं।
राजकीय कानूनः प्रभु परमेश्वर से अपने सारे मन, प्राण और शक्ति से प्रेम करने को, अपने पड़ौसी से अपने समान प्रेम रखने की कसौटी पर सिद्ध किया जाना चाहिए। प्रभु यीशु ने प्रचार नहीं किये और नही उन्हें ताड़ना किये परन्तु प्रत्येक महिला पर जो उनके पास आई, उन्होंने अपना प्रेम और करूणा प्रकट किये चाहे वह दुष्ट आत्माओं से भरी मरियम मगदलीनी थी, मरियम और मार्था थी जिनका भाई लाजर मर गया था, वह स्त्री जिसका बारह वर्षों से लोहू बह रहा था, चाहे सामरी स्त्री या सरूफिनीकी जाति की स्त्री या फिर व्याभिचार में पकड़ी गई स्त्री थी। इन सब पीड़ित चोट खाई हुई महिलाओं को प्यार और प्रोत्साहन की आवश्यक्ता थी और उन्होंने तुरन्त ही राज्य में प्रवेश पा लिया।
इक्लीसिया को शोक करने में प्रवीण महिलाओं की आवश्यक्ता हैः यदि आप धान के खेत में देखें तो वहां काम करने वालों में अधिकांश महिलाएं ही मिलेगी, चाहे वे बीज रोप रही हों या कटनी काट रही हों। इनमें से अधिकांश महिलाएं अनपढ़ होती हैं, अछूत, निम्न जाति की गरीब और शोषित (यूहन्ना 4ः35)। परमेश्वर ढूंढ़ रहे हैं, ‘‘विलाप करने वालियों को........ बुद्धिमान स्त्रीयों को....... तुम अपनी अपनी बेटियों को शोक का गीत और अपनी अपनी पड़ौसिनों को विलाप गीत सिखाओं...... क्योंकि मृत्यु हमारी खिड़कियों से होकर महलों में घुस आई है कि हमारी सड़को में बच्चों को और चौकों में जवानों को मिटा दे’’ (यिर्मियाह 9ः17-21)। दुुःख की बात है कि अधिकांश चर्च मण्डलियां आत्मकेन्द्रित (स्वार्थी) महिलाओं से भरी हुई हैं जो दूसरों के लिये विलाप करने में बुद्धिमान नहीं है और इसी लिये उनके अपने घराने बर्बाद हो रहे हैं, ऐसी स्त्रीयां जो हमेशा सीखती तो रहती है, परन्तु कुछ करती नहीं हैं, वे नये नियम में कमजोर, मूर्ख और अधम कहलाई गई हैं (2तीमुथियुस 3ः6,7)। कलीसिया को अत्यावश्यक रीति से ऐसी महिलाओं की आवश्यक्ता है जो नम्रता पूर्वक इस विश्व की शोषित और दुःखी महिलाओं को यीशु के विषय में बताएं।
यहूदी लोग पुरूष-प्रधानता के पक्षधर थेः यहूदी लोग पुरूष-प्रधानता के पक्षधर थेः यहूदियों केवल पुरूषों की गिनती करते थे, जब यीशु ने पांच हजार की भीड़ को तृप्त किया (मत्ती 14ः21)। पिन्तेकुस्त के बाद, और पांच हजार ‘‘पुरूष’’ इक्लीसिया में मिला दिये गए थे (प्रेरितों के काम 4ः4)। हो सकता है इसका यह अर्थ हो कि उस समय पांच हजार घराने को बपतिस्मा दिया हो। इसके बाद भीड़ की भीड़ प्रभु के पास आई (प्रेरितों के काम 4ः32; 5ः28)। अनिच्छा से उन्हें वहां महिलाओं की उपस्थिति को भी स्वीकारना पड़ा है (प्रेरितों के काम 5ः14)।
महिला पोपः सन् 855-858 में एक सार्वजनिक उत्सव के समय पोप जौन प्रसव पीड़ा से गुजरे और उन्होंने एक पुत्र शिशु को उत्पन्न किये और उसे तुरन्त ही मास्टर पोप जोअन (Ms Pope Joan) बना दिया गया। उसके बाद वहां एक विशेष प्रकार की कुर्सी बनाकर रखी गई जिसके बीच में छेद था, सिससे नये चुने गए व्यक्ति को इसके पहिले कि उसकी पोप होने की घोषणा हो उसके जोड़ को पकड़कर सम्भालकर सीधा रखा जा सके। इस बात की सच्चाई में कुछ संदेह है परन्तु यह कहानी मरती भी नही है। तथापि एतिहासिक रीति से यह सत्य है कि कुछ पोप लोगो ने अपनी रखैलियों के द्वारा पोप को पैदा किये। पोप के अविवाहित रहने (Celibacy) और पाप में पड़ने की असम्भवता (Infallibility) होने के बावजूद। यदि चर्च में पापा हो सकते हैं तो फिर ऐसा कोई न्यायपूर्ण कारण नहीं हो सकता है कि वहां कभी एक मां क्यों नहीं हो सकती है विशेषकर जूलिया की तरह प्रेरित जो इससे पहिले कि पतरस वहां पहुंचा, रोम की कलीसिया की स्थापना करने वाले स्थापकों में एक सदस्य थी (रोमियों 16ः7)।
यीशु ने एक महिला को भेजा कि भाईयों से कहेः यीशु ने कब्र के पास मरियम मगदलीनी से कहा, ‘‘जाकर मेरे भाईयों से कह... (यूहन्ना 20ः17)। उसी समय से लाखों महिलाएं पिता की इच्छा की आज्ञाकारिता में वहां जाती रही हैं कि वे भाईयों को जी उठे हुए प्रभु के विषय में बताएं। पुरूषों की तरह प्रभु ने महिलाओं को भी अपने लोहू से खरीदा है कि वे जकार उसके महान आदेश को पूरा करें।
मकिदुनिया का वह पुरूष वास्तव में एक स्त्री थाः इतनी शताब्दियों के बाद भी, जबकि ज्ञान विस्फोटक रीति से बढ़ चुका है, पैलूस को गलत समझा गया है। जब वह प्रोआस में था, उसने दर्शन में एक मकिदूनी पुरूष को देखा था, उसे उसे मदद के लिये बुला रहा था। यह पुरूष बाद में एक स्त्री के रूप में बदला हुआ दिखाई देता है जिसका नाम लूदिया था। उस स्त्री का बपतिस्मा गेंजिटीज (Gangites) नदी में हुआ था जैसी हमारी पवित्र नदी गंगा है (Ganges)। त्रोआस वह प्रसिद्ध स्थान है जहां ट्रोय की एक कामुक स्त्री हेलेन के लिये ट्रोजन युद्ध लड़ा गया। इस युद्ध में एक हजार जहाज लगाए गये थे लेकिन फिरभी वे हार गए थे। तब उन्होंने शहर में लड़ाकू पुरूषों की तस्करी के लिये एक बडे़ लकड़ी के घोड़े का उपयोग किया। बहुत बाद में पौलूस और उसके दल ने वहां से कार्य आरम्भ किया और यूरोप की पहली इक्लीसिया को एक महिला के घर में स्थापित कियां वह इक्लीसिया की अगुवाई थी (प्रेरितों के काम 16ः9-15)। दुख की बात यह है कि फिलिप्पी के पहाड़ियों पर गंदे दिमाग वाले धार्मिक मठवासियों ने कब्जा कर लिया। उन्होंने वहां मठों की स्थापना की और हजार वर्षों तक वहां महिलाओं के प्रवेश पर निषेध लगा दिया। बाद में पुरूषों ने यूरोपीय चर्च पर एकाधिकार रखा, महिलाओं को अधीनता में रखा और विश्व पर प्रभाव डाला कि वे भी ऐसा ही करें। पौलूस की शिक्षाओं की और उसकी कार्य व्यवस्था की यह कैसी विडम्बना है।
दुल्हिन को सजानाः ‘‘एक दूसरे के आधीन रहो’’ का अर्थ यह नहीं है कि केवल महिला ही पुरूष के आधीन रहे, परन्तु इसके विपरीत भी होना चाहिये (इफिसियों 5ः19)। जबकि पुरूषों की मण्डलियों ने गुटबन्दी करके चर्च में महिलाओं को नियंत्रित करने के लिये तानाशाही पूर्ण हुक्म थोप दिये और अपने अधिपत्य को बनाए रखने के लिये धर्मशास्त्र के गलत अनुवादित संदर्भो को उद्धत किया। हम परमेश्वर का धन्यवाद करते हैं कि हजारों छोटी लुदिया की तरह महिलांए प्रतिदिन बाहर जा रही हैं कि इस जगत की उनकी बहुत सी खोई हुई बहिनों को ढूढ़ें। जबकि विश्व हॉलिवुड की कामुक स्त्रीयों से जो भड़कीले वस्त्र पहिने रहती हैं, मंत्रमुग्ध हैं, ये नम्र और दीन महिलाएं मसीह की दुल्हिन को श्वेत वस्त्रों से सजा रही हैं, उनके आंसुओं को पोंछ नही हैं और उनके यीशु के साथ प्रेम भरे सम्बन्ध को पुनः स्थापित कर रही हैं।
व्यावसायिक संगीत और आराधना उत्तेजित करने वाली गोलियां हैं, जो लत डाल देती हें, वे धर्मशास्त्र के अनुसार नहीं हैं क्योंकि वे विश्वासी के बोलने, समझाने और एक दूसरे को उन्नति करने के अधिकार को छीन लेती हैं, इसके बदले उन्हें परमेश्वर के लिये भजन और स्तूति गान और अपने मनों में आत्मिक गीत गाते रहना चाहिये (1कुरिन्थियों 14ः26; इफिसियों 5ः19; कुलुस्सियों 3ः16)।
व्यावसायिक संगीत मनोरजंन है, स्वैच्छिक निकलने वाला संगीत आराधना है। मसीहियत की एक लहर आएगी जब प्रत्येक विश्वासी भजनों और आत्मिक गीतों के द्वारा बातें करेगा और अपने हृदयों में गीत गाएगा जिसके परिणाम स्वरूप प्रत्येक घर एक स्वैच्छिक आराधना बन जाएगा (प्रेरितों के काम 16ः5)।
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