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Showing posts from August, 2023

Church Planters & Prayer Warriors

Dear church planters in the Lord, my loving greetings to the world peace ambassadors, Hail Christ in the Lord. I have been a prayer warrior in India for almost 20 years, born in a house church, an apostle, and come from a village background family. my mother tongue in Hindi, I was born in Christ in 1994, today I am living in the house church and the Great Order, seeing the Spirit of the Lord. I am fully involved in church planting and I need your support. Because there are many Christian missions in India but they are not working outside their community, caste group. But he is busy in his own community, that's why there is persecution on him in large numbers in India. But the house church today is growing rapidly. We are still far behind in building the house church. Because there is no one in India to work with the house church, those who are working are confined to the office. And the condition of the house church is very bad because the house church in India is far from the mai...

मानव संसाधन प्रबंधन के लिये यीशु का तरीका

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मिशन या उद्देश्य की घोषणाः एक चर्च या कलीसिया जो अपने उद्देश्य/अभिप्राय को नहीं पहिचानती और उसे स्पष्ट शब्दों में परिभाषित नहीं करती, वह अभिप्राय रहित कलीसिया है। अपनी सेवकाई के बिलकुल प्रारम्भ में ही यीशु ने सार्वजनिक रीति से अपने मिशन/उद्देश्य की घोषणा कर दिये थे। उन्हें यहां अत्याचार से दबे लोगों को स्वतंन्त्र करने और आत्मिक रूप से अंधों को सुसमाचार के द्वारा दृष्टि प्रदान करके पूरे विश्व को बदलने के लिये विशेष प्रतिभाशाली व्यक्तियों की आवश्यक्ता थी। ( लूका 4ः18,19; रोमियों 12ः2 )  विश्व बदलने वालों के लिये प्रतिभाशाली व्यक्तियों की खोजः व्यापारिक लोग अपने कार्य के लिये बहुत प्रतिभाशाली व्यक्तियों की भरती करते हैं। कोई अगुवा अपनी कम्पनी के लिये यदि कोई बड़ा महत्वपूर्ण काम कर सकता है तो वह यह होगा कि वह उसमें सबसे अच्छे प्रबन्धन स्कूल से प्रशिक्षित व्यक्तियों को भरती कर दे। यहूदी लोग विश्व के सबसे पढ़े लिखे लोग थे। 2000 वर्ष पूर्व भी उनमें साक्षरता की दर लगभग 100 प्रतिशत थी, क्योंकि प्रत्येक यहूदी बच्चे को मदरसा जाना पड़ता था जहां रब्बी उन्हें पढ़ाना लिखना सिखाते थे। यहूदी लोग...

प्रार्थना करनेवाली इक्लीसिया

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प्रार्थना करो, घोषणा करो और अधिकार (कब्जा) करलोः परमेश्वर ने आज्ञा दिये हैं, ‘‘यदि मेरे लोग प्रार्थना करें, तो मैं उनके देश को ज्यों का त्यों (चंगा) कर दूंगा’’ ( 2इतिहास 7ः14) । यीशु ने पुनः इस बात को दृढ़ किये कि, ‘‘मेरा घर जातियों के लिये प्रार्थना का घर कहलाएगा’’ ( मरकुस 11ः17 )। उन्होेंने इतनी लौ लगाकर प्रार्थना किये कि उनका पसीना, खून के समान बन गया। पतरस ने घोषणा किये थे कि उनकी मुख्य सेवकाई प्रार्थना करना और वचन अध्ययन होगा ( प्रेरितों के काम 6ः4 )। पौलूस ने लोगों के लिये, मां की तरह जच्चा की सी पीड़ाएं सहा, जब तक कि उनमें मसीह का स्वरूप नहीं बन गया ( गलतियों 4ः19 )। उसने हमसे कहा है, निरन्तर प्रार्थना में लगे रहो ( 1थिस्सलुनीकियों 5ः17 )। हम सब जानते हैं कि धर्मीजन की लौ लगाकर की जाने वाली सरगर्म प्रार्थना प्रभावी होती है, और बहुत कुछ प्राप्त कर सकती है ( याकूब 5ः16 )। क्योंकि नये नियम की इक्लीसिया बहुत अधिक सताई जा रही थी, उसने अपना अधिक से अधिक समय गिड़गिड़ाहट से भरी प्रार्थनाओं में बिताया, और जब वे प्रार्थना कर रहे थे बहुत से लोग उनमें आ मिले और इक्लीसिया बहुत तेजी से बढ़ती गई (...

इक्लीसिया के कार्य

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ग्रेगोरी ने आराधना को बिलकुल गड़बड़ बना दियाः यह रूचिकर है कि नये नियम में विश्वासीगण कभी भी सिर्फ आराधना करने के लिये जमा नहीं होते थे और वे अपनी गवाहियों को आपस में बांटते थे, वचन का मनन करते थे, प्रार्थना करते थे और मिल बांटकर साधारण भोजन करके सहभागिता संगति लेते थे। छटवीं शताबदी में पोप ग्रेगोरी आई (I) ने जो एक सनुशासन प्रिय व्यक्ति था, घरेलू स्वेच्छिकता और खुलेपन को अच्छा नहीं माना जैसा कि बहुत से अगुवे करते हैं, वह चर्च को नियंत्रित करना चाहता था, इसलिये उससे ‘‘आराधना का क्रम ‘‘बनाया जिसमें पहले गीत तब धर्मशास्त्र के चुने हुए पाठों को पढ़ना, इसके बाद संदेश, और सूचनांए, चंदा, और तब अतं में आशीर्वाद। ग्रेगोरी के आराधना का सुधारा गया स्वरूप जिसका कोई बाइबिल आधार नहीं है, सभी चर्च मण्डलियों में पालन किया जाता है बिरले ही कुछ झुण्ड हैं जो इसे नहीं मानतें है जैसे क्वेकर्स। इस प्रकार की आराधना आपको ‘‘क्रमबद्धता‘‘ की अनुभूति तो देती है, परन्तु इससे कोई उपलब्धि नहीं, प्राप्त होती; जबकि हो सकता है कि घरेलू इक्लीसिया की आराधना बेसिलसिलेवार और अव्यवस्थित मालूम पड़ती हो परन्तु वह बहुत फलदायक होत...