शिष्य बनाने का आंदोलन

शिष्य बनाने का आंदोलन

शुरुआत - कलीसिया युग की शुरुआत पेंटेकोस्ट के दिन 3000 लोगों ने बपतिस्मा लेने के साथ हुई थी। यह एक अंतरराष्ट्रीय कलीसिया थी  क्योंकि हर देश से यहूदी तीर्थयात्री प्रभु के पर्वों को मनाने के लिए यरूशलेम में एकत्र हुए थे। पहिला पर्ब जो फसह का पर्ब था, फिर तीन दिन बाद प्रथम फल का पर्ब, और पचास दिन के बाद पिन्तेकुस्त का पर्ब मनाकर तीर्थयात्री अपने गृह देशों में लौट आए। उन्होंने प्रभु यीशु को  सूली पर परमेश्वर के मेमने (फसह) की तरह चढ़ाए जाने को, उनके पुनरुत्थान (प्रथम फल) और पेंटेकोस्ट (आत्माओं की फसल) और उनके स्वर्गारोहण को अपने आँखों से  देखा था। पतरस के भाषण को अपनी  अपनी भाषा में सुना था। उसे वापस आकर अपने लोगों को बताया, इसलिए कलीसिया कुछ ही दिनों में एक विश्वव्यापी कलीसिया बन गयी। इस कलीसिया के पास  ना  कोई इमारत थी, न कोई पास्टर था, ना कोई पुल्पिट था, ना कोई उपदेश नहीं देता था, ना कोई संगीत वाद्ययंत्र था, ना कोई दशमांश देता था, ना कोई वित्तीय ताकत थी और ना कोई राजनीतिक प्रभाव था, लेकिन इसमें पवित्र आत्मा की सामर्थ थी, इसलिए शुरुआत से ही विस्फोटक रीति से बढ़ने लगी। कालांतर में मनुष्यों ने इसमें अतिरिक्त चीजें जोड़कर, जैसे ईमारत, पुरोहित, वाद्य यंत्र, फिर इनके खर्चे के लिए दसवाअंश इत्यादि इत्यादी जोड़कर नए नियम की कलीसिया की सहज और सरल संरचनाओं को जटिल बना दिया जिससे शिष्य बनाने का आन्दोलन बंद हो गया। अब ये कलिसिया प्रभु येशु और उनके शिष्य द्वारा दर्शाए नक़्शे कदम पर नहीं लेकिन मनुष्यों द्वारा निर्मित रीति रस्मों पर चलती है। 

समग्र कलीसिया - यह घरों में मिलती थी और इसमें प्रेर्तीय (जाओ और शिष्य बनाओ) शिक्षण, और संगती (रिश्ता) और घर-घर रोटी (प्रभुभोज) तोड़ना और प्रार्थना करना था। वहाँ बीमारियों और दुष्ट आत्माओं से ग्रसित और अन्य समस्याओं को अलौकिक रूप से हल किया जाता था। वे एक दूसरे के साथ अपने भौतिक आशीर्वाद बाटते थे। गरीब, विधवा और अनाथ बड़ी संख्या में आते थे क्योंकि उन्हें शाम को कम से कम एक बार पेट भर भोजन मिल जाता था। वे बाहर जाकर सभी को गवाही देते थे  और प्रभु उद्धार पाए हुए लोगों की संख्या में प्रतिदिन वृद्धि करता था। यह केवल सुनने वाली नहीं परन्तु शिष्य बनानेवाली समग्र कलीसिया थी। (प्रेरितों 2:41-47)

सहभागी कलीसिया - जब वे एक साथ मिलते थे तो सभी लोग क्या स्त्री, क्या पुरुष क्या जवान, सब सक्रिय रूप से भाग लेते थे। किसी के पास भजन था, किसी के पास शिक्षा थी और यदि वह अन्य भाषा में बोलता था तो कोई उसकी व्याख्या करता था, किसी के पास गवाही और दर्शन थे जबकि कुछ लोग भविष्यवाणी करते थे। भविष्यवाणी का मतलब भविष्य के बारे में बताना नहीं था बल्कि एक दूसरे को प्रोत्साहित करना, सक्रिय होने के लिए चुनौती देना और दिलासा देना था इत्यादि था (1कुरिं 14:3)। इस प्रकार, यह एक भविष्यवक्ताओं की कलीसिया थी जहां पुरुष और महिला और युवा और बच्चे भी सक्रिय रूप से भाग लेते थे। कोई पुरोहित नहीं होता था लेकिन प्राचीन सभी को भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करते थे (1 कुरि. 14:26-32)। वे कलीसिया में अन्य अन्य भाषा में नहीं बोलते थे, परन्तु अकेले में बोलते थे (1कुरि. 14:23)। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कलीसिया में अन्य धर्मों के अविश्वासी लोग उपस्थित होते थे और सक्रिय रूप से भाग लेते थे और फिर सत्य को जान कर पश्चाताप करते, बपतिस्मा लेते और कलिसिया में शामिल हो जाते थे। (1 कुरि. 14:24,25)

ऑक्टोपस बनाम स्टारफिश कलीसिया – कई ऐसे करिश्माई अगुवे होतें हैं जिनके पास दर्शन और जोश होता है है लेकिन शिष्यों को तैयार करके उन्हें अपने वरदान के मुताबिक काम करने के लिए प्रोत्साहित करने की क्षमता नहीं होती। वे सख्त नियंत्रण रखतें हैं और जब अगुवे की मृत्यु हो जाती है तो आंदोलन मुरझा जाता है। इसे ऑक्टोपस कलीसिया कहा जाता है क्योंकि जब पानी में रहने वाले इस जंतु का सिर मर जाता  है तो उसकी सब पंखुड़िया भी मर जाती हैं। जैसे हम अपने बच्चों को एक बार अपने पैरों पर खड़े होने के बाद स्वतंत्र कर देते हैं, उसी तरह हमें अपने आध्यात्मिक बच्चों को भी उनकी बुलाहट और वरदान के अनुसार कार्य करने के लिए स्वतंत्र कर देना चाहिए। एक शिष्य बनाने के आन्दोलन को बर्बाद करने के लिए चर्च के चार दीवारों के अंदर उन्हें सदा के लिए  बैठा कर नियंत्रित रखना सबसे अच्छा तरीका है। दूसरी ओर, यदि आप एक स्टारफिश के एक पंखुड़ी को काट कर फेंक देते हैं, तो वह पंखुड़ी दूसरी स्टारफिश में पुन: उत्पन्न हो जाती है। जितना अधिक आप एक तारामछली को विभाजित करते हैं उतनी ही अधिक तारा मछलियां पैदा होती जाती हैं। ठीक इसी तरह से एक सच्चे नए नियम की कलीसिया होती  है - यह शिष्यों को प्रशिक्षण देकर उन्हें मुक्त करती जाती है जिससे कलीसिया निरंतर विभाजित होकर येरुसलेम से यहूदिया से समरिया होते हुए पृथ्वी के छोर तक पहुंचने का दर्शन, दिशा और क्षमता रखती  है।

महान आदेशीय या ग्रेट कमीशन कलीसिया एक "जाओ और शिष्य बनाओ" कलीसिया है – जो कहीं भी और कभी भी मिल सकती है और उसका कोई भी संचालना कर सकता है (मलाकी 1:11)। जबकि मानव निर्मित कलीसिया एक "आओ" कलीसिया है जो  मात्र रविवार को एक पुरोहित के अगवाई में ही चल सकती है। प्रभु यीशु ने अपने चेलों को अंतिम आदेश दिया  कि जाकर सब जातियों के लोगों को शिष्य बनाओ, उन्हें बपतिस्मा दो और उन्हें उनकी सब आज्ञाओं का पालन करना सिखाओ (मत्ती 28:18-20)। इसलिए पतरस ने पिन्तेकुस्त के दिन अपने पहले प्रवचन में उन्हें पश्चाताप करने और बपतिस्मा लेने और अपने स्वयं के परिवर्तन के लिए, अपने परिवारों और दूसरों के परिवर्तन के लिए पवित्र आत्मा का उपहार प्राप्त करने की हिदायत दी। उन्होंने एक दूसरे को बपतिस्मा दिया। यहूदी परंपरा के मुताबिक महिलाओं ने महिलाओं को बपतिस्मा दिया। जिसने जिस दिन येशु को अपना प्रभु ग्रहण किया उसने उसी दिन बपतिस्मा लिया। प्रतीक्षा की लंबी प्रक्रिया से गुज़रकर किसी को भी अपना बपतिस्मा कमाना नहीं पड़ा।

कलीसिया का प्राथमिक कार्य शिष्य बनाना था - स्वयं प्रभु यीशु मसीह ने प्रेरितों, भविष्यवक्ताओं, प्रचारकों, चरवाहों और शिक्षकों को पांच तरह के वरदान देकर अपनी कलीसिया को सुसज्जित किया। इन वरदानी सेवकों के बहु नेतृत्व में संतों को अपने अपने कार्यस्थलों में सेवकाई के लिए तैयार किया जाता था जिसके परिणामस्वरूप कलीसिया की  विस्फोटक उन्नति होती थी (इफि. 4:11-13)। इस कलीसिया में कोई मूक दर्शक नहीं होते थे, लेकिन हर एक जन जैसे कोई भजन तो कोई गवाही, शिक्षा, या दर्शन य भविष्य वाणी बाटता था इसलिए ये कलीसिया बड़ी तेज रफ़्तार से बढ़ती थी।

पीढ़ी दर पीढ़ी वृद्धि निरंतर बढ़ोत्तरी की कुंजी  है - पौलुस ने तीमुथियुस से कहा, “कि जो बातें तू ने बहुत गवाहों के साम्हने मुझ से सुनी है, उन्हें विश्वासी मनुष्यों को सौंप दे; जो औरों को भी सिखाने के योग्य हों (2 तीमु. 2:2) । पौलुस की तरह प्रत्येक शिष्य को सुनिश्चित करना आवश्यक है कि अपने दूसरी और तीसरी और चौथी पीढ़ी के शिष्यों को तैयार करे। जिस तरह से एक परिवार में दादा दादी, माता पिता, बच्चे और नाती पोते होते हैं उसी तरह से एक आत्मिक घराने में भी हर एक जन को आत्मिक बच्चे पैदा करना आवश्यक है अन्यथा वे बाझ हो जायेंगे और उस परिवार का नाम हमेशा के लिए मिट जायेगा। 

कलीसिया रोपण आंदोलन कैसे शुरू करें – इस की कुंजी एक "शांति का घर" खोजने में है।  यह कई तरीकों से किया जा सकता है, जैसे कि प्रार्थना यात्रा और उस क्षेत्र के बलवंत (दुष्टात्मा) को बाँधने और बंदियों को छुटकारा दिलाने से, सामर्थ के कार्य जैसे बीमारों को शिफा देने और बदरूहों को निकलने से, सपने और दर्शन आदि के माध्यम से। तत्पश्चात उनके साथ रोटी तोड़ने और उनके साथ रहकर संबंध बनाने और सुसमाचार का प्रचार करने से (लूका 10:1-9)। फिर डिस्कवरी बाइबल स्टडी (डीबीएस) पद्धति यानि छोटे छोटे झुण्ड में बाइबिल अध्ययन के माध्यम से उन्हें परिपक्व करना ताकि वे भी शिष्य बना सकें और कलीसिया रोपण कर सकें (प्रेरितों 17:11)। पौलुस जहां कहीं भी गया, उसने स्थानीय नेतृत्व को खड़ा किया और फिर आगे बढ़ गया । कभी-कभी वह कलीसिया के समस्याओं का समाधान करने के लिए लौटता था लेकिन वह या उसके शिष्य जैसे तीमुथियुस या तीतुस कभी भी स्थानीय कलीसिया के पास्टर नहीं बने (प्रेरितों के काम 15:36)। ये पद्धति अन्य जातियों के मध्य शिष्य बनाने का आन्दोलन शुरू करने का अचूक तरीका है। स्थानीय लोगों को ही तैयार करके उनके बीच भेज देने में अकलमंदी है क्योंकि स्थानीय लोगों को अपने समुदाय की भाषा, संस्कृति, संदर्भ और संस्कृति का ज्ञान होता है जो शिष्य बनाना आसान कर देता है। बाहरी इंसान केवल शिक्षा और दिशा दे सकता है परन्तु स्थनीय अगुवा नहीं बनना चाहिए।

वर्तमान - पिछले 25 वर्षों में दुनिया भर में नए नियम की कलीसिया का तेजी से विकास और गुणन हुआ है, लेकिन विशेष रूप से 10/40 खिड़की  देशों में जैसे चीन (वामपंथी), भारत, नेपाल (हिन्दू), म्यांमार (रोहिंगिया), दक्षिण कोरिया, थाईलैंड, कंबोडिया (बुद्धिस्ट), कई अफ्रीकी देश (जादू टोनहा), क्यूबा ,अर्जेंटीना और होंडुरास जैसे केथोलिक और ईरान जैसे कट्टर मुस्लिम मुल्कों में विस्फोटक विकास का अनुभव कर रहे हैं। बेशक, विकास के साथ उत्पीड़न भी आता है। इन सभी देशों में विकास नए विश्वासियों द्वारा गवाही देने के कारण हुआ है। दुर्भाग्यवश बड़े बड़े पारंपरिक चर्चों ने अक्सर नकारात्मक भूमिका निभाई है। कुछ इसे गृह कलीसिया कहते हैं, जबकि अन्य इसे सिंपल कलीसिया, या ऑर्गेनिक कलीसिया या सेल चर्च कहते हैं, कैथोलिक इसे बेसिक एक्लेसियल कम्युनिटी कलीसिया (BECC) कहते हैं। हिंदी क्षेत्र में इसे उचित रूप से सत्संग (सत्य सभा) कहा जाता है और मुसलमान इसे जमात (सभा) कहतें हैं। यह महत्वपूर्ण संदर्भ है क्योंकि हिंदू और मुसलमान चर्च नहीं जाएंगे, लेकिन वे सहर्ष सत्संग या जमात में चले जाएंगे। इसे नए नियम की कलीसिया कहना सही है क्योंकि तब यह परमेश्वर के वचन पर आधारित होती है।

परिपक्व मसीही या गुनगुने ईसाई - एक शिष्य बनाने वाले आन्दोलन (डीएमएम) को सक्रीय को बनाए रखने के लिए, सभी विश्वासियों द्वारा महान आदेश का पालन किया जाना जरूरी है। प्रभु यीशु ने आज्ञा दी, "मेरे पीछे हो ले, तो मैं तुझे मनुष्यों का  मछुवारा बनाऊंगा" (मत्ती 4:19)। अफसोस की बात है कि अधिकाँश ईसाई प्रभु यीशु के पीछे चलते तो जरूर हैं लेकिन मनुष्यों के मछुआरे नहीं बन पाते, जो उन्हें अपरिपक्व गुनगुने ईसाई बनाता है। पवित्रशास्त्र परिपक्व मसीहियों को उन लोगों के रूप में परिभाषित करता है जो विरोध करने वाले अन्य धर्मों के लोगों को मुहतोड़ जवाब देने में सक्षम होते हैं (तीतुस 1:9)। प्रभु यीशु स्वयं खोई हुई भेड़ों को ढूँढ़ने और बचाने आए थे। इसलिए, हर एक मसीही को स्वेच्छा से खोए हुए को ढूंढ़ने और बचाने का जूनून होना चाहिए। यदि वे ऐसा नहीं करते तो वह स्वयं खो ये हैं। (लूका 19:10)

भविष्य – जैसे जैसे नए नियम की कलीसिया फैलती जा रही है, वैसे ही सताव और उत्पीड़न भी, प्रत्यक्ष और गुप्त दोनों तरह से बढ़ रहा है। इस कारण से आने वाले दशक में, कलीसिया गुप्त और अदृश्य हो जाएंगे और और भी तेज रफ़्तार से बढेंगे। वे छोटे छोटे झुंडो में मिलेंगी, जैसे प्रभु यीशु ने कहा, "जहाँ दो या तीन मेरे नाम से इकट्ठे होते हैं, वहाँ मैं उपस्थित होता हूँ।" (मत्ती 18:18-20)। आज गरीब से गरीब झोपड़ी झुग्गी में रहने वाले घराने जिनके यहाँ शोचालय भी नहीं है लेकिन मोबाइल फ़ोन जरूर है। इसलिए अधिकांश शिष्य बनाने का कार्य डिजिटल कलीसिया द्वारा ही किया जाएगा। विरासत की बड़ी बड़ी कलीसियाएं भीतर से अंतर्कलह के कारण फूट जाएगी क्योंकि उन्होंने अपने दर्शन और महान आदेश को पूरा करने की आज्ञा की अवहेलना की है। "कलीसिया का एकमात्र उद्देश्य आत्माओं को जीतना है" (मत्ती 16:26)। मोहभंग जवान जो बड़ी संख्या में रीति रिवाजी कलीसिया से ऊबकर उसे छोड़ रहैं है लेकिन अपना विश्वास नहीं खो रहें हैं, वे गृह कलीसिया की घनिष्ठता, मित्रता, संगति और सहभागी प्रकृति को पसंद कर रहें हैं। उन्हें इन अत्यंत छोटी छोटी कलीसियाओं में सही शिक्षा, दिशा और जोश से भरे शिष्य का जूनून भरकर दुनिया को परमेश्वर के राज्य में बदलने के लिए भेज दिया जायेगा। बाइबिल कॉलेज अप्रासंगिक होने के कारण बंद हो जायंगे क्योंकि वे महान आदेश के पूर्ति की रणनीति करने के विषय में कुछ नहीं सिखाते और न वे अन्य धर्मों के खोए हुए लोगों को शिष्य बनाने के कौशल सिखाते हैं, वे केवल पुल्पिट से धर्मांतरित लोगों को उपदेश देना सिखाते हैं।

अंत : जल्द ही राज्य का यह सुसमाचार सारे संसार में सभी राष्ट्रों के लिए एक गवाह के रूप में प्रचारित किया जाएगा और तब अंत आ जाएगा (मत्ती 24:14)। प्रभु येशु ने हर एक इंसान के उद्धार के लिए सलीब पर बलिदान हो गए इसलिए एक दिन हर एक घुटना उनके सामने झुकेगा और हर एक जुबान उनकी जय जैकार करेगी। परम प्रधान सृष्टिकर्ता परमेश्वर ने हिंदुओं, मुसलमानों, बौद्धों और अन्य सभी धर्मों के लोगों को अपनी छवि में और अपनी समानता में एक ही खून से बनाया है और अपनी सांस फूकी है, इसलिए वह नहीं चाहता कि कोई भी नाश हो। इसलिए, वह उस दिन की प्रतीक्षा कर रहा है, जब सभी जाति, भाषाएं और गोत्र के लोग उसके सिंहासन के सामने खड़े होंगे। वे सफेद कपड़े पहने हुए और अपने हाथों में खजूर की डालियां लिए  हुए और उसकी स्तुति और प्रशंसा करेंगे। (प्रकाशितवाक्य 7:9,10)। फलहीन डगालियाँ काटकर आग में झोंक दी जाएँगी। केवल वे ही लोग जो फलों से लदे हैं, वे पूरब और पश्चिम, उत्तर और दक्षिण के लोगों के साथ शीघ्र आने वाले अनन्त राज्य में प्रवेश करेंगे और प्रभु के साथ एक भव्य भोज का आनंद लेंगे। (यूहन्ना 15:6, 8,16; मत्ती 8:11,12; प्रका.वा. 19:7-9)

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