आदम को परमेश्वर ने क्या क्या दिया

आदम की स्रष्टि उत्पत्ति 1: 27; उत्पत्ति 2:4-25

तब परमेश्‍वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार उत्‍पन्‍न किया, अपने ही स्वरूप के अनुसार परमेश्‍वर ने उसको उत्‍पन्‍न किया; नर और नारी करके उसने मनुष्यों की सृष्टि की।

(मत्ती 19:4, मर. 10:6, प्रेरि. 17:29, 1 कुरि. 11:7, कुलु. 3:10,1, तीमु. 2:13)

आदम को बनाए जाने का उद्देश्य (उत्पत्ति 1:26,28)

फिर परमेश्‍वर ने कहा, "हम मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार अपनी समानता में बनाएँ; और वे समुद्र की मछलियों, और आकाश के पक्षियों, और घरेलू पशुओं, और सारी पृथ्वी पर, और सब रेंगनेवाले जन्तुओं पर जो पृथ्वी पर रेंगते हैं, अधिकार रखें।" और परमेश्‍वर ने उनको आशीष दी; और उनसे कहा, "फूलो-फलो, और पृथ्वी में भर जाओ, और उसको अपने वश में कर लो; और समुंद्र की मछलियों, तथा आकाश के पक्षियों, और पृथ्वी पर रेंगनेवाले सब जन्तुओं पर अधिकार रखो।"

आदम को परमेश्वर ने जीवन का श्‍वास दिया

तब यहोवा परमेश्‍वर ने आदम को भूमि की मिट्टी से रचा, और उसके नथनों में जीवन का श्‍वास फूँक दिया; और आदम जीवित प्राणी बन गया। (1 कुरि. 15:45)

आदम को परमेश्वर ने दिन (सूर्य) और रात (चाँद), तारागण दिया (उत्पत्ति 1:3-5)

तब परमेश्‍वर ने कहा, "उजियाला हो," तो उजियाला हो गया। और परमेश्‍वर ने उजियाले को देखा कि अच्छा है; और परमेश्‍वर ने उजियाले को अंधियारे से अलग किया। और परमेश्‍वर ने उजियाले को दिन और अंधियारे को रात कहा। तथा सांझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार पहला दिन हो गया। 

आदम को परमेश्वर ने आकाश दिया (उत्पत्ति 1:6-8)

फिर परमेश्‍वर ने कहा, "जल के बीच एक ऐसा अन्तर हो कि जल दो भाग हो जाए।" तब परमेश्‍वर ने एक अन्तर करके उसके नीचे के जल और उसके ऊपर के जल को अलग-अलग किया; और वैसा ही हो गया। और परमेश्‍वर ने उस अन्तर को आकाश कहा। तथा सांझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार दूसरा दिन हो गया। 

आदम को परमेश्वर ने सूखी भूमि (पृथ्वी) और समुद्र दिया (उत्पत्ति 1:9-10)

फिर परमेश्‍वर ने कहा, "आकाश के नीचे का जल एक स्थान में इकट्ठा हो जाए और सूखी भूमि दिखाई दे," और वैसा ही हो गया। (2 पत. 3:5) और परमेश्‍वर ने सूखी भूमि को पृथ्वी कहा, तथा जो जल इकट्ठा हुआ उसको उसने समुद्र कहा; और परमेश्‍वर ने देखा कि अच्छा है ।

आदम को परमेश्वर ने हरी घास, छोटे-छोटे पेड़, फलदाई वृक्ष दिया (उत्पत्ति 1:11-12)

फिर परमेश्‍वर ने कहा, "पृथ्वी से हरी घास, तथा बीजवाले छोटे-छोटे पेड़, और फलदाई वृक्ष भी जिनके बीज उन्हीं में एक-एक की जाति के अनुसार होते हैं पृथ्वी पर उगें," और वैसा ही हो गया। (1 कुरि. 15:38)

इस प्रकार पृथ्वी से हरी घास, और छोटे-छोटे पेड़ जिनमें अपनी-अपनी जाति के अनुसार बीज होता है, और फलदाई वृक्ष जिनके बीज एक-एक की जाति के अनुसार उन्हीं में होते हैं उगें; और परमेश्‍वर ने देखा कि अच्छा है।

आदम को परमेश्वर ने प्रकाश देनेवाली बड़ी ज्योति, छोटी ज्योति, तारागण को दिया (उत्पत्ति 1:14-18) 

दिन (Day), रात (Night), चिन्हों Symbols , नियत समयों (Tims) , दिनों, और वर्षों  Years को दिया 

फिर परमेश्‍वर ने कहा, "दिन को रात से अलग करने के लिये आकाश के अन्तर में ज्योतियों हों; और वे चिन्हों, और नियत समयों, और दिनों, और वर्षों के कारण हों; और वे ज्योतियाँ आकाश के अन्तर में पृथ्वी पर प्रकाश देनेवाली भी ठहरें," और वैसा ही हो गया। तब परमेश्‍वर ने दो बड़ी ज्योतियाँ बनाईं; उनमें से बड़ी ज्योति को दिन पर प्रभुता करने के लिये, और छोटी ज्योति को रात पर प्रभुता करने के लिये बनाया; और तारागण को भी बनाया। परमेश्‍वर ने उनको आकाश के अन्तर में इसलिए रखा कि वे पृथ्वी पर प्रकाश दें, तथा दिन और रात पर प्रभुता करें और उजियाले को अंधियारे से अलग करें; और परमेश्‍वर ने देखा कि अच्छा है।

आदम को परमेश्वर ने  समुद्र के जल के जीवित प्राणि, आकाश के पक्षी को दिया (उत्पत्ति 1:19-22)

तथा सांझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार चौथा दिन हो गया। फिर परमेश्‍वर ने कहा, "जल जीवित प्राणियों से बहुत ही भर जाए, और पक्षी पृथ्वी के ऊपर आकाश के अन्तर में उड़ें।" इसलिए परमेश्‍वर ने जाति-जाति के बड़े-बड़े जल-जन्तुओं की, और उन सब जीवित प्राणियों की भी सृष्टि की जो चलते-फिरते हैं जिनसे जल बहुत ही भर गया और एक-एक जाति के उड़नेवाले पक्षियों की भी सृष्टि की; और परमेश्‍वर ने देखा कि अच्छा है। परमेश्‍वर ने यह कहकर उनको आशीष दी*, "फूलो-फलो, और समुद्र के जल में भर जाओ, और पक्षी पृथ्वी पर बढ़ें ।"

आदम को परमेश्वर ने  घरेलू पशु, रेंगनेवाले जन्तु, पृथ्वी के वन पशु को दिया  (उत्पत्ति 1:23-25)

तथा सांझ हुई फिर भोर हुआ । इस प्रकार पाँचवाँ दिन हो गया। फिर परमेश्‍वर ने कहा, "पृथ्वी से एक-एक जाति के जीवित प्राणी, अर्थात् घरेलू पशु, और रेंगनेवाले जन्तु, और पृथ्वी के वन पशु, जाति-जाति के अनुसार उत्‍पन्‍न हों," और वैसा ही हो गया । इस प्रकार परमेश्‍वर ने पृथ्वी के जाति-जाति के वन-पशुओं को, और जाति-जाति के घरेलू पशुओं को, और जाति-जाति के भूमि पर सब रेंगनेवाले जन्तुओं को बनाया; और परमेश्‍वर ने देखा कि अच्छा है ।

आदम को परमेश्वर ने अदन में वृक्ष, जो देखने में मनोहर और जिनके फल खाने में अच्छे हैं दिया

और यहोवा परमेश्‍वर ने भूमि से सब भाँति के वृक्ष, जो देखने में मनोहर और जिनके फल खाने में अच्छे हैं, उगाए, और वाटिका के बीच में जीवन के वृक्ष को और भले या बुरे के ज्ञान के वृक्ष को भी लगाया । (प्रका. 2:7, प्रका. 22:14)

आदम को परमेश्वर ने एक महानदी दिया (उत्पत्ति 2:10)

उस वाटिका को सींचने के लिये एक महानदी अदन से निकली और वहाँ से आगे बहकर चार नदियों में बँट गई। (प्रका. 22:2)

पहली नदी दिया जिसमे सोने, मोती और सुलैमानी पत्थर है (उत्पत्ति 2:11)

पहली नदी का नाम पीशोन है, यह वही है जो हवीला नाम के सारे देश को जहाँ सोना मिलता है घेरे हुए है। उस देश का सोना उत्तम होता है; वहाँ मोती और सुलैमानी पत्थर भी मिलते हैं।

पिशोन शब्द का अर्थ है " छलांग लगाना " और यह संभवतः नदी के भौतिक वर्णन से आया है । नदी अशांत, टेढ़ी-मेढ़ी या खड़ी रही होगी और झरनों और भंवरों से भरी रही होगी। पिशोन को हवीला की भूमि के चारों ओर बहने वाला बताया गया है ।

दूसरी नदी गीहोन दिया  (जिसमे कूश देश) दिया (उत्पत्ति 2:13)

और दूसरी नदी का नाम गीहोन है; यह वही है जो कूश के सारे देश को घेरे हुए है ।

( एस्तेर 1:1: अय्यूब 28:18; यहेजकेल 29:9; यशायाह 43:3; याकूब को दिया )

( अवलोकन । नाम (हिब्रू Gīḥonn גיחון) की व्याख्या " आगे फूटना, फूटना " के रूप में की जा सकती है। जेनेसिस के लेखक ने गिहोन को "कुश की पूरी भूमि को घेरने" के रूप में वर्णित किया है, यह नाम बाइबिल में कहीं और इथियोपिया प्रेरितों के काम 8:26-40 खोजा से जुड़ा है । ) 

तीसरी नदी हिद्देकेल दिया  (उत्पत्ति 2:14)

और तीसरी नदी का नाम हिद्देकेल है; यह वही है जो अश्शूर के पूर्व की ओर बहती है । 

( हिद्देकेल का हिब्रू अर्थ क्या है ? : हिद्देकेल, हिड'-डे-केल (हिब्.) -- तीव्र प्रचारक; सार्वभौमिक जनरेटिव तरल पदार्थ; शीघ्र बहने वाला; तेज़ धारा; तीव्र आध्यात्मिक प्रवाह . ईडन गार्डन की चार नदियों में से एक। यह टाइग्रिस (जनरल) जैसी ही नदी है । )

और चौथी नदी का नाम फरात है । (उत्पत्ति 2:14) : जॉन के सर्वनाश में, चार स्वर्गदूत फ़रात में बंधे हैं, और जब अंत निकट होगा, तो उन्हें रिहा कर दिया जाएगा (प्रकाशितवाक्य 9:14)। प्रकाशितवाक्य 16:12 में एक और स्वर्गदूत नदी को सुखा देगा ताकि "पूर्व के राजाओं के लिए मार्ग तैयार किया जा सके" प्रकाशितवाक्य 16:12

छठवें स्वर्गदूत ने अपना कटोरा महानदी फरात पर उण्डेल दिया और उसका पानी सूख गया कि पूर्व दिशा के राजाओं के लिये मार्ग तैयार हो जाए। (यशायाह. 44:27; प्रकाशितवाक्य 16:12)।

यिर्मयाह 51:36: इसलिए यहोवा कहता है, "मैं तेरा मुकद्दमा लड़ूँगा और तेरा बदला लूँगा। मैं उसके ताल को और उसके सोतों को सूखा दूँगा; (प्रका. 16:12) 15

आदम को परमेश्वर ने अदन की वाटिका दिया (उत्पत्ति 2:15)

तब यहोवा परमेश्‍वर ने आदम को लेकर* अदन की वाटिका में रख दिया, कि वह उसमें काम करे और उसकी रखवाली करे।

आदम को सबका नाम रखने का अधिकार परमेश्वर ने दिया (उत्पत्ति 2:19,20) 

और यहोवा परमेश्‍वर भूमि में से सब जाति के जंगली पशुओं, और आकाश के सब भाँति के पक्षियों को रचकर आदम के पास ले आया कि देखे, कि वह उनका क्या-क्या नाम रखता है; और जिस-जिस जीवित प्राणी का जो-जो नाम आदम ने रखा वही उसका नाम हो गया।

अतः आदम ने सब जाति के घरेलू पशुओं, और आकाश के पक्षियों, और सब जाति के जंगली पशुओं के नाम रखे; परन्तु आदम के लिये कोई ऐसा सहायक न मिला जो उससे मेल खा सके।

आदम को परमेश्वर ने पत्नी दिया उसका नाम आदम ने रखा (उत्पत्ति 2:18,21-23)

फिर यहोवा परमेश्‍वर ने कहा, "आदम का अकेला रहना अच्छा नहीं; मैं उसके लिये एक ऐसा सहायक बनाऊँगा जो उसके लिये उपयुक्‍त होगा।" तब यहोवा परमेश्‍वर ने आदम को गहरी नींद में डाल दिया, और जब वह सो गया तब उसने उसकी एक पसली निकालकर उसकी जगह माँस भर दिया। और यहोवा परमेश्‍वर ने उस पसली को जो उसने आदम में से निकाली थी, स्त्री बना दिया; और उसको आदम के पास ले आया। (1कुरि. 11:8,9;1तीमु.2:13)

तब आदम ने कहा, "अब यह मेरी हड्डियों में की हड्डी और मेरे माँस में का माँस है; इसलिए इसका नाम नारी होगा, क्योंकि यह नर में से निकाली गई है।" इस कारण पुरुष अपने माता-पिता को छोड़कर अपनी पत्‍नी से मिला रहेगा और वे एक ही तन बने रहेंगे। आदम ने अपनी पत्‍नी का नाम हव्वा रखा; क्योंकि जितने मनुष्य जीवित हैं उन सब की मूलमाता वही हुई। (उत्पत्ति 3:20; मत्ती 19:5, मरकुस 10:7,8, इफिसियों 5:31)

आदम के पास कपडे नहीं थे उन्हें परमेश्वर ने कपडे दिए (उत्पत्ति 2:25; उत्पत्ति 3:21)

आदम और उसकी पत्‍नी दोनों नंगे थे, पर वे लज्‍जित न थे।

और यहोवा परमेश्‍वर ने आदम और उसकी पत्‍नी के लिये चमड़े के वस्‍त्र बनाकर उनको पहना दिए।

आदम को भोजन दिया (उत्पत्ति 1: 29,30)

फिर परमेश्‍वर ने उनसे कहा, "सुनो, जितने बीजवाले छोटे-छोटे पेड़ सारी पृथ्वी के ऊपर हैं और जितने वृक्षों में बीजवाले फल होते हैं, वे सब मैंने तुमको दिए हैं; वे तुम्हारे भोजन के लिये हैं; (रोमियों 14:2) और यहोवा परमेश्‍वर ने आदम को यह आज्ञा दी, "तू वाटिका के किसी भी वृक्षों का फल खा सकता है; (उत्पत्ति 2:16)

पशु, पक्षी, जंतु सबके लिए भोजन दिया (उत्पत्ति 1:30)

और जितने पृथ्वी के पशु, और आकाश के पक्षी, और पृथ्वी पर रेंगनेवाले जन्तु हैं, जिनमें जीवन का प्राण हैं, उन सबके खाने के लिये मैंने सब हरे-हरे छोटे पेड़ दिए हैं," और वैसा ही हो गया ।

आदम को परमेश्वर ने चेतावनी भी दिया  : (उत्पत्ति 2:17) : पर भले या बुरे के ज्ञान का जो वृक्ष है, उसका फल तू कभी न खाना: क्योंकि जिस दिन तू उसका फल खाएगा उसी दिन अवश्य मर जाएगा ।"

आदम कितने वर्ष तक जीवित रहा ?

उत्पत्ति 5:1-17 : शेत के जन्म के पश्चात आदम आठ सौ वर्ष जीवित रहा, और उसके और भी बेटे बेटियां उत्पन्न हुईं । और आदम की कुल अवस्था नौ सौ तीस वर्ष की हुई: तत्पश्चात वह मर गया ।


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