पवित्र आत्मा पाने की बाईबिल की विधि भाग 6
अध्याय 6
पवित्र आत्मा पाने की बाईबिल की बिधि
पवित्र आत्मा पाना पूरी तरह से विश्वास की क्रिया है। जो व्यक्ति पाना चाहता है उसकी सहायता करने के लिए मेरे पास कई सुझाव है।
पहला, यह देखने में उस व्यक्ति की सहायता कीजिए कि परमेश्वर ने पहले ही पिन्तेकुस्त के दिन पवित्र आत्मा दे दिया है। उसी समय से पवित्र आत्मा इस संसार में है। उस व्यक्ति की यह जानने में सहायता करें कि पवित्र आत्मा का दान स्वीकार करना पूरी तरह उस पर निर्भर करता है। उसे परमेश्वर से भीख नहीं मांगनी है कि वह उसे पवित्र आत्मा से भर दे। सारी भीख मांगना अविश्वास है। अविश्वास भीख मांगता है। विश्वास चिल्लाता है।
दूसरा, उस व्यक्ति की यह देखने में अगुवाई करें। कि जो कोई भी उद्धार पा चुका हैं, वह पवित्र आत्मा पाने के लिए तैयार हैः
प्रेरितों के काम 2ः38
38 पतरस ने उन से कहा, मन फिराओ, और तुम में से हर एक अपने अपने पापों की क्षमा के लिए यीशु मसीह के नाम से बपतिस्मा लेः तो तुम पवित्र आत्मा का दान पाओगे।
हमने पूर्ण सुसमाचारीय ईश शास्त्र में बहुत से मनुष्य के बनाए हुए सिद्धान्तों को मिला लिया है। कुछ लोग सोचते हैं कि पवित्र आत्मा पाने से पहले उन्हें कुछ कार्य करने होंगे या किसी प्रकार अपने जीवनों को पवित्र करना होगा।
यदि हम स्वंय अपने जीवनों को शुद्ध कर सकते तो हमें यीशु मसीह के लहू की क्या आवश्यक्ता है? मैं खून से शूद्ध हूं - खून खरीदा हूं। यदि आपने उद्धार पा लिया है, आप भी शुद्ध हैं।
तीसरा, व्यक्ति को यह बताना वचन के अनुसार (ठीक) है कि जब उस पर हाथ रखा जाए तो वह पवित्र आत्मा पाने की आशा करे।
चैथा, उस व्यक्ति को बताएं कि क्या आशा करे। नहीं तो लोग कल्पना करने योग्य कुछ भी आशा करने लगते हैं।
उस व्यक्ति को बताएं कि उसे आशा करना है कि पवित्र आत्मा उसके बोलने वाले अंगों पर बहेगा और उसके होठों पर अलौकिक शब्द डालेगा। पवित्र आत्मा बोलने की सामर्थ देता है, परन्तु मनुष्य बोलता है। प्रेरितों के काम 2ः4 कहता है, ‘‘और वे सब पवित्र आत्मा से भर गए, और जिस प्रकार आत्मा ने उन्हें बोलने की सामर्थ दी, (या बोलने के लिए उसकाया) वे अन्य-अन्य भाषा बोलने लगे।’’
मिलते जुलते वचन हैं प्रेरितों के काम 10ः46, ‘‘क्योंकि उन्होंने उन्हें भांति भांति की शाषा बोलते....... सुना’’ 1कुरिन्थयों 14ः18 जहां पौलुस ने कहा, ‘‘मैं अपने परमेश्वर का धन्यवाद करता हूँ कि मैं तुम सब से अधिक अन्याय भाषा में बोलता हूँ’’ और 1कुरिन्थियों 14ः2, ‘‘क्योंकि जो अन्यभाषा में बातें करता है, वह मनुष्यों से नहीं, परन्तु परमेश्वर से बातें करता हैं; इसलिए कि उसकी कोई नहीं समझता क्योंकि वह भेद की बातें आत्मा में होकर बोलता हैं।’’
बहुत से लोग कहते हैं ‘‘मुझे डर है कि (पवित्र आत्मा) मेरे शरीर में आ जाएगा।’’ आप इसे किसी और प्रकार से नहीं पा सकते हैं! शरीर में रहने वाले स्त्री पुरूष ही आत्मा में परमेश्वर की आराधना करते हैं। परमेश्वर ने योएल 2ः28 में प्रतिज्ञा की, ‘उन बातों के बाद मैं सब प्राणियों पर अपना आत्मा उडेलूंगा‘‘
पांचवां, उस सदस्य को बताएं उन सभी प्रकार के भय को दूर फेंक दे जो मूर्ख शिक्षकों की शिक्षा के द्वारा मिले हैं कि वह किसी प्रकार की झू ठपा सकता है। यह देखने में उसकी सहायता करें कि वह पवित्र आत्मा के बदले में कुछ और नहीं पाएगा।
लूका 11ः11-13
11 तुम में से ऐसा कौन पिता होगा, कि जब उसका पुत्र रोटी मांगे, तो उसे पत्थर दे, या मछली मांगे, तो मछली के बदले उसे सांप दे?
12 या अण्डा मांगे तो उसे बिच्छू दे?
13 से जब तुम बुरे होकर अपने लड़के-बालों को अच्छी वस्तुएं देना जानते हो, तो स्वर्गीय पिता अपने मांगनेवालों को पवित्र आत्मा क्यों न देगा?
छठा, उस व्यक्ति को उत्साहित करें कि अपना मुंह बड़ा खोल दे - यह विश्वास का एक कदम हो सकता है - सांस ले, और परमेश्वर को बताए, ‘‘मैं इसी समय विश्वास से पवित्र आत्मा पा रहा हूँ।’’
उस व्यक्ति पर दृढ़ता से ज़ोर दें कि अपनी सामान्य भाषा में एक भी शब्द न बोले। उत्साहित करें कि सरलता से निर्भय होकर, साहस से, अपनी आवाज़ उठाए, और जैसे अपनी (सामान्य) भाषा या अंग्रेजी बोलने के लिए अपनी जीभ और होंठ चलता है, उसी प्रकार उन अलौकिक ध्वनियों को निकालने दे।
उसको बतांए कि आशा करे कि पवित्र आत्मा उसे शब्द देगा- और उसे लगेगा कि उसकी जीभ कुछ कहना चाहेगी। ऐसा हर एक घटना में होता है। पवित्र आत्मा बोलने की सामर्थ देता है (परन्तु) व्यक्ति को (स्वंय) बोलना चाहिए। जो कुछ कहा जा रहा है वह अलौकिक भाग है; जो बात कर रहा है वह (अलैकिक) नहीं है।
जब आप देखें कि पवित्र आत्मा उसके होठों और जीभ पर बह रहा है, उसे बताएं कि जो भी आवाजे़ बोलने में आसान लग रही हो, उन्हें बोलने लगा जाए, चाहे वे कुछ भी हों। वही विश्वास है। वह अपनी आवाज़ उठा रहा है और अगुवाई के लिए परमेश्वर की प्रशंसा करते हुए उन अलौकिक शब्दों को बालता चला जाए, जब तक एक साफ भाषा न निकलने लगे और जब तक उसे आन्तरिक निश्चय न हो जाए कि उसने (पवित्र आत्मा) पा लिया है।
सातवां, जो लोग पवित्र आत्मा की भरपूरी की खोज में आते हैं उनके चारों ओर भीड़ न लगांए। उन्हें भ्रमित करने वाले निर्देश न दें। जो (विश्वासी) लोग वहां उपस्थित हों यदि वे बोलकर प्रार्थना करें तो सिर्फ़ आत्मा में नहीं तो उन्हें अपनी सामान्य भाषा में शान्ति से प्रार्थना करना चाहिए।
ये सात चरण वे चरण हैं जिन्हें लोगों के पवित्र आत्मा से भर जाने के लिए मैं सन् 1938 से प्रयोग कर रहा हूँ, बिना ठहरे, बिना प्रतीक्षा किए और लगभग बिना अपवाद के।
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