दो प्रतिद्वन्द्वी राजाओं का दृष्टान्त

दो प्रतिद्वन्द्वी राजाओं का दृष्टान्त सन्दर्भ :- लूका 14ः25-27, 31-32 - ‘‘और जब बड़ी भीड़ उसके साथ जा रही थी, तो उसने पीछे फिरकर उन से कहा। यदि कोई मेरे पास आए और अपने पिता और माता और पत्नी और लड़के वालों और भाइयों और बहिनों बरन अपने प्राण को भी अप्रिय न जाने, तो वह मेरा चेला नहीं हो सकता। और जो कोई अपना क्रूस न उठाए; और मेरे पीछे न आए; वह भी मेरा चेला नहीं हो सकता। या कौन ऐसा राजा है, कि दूसरे राजा से युद्ध करने जाता हो, और पहिले बैठकर विचार न कर ले कि जो बीस हजार लेकर मुझ पर चढ़ा आता है, क्या मैं दस हजार लेकर उसका साम्हना कर सकता हूं, कि नहीं ? नहीं तो उसके दूर रहते ही, वह दूतों को भेजकर मिलाप करना चाहेगा।’’ प्रस्तावना एवं पृष्ठभूमि :- यह दृष्टान्त भी प्रभु यीशु मसीह ने गलील से यरूशलेम जाते समय सुनाया। उसके पीछे बड़ी भीड़ थी जो उसे सांसारिक राजा बनाना चाहती थी। लोग सोचते थे कि इस राजा के द्वारा उन्हें रोमी साम्राज्य के अत्याचारों से मुक्ति मिलेगी। उन्हें प्रभु यीशु मसीह के पीछे चलने का वास्तविक अर्थ नहीं मालूम था। प्रभु यीशु मसीह बड़ी भीड़ और स्वयं के जय जयकार के नारों से जरा भी प्रभावित नह...