परमेश्वर ही यज्ञ है।

परमेश्वर ही यज्ञ है। श्रृ: - ‘‘प्रजापतिर्थेवेभ्याम आत्मानम् यज्ञम् कृत्वा प्रायच्चत्’’ (सामवेद - ताण्डीया महाब्रम्हाणम् बंगालपत्र 410 अध्याय 7 खंड - 2) प्रजापति अपने आपको यज्ञ में अपर्ण कर प्रायश्चित को पूरा किया है। ‘‘प्रजापति यज्ञाः’’ (शतपथ ब्राम्हण) प्रजापति ही यज्ञ है। सब यज्ञ एक महायज्ञ का प्रतिबिंब है:- वेद हमें बताती हैं। श्लोक: ‘‘प्लवहेयते अध्दृडा यज्ञ रूपा: (मुण्डकोपनिषतु, 2 रा खंड, मंत्र 7) यज्ञ रूपी पतवार मजबूत नहीं है। श्लोक: प्लवाहेयते सुरा यज्ञः अध्दृडाश्चा न संसयप्त्’’ (स्कांद पुराणम् यज्ञवैभवाखंडम, 7 वा अध्याय) हे देवताओं, यज्ञ एक पतवार जैसी है, वह मजबूत नहीं है इसमें कोई संशय नहीं है। श्लोक: ‘‘यज्ञोवा अवति तस्पा छाया क्रियते’’ यज्ञ उद्धार करता है। यह एक महायज्ञ की छाया (प्रतिबिंब) है। श्लोक: - ‘‘आत्मदा बलदाः यस्य छाया मृतम् यस्या मृत्युः’’ (ऋग्वेद 10 मंः 121 सूः 2 ऋक्) जिसका यह यज्ञ प्रतिबिंब है मृत्यु अमृत हो जाती है। उसकी प्रतिबिंब बनी मृत्यु आत्मा को बल प्रदान करने वाली होती है। ध्यान दे:- जो यज्ञ किया जाता है...