प्रेरितीय सेवकाई!
प्रेरितीय सेवकाई!
यीशु शान्ति के सबसे बड़े प्रेरितः प्रेरित शब्द का अर्थ है ‘‘भेजा हुआ जन,‘‘ एक संदेश वाहक’’ या ‘‘एक राजदूत’’। प्रभु स्वंय एक प्रेरित के सबसे अच्छे आदर्श हैं (इब्रानियों 3ः1)। उनके सभी बारह चेले प्रतिष्ठित प्रेरित बने और उनके नाम नये यरूशलेम की नेव पर लिखे हुए हैं (प्रकाशित वाक्य 21ः14)।
यीशु प्रतिदिन यात्र करते थेः यीशु प्रतिदिन औरसतन पंद्रह से बीस किलोमीटर चला करते थे (लूका 4ः43; मरकुस 1ः38)। जब कुछ लोग उन्हें डराने की कोशिश करते थे कि हेरोदेश उन्हें मार डालना चाहता है तब उन्होंने कहे, ‘‘जाकर उस लोमड़ी से कह दो कि देख, मैं आज और कल दुष्टात्माओं को निकालता और बीमारों को चंगा करता हूँ और तीसरे दिन पूरा करूंगा, तौभी मुझे आज और कल और परसों चलना आवश्य है।’’ उनके जी उठने के दिन भी, वे यरूशलेम से इम्माऊस तक सात मील पैदल चले और राह में दो जनों को शिष्य बनाए (लूका 13ः31-33; 24ः13-35)। यीशु उन लोगों के गंदे और फटे पैरों को प्यार करते हैं जो सुसमाचार को दूर दूत तक ले जाते है (रोमियों 10ः15)।
प्रेरितीय कार्य सबसे ऊंचा वरदान: यीशु ने अपनी इक्लीसिया को बहुत से प्रेम भरे वरदान दिये हैं। प्रेरितीय सेवकाई सबसे अधिक विशेषाधिकार युक्त वरदान है। प्रेरित लोग सबसे अधिक विशेष अधिकार प्राप्त व्यक्ति होते हैं क्योंकि पवित्र आत्मा के द्वारा अन्यजातियों को उद्धार का भेद सबसे पहिले प्रेरितों और भविष्यद्वाक्ताओं पर ही प्रगट किया गया था (इफिसियों 2ः20-22; 3ः5-6; 4ः11,12; 1कुरिन्थियों 12ः27-31)।
अन्ताकिया, सबसे पहली अन्यजातीय प्रेरितीय इक्लीसिया थीः इस इक्लीसिया के पास भविष्यद्वक्ता और शिक्षक थे। जब वे उपवास और प्रार्थना कर रहे थे, पवित्र आत्मा ने पौलूस और बरनबास को प्रेरितीय सेवकाई हेतु वहां भेजा, जिससे पश्चिमी विश्व का चेहरा हमेशा के लिये बदल गया (प्रेरितों काम 13ः1-3)।
एक प्रेरित, उद्देश्यों द्वारा संचालित और निर्धारित लक्ष्य वाला व्यक्ति हैः परमेश्वर प्रेरित को एक विस्तृत दर्शन देते हैं जो उसके स्थानीय निवास से बहुत आगे तक का होता है। उसका दर्शन, उसका शहर, जिला, राज्य और पूरा देश भी हो सकता है, और यह भी हो सकता है कि वह दुनिया की छोर तक का हो। उनका दर्शन और उद्देश्य यह है कि वह अपने क्षेत्रों से भी आगे इक्लीसियाओं को स्थापित करता जाए (2कुरिन्थियों 10ः16)। वह एक साधारण प्रचारक से बहुत भिन्न होता है, जिसे किसी भी स्थाई चीज की स्थापना का दर्शन नहीं होता है। इसके विपरीत एक प्रेरित जहां कहीं भी जाता है वहां वह नई इक्लीसिया की स्थापना मेें लग जाता है। वह उत्साह से भरा रहता है और परिश्राम करने में लगा रहता है जब तक वहां का काम सम्हालने के लिये स्थानीय प्राचीन नियुक्त नहीं हो जाते (प्रेरितों के काम 14ः22,23)। वह इक्लीसिया की निर्बलता को पहिचान सकता है, और एक धार्मिक पिता की तरह उन्हें डांटता, समझाता, उत्साहित करता और ‘‘प्रेम के साथ सच्चाई बताता’’ जाता है, ताकि भटकी हुई भेड़ें लौटकर घर आ जाएं (1कुरिन्थियों 11ः17-22; इफिसियों 4ः15)।
केवल प्रेरित ही प्रेरितों को जन्म दे सकता हैः पवित्र आत्मा ही अभिषेक देता और वरदान बांटता है। सुसमाचार प्रचार, शिक्षक और चरवाहे साधारणतः अपने ही किस्म को जन्म देते हैं, परन्तु प्रेरित और भविष्यवक्ता बहुत से वरदानों से भरे हुए सन्तों को जन्म देते हैं, क्योंकि अधिकांशतः उसके पास एक से अधिक वरदान होते हैं। अपने दर्शन को पूरा करने के लिये वह बहुत से जवान विश्वासियों को आत्मिक बच्चों की तरह गोद में लेता है और उनका पोषण प्रशिक्षण करता है। पौलूस कहता है, ‘‘मसीह में तुम्हारे सिखाने वाले दस हजार भी होते...... यीशु में सुसमाचार के द्वारा मैं तुम्हारा पिता हुआ।’’ (1तीमुथियुस 1ः2; 1कुरिन्थियुस 4ः17; तीतुस 1ः4; फिलिप्पियों 1ः10)। प्रेरित पौलूस ने उनके शिष्यों के लिये प्रार्थना किये, ‘‘हम रात और दिन बहुत ही प्रार्थना करते रहते हैं (आंसुओं के साथ) ..... कि तुम्हारे मन की आंखे ज्योर्तिमय हों कि तुम जान लो कि उसके बुलाने से कैसी आशा होती है’’ (1थिस्सलुकियों 3ः10; इफिसियों 1ः16-18)। तीमुथियुस, तीतुस, इपफ्रास (फिलिप्पियों 2ः22) को पौलूस ने आत्मिक पिता की तरह प्रशिक्षित किया परन्तु फिर भी उसे सीलास की मदद की आवश्यक्ता हुई, जो एक भविष्यवक्ता था। (प्रेरितों के काम 15ः32,40)। दूसरी सेवकाईयों की तरह प्रेरित की सेवकाई अकेले नहीं की जा सकती। धर्मशास्त्र हमें बताता है कि एक से दो भले हैं, और एक रस्सी जो तीन धागों से बटी होती है जल्दी नहीं टूटती (सभोपदेशक 4ः9-12)। विश्वासियों को तैयार करने के लिये इफिसियों के चार अध्याय में दिये गए सभी वरदानों की आवश्यक्ता होती है।
प्रेरित गण अकथनीय क्लोशों को सहने के लिये तैयार रहते हैंः दीवारों पर बनाए गए तैलचित्रों व पेन्टिगों में प्रेरितों को मुस्कुराते चेहरों के साथ दर्शाया गया है, और उनके चेहरे और सिर के चारों ओर पवित्र हेलो वृत देखाई देते हैं परन्तु सच्चाई कुछ और ही थी। वे शारिरिक रीति से बहुत कमजोर भूखे, प्यासे और बीमार मनुष्य हुआ करते थे, उनके हाथ कठिन परिश्रम करने के कारण खुरदुरे हुआ करते थे (प्रेरितों के काम 18ः3)। अधिकांश समयों में बहुत बीमार और सब प्रकार के जोखिमों और खतरों से जूझते रहते थे। वे निन्दा सताव और अपमान सहते रहते थे और बहुत बार जेलों में पड़े रह जाते थे (प्रेरितों के काम 16ः23)। प्रेरितीय सेवकाई केवल उन्हीं लोगों के लिये है जो प्रतिदिन क्रूस उठाने के लिये तैयार हैं। (1कुरिन्थियों 4ः11;2कुरिन्थियों 10ः10;1ः8-11; 11ः23-28;11ः30; गलतियों 4ः13)
प्रेरित गण बरसाती मेंढकों की तरह नहीं हैंः यह सेवकाई दिशा रहित गुनगुने मसीहियों के लिये नहीं है जो बड़ी बड़ी आत्मिक सभाओं में उपस्थित होने के लिये लम्बी यात्राएं करते हैं परन्तु वे पड़ौस में और शहरों की गन्दी बस्तियों में नाश होने वालों को बचाने के लिये जाने को तैयार नहीं हैं। वे भी जो कभी कभार सुसचार प्रचार के लिये जाते हैं परन्तु उनके पास कोई लम्बे समय तक चलने वाली रणनीति नहीं है, ये बरसाती मेंढकों की तरह हैं जो थोडे़ समय के लिये आते हैं और टर्राने की बहुत आवाज निकालते हैं और उसके बाद वे अगली आत्मिक सभाओं तक के लिये गायब हो जाते है। नये नियम में, अगुवा और मण्डली दोनों की चलायमान हुआ करते थे। यीशु गए और अछूत सामरियों के बीच रहे, उनके भोजन को खाए, और उसी बीच उन्होंने सारे यहूदी रिवाजों व परम्पराओं को तोड़ डाला और वहां सामरी इक्लीसिया की नेव रख दी (मरकुस 1ः38; प्ररितों के काम 1ः8)।
कीमत सुकाने को तैयार हो, तो सेना में जुड़ जाओः बहुत से जन, जो सुसमाचार प्रचार करने के लिये मिशनरियों की तरह जाते हैं, मिशनरियों के पास प्रेरित का वरदान नही होता, यद्यपि यह वरदान प्रत्येक व्यक्ति के लिये, स्त्रीयों और पुरूषों के लिये उपलब्ध है। धर्मशास्त्र हमें चुनौती देता है कि हम ऊंचे से ऊंचे वरदानों की खोज में रहें और प्रार्थना में मांगे (1कुरिन्थियों 13ः13; 14ः1)। तथापि इस विशेष वरदान को मांगने से पहिले उस व्यक्ति को गंभीरतापूर्वक उसकी कीमत पर विचार करलेना चाहिए। पौलूस कहते हैं, ‘‘मेरी समझ में परमेश्वर ने हम प्रेरितों को सबके बाद उन लोगों की नाईं ठहराया है जिनकी मृत्यु की आज्ञा हो चुकी हो। क्योंकि हम जगत और स्वर्गदूतों और मनुष्यों के लिये एक तमाशा ठहरे हैं... हम आज तक जगत के कूड़े और सब वस्तुओं की खुरचन की नाई ठहरे हैं (1कुरिन्थियों 4ः9-13)। यदि आप इस कीमत को चुकाने के लिये तैयार हैं तो फिर प्रेरित बनकर यीशु के सुसमाचार को ले जाओ और पूरी पृथ्वी को उससे और इक्लीसियाओं से भर दों, जैसे समुद्र पानी से भरा होता है (हबक्कूक 2ः14)।
उनके पांव क्या ही सुहावने हैं, जो शान्ति के सुसमाचार का प्रचार करते हैं, और अच्छी बातों का शुभ संदेश लाते हैं। (रोमियों 10ः15)
यदि एक महिला, कलीसिया में, जो कि स्वर्गीय पिता का कुटुम्ब है, बात नहीं कर सकती, तब यह भी तर्क दिया जा सकता है, कि उसे कलीसिया से बाहर भी बात नही करना चाहिये, परन्तु पिछली सारी शताब्दियों में हजारों मिशनरी महिलांए बाहर पृथ्वी की छोर तक गई, और लाखों लोगों को शिष्य बनाया है, और हजारो कलीसियाएं स्थापित की हैं।
वे पुरूष जो महिलाओं की इक्लीसिया में महिलाओं की पूरी भागीदारी का विरोध करते हैं, उनके लिये यह तर्क संगत होगा कि ऐसे जन दुल्हिन कलीसिया का हिस्सा नहीं हो सकते।
अब कलीसिया को एक अति आवश्यक लिंग विषयक जांच पड़ताल करना चाहिये क्योंकि लिंग विशेष की ओर झुकाव रखने वालों के लिये इक्लीसिया में कोई स्थान नहीं है।
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