Posts

Showing posts from July, 2023

महिलाएं और इक्लीसिया

Image
 महिलाएं और इक्लीसिया यीशु ने महिला शिष्य क्यों नहीं चुनेः बहुत लोग इसे संस्कृति से जुड़ा विषय मानते हैं। परन्तु यीशु कभी भी यहूदी संस्कृति के द्वारा निरूत्साहित नहीं हुए। उन्होंने सामरी स्त्री से बातचीत की और बाद में उनके गांव में ठहरे भी थे। यीशु ने एक फरीसी के घर में एक वेश्या को अपने पांवों को भी चूमने दिया। सिनेगॉग के मध्य में उसने एक कुबड़ी स्त्री को सामने लाकर सीधी खड़ी कर दिया। ये सारी बातें यहूदी संस्कृति के विरूद्ध थीं। महिला शिष्य नहीं चुनने के द्वारा यीशु केवल एक आदर्श रख रहे हैं, ‘‘अपने ही लिंग के शिष्य बनाने का’’। पौलूस ने इसका अनुकरण किया जब उसने महिला प्राचीनों को जवान स्त्रियों को तैयार करने के कहा ( तीतुस 2ः3-5 )। यदि हम इस आदर्श के अनुसार चलें तो हम इक्लीसिया में बहुुत सी उगंली उठाए जाने वाली बातों को और कामुकता के कार्यों को रोक सकते हैं।  महिलाएं मूल इक्लीसिया की संस्थापकः अपने जी उठने के बाद यीशु ने जो पहिला कार्य किये वह यह था कि उन्होंने एक स्त्री से कहा कि ‘‘जा और भाईयों से कह’’। उसी समय से स्त्रियां पूरे विश्व में भाईयों को शुभ संदेश देने में सबसे आगे ...

प्रेरितीय सेवकाई!

Image
 प्रेरितीय सेवकाई! यीशु शान्ति के सबसे बड़े प्रेरितः प्रेरित शब्द का अर्थ है ‘‘भेजा हुआ जन,‘‘ एक संदेश वाहक’’ या ‘‘एक राजदूत’’। प्रभु स्वंय एक प्रेरित के सबसे अच्छे आदर्श हैं (इब्रानियों 3ः1)। उनके सभी बारह चेले प्रतिष्ठित प्रेरित बने और उनके नाम नये यरूशलेम की नेव पर लिखे हुए हैं (प्रकाशित वाक्य 21ः14)।  बहुत से लोग ऐसा सोचते है कि बारह, प्रेरितों के मरने के साथ ही यह प्रेरितीय सेवकाई समाप्त हो गई है, परन्तु नये नियम में कम से कम बाईस प्रेरितों के नाम दिये गये हैं और उनमें से एक यूनियास (Junia) स्त्री थी (रोमियों 16ः7)। यीशु के र्स्वारोहण के समय बारहों के अलावा यीशु और भी दूसरे प्रेरितों द्वारा देखे गए थे जो 500 ‘‘भाईयों’’ या ‘‘सहोदरों‘‘ में से थे। पौलूस उनमें छोटों में से भी छोटा था (1कुरिन्थियो 15ः5-7)। आज उनसे कहीं अधिक प्रेरित हैं, जितने कलीसिया के इतिहास में कभी नहीं हुए। साधारण शब्दों में एक प्रेरित वह है जो न केवल परमेश्वर के संदेश को पंहुचाता है, परन्तु वह बढ़ते जाने वाली इक्लीसियाओं की स्थापना भी करता है। पुरूष हो या स्त्री वे रणनीतिकार और अशान्ति को दूर करने वाले भी ह...

भारतीय कलीसिया एवं चर्च के इतिहास की कुछ झलकियां!

Image
 भारतीय  कलीसिया / चर्च के इतिहास की कुछ झलकियां! परमेश्वर ने भारत में एक मंच स्थपित कियेः 4000 वर्ष पूर्व इब्राहिम ने कतूरा से विवाह किया और उसकी और भी रखैलियां थीं, जिनके बच्चों को उसने पूर्व की ओर भेज दिया, हम ऐसा विचार कर सकते हैं कि उनमें से कुछ भारत आए (उत्पत्ति 21ः1-6)। ईसा से पूर्व पांचवी शताब्दी में, रानी एस्तर और फारस के राजा अर्तक्षत्र ने भारत से लेकर कूश देश तक राज्य किया। अर्तक्षत्र ने मोर्दकै नाम के एक उत्साही यहूदी को प्रधान मंत्री नियुक्त किया। उसने प्रशासनिक अधिकारियों को भारत भेजा (एस्तर 1ः1; 8ः9,17; 9ः16)। पुरीम के दिन यहूदियों के द्वारा 75000 लोग मारे गए थे।  हम नहीं जानते कि भारत में कितने लोग मारे गए थे, परन्तु भारत में असुर लोग काफी भयभीत थे। इस समयावधी में बहुत से सिनेगॉग (यहूदियों के आराधनालय) स्थापित किये गये जो बाद में स्मारकों में बदल दिये गए। रामाह , विष्णु (Ish Nu - ईश नू = नूह), कृष्णा (कूशी भाषा का शब्द जिसका अर्थ है = काला), ब्रम्हा  (A-Braham अ-ब्राहम), शिवा (इब्रानी भाषा में इसका अर्थ = सात है और संस्कृत में = शुभ) (2शमूएल 20ः25)...