Posts

Showing posts from December, 2020

परमेश्वर ही यज्ञ है।

Image
 परमेश्वर ही यज्ञ है।  श्रृ: - ‘‘प्रजापतिर्थेवेभ्याम आत्मानम् यज्ञम् कृत्वा प्रायच्चत्’’  (सामवेद - ताण्डीया महाब्रम्हाणम् बंगालपत्र 410 अध्याय 7 खंड - 2)  प्रजापति अपने आपको यज्ञ में अपर्ण कर प्रायश्चित को पूरा किया है। ‘‘प्रजापति यज्ञाः’’ (शतपथ ब्राम्हण) प्रजापति ही यज्ञ है।  सब यज्ञ एक महायज्ञ का प्रतिबिंब है:- वेद हमें बताती हैं।  श्लोक: ‘‘प्लवहेयते अध्दृडा यज्ञ रूपा: (मुण्डकोपनिषतु, 2 रा खंड, मंत्र 7) यज्ञ रूपी पतवार मजबूत नहीं है।  श्लोक: प्लवाहेयते सुरा यज्ञः अध्दृडाश्चा न संसयप्त्’’ (स्कांद पुराणम् यज्ञवैभवाखंडम, 7 वा अध्याय) हे देवताओं, यज्ञ एक पतवार जैसी है, वह मजबूत नहीं है इसमें कोई संशय नहीं है।  श्लोक: ‘‘यज्ञोवा अवति तस्पा छाया क्रियते’’ यज्ञ उद्धार करता है। यह एक महायज्ञ की छाया (प्रतिबिंब) है। श्लोक: - ‘‘आत्मदा बलदाः यस्य छाया मृतम् यस्या मृत्युः’’ (ऋग्वेद 10 मंः 121 सूः 2 ऋक्) जिसका यह यज्ञ प्रतिबिंब है मृत्यु अमृत हो जाती है। उसकी प्रतिबिंब बनी मृत्यु आत्मा को बल प्रदान करने वाली होती है।  ध्यान दे:- जो यज्ञ किया जाता है...

बिना रक्त बहाए मोक्ष संभव नहीं है।

Image
बिना रक्त बहाए मोक्ष संभव नहीं है । पापों की क्षमा के लिए रक्त बहाना आवश्यक है, यह बात वेदों में सूचित है कितना घोर क्रूर हिंसा और हत्या है, नहीं, इसमें दैविक प्रेम है वह किस प्रकार है? कृपया नीचे लिखे अंशो को मन से परीक्षा कीजिए:-  यज्ञ (बलि) ही प्रमुख है, कह कर वेद बताते है। ‘‘यज्ञे वै भुवन नाभि’’ संसार के लिए यज्ञ मुख्य आधार है। (ऋग्वेद 1ः164ः25)       (नाभि के समान) ‘‘यज्ञे सर्वम प्रतिष्ठितम्’’ यज्ञ ही सब कुछ देता है।  ‘‘यज्ञो वै सुकर्मानौः’’  यज्ञ ही ठीक राह पर चलने वाली नाॅव है। (ऋग्वेद 1ः3ः13) ‘‘ऋतस्यनाः पथनयति दुरिता’’ यज्ञ के मार्ग द्वारा सब पापों से मुक्ति और सुरक्षा में लेकर जाओ। (़ऋग्वेद 103ः1ः6) श्रृ-‘‘यजमानः पशुः यजमानमेवा - यज्ञ करने वाला ही यज्ञ का पशु है।  सवर्गम् लोकम् गमयति’’ - इसलिये यज्ञ करने वाला अकेला ही स्वर्ग को प्राप्त करता है। (तैत्तरीय ब्राहणम बंगला पत्रम - 202) महायज्ञ की विशेषताएं श्लेक: ‘‘नकर्मणा मनुष्य नैरना स्नान, यात्रा, दान धर्म के कार्य के द्वारा पापविमुक्ति और पुण्य नहीं मिलता है।  लभतेमत्र्यः’’ (श...