स्वतन्त्र जीवन के लिये परमेश्वर की सामर्थ

 स्वतन्त्र जीवन के लिये परमेश्वर की सामर्थ

भूमिका

प्रभु में प्रिय सुसमाचार प्रचार सेवक गण, मैं प्रभु यीशु मसीह को धन्यवाद देता हूँ कि मुझे एक अति पुराना मसीही लेख मिला। यह लेख विशेषकर नये मसीही विश्वासियों के लिए लिखा गया है। नये मसीही विश्वासियों को किस तरह बाइबल की शिक्षा देना है, ताकि उनका मसीह यीशु पर विश्वास लाना व्यर्थ नहीं है। यीशु मसीह को ठीक ठीक जानने के लिये बाइबल पढ़ना कहां से आरंभ करें? मसीही बपतिस्मा क्या है? उसका आत्मिक भेद क्या है? बाइबल पढ़ना और निरन्तर प्रार्थना करना क्यों आवश्यक है? कलीसिया (चर्च/मंडली) का चुनाव और उसका आत्मिक भेद इत्यादि आत्मिक शिक्षांए सात मुख्य पाठो में बांटा गया है। 

अफसोस इस बात का है कि इस लेख का नाम और लिखने वाले लेखक का नाम नहीं बता सकेंगे। क्योंकि लेख का मुख्य पृष्ट पुरी तरह नष्ट हो चुका है। लेख के पन्ने ऐसे कमजोर हो गए है, कि यदि उन्हें सावधानी पूर्वक उपयोग में न लाया गया तो वे भी नष्ट हो जांएगे मेरा आप सभों से अनुरोध है कि यह हाथों से लिखा लेख प्रार्थना के साथ पढ़े, जिससे कि नये नये आत्कि भेद खोले जांए। 

प्रथम संस्करण 

जुन वर्ष 2023                                                                                                                                    धन्यवाद 

प्रभु में आपका

नेलसन सिंग 

स्वंय सेवकीय सुसमाचार सेवांए


कोई आपसे प्रेम करता है

यदि आप परमेश्वर, मसीहत, अनन्तकाल के विषय में प्रश्न है या आपने हाल ही में यीशु समीह के द्वारा उद्धार पाया है तब यह पुस्तक आपके लिये है।

परमेश्वर आपको वास्तव में प्रेम करता है, और व्यक्तिगत रूप से आपके लिये उसके पास शान्ति उद्धेश्य और भरपुरी है। यह बात सुनकर लगता है, इसका सत्य होना बहुत मुश्किल है, शब्द बिना सच्चाई वाले (कहावत) लगते हैं, फिर भी यह सत्य है, परमेश्वर आपके लिये अनोखी मंजिल है। 

प्रत्येक मनुष्य परमेश्वर के विषय में प्रश्न से या पहले ही उलझा हुआ है, या कभी उलझेगा। ध्यान दे मनुष्य होने के नाते हमारी सृष्टि ऐसी है कि हम परमेश्वर को खोजेंगे। फिर भी हम ‘‘खोज’’ से कहीं अधिक बढ़कर कुछ कर सकते हैं, हम पा सकते हैं। परमेश्वर के पास एक योजना है। जिसके द्वारा हम उसे जान सकते हैं। उसका नाम है उद्धार (मुक्ति)। 

उद्धार हर एक ग्रहण (स्वीकार) करने वालें के लिये परमेश्वर का दान है। इस दान का बाइबल में कई विभिन्न प्रकार से वर्णन किया गया है। कहीं कहीं पर उसे ‘‘नया जन्म’’ या ‘‘नए सिरे से जन्म’’ लेना कहा गया है। यह दर्शाता है कि जैसे आप शारीरिक रूप से मानवीय परिवार में जन्म लेते हैं। ठीक वैसे ही उद्धार के द्वारा आप आत्मिक रूप से परमेश्वर के परिवार में जन्म लेते है। (यूहन्ना 3ः3)

परमेश्वर के साथ शान्ति स्थापित करने के रूप में भी उद्धार का वर्णन हुआ है। (कुलुस्सियों 1ः20-21) किसी न किसी स्थिती में पहुँचकर परमेश्वर के बिना प्रत्येक मनुष्य को एक आन्तरिक खालीपन अनुभव होता है। मनुष्य की तृप्ति या उद्धेश्य की उस गहरी लालसा के लिये उद्धार परमेश्वर का उत्तर (हल) है। उद्धार परमेश्वर की संगति प्राप्त करते है। (1यूहन्ना1ः3) बहुत लोग परमेश्वर को मात्र एक न्यायकर्ता या दूर रहने वाले दिव्य व्यक्तित्व के रूप में समझते है। परमश्ेवर आपका मित्र बनना चाहता है, और उद्धार ही इस मित्रता की नीव है। 

अनन्त काल का जीवन (रोमियों 6ः23) उद्धार व उसके लाभों का वर्णन करने का दुसरा तरीका है। यह शब्द ‘‘अनन्त काल’’ यह बताता है कि परमेश्वर का दान हमारे सांसारिक अस्तित्व से भी बढ़कर है। यह हमेशा के लिये है। बाईबल कहती है कि परमेश्वर ने मनुष्य के हृदय में अनन्तकालीनता का ज्ञान डाल रखा है। (सभोउदेशक 3ः11) इसलिये प्रत्येक सम्यता में लोग आत्मिक और अनन्त कालीन के विषय में पुछते और भटकते रहे है। 

उद्धार आपको अनन्त काल का निश्चय देता है। जब मसीही आपका उद्धारकर्ता बन जाता है। तब आपकी खोज पुरी हो जाती है। अन्त में आप जो कुछ ढुढ़ रहे होते हो वही पा जाते है - परमेश्वर के साथ। 

उद्धार (मुक्ति) की आपको क्यों आवश्यक्ता है?

सैकड़ो बार मैंने लोंगो को यह कहते सुना ‘‘मैं निश्चित रूप से जानता हूँ कि उद्धार पाना कुछ लोगों के लिये अच्छा है, परन्तु मेरा अपना जीवन अलग है। मेरा अपना धर्म मेरे विचार, वह सब मेरे लिये ठीक है।’’ जबकि बहुत से लोग अनुभव करते है, तो मुझे आपको यह बताने का अधिकार कौन देता है, कि उद्धार पाना प्रत्येक मनुष्य के लिये आवश्यक है।

उद्धार को समझने के लिये, पहले हमें परमेश्वर के लोगों के लिये भुल योजना को समझना होगा। परमेश्वर ने हमें अपने साथ संगति रखने के उद्धेश्य से बनाया। हमारे पास तीन भाग है आत्मा, प्राण और शरीर। हमारी आत्मा हमारा सबसे आन्तरिक भाग है। इसी भाग के पास परमेश्वर को समझने तथा उसके सम्पर्क करने का गुण है। परमेश्वर में विश्वास हमेशा हमारी ‘‘आत्मा’’ से ही आता है। 

प्राण हमारी इच्छा, भावना व मन (बुद्धि) है। बेशक प्रत्येक व्यक्ति यह जानता है कि शरीर क्या है? हम जानवरों से भिन्न है, क्योंकि हम आत्मिक प्राणी हैं। जानवर के पास प्राण होता है। हालांकि वह मनुष्य की भांति विकसित नहीं होता है जानवरों के पास निश्चित रूप से भवनाएँ, इच्छा तथा विभिन्न स्तर पर समझ (बुद्धि) होती है। हम मानव होने के नाते अनोखे हैं। आप कह सकते है कि परमेश्वर को जानने के लिये सक्ष्म, हम आत्मिक प्राणी है। 

जब आदम और हव्वा पहले मानव ने अदन की वाटिका में पाप किया, उनकी आत्माओं में एक खोखलापन बन गया। उनका परमेश्वर के साथ सम्बन्ध मर गया। अब परमेश्वर की उपस्थिति उनके साथ नही रह गई थी (उत्पत्ती अध्याय 3) उन्होंने परमेश्वर की आत्मा को नहीं माना। बाइबल कहती है। ‘‘इसलिये जैसा एक मनुष्य के द्वारा पाप जगत में आया, और पाप के द्वारा मृत्यु आई और इस रीति से मृत्यु सब मनुष्यों में फैल गई, इसलिये कि सब ने पाप किया।’’

यह दुःखद घटना आदम हव्वा के साथ ही नही, परन्तु आने वाली प्रत्येक पीढ़ी के लिये घटी। उनके द्वारा पाप मानव जाति में प्रवेश कर गया। बाइबल आगे कहती है कि ‘‘सब नु पाप किया है, (रोमियों 2ः12) और परमेश्वर की महिमा से रहित हो चुके है। ‘‘कोई धर्मी नही एक भी नहीं है। (रोमियों 3ः10, 23)

परमेश्वर ने मुल रूप से एक सिद्ध संसार रचा था। जिसमें लोग उसके साथ एक रूपता की संगति में रहते थे। शैतान सर्प के रूप में दृश्य में आया, और मनुष्य में चाहते हुए उसकी सलाह को सुना और उसका अनुसारण किया। बाइबल इस प्रकार इस का वर्णन करती है। ‘‘यहोवा परमेश्वर ने जितने भी बनैले पशु बनाए थे, उन सब में सर्प धुर्त्त था। और उसने स्त्री से कहा - क्या यह सच है कि परमेश्वर ने कहा कि तुम इस वाटिका के किसी वृक्ष का फल न खाना। (उत्पत्ती 3ः1)

परमेश्वर के वचन के प्रति अविश्वास पैदा करके शैतान ने आदम और हव्वा को धोखा दिया। पाप के परिणाम भयानक थे, अधिक पाप, पीड़ा अकेलेपन, भय, घृणा, जलन, हत्या, बीमारी, निराशा तथा परमेश्वर से अनन्त काल का अलगाव प्रत्येक नकारात्मक तथा विनाशकारी वस्तु की जड़ पाप है। जब एक बच्चे का जन्म होता है। तो उस बच्चे में पाप की अशुद्धता भी होती है कि ‘‘सबने पाप किया है, और परमेश्वर की महीमा से रहित है। 

इसे ‘‘आत्मिक मृत्यु‘‘ कहते है। मनुष्य अपने अन्दर के खोखलेपन के साथ ही रह गया है। जब एक व्यक्ति ‘‘नए सिरे से जन्मा‘‘ है। उसके विषय में हम शारिरिक जन्म की बात नही, परन्तु ‘‘आत्मिक नए जन्म’’ की बात कर रहे है। मनुष्य का यह भाग उसकी आत्मा जो पाप के कारण परमेश्वर से अलग हो गई है, वह परमेश्वर के अनुग्रह से ‘‘नया जन्म’’ लेती है। ‘‘हम ............. अपराधों के कारण मरे हुए थे, तो हमें मसीह के साथ जिलाया। (इफिसियों 2ः5-8)

पाप की दशा सर्वभौमिक (पुरे संसार की) है, इसलिये उद्धार भी आत्मिक आवश्यक्ताओं वाले चुने हुए विशेष व्यक्तियों के समुह के लिये ही नहीं है। यह निश्चित ही प्रत्येक व्यक्ति के लिये है। हम सभी एक ही नाव (स्थिती) में है।

कोई धर्मी या सिद्ध रूप से जीने के लिये सक्षम नही है। पूरा संसार परमेश्वर के सामने अपराधी है। 

अभी तक मनुष्य की पतित व हीन दशा के विषय में हम पढ़ते हुए आप निराश हो गए होंगे। परन्तु मैं आपको निश्चय दिलाना चाहता हूँ कि हमारा संदेश बुरा नहीं परन्तु ‘‘शुभ संदेश’’ है। और वह ‘‘शुभ संदेश’’ यह है कि परमेश्वर ने एक ऐसा दान किया है। जो मनुष्य का पाप व परमेश्वर से अलगाव की समस्या का समाधान करना है। वह दान उद्धार है। 

आगे पढ़ते रहें और तब आप उद्धार क्या है? यह कैसे कार्य करता है तथा आत उसके लाभों का प्रतिदिन कैसे आनन्द उठा सकते है इत्यादि बातों के विषय में एक दृढ़ नींव व समझ प्राप्त कर सकेगें। 

शास्त्रार्थ

1. उत्पत्ति अध्याय 3

2. राोमियों 2ः12

3. रोमियों 3ः10, 23

4 उत्पत्ति 3ः1

5. इफिसियों 2ः5-8

आपको बचाने के लिए परमेश्वर ने अपना कार्य पहले ही कर दिया है। 

परमेश्वर ने बिना आशाहीन होना मनुष्य की समस्या है। क्योंकि मनुष्य के पास स्वंय को पाप से बाहर निकल सकने की क्षमता नहीं है। बाइबल सिखाती है कि परमेश्वर की व्यवस्था (वचन) को तोड़ना पाप है, जो कि हम जानते है, कि परमेश्वर की दस आज्ञाएं है। प्रत्येक व्यक्ति ने अपने जीवन के किसी न किसी मोड पर परमेश्वर के वचन को तोड़ा है। परमेश्वर की उत्तमता के सामने प्रत्येक व्यक्ति छोटा है। मनुष्य कितना ही कठिन प्रयत्न क्यों न करे, वह सिद्ध जीवन नहीं जी सकता।

एक अपवाद (प्रायश्चित) इस समस्या के लिए समाधान है। किसी ऐसे व्यक्ति की आवश्यक्ता थी। जो निष्पाप हो, जो मानव जाति के लिए एक अपवाद (प्रायश्चित) बनकर बदले में मरने के लिए खड़ा हो सके। कोई भी इसके योग्य नहीं निकला, प्रत्येक महाद्वीप का, जाति का, प्रत्येक प्रकार का विश्वास रखने वाला, प्रत्येक मनुष्य पाप से दूषित था। ध्यान दें, जैसे एक चोर दूसरे चोर के लिए जेल नहीं जा सकता, एक खुनी दूसरे खूनी की सजा नहीं उठा सकता है। उसी प्रकार एक पापी दूसरे पापी की सजा को अपने ऊपर नहीं ले सकता है। 

अब हम संदेश की जड़ तक पहुंचते हैं। ‘‘क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उसने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पांए’’। (यूहन्ना 3ः16)

परमेश्वर मानव जाति की ओर अपनी पीठ पर फेर सकता था। 

वह कह सकता था, ‘‘मैंने आदम और हव्वा को पाप न करने की आज्ञा और अवसर दिया था। परन्तु उन्होंने उसे ठुकरा दिया इसलिये अब उनको भुल जाता है। लेकिन ‘‘शुभ संदेश’’ यह है कि ‘‘परमेश्वर प्रेम है।’’ उसके प्रेम ने उसे ऐसा मार्ग बनाने के लिये विवश कर दिया कि मनुष्य परमेश्वर के साथ मित्रता, संगति व शान्ति में वापस आ सके। 

यीशु परमेश्वर का पुत्र पाप रहित निष्कंलक था। इसलिये वह प्रत्येक के पापों के लिये प्रायश्चित बन गया। जो पाप से अज्ञात था। उसी को उसने हमारे लिये पाप ठहराया कि हम उसमें होकर परमेश्वर की धार्मिकता बन जाए। (2कुरिन्थियों 5ः21)

यीशु ने एक मनुष्य के रूप में जन्म लिया। यह समझ के बाहर एक रहस्य हैं। यीशु एक सम्पूर्ण मनुष्य था। उसके नाम का आर्थ है ‘‘बचाने वाला या छुड़ाने वाला’’। यीशु के रूप में परमेश्वर मानव शरीर में था। अर्थात ‘‘परमेश्वर हमारे साथ‘‘। देखो एक कुंवारी गर्भवती होगी और एक पुत्र जानेगी और उसका नाम इम्मानुएल रखा जाएगा जिसका अर्थ यह है ‘‘परमेश्वर हमारे साथ। (मत्ती 1ः23

स्वर्गदूत ने युसुफ से यीशु की माता मरियम के विषय में कहा ‘‘वह पुत्र जनेगी और तु उसका नाम यीशु रखना, क्योंकि वह अपने लोगों का उनके पापों से उद्धार करेगा’’। (मत्ती 1ः21)

यीशु पृथ्वी पर मनुष्य के रूप में 33 वर्षों से कुछ अधिक समय तक रहा, और उसी समय उसने परमेश्वर को प्रगट किया। ‘‘परमेश्वर ने किस रीति से यीशु नासरी को पवित्र आत्मा और सामर्थ से अभिषेक किया, वह भलाई करता और सब को जो शैतान के सताए हुए थे, अच्छा करता फिरा, क्योंकि परमेश्वर उसके साथ था। (पेरितों के काम 10ः38)

उसका पुरा जीवन भला और सिद्ध था। उसने कभी पाप नहीं किया। उसने सिर्फ जाकर दूसरों को क्षमा किया। उसने बिमारों को चंगा किया। समय समय पर बाइबल इस प्रकार से कहती है..................... और फिर बहुत से लोग उसके पीछे हो लिए, और उसने सब को चंगा किया। फिर भी यीशु सिर्फ सिद्ध भलाई का जीवन जीने और दूसरों की सहायता करने की नहीं, वरन वह मेरे और आपके और उन सभी लोगों के पापों को उठा ले जाने के लिये आया था, जो पैदा भी नहीं हुए थे। वह जो निष्पाप था, हमारे लिये पाप बन गया। जिससे कि हम उसके द्वारा परमेश्वर की धर्मिकता बन जाएं।

यीशु शरीर में आने से पुर्व सात सौ वर्ष पहले यशायाह नाम के एक भविष्यद्वक्ता ने वर्णन किया कि यीशु क्या करेगा। ‘‘वह दुःखी पुरूष था, रोग से उसकी जान पहचान थी, और लोग उससे मुहं लेते थे। वह तुच्छ जाना गया, और हमने उसका मुल्य न जाना। निश्चय उसने हमारे रोगों को सह लिया, और हमरे ही दुःखों को उठा लिया, तौभी हमने उसे परमेश्वर का मारा-कुटा और दुर्दशा में पड़ हुआ समझा। परन्तु वह हमारे ही अपराधों के कारण घायल किया गया, वह हमारे ही अपराधों के कारण घायल किया गया, वह हमारे अधर्म के कार्यो के हेतु कुचला गया हमारी ही शान्ति के लिये उस पर ताड़ना पड़ी, कि उसके कोड़े खाने से हम लोग चंगे हो जाएं।

जब यीशु के सिर पर कांटो का मुकुट रखा गया, लोगों ने उस समय यह अनुभव नहीं किया कि वह संसार के पापों के लिये दुःख उठा रहा है। उन्होंने सोचा कि वह ‘‘परमेश्वर का मारा कुटा’’ था, और उसने कोई बुरा कार्य नही किया था। जिसकी सजा परमेश्वर दे रहा था। निश्चिय ही यीशु ने कुछ भी गलत नही किया था। वह हमारे ही अपराधों के कारण घायल किया गया, वह हमारे ही अधर्म के कार्यो के कारण कुचला गया था। यीशु हमारा प्रायश्चित बना गया। हमारे ही पापों ने ही उसे क्रुस पर ठोंक दिया था। परमेश्वर के न्याय अनुसार हम सभी ने पाप किया। क्रूस और उसके दण्ड के योग्य हम थे, परन्तु यीशु ने हमारा स्थान ले लिया।

यह सुसमाचार हमारे उद्धार का आधार है। हमारे अच्छे कर्म हमारा अच्छा स्वभाव, धर्म के क्रिया कलाप करने के हमारे सारे प्रयास पुरी तरह अनुपयुक्त है। हम स्वंय को भले कार्य के द्वारा बचा नहीं सकते हैं। यीशु ने हमारे अनन्त काल के जीवन के लिये एक भरोसेमंद व पुर्ण नीं को स्थापित किया। क्रूस पर मरने के द्वारा उसने पापों की मजदूरी को अपने ऊपर ले लिया, जो कि मृत्यु है, और फिर विजय में जीवित हो उठा। 

परमेश्वर की स्तुति हो, यीशु आज भी जीवित है। पौलुस ने सुसमाचार का इस प्रकार सारांश दिया। 
.......यीशु मसीह पापों को लिये मर गया, और गाड़ा गया और पवित्र शास्त्र के अनुसार तीसरे दिन जी भी उठा।

शास्त्र से वचन पढे़ः 

(1) यूहन्ना 3ः16
(2) 2कुरिन्थियों 5ः21
(3) मत्ती 1ः23
(4) मत्ती 1ः21
(5) पेरितों के काम 10ः38
(6) मत्ती 12ः15
(7) यशायाह 53ः3-5
(8) 1कुरिन्थियों 15ः3-4

आपका कर्त्तव्य स्वीकार (ग्रहण) करना और अनुकरण करना है। 

उद्धार एक सफल विवाह के समान है। इसके लिये दो व्यक्तियों की आवश्यक्ता है। पुरूष या स्त्री में से एक ही का उत्तेजित होना पर्याप्त नहीं हैं। एक साथी प्रेम और जोश से भरा ही हो सकता है, जबकि दूसरा ठंडा व अलग - थलग हो। निश्चय ही ऐसे से काम नही चलेगा।

यदि आप मनुष्य के प्रेम का आनन्द चाहते है तो आपको यीशु को स्वीकार करना होगा। यह बात परमेश्वर के प्रेम के विषय में भी सत्य है। यीशु ने आपके पापों को उठा लेने के समय जो कुछ किया, उसे आपको स्वेच्छा से स्वीकार करना होगा। अब हम चाहें उसे स्वीकार करें या न करें। उसने यह कार्य हमारे लिये कर दिया है। हम इस बात के प्रति उदासीन रहकर अपने हृदय को खोल सकते हैं। मेरा विश्वास है कि या तो आपने पहले ही अपना प्रभु स्वीकार कर लिया है या फिर आप उसे स्वीकार करना चाहते है। इसलिये आप इस पुस्तक को आपको पढ़ रह हैं। कि यीशु आपके लिये मारा गया, उद्धार प्राप्त करना नहीं है। वह आपके लिये मर कर जी उठा। यह आनन्द और स्वेच्छा से निर्णय लेना एक साक्रामक क्रिया है। 

पुर्णरूप से वापस मुड़ना: उद्धार प्राप्त करने के विषय में कुछ बाइबल मे तरीके बताता हूँ। पहला कारण ‘‘पश्चाताप’’ इसका अर्थ एक व्यक्ति का अपनी असफलताओं तथा पापों के विषय में दुःखी होना या एक भावना की नहीं है। पश्चाताप शब्द और भी गहरा काटता है। इसका अर्थ है पापों से स्वेच्छापुर्वक मुड़ना और यीशु मसीह को अपने जीवन का प्रभु बनाना है। कुछ लोगों के लिये यह विर्फ विचारा धारा है। परन्तु यह विचारधारा से बढ़कर होना चाहिए। पश्चाताप एक सच्चाई होना चाहिए। 

पश्चाताप का अर्थ बाइबल के विरोध में जीने वाली शैली से फिरना, और परमेश्वर के द्वारा दी जाने वाली नयी जीवन शैली को अपनाना है। इसके लिये परमेश्वर के वचन की आज्ञापालन आवश्यक है। इसका अर्थ 180‘ डिग्री (अंश) पर घुम जाना है, अर्थात स्वंय केन्द्रित जीवन से यीशु पर केन्द्रित जीवन व्यतीत करना हे। वह (प्रभु) जो कुछ चाहता है या जो कुछ वह आपके जीवन से चाहता है, उसी का महत्व है। 

परमेश्वर के वचन पर भरोसा रखें।

पश्चाताप के बाद परमेश्वर हमें ‘‘विश्वास’’ करने को कहता है। आधार रूप से, जिन बातों के विषय में हम पिछले अध्ययन में बात चुके हैं। उन्हीं पर विश्वास करना है। विश्वास करे कि यीशु आपके लिये मर गया, जीवित हो गया और आज भी जिन्दा है। बिश्वास करना मानसिक रूप से मान लेने से अधिक बढ़कर है। इसका अर्थ पुरी तरह से मसीह यीशु पर भरोसा रखना है, निर्भर होना है।

किसी और को भी बताएं: उद्धार प्राप्त करने का तीसरा मुद्दा है ‘‘अंगीकार करना’’ कि यदि तु अपने मुंह से यीशु को प्रभु जानकर अंगीकार करे, और अपने मन से विश्वास करे कि परमेश्वर ने उसे मरे हुअें में से जिलाया तो तू निश्चय उद्धार पाएगा’’।

जब आपका मुंह हृदय की कायलता (विश्वास तथा निश्चितता को बोलना है, तब कुछ सामर्थ का कार्य होता है। यह जो कुछ भी आपके हृदय में हुआ है, उसका सर्वजनिक अंगीकार (उद्घोषणा) है।

यदि आपने अपना जीवन प्रभु को दे दिया है, और किसी को अभी तक नहीं बताया है। तो इसी समय किसी को ढूंढ़ निकालें और बताये, कि मसीह ने अपके लिये क्या किया है। जब आप परमेश्वर की दी हुई आज्ञा का पालन करेंगे, तब उसके परिणाम स्वरूप महान आनन्द मिलेगा। मैं धर्म के विषय में वाद-विवाद करने की बात नहीं कह रहा हूँ। परन्तु आप यह बताएं कि यीशु आपके जीवन का उद्धारकर्ता बन गया है, और आपने उसका अनुसारण करने का फैसला कर दिया है। 

जब आप ऐसा बताएंगे, तब कुछ लोग एक से दूसरे धर्म की तुलना करने की बातचीत करना चाहेंगे। इस विषय में मार्ग से न हटें। परन्तु अपने अंगीकार के विषय में बने रहें। जो कि यीशु मसीह का व्यक्तित्व उसका आपके लिये क्या अर्थ है, और उसने आपके लिये क्या किया है। 

यह आनन्द करने का समय है। जिन बातों को मैंने इस अध्याय में आपके बताया है। ‘‘पश्चाताप’’ ‘‘विश्वास’’ और यीशु को ‘‘अंगीकार’’ करना, यदि आप उन्हें कर चुके है, तो आप अपने हाथ को ऊपर उठाकर परमेश्वर को धन्यवाद दे सकते है, कि आपका उद्धार हो चुका है, आप उसकी संतान है, और आपके पास अनन्त जीवन है। 

शास्त्र से वचन पढे़ः 
  1. रामियों 10ः9

अपने लाभों को जानें

जैसे ही आपका उद्धार होगा, आप जल्दी ही अनुभव करेंगे कि आपका कोई शत्रु है अर्थात शैतान आपके ऊपर से उसकी पकड़ समाप्त हो गई है, और यह बात उसे पसन्द नहीं है। यीशु के नाम और परमेश्वर के वचन का प्रयोग करके आप उकसा सामना कर सकते है। और आपके मार्ग में उसके द्वारा फेंकी जाने वाली हर परीक्षा में विजय पा सकते है। जब तक आप न चाहे आपको परमेश्वर के द्वारा दान में दिए गए उद्धार को वह चुरा नही सकता है। इसलिये आप उसे चुराने न दें। 

चुँकी शैतान परमेश्वर के लिए हुए दान को चुरा नहीं सकता हे। इसलिये वह उस दान के विषय में आपको धोखा देने की कोशिश करेगा। वह दान कितना बड़ा है। वह आपके सामने उसे उससे छोटा बनाने की कोशिश करेगा, इसलिये आपको यह जानना बहुत ही आवश्य है। कि उद्धार से मिलने वाले हाथ क्या हैं।

सबसे पहली और आवश्यक बात यह है कि आपके पास क्षमा हो चुके है। बाईबल कहती है। ‘‘सो अब जो मसीह यीशु में है, उन पर दण्ड की आज्ञा नहीं, क्योंकि वे शरीर के अनुसार नहीं, वरन आत्मा के अनुसार चलते है।

आपके जीवन में जो कुछ भी हो चुका है। आपने जो कुछ भी गलतियां की थीं। अब वे क्षमा हो चुकी है परमेश्वर उन्हें याद नही करता। सो आप उन्हें क्यों याद करें। एक आश्चर्य कर्म हुआ है। आपका नाम स्वर्ग में जीवन की पुस्तक में लिखा जा चुका है। आप मृत्यु से जीवन में प्रवेश कर चुके है। एक राज्य से दुसरे राज्य में आपका तबादला हो चुका है। अन्धकार के साम्राज्य से यीशु मसीह के साम्राज्य में । 

अब आप दूसरे देश में प्रवेश करने पर जए नियमों के आधीन हो जाते है। ठी उसी प्रकार अब आप परमेश्वर के लाभों और नियमों के आधीन है। अब आपको हीन भावना और भय में जीने की आवश्यक्ता नहीं है। मैं आपको उत्साहित करता हूं कि प्रतिदिन कुछ क्षण लेकर आप इस स्वतंत्रता के लिये परमेश्वर की स्तुति करें। 

आपके शरीर के लिये चंगाई - 

अब आपके पास की क्षमा ही नहीं परन्तु चंगाई भी है। जब यीशु क्रूस पर मरा उसने आपके पाप को ही नहीं, परन्तु आपके रोगों को उठा लिया।

‘‘यीशु ने ............. आप हमारी दुर्बलताओं को ले लिया और हमारी बीमारियों को उठा लिया।’’

यीशु आपके पापों को ही नहीं, परन्तु बीमारियों का प्रतिस्थानक (एवजी) भी बन गया। आपके जीवनं पर जब कभी बीमारियों तथा दर्दों का किसी भी रूप में हमला हो, आपके पास चंगाई के लिये परमेश्वर के पास जाने का पुरा (वैधानिक) अधिकार है। परमेश्वर हमारे ‘‘सारे अधर्मो’’ की क्षमा करता है, और सारे ‘‘रोगो को चंगा करता है।’’ चाहे सामान्य जुरगम हो, कैंसर हो या किसी भी प्रकार की मानवीय पीड़ा क्यों न हो, उसमें सभी कुछ सम्मिलित है।

हमारे पास इस विषय में परमेश्वर की प्रतिक्षाएं ही नहीं है, परन्तु हमने हजारों ऐसी घटनाओं को देखा है, जिनमें लोग उन रोगों से इश्वरीय चंगाई पा चुके है, जिनके लिये डाक्टरों ने भी आशा छोड़ दी थी। क्यों इस महान लाभ के लिये, जो कि आपके शरीर की चंगाई है। कुछ क्षण परमेश्वर की महिमा करें।

स्वतंत्र जीवन के लिये सामर्थ:

उद्धार दुष्ट बन्धनों से छुटकारा और आजादी दिलाता है। कभी - कभी लम्बे समय तक लोग ऐसी आदतों में फंस जाते है, जिनको वे तोड़ नहीं सकते हैं। बाइबल बताती है कि तर्क की दुष्ट (पैशाचिक) शक्तियाँ मनुष्य की कमजोरियों को प्रयोग करके व्यक्ति के जीवन को पकड़ लेती है। अक्सर इसे अस्वभाविक व्यवहार कहा जाता है। दुसरे शब्दों में लोग कुछ नकारात्मक (असमान्य) व्यवहार करते है तथा उन्हें अपने से स्वंय को रोक नहीं पाते हैं। उन्होंने नियंत्रण को खो दिया है। यीशु के क्रूस पर चढ़ाए गये कार्य और उसके रक्त के द्वारा, इस प्रकार की आदतों से आजाद को सकते हैं। जो कुछ भी परमेश्वर के विरोध में हैं उस बुराई को ने नाम से त्याग दें। और जो विजय आपकी है। उसके लिये परमेश्वर की स्तुति करना आरंभ कर दें।

बहुतायत: आपके उद्धार की आशीषें (लाभों) की सुचि बढ़ती ही जाएगी। इसलिये मैं इन बहुत सी आशीषों को ही एक ही शीर्षक ‘‘बहुतायत’’ में रखुंगा। बहुतायत का अर्थ है कि जब एक बार आपका उद्धार हो गया है। तब आप के पास अपने जीवन में सामाजिक भावनात्मक आर्थिक जी हां प्रत्येक प्रकार की आशीषें के लिये परमेश्वर के पास पहुंच है। एक बार उद्धार पाने के बाद आप परमेश्वर की आशीषों के छाए तले आ जाते हैं। प्रार्थना के द्वारा परमेश्वर को अपने दैनिक जीवन में सम्मिलित करें।
 
वह आपके परिवार, आर्थिक स्थिति, काम धन्धा और आपकं हाथ के काम पर आशीष देना चाहता है। 

सिर्फ इतना याद रखें जब भी आप अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन देखों परमेश्वर को महिमा दें। प्रतिदिन उसकी महिमा करें और कभी भी यह न सोचें कि वह आपके गुणों और योग्यताओं का फल है। परन्तु यह कि आपके जीवन पर परमेश्वर की आशीषों ने आपके आगे बढ़ाया तथा सम्पन्न किया है। 

शास्त्र से वचन पढे़ः 
  1. रामियों 8:1
  2. कुलुस्सियों 1ः13
  3. मत्ती 8ः16
  4. भजन 103ः3
  5. व्यवस्था विवरण 28ः1-14

आप जयवन्त हो सकते है

हो सकता है कि आप यह सोचें कि नया जीवन बिना किसी विरोध वाला, सभी लाभों आनन्द व आशीषों से भरा हुआ है। सत्य से आगे कुछ भी नहीं हो सकता है। अपने परमेश्वर से कुछ बहुत ही बहुमूल्य पाया है, और शैतान उसे छीन लेना चाहता है। आपके सामने परीक्षायें और विरोध आएगा। कुछ लोग, आपके नये विश्वास के लिये आपको नीचा दिखाना चाहेंगें। परन्तु आप विजय प्राप्त कर सकते है। और करेंगे भी हमारा यह विश्वास ही वह विजय है, जो संसार से जीत जाता है। (1यूहन्ना 5ः5)

यदि कोई आपको नीचा दिखाए या यीशु से हटने की बातचीत करना चाहे, तो याद रखें, यीशु ने कहा जो भी पवित्र जीवन जीना चाहेगा, वह सताव से दुःख उठाएगा। (2तिमुथियुस 3ः12)

यदि आप दृढ़ बने हुए यीशु की सेवा में लगे रहेंगे, तब वह आपको नीचा दिखाने वाले लोग स्वंय विश्वासी बन जाएंगे। यीशु के 12 शिष्यों से लेकर आज तक जितने लोगों ने यीशु का अनुसारण किया। सभी को विरोध का सामना करना पड़ा। यह आपको मजबूत करेगा। यह आपको आत्मिक रीढ़ (नींव) प्रदान करेगा। हो सकता है अभी तक आपने दूसरों की राय को ही अपने ऊपर अधिकार चलाने की अनुमति दी हो। परन्तु वह सब बदल चुका है। अब यीशु प्रभु है और उसके विचार और राय ही आपके जीवन को चलाएंगे।

याद रखें आप एक ‘‘नई सृष्टि है, सारी बातें बीत गई (2कुरिन्थियों 5ः17) इसका मतलब है कि आपके और विश्वास न करने वालों के बीच समस्या होगी। यह बात तो समझने लायक है, क्योंकि परमेश्वर का जो आत्मा आप में है, वह उनमें नही है। इस का मतलब यह नही है कि वे भले लोग नही हो सकते है। या आप उनके लिये भले नही हो सकते है, उसका सिर्फ यही मतलब है कि उन्होंने उद्धार नहीं पाया है, जो आप पा चुके है। यदि आप विरोध का सामना करते हैं तो यीशु की ओर देखते रहें। प्रतिदिन प्रार्थना में उस से बात करें। उसका वचन पढ़े और जो उससे प्रेम करते व उसकी सेवा करते है, उनके साथ संगति करें।

आपके मसीही जीवन पर परीक्षा (शैतान का प्रलोभन) हमले का एक और स्वरूप है। परीक्षायें सबके सामने आती है। परमेश्वर की प्रतिज्ञा है कि आपके सहने से अधिक परीक्षा आपके सामने नही आएगी और वह आपके बच निकलने के लिये रास्ता बनाएगा। (1कुरिन्थियों 10ः13)

इससे बढ़कर बात यह है कि यीशु भी जब पृथ्वी पर था परखा गया, जिससे कि हमारी परीक्षा के समय हमारी स्थिती का अहसास कर सके। याद रखें यदि आपका ध्यान उसकी ओर लगा रहेगा। वह आपको समझेगा और विजय पाने में आपकी सहायता करेगा। आपके सामने परीक्षा आना पाप नही है। इसलिये शैतान को अपनी निन्दा मत करने दीजिये। यदि आप ऐसा करते रहें है, परन्तु इसके बदले में प्रार्थना में जाए और प्रभु से सहायता मांगे यदि आप मांगेंगे तो वह आपकी सहायता करेगा।

हो सकता है आप ऐसा जीवन जीते रहे है जिसमें आप परीक्षा में गिरते रहे हैं कम से कम आपने सोचा कि उस परिक्षा में पड़ने पर भी आपका काम चल जाएगा जस की वह आदत छुट चुकी हैं। अब आप यीशु के है। आपके पास नई शक्ति है, और यदि आप उसके ऊपर भरोसा करेंगे तो आप विजय पाएंगे। शैतान को अपनी विजय चुराने न दे। वह आपकी है। इसलिये उसे पकड़ कर रखें। 

सारांश में विजय के लिये आपकी कुंजियां है।
(क) प्रतिदिन परमेश्वर का वचन पढ़ना।
(ख) प्रतिदिन परमेश्वर से बातचीत करना।
(ग) दूसरे विश्वासियों के साथ संगति करना।

शास्त्र से वचन पढे़ः
(1) 1यूहन्ना 5ः5
(2) 2तिमुथियुस 3ः12
(3) 2कुरिन्थियों 5ः17
(4) 1कुरिन्थियों 10ः13
(5) इब्रानियों 4ः15

स्थानीय कलीसिया (मण्डली) एक आत्मिक घर

मसीह जीवन आरंभिक रूप से सिर्फ एक अनुभव या एक समय घटने वाली घटना ही नहीं है। यह जीवन है आप प्रतिदिन बढ़ते और सीखते रहते हैं। परमेश्वर के पास एक माध्यम है, जिसके द्वारा वह पृथ्वी पर कार्य करता है। उसे कलीसिया (मण्डली कहते है। इस क्षेत्र में धोखा खाना आसान है क्योंकि बहुत से संगठन हैं जिन्हें चर्च कहा जाता है। 
आप कैसे जान सकते है कि कौन सी कलीसिया (चर्च) सही है? बहुत से लोगो का कहना है कि ‘‘यदि आप कलीसिया (चर्च) में जाते है तो इस बात का कोई अर्थ नहीं है कि आप किस चर्च में जाते है। परमेश्वर ने हमें मापदण्ड का स्तर दिया है, जो कि बाइबल है जिसके द्वारा हम जान सकते है कि क्या सही है, और क्या गलत है। आपको ऐसी मण्डली (चर्च) में जाना है, जो कि सिखाती हो जो कुछ बाइबल कहती है। 

नये नियम की पहली पांच पुस्तकें हैं। मत्ती, मरकुस, लूका, यूहन्ना, प्रेरितों के काम की पुस्तक। आपको इन पांचों पुस्तकों को पढ़ना है। और तब कलीसिया (चर्च) में जाकर वहां की आराधना सेवा को देखकर, आपके जो कुछ भी उस आराधना में देखा है, और जो कुछ आप पढ़ चुके है उसमें समानता को पहचानने की कोशिश करें। नये नियम की पहली पांचो पुस्तकें यीशु की शिक्षाओं व उनके कार्यो को बताती है। एक स्थानीय कलीसिया (चर्च) को यीशु की शिक्षाओं और कार्यो को महत्व देना चहिए। 

स्थानीय कलीसिया में आपको शारीरिक चंगाई, आशीष और विजय का अनुभव करना चाहिए। हो सकता है मैं जिस प्रकार की कलीसिया का वर्णन कर रहा हूँ, वैसा उस क्षेत्र में न हो जहां पर आप रहते है। यदि आपको ऐसी कलीसिया (मंडली) में आराधना करने के लिये दुर भी जाना पडे़ जहां पर पासबान (सेवक) व विश्वासी लोगों का भरोसा परमेश्वर के वचन पर हो, तो आपका जाना बेकार नहीं होगा। एक अच्छी कलीसिया में विजय वातावरण होगा। यीशु ने कहा ‘‘मैं अपनी कलीसिया बनाऊंगा और अधलोेक के फाटक उस पर प्रबल न होंगे?

एक ‘‘अच्छी कलीसिया’’ के बारे में सारी बातें कहने पर हमें यह बात समझना आवश्यक है कि कोई भी कलीसिया ‘‘सिद्ध’’ नही हैं और परमेश्वर व उसके वचन के लिये तीव्र इच्छा रखते हैं।

यदि आपने किसी कलीसिया की आराधना में या किसी व्यक्ति के बताने के द्वारा यीशु को स्वीकार किया है तो यह संभव है कि परमेश्वर उसी स्थानीय कलीसिया का भाग होने के लिये आपको निर्देश दे रहा है। 

यदि आप परमेश्वर के निर्देश पाने के तैयार है, तो मैं जानता हूँ कि वह आपको इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में अगुवाई करेगा। कुछ लोग कहते है कि मैं, व्यक्तिगत रूप से ही परमेश्वर पर विश्वास करता हूँ और मुझे किसी भी कलीसिया में जाने की आवश्यक्ता नही है’’। परन्तु बाइबल कहती है एक दूसरे के साथ इकट्ठा होना न छोड़ें, जैसा कि कितनों की रीति है, पर एक दूसरे को समझाते रहें। और ज्यों-ज्यों उस दिन को निकट आते देखो तो त्यों त्यों और भी अधिक यह किया करो। 

यद्यपि कलीसिया बहुत अधिक महत्व न देती हो, फिर भी यह महत्वपूर्ण है, कि आप उसमें बनें रहें। कलीसिया की सदस्यता के क्षेत्र में भी दूसरे सभी क्षेत्र में भी, दूसरे सभी क्षेत्रों के सिद्धान्तों का अनुकरण करते रहें, परमेश्वर ने जो कुछ भी कहा है उसको मानें। आज्ञापालन से आशीष आती हैं।

पानी का बपतिस्मा (डुबकी)

स्थानीय कलीसिया में आपको पानी के बपतिस्मा (डुबकी) के विषय में सिखाया जाएगा।‘‘ यीशु ने कहा कि जो विश्वास करे और बपतिस्मा ले उसी का उद्धार होगा। बपतिस्मा यूनानी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है ‘‘डुबकी’’ या ‘‘गाड़ा जाना’’। आपको डुबकी देने के लिये काफी पानी की आवश्यक्ता होती है। इसलिये स्थानीय कलीसिया, कलीसिया, एक बपतिस्मा की टंकी का या बाहर कहीं पर भरे हुए पानी का इस्तेमाल करती है। जहां पर आपको एक क्षण के लिये पानी में डुबाया जाएगा यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले में यीशु इसी प्रकार बपतिस्मा दिया।

यह सिर्फ यीशु के शब्दों का सीधा आज्ञा पालन ही नहीं, परन्तु यह बाहरी क्रिया है। जो हमारे अन्दर हुए परिवर्तन को दिखाता है। जब हमारा बपतिस्मा हुआ तो हम मसीह के साथ गाडे गए, अर्थात हम पर ईश्वरीय अभिलाषाओं और विचारों के साथ पुराने जीवन के लिये मर गए। जब आप पानी में डुबाए जाते हो तो यह गाडे़ जाने का प्रतीक है। जब आप पानी से बाहर निकाले जाते हैं। तब यह यीशु के मरे हुओं से जी उठने को दिखाता है। ठीक जैसे वह मरे हुओं से जी उठा। आप भी एक नये जीवन में जिलाए हुए हैं। अब आप एक नये व्यक्ति, तथा प्रभु में नई सृष्टि हैं।

पानी में डुबकी को अस्वीकार न करें। बाइबल के अनुसार पौलुस ने बपतिस्मा लेने के लिये सबसे अधिक इंतजार किया, और वह था मात्र तीन दिन।

वचन - आपका आत्मिक भोजन

यह भी हमत्वपूर्ण है कि आप अच्छी आदतें डालने लगे। प्रतिदिन परमेश्वर के वचन को पढ़े। यह आपकी शक्ति का स्त्रोत है, ठीक जिस प्रकार से शरीर भोजन के बिना कमजोर हो जाता है, उसी प्रकार आपका आत्मिक जीवन आत्मिक भोजन के बिना कमजोर हो जाएगा। हो सकता है कि आप अपनी स्थानीय मंडली में गहरा बाइबल शिक्षा, अक्सर एक सप्ताह में कई बार पाते हों। परन्तु वह आपका व्यक्तिगत रूप से परमेश्वर के वचन पढ़ने की कमी को पुरा नहीं करेगा। यदि आप बाइबल के लिये नये हैं। तो नये नियम की दुसरी पुस्तक मरकुस रचित सुसमाचार से शुरू करें। जो कि आपको संक्षिप्त रूप से यीशु के जवन की रूप रेखा देता है, तब आपको नये नियम की चौथी पुस्तक युहन्ना रचित सुसमाचार पढ़े जो आपको वास्तविक रूप से समझाता है कि उद्धार क्या है?

इन दोनों पुस्तकों को पढ़ने के बाद, मैं आपको नये नियम की शुरूआत से लेकर 27 पुस्तकों को पढ़ने के लिये उत्साहित करूंगा। तब आप निश्चित रूप से आप पुरी बाइबल को शुरू से आखिर तक पढ़ना चाहेंगे आपकी कलीसिया में एक पासबान होंगे। जो आपके बाइबल अध्ययन में अगुवाई करेंगे। जो आपके बाइबल अध्ययन में अगुवाई करेंगे, जिससे कि आप अधिकांश लाभ प्राप्त कर सकेगे।

प्रार्थना - परमेश्वर से बात करना और उसे सुनना

प्रार्थना एक दूसरी प्रतिदिन की आदत है जिसके किए बिना आप नही रह सकते है। कुछ लोगों के लिये यह एक धार्मिक कार्य ही है। दूसरे लोग इसलिये प्रार्थना करते है, क्योंकि यह उन्हें थोड़ी तसल्ली देती है। क्योंकि ये बोलकर अपनी समस्या बता लेते है। परन्तु प्रार्थना बहुत बढ़कर है। 

वह पुरे भरोसे के साथ परमेश्वर से यह जानते हुए बात करना है, कि वह अपने वचन के द्वारा उत्तर देगा। यीशु ने कहा ‘‘मांगो तो तुम्हें दिया जाएगा’’। यह प्रार्थना का पहला स्तर है। जहां आप परमेश्वर के सामने अपनी प्रार्थना के विषयों के लाते है। जब आप उसके वचन के अनुसार प्रार्थना करते हैं, तो निश्चित रहें वह उत्तर देगा।

प्रार्थना का एक और स्तर है। जहां आप परमेश्वर के साथ समय बिताते हैं। यदि आपका कोई अच्छा मित्र हो, आप उसके साथ समय बिताना चाहेंगे, अक्सर बिना किसी कारण से, ऐसा ही परमेश्वर के साथ भी है। जी हां मैं अपनी विनती उसके सामने लाता है, परन्तु मेरी प्रार्थना का अधिकांश समय परमेश्वर की उपस्थिति में ठहरना, उसकी आराधना करने में और उसे यह बाताने में, कि उसने मेरे लिये क्या किया है, निकल जाता है। और परमेश्वर की उपस्थिति में प्रार्थना पुर्वक ठहरने पर, वह धीमे से मेरे मन से, कभी शक्ति देने वाले वचन, और कभी मेरे जीवन में सुधार लाने के लिये बात करता है। 

जब आप इस क्षेत्र में उन्नति करेंगे, यह आपके लिए शक्ति का सामर्थी स्त्रोत बन जाएगा। आप परमेश्वर से किसी भी समय, चाहे कार में हो, बिस्तर में या घुमने -फिरने के समय में बात कर सकते हैं। प्रार्थना के विषय में बाइबल में सैंकड़ों प्रतिज्ञायें हैं। 

उनमें से एक में वह कहता है ‘‘मुझ से प्रार्थना कर और मैं तेरी प्रार्थना सुनकर तुझे बड़ी बड़ी और कठिन बातें बताऊंगा जिन्हें तु अभी नही समझता’’।

शास्त्र से वचन पढे़ः
  1. मत्ती 16ः18
  2. इब्रानियों 10ः25
  3. मरकुस 16ः16
  4. रोमियों 6ः3-4
  5. मत्ती 7ः7
  6. यर्मियाह 33ः3




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